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जावेद आलम ख़ान की कविताएँ

जावेद आलम ख़ान की कविताएँ

प्रश्नांकित

उम्र बढ़ रही है
खून गाढ़ा हो रहा है, अनुभूतियाँ विरल
डॉक्टर कोलेस्ट्रोल कंट्रोल रखने की सलाह देता है
कमबख्त यह और मुसीबत में जान आई
अब गोश्त खाना कैसे छोडूँ

किताब पढ़ने के लिए रोशनी को ढूँढता हूँ
रोशनी आँखों को आत्मनिर्भर बनने की सलाह देती है
अस्पष्टता के पैर धीरे-धीरे पसरते जाते हैं
आँखों में
मन में
जीवन में

व्यतीत अंतराल में खोजता हूँ कविता
कि व्यथित पंक्तियाँ छोड़ने लगती हैं एक-दूसरे का हाथ
कल्पनाओं को हो जाता है स्मृति लोप
शब्द गिरने लगते हैं व्याकरण की सीढ़ी से
हर बार लगता है जो लिख रहा हूँ
वह लिखा जा चुका है
या लिखा जा चुका होगा
शिल्प की गाड़ी में भावों को ढोए जा रहा हूँ
कवि हूँ या कुली
अपनी भूमिका पर संदेह करना लगा हूँ

'वाह' 'बहुत ख़ूब' टिप्पणियों से सशंकित हूँ
मैं अपनी ही कविताओं में प्रश्नांकित हूँ
चकित हूँ आलोचकों के निंदक रूप से
अफ़सोस फिर भी कबीर न हो पाया

रोज़ मथा जाता हूँ इस प्रश्न से
कि संघर्ष में हमदर्दी दिखाने वाले दोस्त
छोटी-छोटी कामयाबियों पर दुश्मन क्यों बने
वरिष्ठों के असुरक्षा बोध को क्यों न समझ पाया
खिल्ली के पीछे छिपी कुंठा को क्यों न देख पाया
छोटों की जल्दबाज़ी से विचलित क्यों हुआ
जबकि इस भावावस्था से गुजरकर आया हूँ

दिल की आवाज़ सुनते हुए हर बार
नाराज़ दोस्तों से लिपट जाने को पैर उठाता हूँ
और न चाहते हुए भी एक क़दम पीछे खींच लेता हूँ
फिर ख़ुद को तसल्ली देते हुए कहता हूँ
शायद यह भी उम्र का असर है

****************


नरभक्षियों का पशु-प्रेम

जिन पैरों के नीचे गर्दन दबी हो
उन्हें सहलाते हुए उम्र काटने के ज़माने लद गये कविवर
सिसकियाँ सुनने के अभ्यस्त
तुम्हारे कानों को सुभीता हो या न हो
मगर झुठलाए जाने के तमाम ख़तरों के बावजूद
हमारी अस्मिताएँ तुम्हारी छाती पर दर्ज होकर रहेंगी

हमारी पीड़ाओं से अक्षर काले
अब नहीं होंगे
हमारी शिकायतों से घायल तुम्हारे कान
अब नहीं होंगे
तुम्हारी आत्मा पर हमारे आँसुओं का बोझ
अब नहीं होगा
हमारी बदनसीबी तुम्हारी राह का काँटा
अब से नहीं होगी
हमारे पास भी कहाँ होगी अब एक भी सुखद स्मृति

न चाहते हुए भी अब से याद रहेंगे
तुम्हारे पंजे हमारी गर्दन
तुम्हारी बंदूक हमारे सीने
तुम्हारे बुल्डोजर हमारे घर
तुम्हारी आग हमारी दुकान
तुम्हारी वर्दी हमारा संविधान
तुम्हारी धमकियाँ हमारे त्यौहार
तुम्हारी गुर्राहट
अब से हमारी मजबूर हुंकार

चीख़ पर चुप्पी या चर्चा
तुम्हारा अपना चरित्र है, अपना चुनाव है
तुम तानाशाही को व्यवस्था कहो
तुम्हारा सुझाव है
ज़ुल्म की ख़ामोश पैरवी में डूबी
सहानुभूति और सलाह अपने पास रखें कविवर,
अब से नरभक्षियों का पशु-प्रेम हमारे घंटे पर

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रचनाकार परिचय

जावेद आलम ख़ान

ईमेल : javedalamkhan1980@gmail.com

निवास : शाहजहांपुर (उत्तरप्रदेश)

जन्मतिथि- 15 मार्च, 1980
जन्मस्थान- जलालाबाद, ज़िला- शाहजहांपुर (उत्तरप्रदेश)
शिक्षा- एम० ए० (हिंदी), एम० एड, नेट (हिंदी)
सम्प्रति- शिक्षा निदेशालय दिल्ली के अधीन टी०जी०टी० (हिंदी)
प्रकाशन- कविता संग्रह 'स्याह वक़्त की इबारतें' (बोधि प्रकाशन से दीपक अरोड़ा स्मृति योजना में चयनित)
हंस, कथादेश, आजकल, वागर्थ, बया, कथाक्रम, पाखी, पक्षधर, परिकथा, दोआबा, मधुमती, गगनांचल, नई धारा, उदभावना, मुक्तांचल, कृति बहुमत, अक्षरा, जनपथ, वीणा, परिंदे, विभोम स्वर, छत्तीसगढ़ मित्र, कविकुंभ , किस्सा कोताह, सोच-विचार, सृजनलोक, विश्वगाथा, अग्रिमान, ककसाड़, समहुत, सेतु, अविराम साहित्यिकी, सुखनवर, समकालीन स्पंदन, साहित्य समीर दस्तक, हिमतरू, प्रणाम पर्यटन, गुफ्तगू, मैत्री टाइम्स, समकालीन सांस्कृतिक प्रस्ताव, हस्ताक्षर आदि पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। हिंदवी, कविता कोश, पोषम पा, पहली बार आदि ऑनलाइन पोर्टल पर रचनाएँ प्रकाशित।
मोबाइल- 9136397400