Ira
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। दिसंबर 2024 के अंक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।

प्रतिभा सुमन शर्मा की दो कविताएँ

प्रतिभा सुमन शर्मा की दो कविताएँ

कई बार मैं पत्थर हूँ और हूँ बेजान
यह सोचकर कइयों ने किया उपहास
कितनों ने तो उखाड़ फेंकने का यत्न किया
पर स्तंभ हूँ मैं
जड़ें बेहद रुंझी है मेरी

स्तंभ

खड़ी हूँ युगों से
एक स्तंभ बनकर मैं
निच्छल अविरत!

न कोई आँधी डिगा पाई,
न कोई तूफान हिला पाया
समक्ष साक्षी हूँ मैं
कितने ही घटित-अघटित
किनारों की।

दीप स्तंभ भी कह सकते हो मुझे
प्रेरणाओं की तेजोमय ज्योति भी
कुंती ने क्यो फेंका,
कर्ण को पानी में? जानती हूँ
क्यों सरेआम नीलाम हुई द्रौपदी?
यह भी समक्ष देखा मैंने
अहिल्या क्यो पथराई?
और अनुसूया थी किस वासना की बलि?
सीता को अचेत होते भी देखा है
कैसे लिया माँ ने फिर कोख में?
यह भी।

कई बार मैं पत्थर हूँ और हूँ बेजान
यह सोचकर कइयों ने किया उपहास
कितनों ने तो उखाड़ फेंकने का यत्न किया
पर स्तंभ हूँ मैं
जड़ें बेहद रुंझी है मेरी।

इसलिए किसी का बस न चला अब तक
पर फिर कल झाँसी की बाई
एक और देखी निर्भया!
अपनी अस्मत के लिए लड़ मरी
अब न जाने क्या देखना बाकी है
कि खड़ी हूँ नि:शब्द, निस्तब्ध!

देखती हूँ कच्ची कलियों का संहार
आप आओगे, जियोगे और जाओगे
पर मुझे इससे छुटकारा नहीं
खड़े रहना बनकर समक्ष साक्षी
यही नियति है मेरी
क्योंकि मैं हूँ एक स्तंभ

पर कलियुग में लोग मुझे
कुछ और कहते हैं
बड़े अनोखे नाम से पुकारते हैं-
लुगाई
कोई कुछ भी कहे
पर मैं हूँ एक स्तंभ
निच्छल, अविरत, अमिट
एक स्तंभ।

************


चुन्नी

मैं सड़क पार देख रहीं थी
एक औरत भागी-भागी
आ रही थी मेरी ओर
मैंने उसे थामा, रोका और कहा-
"साँस तो ले लो"

वह बिना साँस लिए ही बोलने लगी
उसके सारे कपड़े चिथड़े थे
स्तन भी बाहर झाँक रहे थे
मैंने उसे अपनी चुन्नी ओढाई
पूछा- "कहाँ से आई हो?"

उसने कहाँ किसी ओर युग से
किसी ओर युग से?
हाँ, मैं रानी हूँ महलों की
मुझे हँसी आई

न न, हँसो नहीं, सच है ये
फिर इतने युगों तक कपड़े क्यों नहीं सिले?
हर बार सिले पर
हर युग में वस्त्रहरण हुआ मेरा
सोचा, पूछूँ?
कहीं द्रौपदी तो नहीं हो?
बोली सही पहचाना तुमने

पर अब इस युग में क्यों आई हो?
यह तो कलियुग है?
यह देखने कि अब
शायद सब ठीक हो
पर अब लोग नज़रों से ही
चीरहरण कर देते है यहाँ
कितनी ही नंगी नज़रें देखी हैं मैंने

सहमकर तुम्हारे पास आई
तुमने ही मुझे अपनी चुन्नी ओढाई
उसके बदन पर ओढाई चुन्नी पर
मेरे पेन की स्याही का दाग़
और स्याह हो आया था

1 Total Review
U

Umesh Mehta

13 July 2024

Bahot khub

Leave Your Review Here

रचनाकार परिचय

प्रतिभा सुमन शर्मा 'रजनीगंधा'

ईमेल : pratibha.suman1407@gmail.com

निवास : मुंबई (महाराष्ट्र)

जन्मतिथि- 14 जुलाई, 1971
जन्मस्थान- जलगाँव
शिक्षा- स्नातक (अंग्रेज़ी), एन० एस० डी० दिल्ली (अभिनय)
सम्प्रति- लेखिका, अभिनेत्री एवं निर्देशक
लेखन विधाएँ- कहानी एवं कविता
निवास- 1102, डी-विंग, ओमकार अलटा मोंटे, नियर वेस्टर्न एक्सप्रेस वे, मलाड पूर्व, मुंबई- 400097
मोबाइल- 8655410689