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कथा कहन कार्यशाला - कनोता कैम्प रिज़ॉर्ट

कथा कहन  कार्यशाला - कनोता कैम्प रिज़ॉर्ट

जयपुर के निकट प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर कानोता कैंप रिजॉर्ट में कथाकहन का चौथा तीन दिवसीय राइटिंग वर्कशॉप आयोजित किया गया। कानोता कैंप रिजॉर्ट  के सुरम्य वातावरण की छटा देखते ही बनती है। पंछियों के साथ प्रतिभागियों की उमंगित चहचहाट सुनना सुखद है और वरिष्ठ साहित्यिक विशेषज्ञों को सुनना सोने पर सुहागा है।

जयपुर के निकट प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर कानोता कैंप रिजॉर्ट में कथाकहन का चौथा तीन दिवसीय राइटिंग वर्कशॉप आयोजित किया गया। कानोता कैंप रिजॉर्ट  के सुरम्य वातावरण की छटा देखते ही बनती है। पंछियों के साथ प्रतिभागियों की उमंगित चहचहाट सुनना सुखद है और वरिष्ठ साहित्यिक विशेषज्ञों को सुनना सोने पर सुहागा है। उद्घाटन सत्र का आग़ाज़ ओम थानवी जी के द्वारा “साहित्यिक शिविर क्यों ज़रूरी” के महत्वपूर्ण वक्तव्य के साथ हुआ। देश के पहले हिंदी वेब पोर्टल का इतिहास रचने वाली हिन्दीनेस्ट को नए तेवर,  नए कलेवर के साथ लांच होते देखना सुखद था। अगले सत्रों में  हंस के संपादक संजय सहाय द्वारा “साहित्य में नए दौर की तलाश”  विषय पर और जानकी पुल फेम प्रभात रंजन ने “लैटर्स टू यंग नावलिस्ट मारियो ल्योसा वर्गास”  पर विशिष्ट संवाद रखा। “बोल्ड दृश्य की सॉफ़्ट सिंफनी” में मनीषा कुलश्रेष्ठ  ने  बेहद कुशलता से अपने अनुभवों और लिखते पढ़ते अर्जित ज्ञान को  साझा किया । उन्होंने विभिन्न लेखकों की कहानियों में आए बोल्ड दृश्य की सरंचना और संवेदनशीलता पर बात की।

उपन्यास का शैल्पिक विधान में प्रभात रंजन ने वरिष्ठ लेखिका अलका सरावगी से संवाद किया। दिन के अंतिम सत्र में “कहानी की संरचना” पर प्रोफेसर संजीव कुमार ने  प्रतिभागियों से कहानी के विविध प्रश्नों पर सार्थक चर्चा कर उच्च मानक स्थापित किया।

 पहली शाम  निर्मल वर्मा की कहानी “तीन एकांत का आख़िरी एकांत : वीकेंड” की मंच प्रस्तुति थी। कहानी का रंगमंच  पर  प्रभावी प्रस्तुतिकरण डॉ० ज्योत्सना मिश्रा और काव्या मिश्रा ने किया , जिसे दर्शकों की खूब सराहना मिली।

 दूसरे दिन  के पहले सत्र में लोकप्रिय कथाकार संजीव पालीवाल ने “थ्रिल और रोमांच  की कठिन डगर पर”  विषय पर  दिलचस्प  संवाद किया। उन्होंने प्रतिभागियों को इस संवाद में  शामिल करते हुए  रोचक प्रश्नों के उत्तर दिए। संजीव पालीवाल ने अपने क्राइम सीरीज़ के  उपन्यास

नैना और पिशाच की रचना प्रक्रिया पर भी ईमानदारी से वक्तव्य दिया।

अगला सेशन “ग्राफ़िक उपन्यास के नवाचार” पर आधारित था जिसे यंग ग्राफ़िक नॉवलिस्ट  कनुप्रिया ने  पीपीटी प्रेजेंटेशन के माध्यम से प्रस्तुत किया। इसमें उन्होंने विदेशों में लोकप्रिय  ग्राफ़िक नॉवेल का इतिहास और भारत में  अपने पैर जमाते जा रहे  ग्राफ़िक  नॉवेल पर  उदाहरण देते हुए संवाद किया। कथा कहन का तीसरा सेशन “एक प्रेम कहानी के भीतर”  में लोकप्रिय लेखक गौतम राजऋषि और  “ज़िक्र ए यार चले” की लेखिका पल्लवी त्रिवेदी ने  पुरानी प्रेम कहानियों से लेकर आज की लोकप्रिय कहानियों पर  चर्चा की। गौतम ने कहा कि प्रेम कहानियों में प्रेम एक किरदार होता है।

“लोकप्रिय लेखन में अपना सिग्नेचर कैसे हासिल हो” सेशन में ढाई चाल  और जनता स्टोर के लेखक नवीन  चौधरी और  लेखक कुश वैष्णव ने प्रतिभागियों को साहित्य और उसके पाठक और बाज़ार से परिचित कराया।

दोपहर बाद  के सत्र में  “पटकथा लेखन” पर  महत्वपूर्ण चर्चा हुई। गौरव सोलंकी ने धरा पाण्डेय से अपने संवाद में   पटकथा लेखन की बारीकियों ,मुश्किलों और लंबी  प्रक्रिया पर  सार्थक बातचीत की। गौरव ने कहा कि कंडेंस रियलिटी से ड्रामा बनता है। 

“पॉडकास्ट एक नया कहन” सेशन में हिंदवी संगत के लोकप्रिय एंकर अंजुम शर्मा ने प्रतिभागियों को पॉडकास्ट  की ज़रूरत, आज के दौर में संचार का लोकप्रिय  अनौपचारिक तरीक़ा और उसे आगे बढ़ाने और दर्शकों  के मनोविज्ञान को समझते हुए उसी अनुरूप विषय, कंटेंट के चुनाव पर ज़ोर दिया। अंतिम सेशन में रेडियो के विख्यात एंकर युनुस ख़ान ने क़िस्सागोई को दिलचस्प अंदाज़ में प्रस्तुत किया। अपने रेडियो जीवन  सुनाते हुए युनुस ने आवाज़ से ज़्यादा अंदाज़ पर बल दिया। उन्होंने कहा कि ऑडियो के  लिखना, छपने के लिए लिखने से अलग होता है।

दूसरे दिन की शाम मुशायरा शीन काफ़ निज़ाम साहब की सदारत में बेहद शानदार रहा इसमें मालक नसीम, फ़ारूक़ इंजीनियर, डॉ० विनय कुमार, गौतम राजऋषि और बकुल देव ने शानदार शायरी पेश की। मुशायरे की निज़ामत आदिल रज़ा मंसूर ने की।

 

 आख़िरी दिन का मुख्य आकर्षण अशोक बाजपई जी का “उपन्यास पर कुछ गप्प” विषय पर रोचक वक्तव्य रहा। “मन ही मनुष्य है” विषय पर डॉ० विनय कुमार ने पात्रों के मनोविज्ञान पर चर्चा की। “लिखने के उस पास: प्रकाशन के द्वार” विषय पर अदिति माहेश्वरी ने नये लेखकों को प्रकाशक तक पहुँचने का रास्ता बताया। “पॉइंट ऑफ व्यू” में मनीषा कुलश्रेष्ठ, उषा दशोरा और कुश वैष्णव ने बड़े ही रोचक अंदाज में कहानी किस प्रकार प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय पुरुष के फॉर्म में लिखी जा सकती है बताया। तीसरे दिन के अंतिम सत्र में “जयपुर शहर मेरी कहानी में” के दौरान अंजना देव, लक्ष्मी शर्मा, उमा तसनीम ख़ान और उजला ने अपनी कहानी के अंश पढ़ कर सुनाये इस स्तर का संचालन दुर्गा प्रसाद अग्रवाल ने किया।

साल  दर साल  कथा कहन निखरता जा रहा है, चौथा कथा कहन भी इस यात्रा में मील का पत्थर साबित होगा। कथा लेखन की बारीक़ियाँ सीखाने के लिए चर्चित कथाकार मनीषा कुलश्रेष्ठ द्वारा वर्ष 2021 से कानोता कैंप जयपुर में कथा कहन शुरू किया गया। इस बार तक़रीबन पचास प्रतिभागियों ने इसमें प्रतिभाग किया जिसमें कई तो पहले से लिख रहे हैं मगर अपनी लेखनी को नई दिशा देने एवं शिल्प को और पुष्ट करने के उद्देश्य से आये थे।

जयपुर के निकट प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर कानोता कैंप रिजॉर्ट में कथाकहन का चौथा तीन दिवसीय राइटिंग वर्कशॉप आयोजित किया गया। कानोता कैंप रिजॉर्ट  के सुरम्य वातावरण की छटा देखते ही बनती है। पंछियों के साथ प्रतिभागियों की उमंगित चहचहाट सुनना सुखद है और वरिष्ठ साहित्यिक विशेषज्ञों को सुनना सोने पर सुहागा है। उद्घाटन सत्र का आग़ाज़ ओम थानवी जी के द्वारा “साहित्यिक शिविर क्यों ज़रूरी” के महत्वपूर्ण वक्तव्य के साथ हुआ। देश के पहले हिंदी वेब पोर्टल का इतिहास रचने वाली हिन्दीनेस्ट को नए तेवर,  नए कलेवर के साथ लांच होते देखना सुखद था। अगले सत्रों में  हंस के संपादक संजय सहाय द्वारा “साहित्य में नए दौर की तलाश”  विषय पर और जानकी पुल फेम प्रभात रंजन ने “लैटर्स टू यंग नावलिस्ट मारियो ल्योसा वर्गास”  पर विशिष्ट संवाद रखा। “बोल्ड दृश्य की सॉफ़्ट सिंफनी” में मनीषा कुलश्रेष्ठ  ने  बेहद कुशलता से अपने अनुभवों और लिखते पढ़ते अर्जित ज्ञान को  साझा किया । उन्होंने विभिन्न लेखकों की कहानियों में आए बोल्ड दृश्य की सरंचना और संवेदनशीलता पर बात की।

उपन्यास का शैल्पिक विधान में प्रभात रंजन ने वरिष्ठ लेखिका अलका सरावगी से संवाद किया। दिन के अंतिम सत्र में “कहानी की संरचना” पर प्रोफेसर संजीव कुमार ने  प्रतिभागियों से कहानी के विविध प्रश्नों पर सार्थक चर्चा कर उच्च मानक स्थापित किया।

 पहली शाम  निर्मल वर्मा की कहानी “तीन एकांत का आख़िरी एकांत : वीकेंड” की मंच प्रस्तुति थी। कहानी का रंगमंच  पर  प्रभावी प्रस्तुतिकरण डॉ० ज्योत्सना मिश्रा और काव्या मिश्रा ने किया , जिसे दर्शकों की खूब सराहना मिली।

 दूसरे दिन  के पहले सत्र में लोकप्रिय कथाकार संजीव पालीवाल ने “थ्रिल और रोमांच  की कठिन डगर पर”  विषय पर  दिलचस्प  संवाद किया। उन्होंने प्रतिभागियों को इस संवाद में  शामिल करते हुए  रोचक प्रश्नों के उत्तर दिए। संजीव पालीवाल ने अपने क्राइम सीरीज़ के  उपन्यास

नैना और पिशाच की रचना प्रक्रिया पर भी ईमानदारी से वक्तव्य दिया।

अगला सेशन “ग्राफ़िक उपन्यास के नवाचार” पर आधारित था जिसे यंग ग्राफ़िक नॉवलिस्ट  कनुप्रिया ने  पीपीटी प्रेजेंटेशन के माध्यम से प्रस्तुत किया। इसमें उन्होंने विदेशों में लोकप्रिय  ग्राफ़िक नॉवेल का इतिहास और भारत में  अपने पैर जमाते जा रहे  ग्राफ़िक  नॉवेल पर  उदाहरण देते हुए संवाद किया। कथा कहन का तीसरा सेशन “एक प्रेम कहानी के भीतर”  में लोकप्रिय लेखक गौतम राजऋषि और  “ज़िक्र ए यार चले” की लेखिका पल्लवी त्रिवेदी ने  पुरानी प्रेम कहानियों से लेकर आज की लोकप्रिय कहानियों पर  चर्चा की। गौतम ने कहा कि प्रेम कहानियों में प्रेम एक किरदार होता है।

“लोकप्रिय लेखन में अपना सिग्नेचर कैसे हासिल हो” सेशन में ढाई चाल  और जनता स्टोर के लेखक नवीन  चौधरी और  लेखक कुश वैष्णव ने प्रतिभागियों को साहित्य और उसके पाठक और बाज़ार से परिचित कराया।

दोपहर बाद  के सत्र में  “पटकथा लेखन” पर  महत्वपूर्ण चर्चा हुई। गौरव सोलंकी ने धरा पाण्डेय से अपने संवाद में   पटकथा लेखन की बारीकियों ,मुश्किलों और लंबी  प्रक्रिया पर  सार्थक बातचीत की। गौरव ने कहा कि कंडेंस रियलिटी से ड्रामा बनता है। 

“पॉडकास्ट एक नया कहन” सेशन में हिंदवी संगत के लोकप्रिय एंकर अंजुम शर्मा ने प्रतिभागियों को पॉडकास्ट  की ज़रूरत, आज के दौर में संचार का लोकप्रिय  अनौपचारिक तरीक़ा और उसे आगे बढ़ाने और दर्शकों  के मनोविज्ञान को समझते हुए उसी अनुरूप विषय, कंटेंट के चुनाव पर ज़ोर दिया। अंतिम सेशन में रेडियो के विख्यात एंकर युनुस ख़ान ने क़िस्सागोई को दिलचस्प अंदाज़ में प्रस्तुत किया। अपने रेडियो जीवन  सुनाते हुए युनुस ने आवाज़ से ज़्यादा अंदाज़ पर बल दिया। उन्होंने कहा कि ऑडियो के  लिखना, छपने के लिए लिखने से अलग होता है।

दूसरे दिन की शाम मुशायरा शीन काफ़ निज़ाम साहब की सदारत में बेहद शानदार रहा इसमें मालक नसीम, फ़ारूक़ इंजीनियर, डॉ० विनय कुमार, गौतम राजऋषि और बकुल देव ने शानदार शायरी पेश की। मुशायरे की निज़ामत आदिल रज़ा मंसूर ने की।

 

 आख़िरी दिन का मुख्य आकर्षण अशोक बाजपई जी का “उपन्यास पर कुछ गप्प” विषय पर रोचक वक्तव्य रहा। “मन ही मनुष्य है” विषय पर डॉ० विनय कुमार ने पात्रों के मनोविज्ञान पर चर्चा की। “लिखने के उस पास: प्रकाशन के द्वार” विषय पर अदिति माहेश्वरी ने नये लेखकों को प्रकाशक तक पहुँचने का रास्ता बताया। “पॉइंट ऑफ व्यू” में मनीषा कुलश्रेष्ठ, उषा दशोरा और कुश वैष्णव ने बड़े ही रोचक अंदाज में कहानी किस प्रकार प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय पुरुष के फॉर्म में लिखी जा सकती है बताया। तीसरे दिन के अंतिम सत्र में “जयपुर शहर मेरी कहानी में” के दौरान अंजना देव, लक्ष्मी शर्मा, उमा तसनीम ख़ान और उजला ने अपनी कहानी के अंश पढ़ कर सुनाये इस स्तर का संचालन दुर्गा प्रसाद अग्रवाल ने किया।

साल  दर साल  कथा कहन निखरता जा रहा है, चौथा कथा कहन भी इस यात्रा में मील का पत्थर साबित होगा। कथा लेखन की बारीक़ियाँ सीखाने के लिए चर्चित कथाकार मनीषा कुलश्रेष्ठ द्वारा वर्ष 2021 से कानोता कैंप जयपुर में कथा कहन शुरू किया गया। इस बार तक़रीबन पचास प्रतिभागियों ने इसमें प्रतिभाग किया जिसमें से कई तो पहले से लिख रहे हैं मगर अपनी लेखनी को नई दिशा देने एवं शिल्प को और पुष्ट करने के उद्देश्य से आये थे।

 

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रचनाकार परिचय

टीम इरा वेब पत्रिका

ईमेल : irawebmag24@gmail.com

निवास : कानपुर (उत्तरप्रदेश)