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लोकधुन के सफल चितेरा चित्रगुप्त- मनोज भावुक

लोकधुन के सफल चितेरा चित्रगुप्त- मनोज भावुक

चित्रगुप्त जी की रूचि गीत-संगीत में बचपने से ही थी। एक बार पटना में एक विशाल जनसभा में उन्हें नेहरू जी के समक्ष देश-भक्ति गीत गाने का मौका मिला। नेहरू जी ने चित्रगुप्त जी की इतनी प्रशंसा की कि चित्रगुप्त जी ने गायक बनने का फैसला कर लिया।

लोकधुन के सफल चितेरा चित्रगुप्त हिन्दी-भोजपुरी फिल्मों के अमर संगीतकार हैं।

16 नवम्बर 1917 ई0 को बिहार, गोपालगंज जिला के करमैनी गाँव में जन्मे चित्रगुप्त, जिनका पूरा नाम चित्रगुप्त श्रीवास्तव था की स्कूलिंग सिवान और बनारस में हुई। पटना विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एम.ए. और साथ ही साथ पत्रकारिता की पढ़ाई भी की। उन्होंने देश के स्वतंत्रता संग्राम में भी भाग लिया और परचा बाँटने में रंगे हाथ पकड़ाने पर एक महीना जेल भी काटना पड़ा।

चित्रगुप्त जी की रूचि गीत-संगीत में बचपने से ही थी। एक बार पटना में एक विशाल जनसभा में उन्हें नेहरू जी के समक्ष देश-भक्ति गीत गाने का मौका मिला। नेहरू जी ने चित्रगुप्त जी की इतनी प्रशंसा की कि चित्रगुप्त जी ने गायक बनने का फैसला कर लिया। 1945 ई. में अपने एक छायाकार मित्र मदन सिन्हा (जिन्होंने बाद में ‘इम्तिहान’ फिल्म का निर्देशन किया।) के प्रोत्साहन और सहयोग से उन्ही के साथ बम्बई पहुँच गए अपनी किस्मत आजमाने। वहाँ उन्होंने भारतखण्डे संगीत का अध्ययन किया और बंबई में टिके रहने के लिए बच्चों को संगीत सिखाने का काम भी किया। बाद में एक मित्र सर्वोत्तम बादामी के मार्फत संगीत निर्देशक श्री एस० एन० त्रिपाठी से परिचय हुआ जो उस समय ‘अभिमन्यु’ में संगीत दे रहे थे। त्रिपाठी जी ने चित्रगुप्त जी को दो-तीन गीत दिया धुन बनाने के लिए। चित्रगुप्त जी ने जब धुन बनाकर दिया तो त्रिपाठी जी वाह-वाह कर उठे और उन्हें अपने सहायक के रूप में रख लिया। इतना ही नहीं, अपने कुछ फिल्मों में संगीत निर्देशक के रूप में अपने नाम के साथ चित्रगुप्त जी का नाम भी दिया।

नौजवान चित्रगुप्त ने ‘भगवान मैं तुझको खत लिखता’ व ‘सर्दी का बुखार बुरा’ (मनचला), ‘सिंदबाद’ (सिंदबाद द सेलर), ‘ये कौन आ गया’ (शौकीन) और ‘तेरी ऊँची-ऊँची है दुकान’ (किस्मत) जैसे गीतों से पाश्र्वगायक के रूप में अपनी प्रतिभा का परिचय दिया लेकिन एस० एन० त्रिपाठी जी की सलाह मानकर उन्होंने बाद में अपना ध्यान गायन के बजाय संगीत निर्देशन पर केन्द्रित कर दिया।

शुरुआत में उन्होंने धार्मिक फिल्मों में ज्यादा संगीत दिया। ‘शिव भक्त’ वह पहिली फिल्म थी, जहां से लता मंगेश्कर और चित्रगुप्त जी का साथ शुरू हुआ। वह गीत था ‘बार-बार नाचो’। फिर तो करीब 75 फिल्मों में लगभग 250 गीत लता जी ने चित्रगुप्त जी के संगीत निर्देशन में गाया। मोहम्मद रफी ने भी अपना सबसे ज्यादा गीत चित्रगुप्त जी के संगीत निर्देशन में ही गाया।
इन दोनों पार्श्वगायकों के साथ चित्रगुप्त जी ने 1975 ई. में एक सुपरहिट फिल्म दी - ‘भाभी’। इस फिल्म के ‘ओ कारे कारे बादरा जा रे जा रे बादरा’, ‘चल उड़ जा रे पंछी कि अब ये देश हुआ बेगाना’, ‘टाई लगा के माना बन गये जनाब हीरो’, ‘चली चली रे पतंग मेरी चली रे’ और ‘छुपा कर मेरी आंखों से, वो पूछे कौन हो जी तुम’ जैसे मधुर गीतों ने देश भर में धूम मचाकर रख दिया।

‘भाभी’ फिल्म के गीतों से उन्हें जबरदस्त ख्याति मिली। उसके बाद ‘दो दिल धड़क रहे हैं और आवाज एक हैं’, (इन्साफ), ‘दगा दगा वई वई वई’, एवं ‘लागी छूटे ना अब तो सनम’ (काली टोपी लाल रूमाल), ‘दिल को लाख संभाला जी’ एवं ‘तेरा जादू न चलेगा ओ सपेरे’ (गेस्ट हाउस), ‘तेरी दुनिया से दूर चले होके मजबूर’ (जब तक), ‘दिल का दिया जला के गया ये कौन मेरी तनहाई में’ एवं ‘मुझे दर्दे दिल का पता न था मुझे आप किसलिए मिल गये’ (आकाशदीप), ‘रंग दिल की धड़कन भी लाती ही होगी’ एवं ‘तेरी शोख नजर का इशारा’ (पतंग), ‘मुफ्त हुए बदनाम किसी से हाय दिल को लगा के’ (बरात), ‘दीवाने हम दीवाने तुम’ (बेजुबान), ‘महलों में रहनेवाली दिल है गरीब का’ (तेल मालिश बूट पालिश), ‘नगमा ए दिल छेड़ के होठों में क्यों दबा लिया’ एवं ‘पायलवाली देख ना’ (एक-राज), ‘बांके पिया कहो दगाबाज हो’ (वर्मा रोड), ‘एक रात में दो-दो चांद खिले’ (बरखा), ‘चांद को देखो जी’ एवं ‘तेरी आंखों में प्यार मैंने देख लिया’ (चाँद मेरे आजा), ‘अगर दिल किसी से लगाया न होता’ (बड़ा आदमी),’ एवं ‘जा रे मेरे प्यार के राही’ आ ‘जाग दिले दिवाना’ (ऊंचे लोग), ‘तुमने हँसी ही हँसी में क्यों दिल चुराया जवाब दो’ (घर बसा के देखो), ‘आधी ना रात को खनक गया मेंरा कंगना’ (तूफान में प्यार कहाँ), ‘छेड़ो न मेरी जुल्फें’ एवं ‘मचलती हुई हवा में छमछम’ (गंगा की लहरें), ‘कोई बता दे दिल है जहाँ’ एवं ‘तुम्ही हो माता पिता तुम्ही हो’ (मैं चुप रहूँगी) जैसे अमर गीतों ने चित्रगुप्त जी को आम जीवन से जुड़े संगीतकार के रूप में स्थापित कर दिया। ऐसे सैकड़ों मधुर गीत हैं जिनको लता मंगेशकर, मुकेश, मोहम्मद रफ़ी, किशोर कुमार, महेंद्र कपूर, आशा भोंसले एवं उषा मंगेशकर की आवाज़ों में स्वरबद्ध किया गया है।
लेकिन सच यह है कि शोहरत के उस चकाचैंध से चित्रगुप्त जी को हमेशा वंचित रखा गया, जिसके वह वाकई हकदार थे। इतना प्रभावशाली होने के बावजूद उन्हें बड़े सितारों वाली, बड़े बजट वाली फिल्में नहीं मिलीं क्योंकि वह किसी गिरोह या गुट में शामिल नहीं थे जैसे कि राजकपूर, शम्मीकपूर और राजेन्द्र कुमार के साथ शंकर जयकिशन, दिलीप कुमार के साथ नौशाद और देवानंद के साथ एस० डी० वर्मन। उनके पूरे करियर में केवल एक ही बड़े बैनर, एवीएम प्रोडक्शन, मद्रास ने उन्हें बतौर संगीतकार साइन किया जिसके लिए चित्रगुप्त ने 'शिव भक्त', 'मैं चुप रहूँगी' और 'भाभी' का संगीत रचा।

भोजपुरी फिल्मों के पितामह संगीतकार

अब बात चित्रगुप्त जी के भोजपुरी फिल्मों की। कहा जाता है कि चित्रगुप्त जी के पास लोक धुन का अपार भंडार था। यही कारण है कि ‘गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो’ के निर्माता शाहाबादी जी ने अपनी फिल्म ‘गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो’ में संगीत निर्देशन के लिए चित्रगुप्त जी को चुना। लता और रफी की आवाज में गीतकार शैलेन्द्र के गीतों ‘हे गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो, सइयाँ से कर द मिलनवा’, ‘काहे बँसुरिया बजवलऽ’, ‘सोनवा के पिंजरा में बन्द भइल हाय राम चिरई के जियरा उदास’ को ऐसा हृदयस्पर्शी व जादुई संगीत दिया कि पूर्वोत्तर भारत के गाँव-गाँव में वह गीत गूँजने लगे। फिर तो भोजपुरी सिनेमा में उन्हीं के संगीत का एकछत्र राज्य हो गया। बलम परदेसिया, हमरी दुलहिनिया, सैंया ले जा तू गवनवा, भैया दूज, बिहारी बाबू, गंगा किनारे मोरा गाँव, पिया के गांव, धरती मइया, दुलहिन, गंगा कहे पुकार के, विरहिन जनम-जनम के, हमार भौजी, गोदना, पान खाए सइयां हमार, सेनुर आदि कई फिल्मों में उन्होंने संगीत दिया।

शैलेन्द्र और मजरूह सुल्तानपुरी के अलावा गीतकार लक्ष्मण शाहाबादी के साथ भी चित्रगुप्त जी की जोड़ी खूब जमी। गंगा किनारे मोरा गांव और धरती मइया इसी जोड़ी के कमाल के नाम है। धरती मइया के गीत ‘जल्दी जल्दी चलू रे कहँरा’, केहू लुटेरा केहू चोर हो जाला’, चाहे गंगा किनारे मोरा गाँव के गीत, जइसे रोज आवेलू तू टेर सुन के, मेला में सइयाँ भुलाइल हमार, दे द पीरितिया उधार धरम होई, भीजे रे चुनरी भीजे रे चोली भीजे बदनवा ना आ चाहे जिआ द सइयां चाहे मुआ द, तहरे भरोसे बानी किरिया खिआ ल आज भी सबकी जुबान पर है।

किशोर दा का सबसे मशहूर भोजपुरी गाना 'जाने कईसन जादू कईलू मंतर दिहलू मार' (धरती मैया) भी चित्रगुप्त जी के संगीत निर्देशन में हैं। इस फिल्म में कुणाल सिंह और गौरी खुराना मुख्य भूमिका में थे और फिल्म 1981 में रिलीज हुई थी।

चित्रगुप्त के संगीत निर्देशन में कुछ कालजयी गीत बने हैं, जैसे कि "जा जा रे सुगना जा रे, कही दे सजनवा से, लागी नाही छूटे रामा चाहे जीया जाये, भयी ली आवारा सजनी, पूछ ना पवनवा से, लागी नाही छूटे रामा चाहे जिया जाये"। इस गाने को लता जी ने गाया है। मजरूह साहब ने लिखा है।

संगीत मर्मज्ञ यतीन्द्र मिश्र कहते हैं कि ‘चित्रगुप्त के संगीत निर्देशन मे लता मंगेशकर इतनी सहज होती थीं कि पूरी तन्मयता से उस गीत को मधुर बनाने में उनका साथ देती थीं। पहली भोजपुरी फिल्म गंगा मैया तोहे पियरी चढइबो के गाने के लिए लता जी ने चित्रगुप्त जी से कोई रुपये पैसे की माँग नही की थी। उनकी चाहत केवल चित्रगुप्त जी की सुमधुर धुन को स्वर देना था।‘

1974 के आस-पास उन्हें लकवा मार दिया और वह शारीरिक रूप से बहुत कमजोर हो गये। करीब ढाई सौ (250) फिल्मों में बारह सौ (1200) से अधिक गीतों के संगीतकार चित्रगुप्त जीवन के अन्तिम क्षण में भले ही संगीत के क्षेत्र में सक्रिय नहीं रहे लेकिन उनको यह संतोष था कि उनके बेटे आनन्द और मिलिंद उस सुमधुर संगीत परम्परा को आगे बढ़ा रहे हैं।

14 जनवरी 1991, मकर संक्रांति का दिन। आकाश में रंग बिरंगा पतंग उड़ाया जा रहा था और एक प्यारा सा गीत भी उड़ान भर रहा था - ‘चली चली रे पतंग मेरी चली रे’...... किसको मालूम था कि संगीत के आकाश में सुरीले गीतों के पतंगबाज चित्रगुप्त उसी दिन इस संसार को अलविदा कह देगें ....... ठीक अपने गीत की तरह -‘चल उड़ जा रे पंछी कि अब ये देश हुआ बेगाना।’

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(लेखक मनोज भावुक भोजपुरी सिनेमा के इतिहासकार, फ़िल्म गीतकार व भोजपुरी जंक्शन पत्रिका के संपादक हैं।)

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रचनाकार परिचय

मनोज भावुक

ईमेल : manojsinghbhawuk@yahoo.co.uk

निवास : गौतम बुद्ध नगर (उत्तर प्रदेश )

जन्मतिथि- 2 जनवरी 1976 
जन्म स्थान- पुत्र- स्व. रामदेव सिंह, ग्राम-कौसड़, पोस्ट-गभीराड़, जिला-सिवान, बिहार
लेखन विधा- कविता, कहानी, आलेख, पटकथा, फिल्मी गीत 
शिक्षा- इंजीनियरिंग 
सम्प्रति- संपादक, भोजपुरी जंक्शन 
प्रकाशन- तस्वीर जिंदगी के (भोजपुरी ग़ज़ल-संग्रह), चलनी में पानी (भोजपुरी कविता- संग्रह), भोजपुरी सिनेमा के संसार (इतिहास / प्रकाश्य)
सम्मान- अनेक राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय
प्रसारण- रेडियो व अनेक टीवी चैनल से 
पता- फ्लैट-3017, टॉवर-17, महागुन माइवुड्स, ग्रेटर नोएडा वेस्ट, गौतम बुद्ध नगर, उत्तर प्रदेश  
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