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इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। दिसंबर 2024 के अंक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।

मंजू लता श्रीवास्तव के गीत

मंजू लता श्रीवास्तव के गीत

शिव मंदिर के चारों कोने
चारों धाम हुआ करते थे
छोटी-छोटी इच्छाओं के
चक-मक पंख उड़ा करते थे

एक- मन की आँखें

मन की भाव भरी आँखें अब
देख रहीं परिदृश्य पुराने

दादा के घर की दीवारें
कच्ची, सोंधी मिट्टी वाली
दादी के आँचल की छाया
लाल किनारे पट्टी वाली

दोनों हाथ उलीच रही माँ
ममता के अनमोल खजाने
मन की भाव भरी आँखें अब
देख रहीं परिदृश्य पुराने

शिव मंदिर के चारों कोने
चारों धाम हुआ करते थे
छोटी-छोटी इच्छाओं के
चक-मक पंख उड़ा करते थे

गुड़िया के रंगीन घरौंदे
हमने राजमहल थे माने
मन की भाव भरी आँखें अब
देख रहीं परिदृश्य पुराने

मेले में जाने की जिद ने
झूठे आँसू खूब बहाए
जा मेले में चूल्हा- चक्की,
मिट्टी के बर्तन घर लाए

सिरकी वाली कुल्फी को ही
मक्खन और मलाई जाने
मन की भाव भरी आँखें अब
देख रहीं परिदृश्य पुराने

चित्र नहीं धुँधले पड़ पाए
समय ने गहरे रंग भरे हैं
अक्षर-अक्षर गीत पुराने
रोम-रोम में रचे-बसे हैं

गाँव हमारी पूरी दुनिया
शहरी वातावरण अजाने
मन की भाव भरी आँखें अब
देख रहीं परिदृश्य पुराने।

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दो- बादल ठिठक गए

कहने को ऋतु पावस
लेकिन बादल ठिठक गए

उमड़े-घुमडे़ भूरे-काले
किरण पड़ी होते रतनारे
बिन अनुमति इंदर राजा के
बरस न पाए मन को मारे

भारी-भारी मन लादे
ये बादल छिटक गए

अंकुर करतल फैला-फैला
जीवन का रस माँग रहे हैं
पतझर की पीड़ा में डूबे
तरुवर बाट निहार रहे हैं

आँचल फैलाए धरती के
कोने सिसक गए

किसने जादू-टोना कर-कर
उनकी गति को रोक दिया है
ये तो पागल आवारा पर
संयम का श्लोक दिया है

सावन-भादों खूब बरसते
फिर क्यूँ बिदक गए।

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तीन- क़र्ज़े का पर्याय हो गया

रामदीन का
जीवन जैसे
क़र्ज़े का पर्याय हो गया

गुज़रे होते नहीं
पिता जो
रोटी दाल सहज ही चलती
मैट्रिक तक
स्कूल तो जाता
शिक्षा उच्च भले न मिलती

चटनी रोटी
वाला जीवन
बिना दूध की चाय हो गया

बहनों का
इकलौता भाई
हो पाती न बहुत कमाई
रोज बढ़े
बीमारी मांँ की
पर मिल पाती नहीं दवाई

खोज रहा
नित नई नौकरी
एक दुधारू गाय हो गया

जब से होश
संभाला घर में
क़र्ज़ा बैठा पांँव पसारे
कितने कितने
जतन किये
फिर भी निकला वह नहीं निकारे

रोज तकादे
सुन सुन कर वह
जीवित पर मृत प्राय हो गया.

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चार- अपनों से हारे

बाहर जीत पताका फहरे
घर भीतर अपनों से हारे

राजतिलक, सिंहासन, नारे
भीड़-भाड़ और ग़ज़ब नज़ारे
अंतर बैठी आत्म-वेदना
पल-पल तन का महल उजाड़े

धन-दौलत, सुख-साधन सारे
कब सुख देते जब मन हारे

रिश्ते-नाते, जगत-प्रपंचों
ने मन‌ को कुछ ऐसा घेरा
भ्रम, संशय के वटवृक्षों ने
ढाँप दिया अँकुरित सवेरा

जगमग किला स्वर्ण किरणों से
पर प्रकोष्ठ में घुप अँधियारे।

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पाँच- समय निरुत्तर

समय निरुत्तर
व्यक्ति निरुत्तर
उत्तर नहीं किसी के पास
जीवन की
अनबूझ पहेली
डिगा रही मन का विश्वास

कटे पंख
फिर उड़ना कैसा
बंँधे पाँव, कैसा चलना
मन के घोड़े
हार मान कर
देखें सूरज का ढलना

पीड़ाओं की
पृष्ठभूमि पर
लिखा जा रहा है आकाश

हम पोखर
हमको मेघों के
जल ने दिया सदा जीवन
पर प्रचंड
सूरज किरणों ने
छीन लिया हमसे यौवन

तपा हृदय
अब धूल उड़ाता
छोड़ रहा केवल उच्छवास

कुंठाएँ
निर्मूल नहीं है
फैल रहीं मन के अंदर
जला रही हैं
अंकुर अंकुर
धरा हो रही है बंजर

एक विषम युग
की गाथा अब
रचने लगी नया इतिहास

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2 Total Review

सन्तोष सरस

07 September 2024

मंजुलता जी अपने गीतों में रिश्तों की बारीक पहचान करती हैं,वे विभिन्न सन्दर्भों की पड़ताल करते हुए लोकतत्वों का सुन्दर और बोधगम्य निरूपण करती हैं।उनके गीत नए पुराने के समन्वय के हामी हैं।पर्यावरणीय सोच और प्राकृतिक संतुलन के सरोकारों से लबरेज़ ये गीत गहरा प्रभाव छोड़ने में पूर्णतः समर्थ हैं।

देवेन्द्र कुमार पाठक

10 August 2024

सम्मान्या अनुजा मंजुलता श्रीवास्तव के नवगीत अपने निरन्तर धुँधलाते लोकसंस्कारों की स्मृतियों के मौजूदा यथार्थ की पड़ताल का सुयत्न है। आधुनिकतावाद से पनपी गाजर घास सी उर्वर लोकजीवन को मिटाने पर आमादा आधुनिकता की परख है। पारिवारिक सम्बन्धों की गहन सम्वेदना को बूझना अतीत मोह का अरण्य रोदन कहकर टालनाअपनी अस्मिता को आप को ही खोना है। लोक संस्कारों की स्मृतियों में हमारी सामाजिकता बची है। वाकई, अत्यंत आत्मीय ,सहज सुबोधगम्य नवगीत कथ्य की जटिलता से मुक्त तथा लयात्मकता से परिपूर्ण हैं।

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रचनाकार परिचय

मंजू लता श्रीवास्तव

ईमेल : manjulataSrivastava10@gmail.com

निवास : कानपुर (उत्तर प्रदेश)

नाम- डॉ० मंजू लता श्रीवास्तव
जन्मतिथि- 30 नवंबर, 1956
जन्मस्थान- चित्रकूट(उत्तर प्रदेश)
लेखन विधा- गीत, कविता, दोहा, कहानी, आलोचना,
शिक्षा- एम.ए.,पी-एच.डी., ज्योतिष विशारद
सम्प्रति- रिटायर्ड प्रोफेसर, साहित्य लेखन
प्रकाशन-
1)आकाश तुम कितने खाली हो (कविता संग्रह) 2017
2)पतझर में कोंपल (गीत/नवगीत संग्रह) 2018
3)फिर पलाशी मन हुए (नवगीत संग्रह) 2019
4)मन कपास के फूल (दोहा संग्रह) 2021
5)समय निरुत्तर (नवगीत संग्रह) 2022
6)चढ़े पंख परवाज (कविता संग्रह) 2022
7)पत्थर के शहर में (नवगीत संग्रह) 2023
8)बुलबुल का घोंसला (बालगीत संग्रह) 2023
30 साझा संकलन
पत्रिका- इंद्रप्रस्थ भारती साक्षात्कार, साहित्य अमृत, वीणा, साहित्य भारती, संवदिया, कवि कुंभ, रचना उत्सव, आधारशिला, आदि प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में गीतों का प्रकाशन
सम्मान/ पुरस्कार- उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान लखनऊ से 2018 का बलवीर सिंह 'रंग' पुरस्कार प्राप्त हुआ। 
प्रसारण- लखनऊ आकाशवाणी से वार्ता प्रसारित
संपर्क- डी-108 श्याम नगर
कानपुर 208013 (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल- 9161999400