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नीलम तोलानी 'नीर' के लघु-उपन्यास 'करवाचौथ' की तीसरी कड़ी

नीलम तोलानी 'नीर' के लघु-उपन्यास 'करवाचौथ' की तीसरी कड़ी

डूबते सूर्य की किरणें सुनहरी रेत पर परावर्तित होकर मरीचिका जैसा आभास दे रही थी.. देखते देखते कबीर सोचने लगा.. पिछले तीन दिन से मेरी हालत भी कुछ कुछ ऐसी ही हो गई है। कभी वह बहुत पास होती है और मैं उसे बाहर हर जगह देख रहा होता हूँ...जब उसे मरीचिका जान उसके अस्तित्व को नकारने लगता हूँ ,संभलने लगता हूँ, तो फिर अचानक से उसकी झलक... वहीं प्यास जगा जाती है। पता नहीं आगे क्या हो? मरीचिका या हक़ीक़त?

अब जबकि कहीं जाने की कोई योजना तो थी नहीं.. यूँ ही सड़कों पर आधा घण्टा भटकने के बाद कबीर "कैनन बूट" तट पर पहुँचा... पार्किंग से ही समुद्र की अतुल्य राशि निहारने लगा... डूबते सूर्य की किरणें सुनहरी रेत पर परावर्तित होकर मरीचिका जैसा आभास दे रही थी.. देखते देखते कबीर सोचने लगा.. पिछले तीन दिन से मेरी हालत भी कुछ कुछ ऐसी ही हो गई है। कभी वह बहुत पास होती है और मैं उसे बाहर हर जगह देख रहा होता हूँ...जब उसे मरीचिका जान उसके अस्तित्व को नकारने लगता हूँ ,संभलने लगता हूँ, तो फिर अचानक से उसकी झलक... वहीं प्यास जगा जाती है। पता नहीं आगे क्या हो? मरीचिका या हक़ीक़त?

दोपहर 3 बजे का वक़्त... तो! आज फिर रविवार है, फिर वही फुर्सत... वही घर.. वही यादें ....वही न कटने वाला समय...हर क्षण बीतता हो ऐसे कि ज़िंदगी पर एक अहसान हो..वही अकेलापन... स्निग्धा सुबह के पेपर लिए अपने कमरे में बिस्तर पर आ बैठी.... सामने रखी अलमारी के दर्पण में निगाह पड़ते ही सहसा उसे सुबह अरविंद जी की कही बातें याद आ गईं... आपकी सुंदरता मिस स्निग्धा ... काश कि इस सुंदरता में सुख होता…..काश कि ये इस चमड़ी से भीतर उतर नसों मैं बहते खून में घुलमिल जाती ,काश कि.... पेपर को हाथ में पकड़े -पकड़े सारे अक्षर नज़रों में धूमिल होने लगे। सिर पीछे तकिए पर टिका कब आँखे शून्य में खो गईं, पता भी न चला। कनाडा का सुदूर पश्चिमी कोना, एक छोटा सा, चारों और से छोटी पहाड़ियों ,हरियाली की मखमली चादर ओढ़े प्राकृतिक सुंदरता से लबरेज़ क़स्बा। आठ नौ हज़ार के आसपास आबादी। पिताजी का छोटा सा ट्रांसपोर्टेशन का कारोबार। मम्मी-पापा और स्निग्धा... बहुत ज़्यादा भारतीय तो नहीं इस तरफ़.. पर चार पाँच सौ तो फिर भी रहे ही होंगे। कई बरसों पहले कनाडा की मूल निवासी, कैनेडियन पिता और भारतीय माँ की पुत्री स्निग्धा की माँ जब भारत घूमने आईं ,तो ताजमहल देखने के दौरान स्निग्धा के पिता को अपना दिल दे बैठीं वह मुमताज ,शाहजहां के महलों की रानी तो न बनीं... अपितु इस भारतीय राजकुमार को अपने साथ कनाडा उड़ा ले आईं.. आगरा की सघन बस्तियों ..ससँकरी गलियों से दूर.. प्रकृति की गोद में। आठ भाई-बहनों के परिवार में सबसे छोटी यह बाला सबसे छोटी होने से सबसे अधिक लाडली थी। वही मारिया (स्निग्धा की माँ) और गिरीश (स्निग्धा के पिता) जिन्हें बाद में कुछ उच्चारण दोष और कुछ कैनेडियन दिखने के मोह ने गेरी बना दिया ..ने एक छोटा ट्रांसपोर्टेशन का व्यवसाय खोल दिया । क़स्बाई उपज को बड़े शहरों तक पहुँचाना और वापसी में किराना और कॉस्मेटिक का सामान लाकर लोकल वेंडर तक पहुँचाना ..। बस धीरे-धीरे ज़िंदगी की रेल सारी फ़िक्र परेशानियों का धुँआ हवा में छोड़, अपनी गति से चलने लगी। स्निग्धा के आने से परिवार भी पूरा हुआ। हालाँकि यह नाम "स्निग्धा" भारत आने पर उसने खुद ही खुद को दिया.. वहाँ तो वह सिमोन थी "सिमोन त्यागी".। शुक्र है उपनाम का केनेडियन करण नहीं हुआ। तब शायद दस वर्ष की रही होगी... इतना बड़ा मामा मासी का परिवार ,उसे मिलाकर एक दर्जन कज़न। सारा दिन घूमना ,फिरना ,खाना .. समय अपनी गति से कुछ अधिक ही तेजी से बीत रहा था ...यकायक क़िस्मत कुछ रूठ सी गई हो जैसे... विगत तीन वर्षों के अंतराल में आठ भाई बहनों के परिवार में ,तीन बड़े भाई और दो बहनें असमय काल के गाल में समा चुके थे.. छठे नंबर की बहन की तबीयत भी कुछ नासाज़ सी रहने लगी थी। शहर के बड़े हॉस्पिटलों में भी सभी जाँचें हो चुकी थीं। कारण किसी को समझ नहीं आ रहा था.. ऐसा क्या, कहाँ ग़लत था? जो सभी धीरे धीरे मौत के आग़ोश में जा रहे थे... प्रश्न कई थे पर उत्तर केवल मौन!! गेरी बेहद चिंतित थे,जिस तरह परिवार में एक के बाद एक हँसती ज़िंदगियाँ ,मौत के हाथों परास्त हो रही थीं, कहीं कुछ बहुत बड़ी गड़बड़ थी पर आखिर क्या? मन ही मन गेरी वापस भारत आने का सोच चुके थे। मारिया को ले कोई ख़तरा नहीं लेना चाहते थे।बहुत पहले कहीं जैनेटिक बीमारियों के बारे में पढ़ा था, जो रह रह उनके दिमाग़ मैं कौंध जाता था।कल सुबह ,नहीं आज ही ,मारिया से बात करनी होगी। कल हॉस्पिटल से रिपोर्ट्स भी आने वाली थीं।
मेरी को मनाने में गिरीश को बहुत अधिक प्रयत्न नहीं करना पड़ा। वह खुद ही अपने भविष्य को लेकर परेशान थी... उसे भय था कि कहीं वह भी... सुबह अस्पताल से आई रिपोर्ट में यह तो निश्चित हो गया कि... मेरी के माता या पिता से यह बीमारी सभी बच्चों में आई थी । यह एक जेनेटिक कुछ-कुछ "सिकल सेल एनीमिया" से मिलती-जुलती बीमारी थी.. जो कि गुणसूत्रों के म्यूटेशन से उत्पन्न होती है। बच्चों के इससे संक्रमित होने के अस्सी से नब्बे प्रतिशत संभावना होती हैं। मेरी सहित सभी भाई-बहन इससे संक्रमित थे, इस रोग से संक्रमित लोगो की उम्र चालीस से पचास के बीच होती है। सारा परिवार भयाक्रांत था। गेरी के बहुत आग्रह पर भी सभी भारत जाने को तैयार न थे।
खैर ! गेरी अपनी पत्नी और अपनी आत्मजा को ले आगरा आ गए। मेरी फिर कभी अपने परिवार से मिल पाएगी या नहीं? कौन पहले मृत्यु का वरण करता है? यह तो अभी समय के गर्भ में था.. ज़िंदगी और मौत के बीच शह और मात की बिसात बिछ चुकी थी ... आज फिर से गैरी , गिरीश थे।अपने परिवार के बीच... वहीं उसी जगह जहाँ से मेरी के साथ यात्रा शुरू हुई थी। यूँ तो सभी ने गिरीश, मेरी और छोटी सी परी जैसी दिखने वाली सिमोन का खूब स्वागत किया। ख़ासकर से सिमोन के गिरीश जैसे नैन नक्श और कैनेडियन रंगत ने सभी को आकर्षित कर रखा था। पर जब गिरीश ने यूँ अचानक भारत आने का कारण बताया ...तो जाने सभी की मोहब्बतें कहाँ छूमंतर हो गई? गिरीश के लाए सारे तोहफ़े, उसकी दौलत की चकाचौंध की चमक सब उसके इतने वर्षों की.. याद न करने, मतलब से वापस आने और संपत्ति के बंटवारे के ख़याल के आगे हल्की पड़ने लगी। एक बीमार बहू ,उसकी सेवा ,फिर कुछ खुद के संक्रमित होने का अनजाना डर हावी होने लगा...सभी ने एक स्वर से गेरी और परिवार को अस्वीकार कर दिया। नन्ही सिमोन जिसकी बलैया ले दादी थकती न थीं, जिसने लाड से उसकी चिकनी कोमल त्वचा देखकर उसे प्यार से स्निग्धा कहा... समझ ना पाई कि अचानक सब की गोदी, उसके लिए प्यार कहाँ गुम हो गया? उसने तो कोई भी बैड बिहेवियर नहीं किया था... आगरा की धरती, उसकी ममता बहुत छोटी हो गई थी, जहाँ इन तीनों प्राणियों के लिए लेश मात्र भी जगह शेष न थी। गोवा के सरकारी अस्पताल में गिरीश के परम मित्र डॉ० निशांत जो कि हुमाटोलॉजिस्ट थे ,काम करते थे। गोवा हिंदू और ईसाई दोनों ही तरह की संस्कृति से समृद्ध था। प्राकृतिक सुंदरता, शांत समुद्र तट, कम आबादी वाला छोटा सा शहर था । तो अंततः गोवा में ही बसने का निर्णय लिया गया। गोवा में आवास की समस्या तो निशांत ने हल कर दी। दक्षिणी गोवा में एक छोटा सा आरामदायक फ्लैट खरीदा गया, मेरी का भी इलाज, निशांत के अस्पताल में शुरू हो गया था ...अगले दिन निकट के स्कूल जाना था सिमोन का दाखिला करवाने के लिए। स्कूल जाने के पहले,
सिमोन: "डैडी ,दादी ने मुझे आने के पहले कुछ भी गिफ़्ट नही दिया... प्यार भी नही किया। क्यों डैडी?
" गेरी कुछ दुखी से :"बेटा पहले इतना सारा प्यार किया तो था, वो भूल गए?"
" डैडी, दादी मुझे स्निग्धा कह कर पुकार रही थीं। मुझे बहुत अच्छा लगा। क्या हम स्कूल में मेरा नाम स्निग्धा रख सकते हैं " स्निग्धा त्यागी"।

"बिलकुल, मेरी नन्ही परी ... स्निग्धा त्यागी"

नया शहर,नई दिनचर्या, मैरी की बीमारी... सब सुखद तो नहीं ...पर तीनों कोशिश कर रहे थे, नई ज़िंदगी में ढलने की। जीवन को चलना होता है अंतिम श्वास तक.. अपनी मर्ज़ी से नहीं,तो उसकी मर्ज़ी से... फ्लैट लेने में काफी रुपया ख़र्च हो चुका था। मैरी की बीमारी, घर के बाक़ी ख़र्च ,घर की ज़िम्मेदारी , गिरीश इन सब में उलझ कर रह गए थे । अभी तक चाहकर भी अपने लिए कुछ स्थाई काम नहीं ढूँढ पा रहे थे ।सारी जमा -पूँजी भी धीरे-धीरे चुक रही थी । सारी चीजें एक साथ चिड़चिड़ाहट में परिवर्तित हो, गिरीश को मानसिक यातना दे रही थीं। एक तरफ़ मैरी थी, जिसे वह अपने आप से ज़्यादा चाहते थे। दिनों दिन उसकी गिरती सेहत, कंकाल में बदलते उसके रूप यौवन को देख, गिरीश खुद भी चिंता में असमय ही बूढ़े हो रहे थे।
(डा ०निशांत के केबिन में,विंटेज गवर्मेन्ट हॉस्पिटल)

गिरीश: "निशांत तुम्हारी दवाइयों से तो कोई असर होता नहीं दिख रहा है।" "देखो गिरीश मैं तुम्हें झूठी संभावनाओं के सब्ज़बाग़ नहीं दिखाऊँगा। अभी तक ऐसी कोई दवाई और न ही सर्जिकल खोज हुई है... जिससे गुणसूत्रों का प्रारूप बदला जा सके। मैरी की उम्र दवाइयों से कुछ बढ़ाई तो जा सकती है, पर ....

"तब तो मेरा यहाँ आना व्यर्थ हुआ न?"

" सब्र रखो मेरे भाई! वहाँ भी तो यही है। क्या अपने भाई बहनों का अंत होते देख पाती मैरी? शारीरिक रूप से तो बाद में कुछ होता... क्या मानसिक रूप से मृत्यु के डर से पहले ही न चली जाती...? फिर यह क्यों भूलते हो कि यहाँ तुम्हारा परिवार है ।

" "परिवार!!... वही तो नहीं है मेरे पास... पहले अपनों को पराया कर के वहाँ गया। फिर जो अपने मिले, उन्हें पराया कर यहाँ आ गया ,और अब देखो.. मेरे पास कोई कंधा नहीं। प्लीज़ मैरी को बचा लों, मैं नही जी पाऊँगा उसके बगैर... आई बेग यु.." निशांत !...
न चाह कर भी गिरीश की नम हो गयी आँखों से आँखें न मिला पाये निशांत।
,प्रकट में कंधे पर हाथ रखकर इतना ही कहा... "काश... कि मैं कुछ कर पाता..गिरीश! सिमोन को देखो, उसे अभी सबसे ज़्यादा तुम्हारी ज़रूरत हैं। हाँ, याद आया ...सिमोन की रिपोर्ट भी आ गई है, सब नॉर्मल है, पर हर साल तुम्हें परीक्षण करवाते रहना होगा। जब तक कि इस बीमारी के सभी रहस्यों से पर्दा हट नहीं जाता।"

सिमोन अब बारह वर्ष की हो चली थी, जिस सहजता से उसने अपने नए नाम ' स्निग्धा त्यागी 'को अपनाया था, काश कि उस वक़्त की परिस्थितियों को भी अपना पाती। विद्यालय का समय तो सहेलियों के संग बीत जाता, पर रोज रोज तिल तिल मृत्यु की ओर कदम बढ़ा रहीं,अपनी माँ,परिस्थितिवश उत्पन्न हुई पिता की चिड़चिड़ाहट, व उनके क्रोध से सामंजस्य बिठाना उसके लिए अत्यंत कठिन हो चला था। उसे समझ ही नहीं आ रहा था, कि अचानक परीलोक जैसी सुंदर दुनिया,जहाँ वह पूरे परिवार की आँख का तारा थी, से इस शापित ज़िंदगी में कैसे आ गई है?और क्यों ? क्यों अब कोई उसे प्यार नहीं करता? क्यों पापा उसे प्यार से गले नहीं लगाते? अब तो किसी को यह भी याद नहीं रहता, कि सुबह से उसने कुछ खाया भी है या नहीं? होमवर्क भी किया है या नहीं? इन परिस्थितियों का उसके भी मन पर असर हो रहा था। कोई और था भी नहीं, जो उसे संभालता या समझाता...जब छोटी छोटी बातों के लिए पापा उसे डाँटते तो उसे लगता ...कि ऐसी मम्मी से तो शायद मम्मी का न होना ही अच्छा हो ...सारी गलती मम्मी की है, जो सब बदल गया ...मम्मी नही होगी तो शायद पापा का समय तो उसका होगा ...

उपन्यास की अगली कड़ी अप्रैल माह के अंक में..........  

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रचनाकार परिचय

नीलम तोलानी 'नीर'

ईमेल : neelamtolani23@gmail.com

निवास : इंदौर (मध्य प्रदेश)

जन्मतिथि- 23 मई 1976
जन्मस्थान- इंदौर
लेखन विधा- गद्य एवं पद्य की लगभग सभी विधाओं में लेखन।
शिक्षा- बी.एस.सी.
MFA,(FINANCE),
WSP ..IIM BANGLURU
संप्रति- स्वतंत्र लेखन
प्रकाशन-
कितना मुश्किल कबीर होना(एकल)
साझा संग्रह:
1-शब्द समिधा
2-शब्द मंजरी
3-गूँज
4- शब्दों की पतवार
5- स्वच्छ भारत
6- सिंधु मशाल(पत्रिका सिंध साहित्य अकादमी)
7- हर पेड़ कुछ कहता है
* सिसृषा ,ब्रज कुमुदेश , काव्यांजलि जैसी छंद पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशन।
* कई समाचार पत्र तथा पत्रिका ,दैनिक भास्कर,नईदुनिया में निरंतर प्रकाशन
प्रसारण-आकाशवाणी इंदौर से कई बार कविता पाठ
सम्मान/पुरस्कार-
1- एस एन तिवारी स्मृति कृति पुरुस्कार २०२३
(कितना मुश्किल कबीर होना कृति पर)
2- उड़ान वार्षिक प्रतियोगिता २०२३ में तृतीय पुरस्कार
3- 2019 में श्रेष्ठ लघुकथा कार व छन्द लेखन में पुरुस्कृत।
4- अंतरराष्ट्रीय पत्रिका राम काव्य पीयूष में गीत का चयन ,प्रकाशन
5- women web राष्ट्रीय हिंदी कविता प्रतियोगिता में poet of year अवार्ड 2019
6- उड़ान सारस्वत सम्मान
7- उड़ान गद्य सम्राट
8-.सिंधु प्रतिभा सम्मान 2019
9- सिंध साहित्य अकादमी मध्य प्रदेश द्वारा कई बार सिंधी रचनाओं के लिए पुरुस्कृत
संपर्क-114 बी,स्कीम नंबर 103
केसरबाग रोड,विनायक स्वीट के पास
इंदौर-452012 (मध्य प्रदेश)
मोबाइल-9977111665