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नीलम तोलानी 'नीर' के लघु-उपन्यास 'करवाचौथ' की चौथी कड़ी

नीलम तोलानी 'नीर' के लघु-उपन्यास 'करवाचौथ' की चौथी कड़ी

स्निग्धा और कबीर जैसे एक अलग ही दुनिया में पहुँच गए थे ...हर घड़ी या तो एक दूसरे के साथ रहना था या एक दूसरे के ख़यालों में रहना था। यह वह पहले वाला गोवा तो हरग़िज़ नहीं था ...यह तो एक अलग ही दुनिया थी ..जहाँ सिर्फ़ प्रेम था ..समुद्र की लहरें अब सिर्फ़ खिलखिलाहटें ही लाती थीं.. सारी फ़िज़ाएँ जैसे हमेशा रजनीगंधा की महक से महक रही होती थीं ...गोवा की हवा में इतनी मादकता तो पहले कभी नहीं थी। दिन इतने छोटे और रातें इतनी लंबी ...ऐसा तो कभी नहीं था ।

वह अपरिपक्व नादान बालिका उस वक़्त कहाँ समझती थी, कि पापा चाहे जितने बदल गए हों ...मम्मी पर, उस पर चिल्लाते हों,पर ये उनका डर था।
रोज़,हर क्षण नियति से हारते जाने का,अनचाहे भविष्य का,जो पल प्रति पल निकट आ रहा था।उनके सारे प्राण तो उसकी मम्मी में ही अटके थे।
समय उसी गति से बीत रहा था, जिस गति से रेत की समय सूचिका से रेत गिरती है ...रेत का हर गिरता, बिखरता कण, त्यागी परिवार को भी बिखेर रहा था... साँसें थीं कि पिंजर को छोड़ चले जाना चाहती थीं, मोह था कि जकड़े हुए था। अंततः बीमारी जीत गई। मैरी का इसाई धर्म अनुसार अंतिम संस्कार करने के पश्चात, गिरीश भी घर नहीं लौटे ....वह भूल गये कि भावना से, प्रेम से ,बड़ी होती है ज़िम्मेदारी!! उस एक जीव की ,संतान की, जिसे वह अपनी मर्ज़ी से संसार में लाए थे.... कभी-कभी इंसान अपने दुःख में इतना खो जाता है कि आसपास की दुनिया अदृश्य हो जाती है । अगले दिन समुद्र की लहरें ही गिरीश को लौटा लाईं थीं ... निष्प्राण! प्रेम की जीत थी या हार, कहना कितना कठिन... और स्निग्धा ???

दिन भर,रात भर अकेली भूखी रोती रही... रो रो कर कभी जगी... कभी फिर सो गई ...। उस एक दिन ने ज़िन्दगी के अनेकों अनेक पाठ पढ़ा दिए उसे,जिसे इंसान को कई डिग्रियाँ भी मिल कर नहीं पढ़ा पातीं। इतनी छोटी उम्र मैं प्रेम का इतना क्रूर रूप देखा.... अगले दिन अलसुबह निशांत के आने पर ही उन्हें वस्तुस्थिति ज्ञात हुई। कुछ दिन तो स्निग्धा डॉक्टर निशांत के घर पर रही। निशांत ने पूरी कोशिश की, बच्ची को संभालने की... पर एक तो निशांत अभी अविवाहित थे,और फिर परिवार से दूर ... इस तरह बड़ी होती स्निग्धा को अपने साथ रखना उन्हें उचित नहीं लगा। फिर वह अभी इस तरह किसी की ज़िम्मेदारी भी नहीं लेना चाहते थे। हाँ, इतना उन्होंने ज़रूर किया कि फ्लैट को किराए पर दे दिया और स्निग्धा के नाम करवा दिया । स्निग्धा का चर्च के कान्वेंट ऑर्फनेज में प्रवेश करा दिया। उसकी शिक्षा,रहने की व्यवस्था के साथ ही फादर को फ्लैट के दस्तावेज़ उसकी रिपोर्ट और विगत से भी अवगत करा दिया। अब स्निग्धा त्यागी नितांत अकेली थी... कुछ ही दिनों के अंतराल में दिमाग़ी तौर से एक किशोरी से वयस्क में परिवर्तित हो चुकी थी । पढ़ाई में हमेशा अव्वल रहने वाली,सदा ख़ुश हँसती हुई , हाज़िर जवाब स्निग्धा अब बेहद कठोर अपने आप में सिमटी हुई युवती में परिवर्तित हो चुकी थी। बाहर से उसकी ख़ूबसूरती को देखकर कोई अंदाज़ा नहीं लगा सकता था कि इस छुईमुई सी लड़की के अंदर कितने ज्वालामुखी धधक रहे हैं... जिसकी ज़िन्दगी में, जिसके नसीब में, जनकों का भी प्यार न लिखा हो.. जिसके लहू में नेह नहीं अपितु डर बहता हो ...क्या वो कभी किसी से प्रेम कर पाएगी ?

जब ख़ुद की ही झोली खाली हो ,तो दाता बनना कैसे संभव है...? ऑर्फनेज के नियमानुसार आत्मनिर्भर होते ही स्निग्धा को अपने लिए अलग घर ढूँढ़ना था.. घर तो उसके पास था... वहीं पर स्थानांतरित हो गई।

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तक़रीबन दो घंटे तक स्निग्धा सोती रही... अचकचा कर नींद से उठी तो शाम ढल रही थी। आसमान में सिंदूरी आभा छा रही थी... भूख भी ज़ोरों से लग आयी थी। कुछ खा पी चुकने के बाद ...स्निग्धा ने सुबह की मीटिंग के, "मिनिट्स आफ मीटिंग" निकाले और रिपोर्ट बनाने लगी। पर मन नहीं लगा। वही बेचैनी ...वही कशमकश... रिपोर्ट खुली छोड़, स्लीपर पहन वापस वहीं चल पड़ी जहाँ वह ऐसी बेचैनी में जाती थी ...समुद्र तट पर ...
समुद्र की लहरें ,उसका शोर..भीतर का उथलापन जैसे उस के भीतर के क्रोध और शोर का ही पर्यायवाची लगता था उसे । वही उसकी नर्म रेत और गीली छुवन में उसका दग्ध ह्रदय धीरे धीरे शांत होता जाता था... इधर कबीर दूर दूसरी तरफ़ खड़ा ...अब तक इन्हीं लहरों को निहार रहा था घंटों से....
हर नई लहर के साथ और भी अशांत और भी बेचैन होता हुआ...।
और विशाल समुद्र साक्षी था दोनों की तड़प का..

(समय सुबह 11:00 बजे,कबीर का ऑफिस)
"कबीर :जैनी ,कोई अपडेट ?"
"जेनी मुस्कुराते हुए ...नहीं सर, कल ही तो मीटिंग हुई है।"
" जेनी में जेन्यूनली अपडेट माँग रहा हूं... इसके पहले के ..."
"जी सर ,अभी कोई नहीं।"
(कबीर अपनी रिवाल्विंग कुर्सी पर बैठ कर घूमते हुए.. एक हाथ से पेंसिल उछालते हुए ..ख़ुद ही से बोल रहा है..)
तो... आज की तारीख़ में क्या है मेरे पास... एक नाम.. "स्निग्धा त्यागी"... पढ़ी लिखी है... गोवा में रहती है.. शाइन एंड शाइन में काम करती है । कुछ प्रयास से शायद डायरेक्टरी से नंबर भी मिल सकता है ,या फिर घर का पता.... और.. और.. व्यक्तिगत चीज़ों को ऑफिस से दूर ..दूर.. दूर.. रखना है यह भी...
(कबीर को कई प्रयासों के बाद भी स्निग्धा के घर का पता नहीं मिल पाता है.. )
तो प्लान नंबर टू..
ऑफिस ख़त्म होने से पहले.. शाइन एंड शाइन के ऑफिस के बाहर इंतज़ार किया जाए।
शाम छः बजे बाहर निकलते हुए ..जेनी से मुख़ातिब होकर...
विश मी गुड लक एंड गुड डे ..(जेनी के उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना कबीर बाहर निकल जाता है।)
कबीर स्निग्धा के ऑफिस के बाहर, कुछ दूरी पर , चहल-क़दमी करता हुआ इंतज़ार करता रहता है। जैसे ही स्निग्धा ऑफिस से बाहर आती है ...
"हेलो.. मिस स्निग्धा .."
"हेलो मिस्टर कबीर ...आप यहाँ ...और आपकी सेक्रेटरी ने तो कहा था कि, आपको ज़रूरी काम से वापस जाना है इसलिए कल मीटिंग रखी थी न?"
"जी !मुझे बहुत खेद है इसके लिए... पर अब सब ठीक है, तो रुक गया।"
"पर आप यहाँ कैसे?"
"जी ,पास वाली बिल्डिंग में आया था.. तो आपको देखा.. क्या आपको कहीं छोड़ दूँ ...?"
"जी नहीं! थैंक्स ..एंड गुड बाय..." "सुनिए!!.... क्या हम दोस्त बन सकते हैं..?"
"नहीं ssss..."
"पर क्यों?"
"मिस्टर कबीर... ! रोज़ आप जैसे दसियों लोग आते हैं दोस्ती करने.... तो ... और मुझे दोस्ती पसंद भी नहीं है।"
"अगर आप यह सोच रही हैं, कि मैं भी उन दसियों में से एक हूँ ...तो आप ग़लत हैं मिस... आप पहली ही हैं, जिन्हें में इस तरह दोस्ती के लिए पूछ रहा हूँ ...और जिनके पीछे में इस तरह, बहाने से आया हूँ ..शायद आप नहीं जानतीं ...पर मीटिंग के पहले भी शुक्रवार को मैंने आपको समुद्र तट पर देखा था । शनिवार आपकी मीटिंग कैंसिल कर आपको ही ढूँढने वापस तट पर गया था, और न मिलने पर ...पता नहीं क्यों घर वापस लौट जाना चाहता था। रविवार को आप को मीटिंग में देखकर ,वापस जाना स्थगित किया । उस दिन के व्यवहार के लिए भी आपसे क्षमा चाहता हूँ ….उस दिन जो आपसे मिला, वो सीईओ कबीर बेदी नहीं था... एक सामान्य आदमी था.. हर उस नवयुवक की तरह जो ज़िन्दगी में कभी न कभी सेटल हो जाना चाहता है... एक सही हमसफ़र के साथ। मैंने भी यही किया , मेरी जगह कोई भी होता तो यही करता... दोस्ती की पेशकश ...ताकि मैं आपको जान सकूँ, और आप भी मुझे ...एक मौक़ा चाहता था आप को समझने का.. और ख़ुद को समझाने का भी ... पर अगर आप ठीक नहीं समझतीं ...तो कोई बात नहीं।
यह कह कर कबीर जाने को हुआ," "रुकिए कबीर जी, क्या आप पास वाले कैफे में चलकर साथ कॉफी पीना चाहेंगे?" "जी क्यों नहीं, चलिए..." कैफे पहुँचने के रास्ते में, स्निग्धा यही सोचती रही कि उसने ऐसा क्यों किया? क्यों उसने कॉफी के लिए पूछा? क्यों वह कबीर को यह बताना चाहती है कि ,उसे दोस्ती करने में कोई दिलचस्पी नहीं है। क्यों अपने आपको स्पष्ट करना चाहती है? हमेशा की तरह एक संक्षिप्त 'नहीं' भी तो जवाब हो ही सकता है।
कैफे में बैठते हुए ..."मैं कैपेचीनो लूँगी आप ?"
"मैं भी...वेटर दो कैपेचीनो लाना प्लीज़.." "आपको भी यही पसंद..."
"नहीं...पर अभी मेरी दिलचस्पी आपकी बातें सुनने में अधिक हैं।वैसे मैं कॉफी नहीं पीता हूँ।
"जी कहिए क्या कहना चाहते हैं?"
"मैं तो कह चुका हूँ, आपका जवाब चाहता हूँ .."
" स्निग्धा अपनी उँगलियों को आपस में फँसा कर दो पल कुछ सोचते हुए बोली.. "देखिए कबीर.. मैं बहुत नीरस और स्वकेंद्रित लड़की हूँ...आप मुझे ग़लत समझ रहे है।..
न तो मैं ऐसा व्यक्तित्व हूँ जो किसी की दोस्त बने, न ही पत्नी !.. तो..
"यह आपने ख़ुद ही निश्चित कर लिया...? हो सकता है.. आप की नीरसता ,आपका स्वकेंद्रित होना कोई ऐसा लिहाफ़ हो, जिसे आपने बेवजह ओढ़ रखा हो ..
ऊपर वाले दोस्त ने ..सभी को एक ही ज़िन्दगी ..और सुख दुःख का अलग-अलग कॉम्बिनेशन दिया है ,इतनी पढ़ाई ,ये डिग्रियां और बुद्धिमत्ता किस काम की..?
जो कि दुखों को सुख में न बदल सके.. या कहें कि दुःख को भी सुख के समान ही "रॉयल ट्रीटमेंट" न दिया जा सके।
"आप बातें बहुत कमाल की करते हैं ..कबीर सो यू आर सो सो सक्सेसफुल..."
"नहीं एक बात और भी है.. मैं ईमानदार भी हूँ ..मेरी माँ कहती है कि मैं लोगों के दिल छू लेता हूँ.. अगर आपको ठीक लगा हो तो.. आगे के लिए आप न सोचें.. पर दोस्ती तो कर ही सकती हैं.. ख़ुद को ख़ुश होने का एक मौक़ा ज़रूर दीजिए ,स्निग्धा जी ! निराश नहीं होंगी आप.."
"देखते हैं"..

(रात 10:00 बजे) आज स्निग्धा की आँखों में नींद नहीं थी ...दिल दिमाग़ जैसे दो हिस्सों में बँट गया था ... दिमाग़ कहता ..अपने अतीत को याद करो .. जिस राह कि मंज़िल नहीं उस पर चलना क्यों ...क्या पता ,तुम्हारी रक्त कोशिकाएँ तुमसे कब दग़ा कर दें...?
दिल कहता ...क्यों नहीं? कबीर बेहद सुलझा हुआ व्यक्ति है, सुंदर और सुशील भी। फिर दोस्ती ही तो करनी..कल किसने देखा है? अनिश्चित के लिए कोई निश्चित कैसे छोड़ सकता है...?
दिमाग़ कहता.. अपने साथ किसी और को भी दाँव पर लगाना, कैसी समझदारी है? दिल कहता.. जो भी हो ,कभी ख़ुद को भी ख़ुश होने के मौक़े ज़रूर देना चाहिए... ज़िन्दगी से थोड़ी सी ख़ुशी की उम्मीद रखने में कोई बुराई नहीं। यूँ ही अपने से दो चार होते कब आँख लग गयी पता ही न चला।

(समय सुबह आठ बजे ,डॉक्टर निशांत का घर) डिंग डांग डिंग डांग sss.... निशांत दरवाज़ा खोलते हुए, "स्निग्धा !माय एंजेल ! इतनी सुबह-सुबह सब ठीक तो है न ?
आ जाओ ,अंदर आओ ... निशांत अपनी पत्नी को आवाज़ लगाते हुए, सुनो! स्निग्धा आई है ,साथ में नाश्ता लगा दो ..."
"नहीं अंकल, आपसे ज़रूरी बात करनी थी"।
" "बैठो तो ! खाली पेट भजन न होय गोपाला.... आज तो ख़ास मैनु है ....साथ में बातचीत भी हो जाएगी।" "अंकल ! क्या अब भी कोई चांस है ,मुझे सिकल सेल एनीमिया होने का?
"अचानक क्यों पूछा? क्या हुआ बेटा ? क्या कोई है, जिसने फाइनली मेरी बेटी के दिल की बर्फ़ पिघला दी है?
" नहीं अंकल! बस यूँ ही ..."
"देखो बच्चा! अभी तक तुम मेडिकली एकदम फिट एंड फाइन हो, आगे भी रहोगी... इसकी भी पूरी उम्मीद है।"
"और अगर कभी मेरे बच्चे हुए?"
"सैडली उसके बारे में नहीं कह सकता.... यू नो, यह जेनेटिकल डिसऑर्डर है अस्सी प्रतिशत चांस तो हमेशा रहेंगे ... तुम्हें उदास होने की ज़रूरत नहीं ।
क्या बच्चे होना ही ख़ुशी का पैमाना है, या ख़ुश होने का एकमात्र रास्ता है? आजकल इतनी सारी सुविधाएँ हैं ...क्या ज़रूरी है कि बायोलॉजिकली तुम से पैदा हुआ बच्चा ही तुम्हें ख़ुशी देगा? मूव ऑन बेटा.... देखो लाइफ़ इज कॉलिंग यू... हैप्पीनेस इज़ नॉकिंग योर डोर.... ओपन इट ...डोन्ट मिस द चांस ....गॉड ब्लेस यू बेटा...."
"मैं चलती हूँ ..."
अगले दो दिन स्निग्धा इंतज़ार करती रही,एक एक पल उसे सदियों सा लंबा प्रतीत हो रहा था...कहीं कबीर ने इरादा तो नहीं बदल दिया? कहीं वह सिर्फ़ ... आख़िर स्निग्धा ने कबीर के ऑफिस जाने का सोचा।
(शाम छः बजे ,कबीर के आफिस के बाहर.. कुछ देर में कबीर ऑफिस से बाहर निकलता हैं।)
"कबीर ...मैंने तो सुना था ,आप अपनी बातों के बड़े पक्के हैं,दो दिन में ही इरादा बदल दिया?"
(कबीर के चेहरे पर शरारती मुस्कान ,और आँखों में हज़ारों सितारों की चमक आ गई।)
"स्निग्धा आप?"
( कबीर का दिल तो चाह रहा था ,कि दौड़ कर स्निग्धा को गले लगा ले ...और क़यामत तक यूँ ही अपनी बाहों के घेरे में कैद रखें ।ये दो दिन उस पर भी तो क़यामत बन कर ही टूटे थे, पर प्रकट में बोला ...) "बहुत देर लगा दी स्निग्धा....और एक-दो दिन नहीं आतीं तो ..."
"शssss चुप! चलिए आज आपको गोवा की ऐसी जगह दिखाती हूँ जिनके बारे में आपने सुना भी न होगा।"
स्निग्धा और कबीर जैसे एक अलग ही दुनिया में पहुँच गए थे ...हर घड़ी या तो एक दूसरे के साथ रहना था या एक दूसरे के ख़यालों में रहना था। यह वह पहले वाला गोवा तो हरग़िज़ नहीं था ...यह तो एक अलग ही दुनिया थी ..जहाँ सिर्फ़ प्रेम था ..समुद्र की लहरें अब सिर्फ़ खिलखिलाहटें ही लाती थीं.. सारी फ़िज़ाएँ जैसे हमेशा रजनीगंधा की महक से महक रही होती थीं ...गोवा की हवा में इतनी मादकता तो पहले कभी नहीं थी। दिन इतने छोटे और रातें इतनी लंबी ...ऐसा तो कभी नहीं था ।
कभी कबीर कहते .."स्निग्धा मुझे इन हवाओं से भी जलन होती है ..तुम्हें छूकर यह क्यों किसी और के पास जाती हैं? कभी लगातार उसकी आँखों में देखता रहता और कहता... तुम्हारी इन सुरमई सी अंखियों में लगा तुम्हारा यह काजल भी मुझसे अच्छा है,हमेशा तुम्हारे नैनों में रहता है ...कभी रेत पर दोनों नंगे पाँव घूम रहे होते, तो कबीर स्निग्धा के पीछे चल उसके पैरों के सारे निशान मिटाता चलता,उसके ग़ुस्सा होने पर कहता, नहीं इन निशानों को भी कोई कैसे छू सकता है?
कभी - कभी प्रेम के अतिरेक में रोमांटिक फिल्मी गाने ,गाने लगता... कभी ज़ोर से उसे अपने अंक में भर लेता। कभी गुलाब के फूलों से उसे लाद देता ,तो कभी किसी छोटे जहाज़ पर उसके संग कैंडल लाइट डिनर की व्यवस्था करता । कबीर के प्यार और देखभाल में, स्निग्धा का रोम-रोम बहुत गहरे तक, भीग रहा था। कभी यूँ ही वह अपने को चिकोटी काटती ,कि कहीं यह सपना तो नहीं ? या कई बार रात को सोने में भी उसे डर लगने लगता, कि कहीं अगली सुबह मैं उठी... और सब ख़त्म हो गया तो....? दिन ,हफ्ते ,महीने पंख लगाकर उड़ रहे थे।


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उपन्यास की अगली कड़ी मई माह के अंक में..........  

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रचनाकार परिचय

नीलम तोलानी 'नीर'

ईमेल : neelamtolani23@gmail.com

निवास : इंदौर (मध्य प्रदेश)

जन्मतिथि- 23 मई 1976
जन्मस्थान- इंदौर
लेखन विधा- गद्य एवं पद्य की लगभग सभी विधाओं में लेखन।
शिक्षा- बी.एस.सी.
MFA,(FINANCE),
WSP ..IIM BANGLURU
संप्रति- स्वतंत्र लेखन
प्रकाशन-
कितना मुश्किल कबीर होना(एकल)
साझा संग्रह:
1-शब्द समिधा
2-शब्द मंजरी
3-गूँज
4- शब्दों की पतवार
5- स्वच्छ भारत
6- सिंधु मशाल(पत्रिका सिंध साहित्य अकादमी)
7- हर पेड़ कुछ कहता है
* सिसृषा ,ब्रज कुमुदेश , काव्यांजलि जैसी छंद पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशन।
* कई समाचार पत्र तथा पत्रिका ,दैनिक भास्कर,नईदुनिया में निरंतर प्रकाशन
प्रसारण-आकाशवाणी इंदौर से कई बार कविता पाठ
सम्मान/पुरस्कार-
1- एस एन तिवारी स्मृति कृति पुरुस्कार २०२३
(कितना मुश्किल कबीर होना कृति पर)
2- उड़ान वार्षिक प्रतियोगिता २०२३ में तृतीय पुरस्कार
3- 2019 में श्रेष्ठ लघुकथा कार व छन्द लेखन में पुरुस्कृत।
4- अंतरराष्ट्रीय पत्रिका राम काव्य पीयूष में गीत का चयन ,प्रकाशन
5- women web राष्ट्रीय हिंदी कविता प्रतियोगिता में poet of year अवार्ड 2019
6- उड़ान सारस्वत सम्मान
7- उड़ान गद्य सम्राट
8-.सिंधु प्रतिभा सम्मान 2019
9- सिंध साहित्य अकादमी मध्य प्रदेश द्वारा कई बार सिंधी रचनाओं के लिए पुरुस्कृत
संपर्क-114 बी,स्कीम नंबर 103
केसरबाग रोड,विनायक स्वीट के पास
इंदौर-452012 (मध्य प्रदेश)
मोबाइल-9977111665