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नीलम तोलानी 'नीर' के लघु-उपन्यास 'करवाचौथ' की पहली कड़ी

नीलम तोलानी 'नीर' के लघु-उपन्यास 'करवाचौथ' की पहली कड़ी

जैसे एकरस सी चल रही जिंदगी में, अचानक कोई सुखद खबर मिलें, जो जीवन में अद्भुत रंग बिखेर दें। हमारी पहली मुलाकात भी तो यूँ ही हुई थी स्निग्धा! तुम समुद्र किनारे, ढलते सूरज के साथ चूकती रोशनी में, आधी गीली, आधी सुखी अपनी चप्पलों की कैची बना, कंधे पर लटका कर टहल रही थी।

नवंबर शुरू हो रहा था, सुबह हल्की ठंड पड़ने लगी थी... कबीर जी शॉल ओढ़े हाथ में कॉफी का मग लिए, दालान में बैठे सामने नीम के बगीचे को निहार रहे थे।
देखो स्निग्धा!हवा के साथ झड़ती इन पीली, पकी अधपकी पत्तियों को।
यूँ लग रहा आसमान से पत्तों की बारिश हो रही है सुबह सुबह... ओस में नहाई यह हरियाली !

पर पता है मुझे, तुम्हें यह नहीं पसंद! कहोगी.. "यह तो जीवन चक्र, भला इन पत्तियों को यूँ पेड़ से बिछड़ता देखने में क्या सुख है?" तुम्हें तो समुंदर पसंद  है...तेज शोर करती लहरें, जीवन के उत्साह से भरी ... जब तक थोड़ा पास में न आए ,अंदाजा ही नहीं लगता.. कि पैरों के नीचे खिसकती गीली रेत की चिरमिराहट का अहसास देकर लौट जाएगी या कमर तक भिगोकर ठंडा, सुखद, गीला स्पर्श देंगी।
जैसे एकरस सी चल रही जिंदगी में, अचानक कोई सुखद खबर मिलें, जो जीवन में अद्भुत रंग बिखेर दें। हमारी पहली मुलाकात भी तो यूँ ही हुई थी स्निग्धा! तुम समुद्र किनारे, ढलते सूरज के साथ चूकती रोशनी में, आधी गीली, आधी सुखी अपनी चप्पलों की कैची बना, कंधे पर लटका कर टहल रही थी।
सच कहता हूं स्निग्धा, एक तो गोवा की हवा में ही रूमानियत है ...दूसरा दूर से चाहे तुम्हारी शक्ल नहीं देख पा रहा था, पर वह  कमर तक लंबे, हवा में उड़ते खुले बाल, उन्नत वक्ष , क्षीण कटि,  लंबे पतले हाथ घुटनों तक लंबी फ्रॉक... जाने कितने क्षणों तक मूढ़, विस्मित सा में निहारता रह गया था। पता ही न चला, कब तुम्हें निहारता सम्मोहित हो तुम्हारे समानांतर मैं भी चलने लगा था... हाथ में पकड़े चना चोर गरम का दोना मेरे पास  था तो! खाया या गिर गया समझ ही न पड़ा ... पर जब चेतना में लौटा तो मेरे पास नहीं था। आज भी हँसती हो ना तुम मुझ पर" झेप्पू" कह कर। तब तक तो मैं तुम्हें विलायत से सेर-सपाटे को आई कोई बाला ही समझ रहा था । शायद तुम्हारे पहनावे से, भारत में अभी इतनी क्रांति कहां आई थी? वह तो भला हो, जैसे ही मैंने लौट जाने का सोचा, तुमने भी वापस लौटने की ही सोची ..एक नजर पास से तुम्हें देखने के लिए अपने बढ़ते कदमों को रोक लिया मैंने! तभी तो देखा विशुद्ध भारतीय नैन-नक्श। संसार के सबसे सुंदर लोगों में से एक... अभी तक मैं तो इसे एक मीठी समृति मान होटल लौटने लगा था ...पर अब अनेकों अनसोची इच्छाएं अनेकों- अनेक प्रश्न मन में तूफान मचाने लगे... यह भी कि क्या तुम अभी तक अकेली हो ? तेजी से तुम्हारा पीछा करता, जब तक तुम तक पहुँचता, तुम रिक्शा में बैठकर जा चुकी थी... और मैं मूर्ख, यह भी कहाँ सोच पाया ,कि अपनी कार यही छोड़कर तुम्हारे पीछे दूसरी रिक्शा पकड़ लूं...

(कबीर एक तेजी से उभरती विज्ञापन कंपनी का सीईओ था। इंदौर में अच्छी तरह कंपनी का काम जम जाने के बाद, कंपनी गोवा में अपनी दूसरी शाखा खोल चुकी थी। कबीर का एक पैर इंदौर में और एक पैर गोवा में रहता। आज सुबह से ही बहुत व्यस्त था ।नई परियोजनायें, नए सौदे  , एक के बाद एक मीटिंग...) शाम के छः बजने को थे, अचानक कुछ कौंध  सा गया, कल इसी समय  तो ..... तुरंत मिस जेनी को इंटरकॉम किया.. "मिस जेनी  और कितनी मीटिंग्स है? बतायेंगी  प्लीज"
"सर, आधे घंटे बाद एक आखिरी  मीटिंग है ,बस फाइल लेकर आ ही रही हूँ।फिर रात को "गुप्ता ब्रदर्स" के साथ होटल "सी व्यू" में डिनर  है ।"

"मिस जेनी, एक काम करे।मुझे कहीं जरूरी काम से जाना है, क्या यह मीटिंग कल के लिए एडजस्ट हो सकती है ? रात्रिभोज  के लिए जरूर हीं पहुँच जाऊँगा।

कल तो नही, परसों जरुर एडजस्ट कर सकती हूँ सर ।"

"ठीक है मिस जेनी , जो ठीक लगे करिए। डिनर पर मिलते हैं ठीक आठ बजे।"

पेट में अजीब उमड़ घुमड़ मची थी, जैसे पच्चीसों तितलियाँ मँडरा रही हो ,और उड़ उड़ कर सीने तक आ रही हो। तुम्हारी एक झलक देखने के लिए कितना  विचलित  हो रहा था। कॉलेज में भी कई लड़कियां मेरी मित्र रही,कईयों की ओर आकर्षित भी हुआ था। ऐसा भी नहीं कि, शारीरिक सौंदर्य मेरे लिए बहुत अहमियत रखता हो ...विज्ञापन संस्था में हूँ ...आए दिन बला की खूबसूरत मॉडल्स के साथ मिलता रहता हूँ... फिर क्या था तुममें ऐसा? क्यों मेरी  सारी इंद्रियां मुझसे ही दगा कर रही थी ?बेबस इसी उधेड़बुन में समुद्र किनारे आ पहुँचा। वहीं ,कल वाली जगह.. आज,कल से सबक लेकर रिक्शा से आया था ।आज शुक्रवार था,कल की अपेक्षा बहुत ज्यादा भीड़ थी आज । बच्चों की खिलखलाहट,रंगबिरंगी रोशनी बिखरने वाले खिलौने बेचने वाले, खाने पीने का सामान बेचने वाले, सब तरफ रेलम पेल थी । पीछे की मघ बेचने वाली दुकानों पर भी ,आज अच्छी खासी भीड़ लगी थी। तकरीबन आधे घंटे तक सब जगह ढूंढा तुम्हें, तुम्हें न मिलना था न मिली।थककर एक जगह बैठ, पास में रेत के घर बनाते बच्चों को देखने लगा। लगा मेरी भी एक दिन की  उम्र वाली ख्वाहिशों के महल बस यूँ ही ढल गए... कुछ स्थिर होने के बाद विचार आया,कोई सैलानी क्या रोज एक ही जगह घूमने आता है? यहाँ शहर में और भी पचास जगह है.. फिर तुम आज गोवा में मौजूद होगी या नहीं ..यह कैसे कहा जा सकता है ? तब तो यथा भाग्य!! तुम्हारे सम्मोहन में और कुछ हुआ या नही... एक के बाद एक बेवकूफियां जरूर करता जा रहा था।
भीतर के "कबीर बेदी"को ,"Mr. CEO को झक झोड़कर उठाया गया। सात बज चुके थे ,होटल पहुंचकर रात्रि भोज के लिए तैयार होना था.. कपड़े झटककर कुछ मायूस सा लौट पड़ा एक बार फिर अपनी मशीनी दुनिया की ओर...

ट्रिन नननन ssss, ट्रिन ननन ssss ट्रिन ननन sss...अलार्म की तीक्ष्ण आवाज़ से कबीर की नींद खुली। समय देखा, सुबह के नों बज रहे थे , इसके पहले के दो अलार्म?  शायद गहरी नींद में था, रात को बहुत देर से नींद आई थी... तुम्हारे ख्याल साये की तरह चिपक से गए थे मुझसे, और वह दस मिनट की कहानी जाने कितनी बार दिमाग में चलचित्र की तरह चल चुकी थी। अब बस भी करो यार ! कबीर एक बेहद व्यवहारिक  इंसान है। यह सब पागलपन... बस अब आज से बंद। नहीं सोचूंगा तुम्हें... दैनिक-कार्य निपटाते निपटाते ,जैसे खुद से बात कर रहा था कबीर... शनिवार ...सप्ताहांत.. आज तो गोवा की रौनक ही कुछ और होती है... शाम तक तो फुर्सत नहीं, पर आज रात को धमाल होगा...कबीर बेदी... तुरंत कबीर ने कुछ नए बने मित्रों को फोन लगाया, और रात की योजना  निश्चित करी...... कल रविवार है,एक शाम की मीटिंग,  जो कल कैंसिल  करी थी, और एक और । बस वापस आ रहा हूं इंदौर !माँ के पास, इस बार यहाँ बिल्कुल मन नहीं लग रहा ।
{परिस्थितियों पर जब अपना बस न हो, तो इंसान वापस लौट जाना चाहता है अपने सुविधा क्षेत्र ( कंफर्ट झोन) में जहां उसका सर्वाधिकार होता है} कार्यालय ...सुबह 10 वजे.. "मिस जेनी,दो दिन की मीटिंग में कितनों के सकारात्मक जवाब आए हैं?" "सर, कुल चार लोगों के जवाब आए हैं। मार्केटिंग हेड से उन सब की मुलाकात का समय तय हो गया है ।आज कुल पांच मीटिंग है ,और कल दो। जिनकी आपने रद्द करी थी ,बहुत रूष्ट हो रहे थे। पर मान गए है,कल के लिए ।" "ठीक है मिस जेनी.. कल वापस इंदौर की टिकट भी करवा दीजिए, प्लीज़..."
"पर आप तो ...."
"नहीं मिस जेनी, इस बार जल्दी घर जाना चाहता हूँ। बाकियों के लिए आप अक्षय  जी को बोल दीजिएगा । वह देख लेंगे।"
" जी सर ..कॉफी भेज दूँ?"
"जी,शुक्रिया"               

   ************************** आज के  व्यस्त दिन के बाद, रात की पार्टी.. गाहे-बगाहे कबीर को 'सुश्री रहस्यमयी 'की याद सताती रही। चोर नजरों से क्लब में इधर उधर देख लेता, शायद कही ...शायद... पर कल की अपेक्षा दुख कुछ कम हो चला था । (अगले दिन रविवार, फोन पर.. जेनी,कबीर से  ...) "सर ,आज शाम चार बजे आपकी फ्लाइट है वाया मुंबई। आज की पहली मीटिंग कैंसिल है, रविवार होने से कुछ आवश्यक काम है उन्हें । दूसरी को भी कुछ जल्दी ही बुला लिया है ..आप समय से आ जाइएगा।"
कबीर कुछ उल्लसित सा.. "ठीक है, शुक्रिया बहुत... यू आर डार्लिंग मिस जेनी .. {जेनी,पैतीस -चालीस वर्ष की बेहद चुस्त, बुद्धिमती औरत थी। मृदुभाषी,सहृदय..अपने काम के प्रति समर्पित ।
कबीर से कोई विशेष लगाव जैसा तो नहीं... पर कुछ अधिक ख्याल रखती थी। आज के जमाने में इतने सभ्य लोग कहां होते हैं उम्र से कहीं अधिक परिपक्व है कबीर।}

(कार्यालय; समय सुबह 11:00 बजे )
मिस जेनी यह रही फ्लैट और कार की चाबियाँ। मीटिंग के बाद यहीं से दोपहर का खाना खाकर  चला जाऊँगा।
कितने बजे आ रहे हैं "शाइन एंड शाइन" वाले?
काश की उस दिन यह मीटिंग निरस्त नही करी होती, तो अभी माँ  के हाथ के गरमा गरम आलू के परांठे खा रहा होता।
"सर !आप अपनी माँ से बहुत प्यार करते हैं न" ?
" हाँ...और आलू के पराठों  से भी!
जेनी हंसते हुए.." तब उन्हें साथ ही ले आया कीजिए"
" ले तो आता, पर यह जो भारतीय औरतें होती है न, इनकी आत्मा अपने घर और पति में बसती है । अगली बार कोशिश करूँगा। पहले पापा जी को मनाना होगा.. जहाँ इंजन वहीं गाड़ी! 
 
उपन्यास की अगली कड़ी फ़रवरी माह के अंक में..........  
 

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रचनाकार परिचय

नीलम तोलानी 'नीर'

ईमेल : neelamtolani23@gmail.com

निवास : इंदौर (मध्य प्रदेश)

जन्मतिथि- 23 मई 1976
जन्मस्थान- इंदौर
लेखन विधा- गद्य एवं पद्य की लगभग सभी विधाओं में लेखन।
शिक्षा- बी.एस.सी.
MFA,(FINANCE),
WSP ..IIM BANGLURU
संप्रति- स्वतंत्र लेखन
प्रकाशन-
कितना मुश्किल कबीर होना(एकल)
साझा संग्रह:
1-शब्द समिधा
2-शब्द मंजरी
3-गूँज
4- शब्दों की पतवार
5- स्वच्छ भारत
6- सिंधु मशाल(पत्रिका सिंध साहित्य अकादमी)
7- हर पेड़ कुछ कहता है
* सिसृषा ,ब्रज कुमुदेश , काव्यांजलि जैसी छंद पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशन।
* कई समाचार पत्र तथा पत्रिका ,दैनिक भास्कर,नईदुनिया में निरंतर प्रकाशन
प्रसारण-आकाशवाणी इंदौर से कई बार कविता पाठ
सम्मान/पुरस्कार-
1- एस एन तिवारी स्मृति कृति पुरुस्कार २०२३
(कितना मुश्किल कबीर होना कृति पर)
2- उड़ान वार्षिक प्रतियोगिता २०२३ में तृतीय पुरस्कार
3- 2019 में श्रेष्ठ लघुकथा कार व छन्द लेखन में पुरुस्कृत।
4- अंतरराष्ट्रीय पत्रिका राम काव्य पीयूष में गीत का चयन ,प्रकाशन
5- women web राष्ट्रीय हिंदी कविता प्रतियोगिता में poet of year अवार्ड 2019
6- उड़ान सारस्वत सम्मान
7- उड़ान गद्य सम्राट
8-.सिंधु प्रतिभा सम्मान 2019
9- सिंध साहित्य अकादमी मध्य प्रदेश द्वारा कई बार सिंधी रचनाओं के लिए पुरुस्कृत
संपर्क-114 बी,स्कीम नंबर 103
केसरबाग रोड,विनायक स्वीट के पास
इंदौर-452012 (मध्य प्रदेश)
मोबाइल-9977111665