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ओरछा किला.....बहुत कुछ है देखने और समंझने को- धर्मेन्द्र कुमार सिंह

ओरछा किला.....बहुत कुछ है देखने और समंझने को- धर्मेन्द्र कुमार सिंह

इस किले का निर्माण वर्ष 1501 ई० में राजा रुद्र प्रताप सिंह ने कराया था। इस किले के अन्दर भवन और मंदिर भी हैं। राजमहल और राम मंदिर की स्थापना राजा मधुकर सिंह ने कराई थी, जिसने यहाँ वर्ष 1554 से 1591 ई० तक राज किया था। जहाँगीर महल और सावन भादों महल का निर्माण राजा वीर सिंह जूदेव ने कराया था।

ओरछा आने के बाद आस्था के केंद्र राजा राम मंदिर के साथ-साथ यहाँ का मुख्य आकर्षण ओरछा किला ही है। पुल पार कर किले पर पहुँचने के बाद ही ऐसा लगने लगता है कि हम साक्षात इतिहास के एक युग मे आ से गये हों। टिकट विंडो से बीस-बीस रुपये के टिकट लेकर अतुल जी, संदीप जी, सूर्यन सहित हम चारों इतिहासमय से हो गये। जगह-जगह लगी पुरातत्व विभाग की पट्टिकाओं, शिलालेखों को पढ़ते, चर्चा करते हम आगे बढ़ते जा रहे थे। हर हाथ में मोबाइल कैमरा था कि कहीं फ़ोटो कोई छूट न जाये। वीडियो बनाने में भी नहीं पीछे नहीं थे हम। मन हो रहा था कि इतिहास को ख़ुद में समेट लें हम।

बताता चलूँ झांसी से लगभग पंद्रह किलोमीटर दूर ओरछा, जो एक समय शक्तिशाली बुंदेला राजपूतों की राजधानी हुआ करता था, आज यह मध्यप्रदेश के निवाड़ी जिले का एक छोटा-सा कस्बा है, जो कि बहुत शांत, सुंदर और इतिहास से भरा हुआ है। सुंदर सुरम्य वातावरण के साथ ओरछा की धरती पर महलों, मंदिरों और किलों के साथ कल-कल बहती बेतवा नदी (जिसे वैतरिणी नदी भी कहते हैं) है। वास्तव में यह कस्बा बेतवा नदी और जामनी नदी के संगम से एक छोटे से द्वीप की तरह है। यदि आप कम बजट में किसी शांत-सुंदर और ऐतिहासिक जगह अपने साथी या साथियों के साथ सैर पर जाना चाहते हैं तो ओरछा आपकी अच्छी पसंद हो सकता है।

यहाँ सभी आधुनिक सुविधाएँ सैलानियों को आसानी से मिल जाती हैं। अच्छी बात ये है कि इस जगह ने आज भी अपनी नैसर्गिक सुंदरता को क़ायम रखा है। यहाँ के स्थानीय लोग आज भी नंगे पैर राजा राम के मंदिर में आरती पूजा के लिए जाते दिख जाते हैं। किलों, महलों और बेतवा का संगम, आपका दिल जीत लेगा। आपका प्यार और रोमांच खिल उठेगा। यहाँ ओरछा का अद्भुत किला और उससे जुड़ी कहानियाँ आपका रोमांच भी बढ़ाएँगी। यह एक ऐसी जगह है, जो इसको बनाने वाले चाहते थे कि वो दुश्मनों के सीधे सामने पड़ें आए या कहें कि थोड़ा दूर रहें।

संदर्भ ग्रन्थ और शिलालेख के अनुसार इस किले का निर्माण वर्ष 1501 ई० में राजा रुद्र प्रताप सिंह ने कराया था। इस किले के अन्दर भवन और मंदिर भी हैं। राजमहल और राम मंदिर की स्थापना राजा मधुकर सिंह ने कराई थी, जिसने यहाँ वर्ष 1554 से 1591 ई० तक राज किया था। जहाँगीर महल और सावन भादों महल का निर्माण राजा वीर सिंह जूदेव ने कराया था।
ओरछा का किला कहें या महल, ये तीन हिस्सों में बसा है, पहला जहांगीर महल, दूसरा राजा महल और तीसरा राय परवीन महल।

जहाँगीर महल: इस महल को राजा बीर सिंह देव ने तत्कालीन मुगल सम्राट जहांगीर के सम्मान में बनवाया था। इसका मुख्य द्वार बेतवा नदी की ओर खुलता है। इसमें कुल 130 कमरे हैं।

राजा का महल: राजा महल में राजाओं और रानियों ने वर्ष 1783 ई० तक निवास किया था। इसे सोलहवीं सदी के शुरुआत में बनाना शुरू किया गया था। महल के अन्दर के कक्षों में देवी-देवताओं, पौराणिक पशुओं और लोगों के चित्रों से सजाया गया था. महल के ऊपरी मंजिल के छत और दीवारों में दर्पण के निशान मिलते हैं। इसकी खिड़कियों को इस तरह से बनाया गया था कि सूर्य की रोशनी के महल के अन्दर आने पर कमरों का तापमान अलग-अलग हो जाये। महल की आंतरिक दीवारों में भगवान विष्णु के चित्र बने हैं। इस महल में तमाम गुप्त मार्ग हैं।

परवीन महल: राय परवीन वहाँ की एक नर्तकी थी, जिसकी कला से वहाँ के राजा इंद्रमणि बहुत प्रभावित थे। उसी से ख़ुश होकर उन्होंने ये महल बनवाया था।

एक शीश महल है, जिसमें इसमें शाही आवास था, जो राजा उदैत सिंह के लिए बनाया गया था। पुरातत्व विभाग की अनुमति से अब इसे एक होटल के रूप में बदल दिया गया है।

इसका पूरा इतिहास खोलने चलेंगे तो लेख बहुत बड़ा हो जाएगा। जो भी हम लोग लगभग दो-ढाई घण्टे तक किले में घूमतें रहे, देखते रहे। समय का अभाव था अभी रानी लक्ष्मी बाई के किले जाने की भी बात पक्की हो गयी थी।
ढेर सारे सैलानी भी आये थे। हम सभी ने अलग-अलग कोणों से ढेर सारी फ़ोटोग्राफी की। घुमक्कड़ी मन मेरा ऐसे अवसरों पर भला कहाँ चूकता है आनंद लेने के साथ-साथ आपके लिए तस्वीरें कैद करने का जो शौक जितना पूरा कर पाए कर किया। कुल मिलाकर किले की नक्काशी, पुराने समय मे महल की सुरक्षा व्यवस्था के लिए किये गए इंतजामों को देखकर उटकर फुटकर जो अध्ययन कर पाए हमने किया जो संमझ सके समझा।

किले के पूर्वी छोर पर सूर्यन की एक पसंदीदा जगह थी ग्रेनाइट पत्थरो से बना पुल महल के ऊपर से देखने और सूर्यन द्वारा उसकी तारीफ ने वहाँ जाने की इच्छा बढ़ा दी थी। किले से निकलकर थोड़ा चाय-पानी करने के उपरांत हम लोगों ने अपनी गाड़ी दाब दी बेतवा नदी पर बने उस पुल की ओर....।

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रचनाकार परिचय

धर्मेन्द्र कुमार सिंह

ईमेल : sahwes@gmail.com

निवास : कानपुर (उत्तरप्रदेश)

सम्प्रति- लेखक, विचारक, शिक्षक, समाजसेवी एवं मोटिवेशनल स्पीकर
विशेष- सचिव साहवेस, प्रबन्धक सम्राट अशोक विद्या उद्यान स्कूल
सम्मान- माननीय राज्यपाल उत्तर प्रदेश द्वारा सम्मानित, एच बी टी यू द्वारा मानपत्र
प्रकाशन- लोहे का संदूक (कहानी संग्रह) प्रकाशित
मोबाइल- 7860501111