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प्रगति गुप्ता के उपन्यास 'पूर्ण-विराम से पहले' की दूसरी कड़ी

प्रगति गुप्ता के उपन्यास 'पूर्ण-विराम से पहले' की दूसरी कड़ी

वहाँ उसे समीर की दो डायरियाँ मिलीं। समीर अपनी युवावस्था से ही डायरी लिखते थे। शिखा ने प्रखर को संक्षिप्त में दोनों डायरियों के बारे में बताया कि पहली डायरी समीर के बचपन और युवावस्था की बहुत सारी घटनाओं को सँजोये हुए है। दूसरी डायरी को पढ़कर लगता है कि समीर ने शादी के बाद इस डायरी को लिखना शुरू किया था। कब-कहाँ समीर ने शिखा के लिए क्या-क्या महसूस किया, शुरू के पन्नों में लिखा हुआ है।

शिखा ने अपनी बातों को कुछ सेकंड के लिए विराम दिया। फिर उसने प्रखर को बताया कि कल रात जब उसे नींद नहीं आ रही थी तब उसने समीर की किताबों वाली अलमारी संभाली। जिस अलमारी को अक्सर समीर ही सँभालते थे। वहाँ उसे समीर की दो डायरियाँ मिलीं। समीर अपनी युवावस्था से ही डायरी लिखते थे। शिखा ने प्रखर को संक्षिप्त में दोनों डायरियों के बारे में बताया कि पहली डायरी समीर के बचपन और युवावस्था की बहुत सारी घटनाओं को सँजोये हुए है। दूसरी डायरी को पढ़कर लगता है कि समीर ने शादी के बाद इस डायरी को लिखना शुरू किया था। कब-कहाँ समीर ने शिखा के लिए क्या-क्या महसूस किया, शुरू के पन्नों में लिखा हुआ है। चूँकि शिखा ने शुरू के पच्चीस-तीस पन्ने ही पढ़े थे, वही उसने प्रखर से साझा किये। एकाएक शिखा ने अपनी बात बदलकर प्रखर से कहा-
"काश! डायरी में लिखी हुई बातों में से कुछ प्रतिशत बातें समीर अगर उसे बोल देते तो उनके लिए मेरा प्यार और ज़्यादा बढ़ जाता। ख़ैर गया हुआ समय किसका लौटा है। पर प्रखर एक बात सौ प्रतिशत सही है कि समीर का शब्द-कोश इतना सशक्त था कि डायरी पढ़कर बहुत सुखद एहसास हुए।"

"सही कहा शिखा तुमने। समीर बोलता बहुत कम था पर जब भी बोलता था, उसको बहुत ध्यान से सुनने का मन करता था। आमतौर पर पुरुष ऐसे ही होते हैं। महसूस किए को अपने तक ही रखते हैं जबकि बताना, जताना, महसूस करना सभी का प्रेम में मूल्य होता है।"

"सभी की अपनी-अपनी सोच है। उसी के हिसाब से हम अपनी बात रखते और ज़िंदगी जीते हैं।"

अपनी बात बोलकर शिखा ने समीर के बारे में और भी बातें बतायीं। समीर के लिखे हुए अकादमिक पेपर्स बहुत जगह पब्लिश होते थे। जब भी समीर अपने लिखे हुए पेपर्स पर उससे विचार-विमर्श करते थे, वह अपनी राय ज़रूर देती थी। पर समीर उसके लिए क्या सोचते हैं, उन्होंने कभी नहीं बताया। न ही उससे कभी पूछा कि वह अपनी स्टडी टेबल पर बैठकर क्या लिखती रहती है? शुरू के काफ़ी सालों तक तो उनका रिश्ता बहुत अजनबियों-सा था। कैसे शिखा उसके हर किए हुए में प्रखर को खोजती थी। अपनी सभी बातों को शिखा ने प्रखर से साझा किया। समीर की बातें बताते-बताते अचानक शिखा प्रखर से बोली-
"तुमसे न जाने कैसे समीर इन गुज़रे हुए दो सालों में ही इतना खुलकर बातें करने लगे थे। यह मेरे लिए अभी भी रहस्य है। तुमसे हुई बातों के ज़रिए ही मुझे पता चला वह मेरी छोटी-छोटी बातों को नोट करते थे। ख़ैर छोड़ो, आज समीर की डायरी पढ़ने के बाद मुझे भी उनके लिए बहुत कुछ अच्छा-सा महसूस हुआ। जिसे मैंने एक कविता में रचा। प्रखर तुम सुनना चाहोगे।"

"ज़रूर सुनाओ शिखा, क्यों नहीं सुनना चाहूँगा। तुम्हारी हर एक बात मेरी अपनी है। तुम्हें कभी भी कुछ बताना-सुनाना हो तो मुझे हक़ से बताया करो। यही बातें तो अब हम दोनों की ज़िंदगी हैं। उम्र के इस पड़ाव पर मिलने वाला, मेरा सबसे प्रिय दोस्त था समीर। माना कि अब वो नहीं है पर हम तीनों एक ही हैं शिखा!"

शिखा ने सहमति में 'हम्म' बोलकर अपनी कविता सुनाना शुरू किया-

तुम से तुम तक

न जाने तुम कब से
सहेजते रहे
मेरे शब्दों में मुझे
चुपचाप ही
बग़ैर बताए, बग़ैर जताए
कि प्यार करते हो
तुम मुझसे बेहिसाब
बेवजह ही मैं हरदम तुमको
तुम्हारी कही बातों में खोजती रही
और मिले मुझे जब तुम
मुझसे विदा लेने के बाद
तुम्हारी ही डायरी के पन्नों में
जहाँ सिर्फ़ मैं ही मैं बिखरी थी
असंख्य कहे हुए मेरे शब्दों में
शीर्षक से लेकर हस्ताक्षर
और लिखी हुई तारीख़ से
जुड़ी बातों तक
पहले पन्ने से आख़िरी पन्ने तक

और स्वयं के हस्ताक्षर कर
लिख छोड़े थे तुमने
संस्कारों की डोरियों से बंधे
सिर्फ़ कुछ वाक्य और जिन्हें रुकी हुई साँसों से
पढ़ती गई धुंधली पड़ती
मेरी अश्रु भरी आँखें
प्रिय, जानता हूँ अनकहा ही
रहा मेरा सबकुछ
तुम्हारा होते हुए भी तुम्हारे लिए
और तुम ही तुम रही मेरे जीवन में
और मेरा जीवन रहा बस 'तुम से तुम तक' ही
तुम से तुम तक ही

कविता की अंतिम पंक्ति तक आते-आते शिखा बहुत भावुक हो गयी और प्रखर से बोली-
"समीर बहुत प्यारे व्यक्तित्व के इंसान थे प्रखर, कल उनकी डायरी पढ़ते समय मुझे उन पर बहुत प्यार आया। बस बोलते बहुत कम थे। तुमसे मिलने के बाद काफ़ी कुछ बदल गये थे।"

अपनी बात बोलते-बोलते शिखा अब रोने लगी थी। समीर को गये हुए काफ़ी समय हो गया था। पर शिखा के ज़ख्म अभी भरे नहीं थे। शिखा रोते हुए प्रखर से बोली- "प्रखर, समीर को मुझे इतनी जल्दी छोड़कर नहीं जाना चाहिए था।"
"जाना न जाना हमारे हाथ होता है क्या शिखा! ख़ुदको सँभालो। प्रीति ने जाने से पहले मुझसे इजाज़त ली थी क्या? ख़ैर बहुत सुंदर लिखा है तुमने। तुमको बेहद प्यार करता था समीर। पर तुम्हारे समर्पण के आगे नतमस्तक हूँ शिखा। एक बात पूछूँ तुमसे?" प्रखर ने शिखा से पूछा।
"कभी मेरे लिए भी इस तरह की कोई कविता तुमने लिखी थी क्या? हमेशा तुम्हें अपना लिखा हुआ ही पढ़ाता रहा। तुम हमेशा मेरी ज़िद के आगे हर तरह से मैनेज करती रही। वक़्त ने हमें बहुत कम समय साथ गुज़ारने को दिया था। कितना कुछ जानना बाक़ी रह गया शिखा। ख़ैर दिल से उन सब कविताओं को सुनना चाहता हूँ, जो तुमने समीर के लिए लिखी या मेरे लिए। शेष सारे जीवन अब यही तो हम दोनों को सुनना और सुनाना है। कुछ और भी कहना चाहती हो शिखा तो बोल दो। हल्की हो जाओगी।"
"सब बताऊँगी प्रखर, डायरी यही खत्म नहीं हुई है। बहुत कुछ लिखा हुआ है डायरी में। अभी मैंने ही पढ़ा नहीं है। तुमसे साझा नहीं करूँगी तो किससे करूँगी। मैंने तुम्हारे लिए भी बहुत कुछ लिखा था प्रखर। कॉलेज के समय से ही बेहद प्यार करने लगी थी तुमसे। तुम्हारे जाने के बाद जो कविता रची थी, सुनोगे?"
"शिखा अभी तुमको बोला था न! पूछा मत करो, जो भी सुनाना हो बस हक़ से सुना दिया करो।"
"अच्छा कभी नाराज़ मत होना। बोलकर शिखा ने प्रखर के लिए लिखी हुई कविता प्रतीक्षारत चिरकाल से को सुनाना शुरू किया-

तुम्हारी प्रतीक्षा में बोए
न जाने कितने स्वप्न लड़ियों में
पिरो-पिरो कर मैंने
क़ैद करने चाहे आसपास तैरते
न जाने कितने विचार-भाव
पल-पल घुमड़ते नयनों के तले
यूँ तो तुम्हारा आना न आना
बन अश्रु मेरी पलकों से
पल-पल झाँकता रहा
फिर कहीं मन की देहरी पर
विश्वास की न जाने
कितनी अल्पनाएँ उकेरता रहा
भावों से बाँध मेरे मन-हृदय को
तेरे आने की आस जगाता रहा

तुम्हारे आगमन की आहटें
परछाइयों-सी पल-पल चलते
चलचित्रों-सी चलती रहीं
तुम्हारे साथ होने की अनुभूतियाँ
शून्य में भी रंगों की
एक दुनिया बिखरती रही
तुम्हारे आगमन की आहटें दबे पाँव
मन हृदय में प्रविष्ट होती रहीं
तुम आओगे अवश्य
नयनों के चिराग़ रोशन कर
आस जगाती रही

इन प्रतीक्षारत क्षणों ने
भावों की सब
ऋतुओं से मुझे भिगो दिया
चिरकाल से प्रतीक्षारत मेरे हृदय को
प्रतीक्षा में प्रेम की
बाट जोहना सिखा दिया

"कितना गहरा और सुंदर लिखती हो शिखा तुम! आज इस कविता को सुनकर मेरा जी कहता है कि अब मर भी जाऊँ तो मलाल नहीं होगा। मुझसे ज़्यादा ख़ुशकिस्मत कौन होगा। इस कविता को मुझे अपनी हैन्ड-राइटिंग में लिखकर देना। हमेशा अपनी डायरी में रखूँगा ताकि जब मन हो, पढ़ सकूँ। तुम्हारे हर लिखे हुए को सहेजना चाहता हूँ। शिखा, वचन दो! जब भी मेरा मन होगा और तुम भी अच्छा महसूस कर रही होगी, मुझे मेरी पसंद की कविता सुनाओगी। फिर चाहे वो मेरी कविता हो या तुम्हारी।"

शिखा के सहमति में हम्म करते ही प्रखर ख़ुश हो गया। शिखा के बोलने में ग़ज़ब का जादू था। तभी तो फोन बंद होने के बाद हमेशा ही वह उसकी बातों में गुम हो जाता था। शिखा ने अपनी बात पूरी करते हुए कहा-
"जानते हो प्रखर, प्यार इंसान को बहुत कुछ स्वत: ही करने और करवाने के लिए मज़बूर करता है। वादा करो तुम मरने की बात कभी नहीं करोगे। समीर से विवाह हो जाने के बाद सोचती थी अपनी गृहस्थी में ख़ूब जी लगाऊँगी। पर तुम हर उस जगह आकर मेरे साथ खड़े हो गये, जहाँ पर मैं अकेला महसूस करती थी। तुमने मेरा साथ कभी नहीं छोड़ा।"
बोलते-बोलते ज्यों ही शिखा रुकी, प्रखर ने उससे पूछा-
"तुम मुझे बहुत याद करती होगी, ऐसा मुझे विश्वास था क्योंकि मैं भी तुम्हें बहुत याद करता था। मैं तुमसे ज़िद करके जब अपनी मनमानियाँ करवाता था। तुम चुपचाप जल्दी ही मेरी बातों को मान जाती थी। तुम्हारे बिना गुज़ारे समय में मुझे हमारे प्यार की गहराई महसूस हुई। जानता हूँ हमारे प्यार को कभी भी कोई नहीं समझ पाएगा मगर इस बात को सोचकर प्यार करना छोड़ा नहीं जा सकता। सच कह रहा हूँ न शिखा!"
हम्म बोलकर शिखा ने अपनी बात आगे बढ़ाई-
"जानते हो प्रखर, मैंने विवाह के बाद तुम्हें अपना एक अदृश्य मित्र बना लिया था। मैंने जिसका नाम ‘आत्मीय’ रखा था। इस मित्र से मैं घंटों बातें करती थी क्योंकि समीर बहुत कम बोलते थे। मन जब भी उदास होता, सारी की सारी उदासी 'आत्मीय' के साथ साझा कर लेती। एक अदृश्य मित्र के रूप में तुम हमेशा मेरे साथ रहे प्रखर। अपनी डायरी में कुछ भी लिखती तो 'आत्मीय' को अपने पास बैठा लेती।"

एकाएक शिखा अपनी बात पर थोड़ा विराम लगा, प्रखर से बोली- "मन ठीक होने पर तुमसे बहुत कुछ साझा करना है। समीर को गये हुए अब काफ़ी समय हो गया है। पर अभी भी बहुत कुछ अस्त-व्यस्त है। अभी तो उनके सभी काग़ज़ धीरे-धीरे संभाल रही हूँ। एक पूरी अलमारी फ़ाइलों से भरी पड़ी है। मैंने समीर के रहते हुए कभी यह सब नहीं किया। समीर अपने ऑफिशियल कागज़ों के साथ मेरे भी कागज़ सँभाल दिया करते थे। मुझे अब यह काम बहुत भारी लग रहा है। पर प्रखर जहाँ तक मेरे मन का सवाल है, वह तनिक भी नहीं सँभला है।"
अकस्मात प्रखर ने शिखा की बात सुनकर स्नेह भरे स्वरों में कहा-
"तुम ठीक तो हो शिखा? तुम्हारी हर वक़्त चिंता सताती है। तुम्हारे घर और मेरे घर में सिर्फ़ एक दीवार का फ़ासला है पर उस दीवार पर संस्कारों और मर्यादाओं का सीमेंट चढ़ा है। किसी भी बात को उतना ही सोचना कि मन से बिखरो नहीं। एक बार बिखर गयी तो ख़ुद को सँभाल नहीं पाओगी तुम। एक और बात हमेशा ध्यान रखना, मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ। कभी ख़ुद को अकेले मत समझना।"
"हाँ, मैं ठीक हूँप्रखर! तुम्हारा साथ तो हमेशा ही मरहम बना है। जब भी ख़ुद को अकेला महसूस किया, तुम्हें साथ खड़ा पाया है।"

शिखा की इस बात के साथ दोनों ही विचारों में गुम हो गये। दोनों को कभी भी उम्मीद नहीं थी कि रिटायरमेन्ट के बाद इस तरह मिलना होगा। किसने सोचा था, अपने पुराने शहर आगरा को वो तीनों ठहरने का आख़िरी पड़ाव चुनेंगे। एक ही शहर, एक ही गली और घर भी अगल-बगल वाले किस्मत ने जुटा दिए थे।
अब तो दोनों को ही लग रहा था, सब ईश्वर के सोचे से ही होता है। इंसान के सोचने से नहीं होता। दोनों के पास न तो फोन नंबर था। न ही कभी मिलने का सोचा था। बस हाँ, मन ही मन हमेशा सोचते थे कि विदा लेने से पहले बस एक बार अचानक से सामने आ जाएँ और एक-दूसरे को देख लें। तीनों की जन्मस्थली आगरा ही थी।
तभी प्रखर की फोन पर आवाज़ आयी। आवाज़ के साथ ही शिखा की सोच की शृंखला टूटी।

"शिखा, तुम भी हमारे मिलने के संजोग के बारे में सोच रही हो न।" शिखा ने हम्म करके उसकी बात पर मोहर लगायी।

"शिखा, जानती हो, मैं भी हर रोज़ पूजा करने लगा हूँ बिल्कुल तुम्हारी तरह। आजकल तो तुम्हारी हर बात मुझे छूती है। समीर के जाने के बाद मुझे तुम्हारी फ़िक्र हमेशा सताती है। तभी सारा-सारा दिन तुम्हारी खुशियों के लिए कल्पनाएँ और प्रार्थनाएँ करता रहता हूँ। कैसे तुमको खुशियाँ दूँ। दरअसल निमित्त ने हमें दूर कर दिया था मगर तुम्हारे लिए मेरा प्रेम कभी छूटा ही नहीं था शिखा।"

प्रखर जब कोई बात शुरू करता तो उस बात के आसपास की सभी बातों को भी विस्तृत रूप से बताता। प्रखर की बातों में उसकी पत्नी प्रीति स्वत: ही आ जाती थी। प्रीति से भी उसने ख़ूब प्यार किया था क्योंकि वह कहता था कि ‘अगर प्रीति जैसे अच्छे इंसान को वह प्यार नहीं करता तो ईश्वर उसे कभी माफ़ नहीं करते। प्रीति में भी तुम्हारी तरह कोई कमी नहीं थी। बेहद समर्पित पत्नी थी प्रीति।’
प्रखर ने अपनी बात को पूरा करते हुए कहा-

"शिखा, अगर तुम्हारे लिए प्यार कहीं छूट गया होता तो आज भी उसी तरह महसूस नहीं करता, जैसे पहले करता था। बल्कि मुझे तो हमारा प्यार अब और भी गहरा महसूस होता है।"
प्रखर की बातें सुनकर शिखा का जी ख़ूब भर आता था। फोन डिसकनेक्ट होने के बाद भी शिखा घंटों प्रखर की बातों में खोई रहती। खोए हुए प्यार का वापस मिलना....सच में न जाने कितनी प्रार्थनाओं के असर से फलीभूत होता है। इसकी तीव्रता प्रखर और शिखा दोनों ही महसूस कर रहे थे। जैसे ही शिखा को अचानक घर के कामों के याद आयी, उसने प्रखर से कहा-
"कहाँ से बात शुरू हुई थी, कहाँ पहुँच गयी। ख़ैर, कोई बात नहीं। अब सवेरे के काम ख़त्म करती हूँ। तुमसे फिर बात करूँगी प्रखर। अब तो तुमसे बात किये बग़ैर दिन पूरा ही नहीं होता।"

दोनों ने वापस फोन करने का बोलकर एक-दूसरे से विदा ली। शिखा काम करते-करते चुपचाप उन गुज़रे दिनों की बातों और यादों में खोती गयी, जो उसके जीवन का अहम हिस्सा थीं।

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रचनाकार परिचय

प्रगति गुप्ता

ईमेल : pragatigupta.raj@gmail.com

निवास : जोधपुर (राजस्थान)

जन्मतिथि- 23 सितंबर, 1966
जन्मस्थान- आगरा (उत्तरप्रदेश)
शिक्षा- एम०ए० (समाजशास्त्र, गोल्ड मैडलिस्ट)
सम्प्रति- लेखन व सोशल-मेडिकल क्षेत्र में काउंसिलिंग
प्रकाशन- तुम कहते तो, शब्दों से परे एवं सहेजे हुए अहसास (काव्य-संग्रह), मिलना मुझसे (ई-काव्य संग्रह), सुलझे..अनसुलझे!!! (प्रेरक संस्मरणात्मक लेख), माँ! तुम्हारे लिए (ई-लघु काव्य संग्रह), पूर्ण-विराम से पहले (उपन्यास), भेद (लघु उपन्यास), स्टेप्लड पर्चियाँ, कुछ यूँ हुआ उस रात (कहानी संग्रह), इन्द्रधनुष (बाल कथा संग्रह)
हंस, आजकल, वर्तमान साहित्य, भवंस नवनीत, वागर्थ, छत्तीसगढ़ मित्र, गगनांचल, मधुमती, साहित्य भारती, राजभाषा विस्तारिका, नई धारा, पाखी, अक्षरा, कथाबिम्ब, लमही, कथा-क्रम, निकट, अणुव्रत, समावर्तन, साहित्य-परिक्रमा, किस्सा, सरस्वती सुमन, राग भोपाली, हिन्दुस्तानी ज़ुबान, अमर उजाला, राजस्थान पत्रिका, दैनिक जागरण, दैनिक ट्रिब्यून, नई दुनिया, दैनिक नवज्योति, पुरवाई, अभिनव इमरोज, हिन्दी जगत, पंकज, प्रेरणा, भारत दर्शन सहित देश-विदेश की लगभग 350 से अधिक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशन और अनुवाद।
कविता अनवरत, कविता अभिराम, शब्दों का कारवां, समकालीन सृजन, सूर्य नगरी की रश्मियाँ, स्वप्नों की सेल्फ़ी, कथा दर्पण रत्न, छाया प्रतिछाया, सतरंगी बूंदें, संधि के पटल पर आदि साझा संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित।
प्रसारण-
जयपुर दूरदर्शन से चर्चा व आकाशवाणी से सृजन का नियमित प्रसारण
सामाजिक और साहित्यिक क्षेत्र में कविता का स्थान विषय पर टी.वी. पर एकल साक्षात्कार
संपादन- अनुभूतियाँ प्रेम की (संपादित काव्य संकलन)
विशेष-
राजस्थान सिन्धी अकादमी द्वारा कहानी संग्रह 'स्टेपल्ड पर्चियाँ' का अनुवाद।
कहानियों और कहानी संग्रह 'स्टेपल्ड पर्चियाँ' पर शोध।
प्रतिष्ठित कथा प्रधान साहित्यिक पत्रिका 'कथाबिम्ब' के संपादक मण्डल में क्षेत्रवार संपादक
कहानियों व कविताओं का अन्य भाषाओं में अनुवाद
हस्ताक्षर वेब पत्रिका के लिए दो वर्ष तक नियमित 'ज़रा सोचिए' स्तंभ
सम्मान/पुरस्कार-
हिंदी लेखिका संघ, मध्यप्रदेश (भोपाल) द्वारा 'तुम कहते तो' काव्य संग्रह पर 'श्री वासुदेव प्रसाद खरे स्मृति पुरस्कार' (2018)
'अदबी उड़ान काव्य साहित्य पुरस्कार' काव्य संग्रह तुम कहते तो और शब्दों से परे पुरस्कृत व सम्मानित (2018)
साहित्य समर्था द्वारा आयोजित अखिल भारतीय 'डॉ० कुमुद टिक्कू कहानी प्रतियोगिता' श्रेष्ठ कहानी पुरस्कार (2019 और 2020)
विद्योत्तमा फाउंडेशन, नाशिक द्वारा 'स्टेपल्ड पर्चियाँ' कहानी संग्रह 'विद्योत्तमा साहित्य सम्राट सम्मान' से पुरस्कृत (2021)
श्री कमल चंद्र वर्मा स्मृति राष्ट्रीय लघुकथा लेखन प्रतियोगिता प्रथम पुरस्कार 2021
कथा समवेत पत्रिका द्वारा आयोजित 'माँ धनपति देवी स्मृति कथा साहित्य सम्मान' 2021, विशेष सम्मान व पुरस्कार
लघु उपन्यास भेद पुरस्कृत मातृभारती 2020
विश्व हिंदी साहित्य परिषद द्वारा 'साहित्य सारंग' से सम्मानित (2018)
अखिल भारतीय माथुर वैश्य महासभा के राष्ट्रीय सम्मेलन में 'समाज रत्न' से सम्मानित (2018)
डॉ० प्रतिमा अस्थाना साहित्य सम्मान, आगरा (2022)
कथा साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थान द्वारा राज्य स्तरीय सम्मान 'रघुनंदन त्रिवेदी कथा सम्मान' स्टेपल्ड पर्चियांँ संग्रह को- 2023
पंडित जवाहरलाल नेहरु बाल साहित्य अकादमी, राजस्थान द्वारा 'इंद्रधनुष' बाल कथा संग्रह को 'बाल साहित्य सृजक' सम्मान 2023 
जयपुर साहित्य संगीति द्वारा 'कुछ यूँ हुआ उस रात' को विशिष्ट श्रेष्ठ कृति सम्मान 2023
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