Ira
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प्रगति गुप्ता के उपन्यास "पूर्णविराम से पहले" की चौथी कड़ी

प्रगति गुप्ता के उपन्यास "पूर्णविराम से पहले" की चौथी कड़ी

एक उम्र के बाद प्रेम का स्वरूप कितना विशाल हो जाता है....प्रखर को अच्छे
से महसूस हुआ। इंसान जिसे सच्चा प्यार करता है उसके साथ के हर रिश्ते से
भी बहुत प्यार करने लग जाता है। तभी तो छोटे से ही अंतराल में समीर भी
उसका मित्र बनने लगा था।

घर में सामान सेट होने के बाद समीर और शिखा ने आस-पास रहने वाले
पड़ोसियों से मिलने का सोचा। सबसे पहले समीर और शिखा ने घर के पास
वाले घर में मिलने का विचार किया।
घर की नेम प्लेट पर ‘प्रणय’ लिखा हुआ था। नाम पढ़कर दोनों की आँखों में
घर के मालिक के लिए जैसे ही प्रशंसा के भाव उतरे, दोनों मुस्कुरा गए थे।
समीर और शिखा ने गेट खोलकर ज्यों ही गार्डन के पास बनी हुई सीढ़ियों से
ऊपर चढ़ना शुरू किया, शिखा का मन बगीचे में लगे खूब सारे फूलों में अटक
कर रह गया। वह तो सीढ़ियों पर खड़ी-खड़ी फूलों को निहारने लगी।

तब समीर ने आगे बढ़कर डोर-बेल बजाई..और शिखा को साथ में आने को
कहा।
एक बुजुर्ग से सेवक ने आकर दरवाजा खोला, और दोनों को देखकर पूछा-
“साहिब! आप पास वाले घर से आए हैं न। मैंने आप दोनों को कई बार देखा
है। आप दोनों अंदर आकर बैठिए.. मैं साहिब को बुलाता हूँ।”
थोड़ी ही देर में वह हम दोनों के लिए पानी ट्रे में सजाकर ले आये और आकर
बहुत आदर से बोले-
“साहिब को बता दिया है। आप दोनों पानी पीजिए..दस मिनट में साहिब आते
हैं।” बोलकर वह वापिस चला गया।
थोड़ी ही देर में दोनों ने बहुत हैन्डसम, मगर उनकी ही उम्र के व्यक्ति को
ड्रॉइंग रूम की ओर आता हुआ देखा। जैसे ही उसने ड्रॉइंग रूम में प्रवेश करते
हुए समीर और शिखा पर दृष्टि डाली.. वह ड्रॉइंग रूम में पड़े हुए सोफ़ों के
क़रीब आकर कुछ क्षण को खड़ा हो गया। उसको देखकर समीर और शिखा भी
खड़े हो गए। उसकी निगाह लगातार शिखा की ओर थी। उसने शिखा से पूछा-
“तुम शिखा हो न.. हम कॉलेज में साथ थे।”
शिखा भी चकित होकर उसी को निहार रही थी। शिखा ने सहमति में सिर हिला
कर अपने ही होने की सहमति दी। हालांकि उम्र के साथ दोनों के चेहरों में
काफ़ी बदलाव आ गया था। दोनों ने जैसे ही एक दूसरे को देखा.. कुछ सेकंड
को नि:शब्द चुपचाप एक दूसरे को देखते रहे। फिर प्रखर ने वापस पूछा-
"तुम शिखा ही हो न...शिखा के धीमे से वापस सिर हिला कर हाँ कहा। प्रखर ने
बात को आगे बढ़ाते हुए कहा...अरे! दुबारा इसलिए पूछा....कहीं मैं तुम्हारे सिर

हिलाने का ग़लत मतलब नहीं समझ गया हूँ। वैसे मित्रों को कोई भूलता नहीं
है। पर कहते हैं एक ही शक्ल के इस दुनिया में चार लोग होते हैं।”
अपनी बात बोलकर प्रखर जोर से हँस पड़ा। प्रखर की बात सुनकर समीर और
शिखा को भी हँसी आ गई। पर एक दूसरे को एक लंबे अरसे बाद सामने पाकर
दोनों की आँखें नम हो गई।
तब शिखा ने स्थिति को सँभालते हुए कहा-
“हाँ प्रखर!.. सच कहा... बहुत अच्छे से सब याद है मुझे भी। मित्र भूलने के
लिए नहीं होते। उम्र के साथ हम दोनों की ही शक्लों में थोड़ा बदलाव आ गया
है। दोनों के चश्मे भी लग गए हैं। पहले से बहुत मोटे हो गए हो तुम।...”

प्रखर से बात करते हुए शिखा कुछ वैसे ही चहकने लगी थी, जैसे कॉलेज में
दिनों में आँखों में चमक के साथ उसकी चहचाहट बढ़ जाती थी। कुछ पल को
शिखा भूल गई समीर उसके साथ खड़े हैं।.. जैसे ही होश आया ख़ुद की
प्रतिक्रियाओं पर नियंत्रण कर प्रखर से बोली-
"प्रखर इनसे मिलो यह मेरे पति समीर हैं। हम दोनों ने केन्द्रीय विद्यालय में
साथ-साथ नौकरी की। यह प्रिन्सपल होकर रिटायर हुए और मैं सीनियर टीचर।
"...सालों साल बाद अपने प्यार को सामने पाकर शिखा हड़बड़ा गई थी। उसको
जो भी सूझा वही बोल दिया।
समीर प्रखर से हाथ मिलाकर बहुत आत्मीयता से मिले। तब प्रखर ने शिखा से
कहा-
“मैं इतना भी मोटा नहीं हुआ हूँ शिखा....कि कद्दू जैसा दिखने लगूँ। अरे!
प्रशासनिक सेवाओं में था। बहुत फिट रहना पड़ता था। इस साल ही रिटायर
हुआ हूँ। इतनी जल्दी मोटा तो नहीं होऊँगा। हाँ...उम्र बढ़ने से थोड़ा बहुत
बदलाव ज़रूर आया होगा.. यह मान सकता हूँ।”

अपनी बात बोलकर प्रखर खूब जोर से हँस पड़ा। उसकी हँसी को देखकर समीर
और शिखा की भी हँसी फूट पड़ी। यह सुखद संयोग ही था कि उम्र के जिस
मोड़ पर तीनों मिले थे वहाँ वक़्त गुजारने के लिए मित्रों की वहुत ज़रूरत होती
है। ऐसे में ख़ुद के जैसे मित्र मिल जाए तो कहना ही क्या। तभी प्रखर ने दोनों
को बहुत आत्मीयता से कहा-
"अरे आप दोनों प्लीज बैठो। हम तो खड़े-खड़े ही बातें करने लगे। बातों के साथ
अब हम बैठकर चाय-कॉफ़ी भी पीयेंगे। साथ में कुछ वक़्त गुजारेंगे।”
थोड़ी देर तक तो तीनों के बीच औपचारिकता भरी बातें हुई। फिर बढ़ती बातों के
साथ स्वतः ही अनौपचारिक बातें भी शुरू हो गई। प्रखर को कॉलेज के पूरे दो
साल तक शिखा ने बहुत करीब से महसूस किया था। वह जिससे भी घुलता-
मिलता था, उसे अपनी ज़िंदगी में पूरी तरह शामिल कर लेता था। आधे-अधूरे
रिश्ते निभाना उसकी फ़ितरत में नहीं था। बरसों बरस बाद शिखा को सामने
पाकर उसकी आँखों में आई चमक को शिखा बहुत अच्छे से महसूस कर पा रही
थी। तभी प्रखर ने पुनः बोलना शुरू किया।
“देखो भई मेरी पत्नी प्रीति को विदा लिए हुए दो साल हो चुके है। दो बहुत
पुराने सेवकों के साथ मेरा जीवन गुज़रता है। दरअसल अब वही मेरा परिवार भी
हैं। अगर काका और काकी साथ नहीं होते तो मुझे भी कोई न कोई निर्णय लेना
पड़ता। काफ़ी समय हो गया अकेले रहते हुए। आपको मेरे घर में बहुत कुछ
व्यवस्थित नहीं मिलेगा। पर जो जीवन जीने के लिए जरूरी है... सब मिल
जाएगा।”
समीर को कुछ कम बोलते हुए देखकर प्रखर ने कहा-
“समीर मुझे लगता हैं मैं आपसे थोड़ा-सा ज्यादा बोलता हूँ शायद। माफ करना
दोस्त। पर सोचता हूँ तुम्हें मेरा साथ अच्छा लगेगा। शिखा को तो मेरा स्वभाव
याद ही होगा... मैं आज भी वही हूँ... क्यों शिखा!"..

प्रखर की बात का शिखा इस वक़्त क्या ज़वाब दे शिखा को समझ नहीं आया।
वो मुस्कुरा गई। सच तो यही था कि प्रखर आज भी बहुत मिलनसार था।
घर में अंदर घुसते ही शिखा ने चारों ओर नज़र दौड़ाई थी। सब बहुत व्यवस्थित
था। कहीं पर भी धूल-मिट्टी या कोई गंद दिखाई नहीं दे रही थी। घर में घुसते
ही ड्रॉइंग स्पेस थी। जिसकी एक वॉल पर पूरी फॅमिली की कई तस्वीरों को
सलीके से सजाया गया था। ड्रॉइंग और डाइनिंग हॉल के बीच ग्लास का
स्लाइडिंग डोर था। जिसके खुले होने से डायनिंग स्पेस के पास दो कमरे भी
दिख रहे थे। कहीं पर भी कुछ अस्त-व्यस्त नहीं था। सभी पर पुनः एक दृष्टि
डाल कर शिखा ने प्रखर से कहा-
“सभी कुछ कितना व्यवस्थित है प्रखर। कहीं से भी नहीं लगता कुछ बेतरतीब
है। तुम्हारी बातें तो....”
“शिखा! सच तो यही है.....मैं कुछ भी नहीं कर पाता हूँ। रिटायर होने के बाद
भी मुझे बहुत जगह मीटिंग्स में जाना पड़ता है। काका और काकी घर का पूरा
ध्यान रखते हैं।.. जितना भी घर में डेकोरेशन तुम्हें दिखाई दे रहा है, सब मेरी
पत्नी प्रीति का किया हुआ है। उसे घर सजाने का बेहद शौक था।..कुछ भी नया
करती तो मुझे ज़रूर शामिल करती थी। तब मैं देखता भी था और खुश भी
होता था। पर अब तो सजाने वाला ही नहीं तो...” बोलकर प्रखर कुछ क्षण को
गुज़री यादों में खो गया।
प्रखर ने जैसे ही प्रीति की बातें साझा की शिखा ने कहा-
“प्रखर कुछ और भी बताओ न प्रीति के बारे में..अच्छा लगेगा हमें सुनकर।”
तब प्रखर ने अपने परिवार के साथ-साथ प्रीति के बारे में बताया कि उसके
पापा आर्मी में थे, और माँ स्कूल टीचर थी। अभय अंकल उनके परिवार के
बहुत प्रिय दोस्त थे। वह भी आर्मी में थे। उन्हीं की बेटी थी प्रीति। आर्मी

परिवार की होने से प्रीति बहुत अनुशासनप्रिय थी। माँ-बाऊजी ने प्रीति को
बचपन से देखा था। वह उन्हें बेहद पसंद थी। जब ट्रैनिंग के बाद मेरी पहली
पोस्टिंग हुई... माँ ने प्रीति के बारे में बताया।.. पर तब मैं शादी ही नहीं करना
चाहता था।
जब बाऊजी ने बहुत फोर्स किया तो मैंने ही कहा ‘जब वक़्त आएगा ज़रूर कर
लूँगा।’ पर अभय अंकल-आंटी को जल्दी थी क्योंकि प्रीति की पढ़ाई पूरी हो चुकी
थी। मेरे माँ-बाऊजी भी इस रिश्ते को हाथ से नहीं जाने देना चाहते थे। ख़ैर
जैसा कि अक्सर होता है। जब आपको वक़्त चाहिए होता है.. घर के बड़े लोग
वक़्त के आगे बाड़ा खींच देते हैं।”
अपनी यह बात बोलकर जैसे ही प्रखर ने शिखा की तरफ देखा... उसने अपनी
नज़र ड्रॉइंग रूम में लगी एक पेंटिंग की ओर घुमा ली। शिखा को बहुत अच्छे
से समझ आ रहा था, प्रखर उसकी भी बात कर रहा है। पापा के अचानक चले
जाने के बाद शिखा के भाई को भी उसके विवाह की जल्दी थी। तभी समीर ने
प्रखर से पूछा-
“तुम्हें कोई और लड़की पसंद थी क्या? या कहना चाहिए तुम अपनी पसंद की
शादी करना चाहते थे।...” समीर के प्रश्न ने प्रखर को असमंजस में डाल दिया
था कि क्या ज़वाब दें। प्रखर अगर ज़वाब न देता तो गलत मायने निकल जाते।
“हाँ! समीर मुझे एक लड़की बहुत पसंद थी... स्कूल से ही। बेहद खूबसूरत, सरल
और बहुत प्यारी-सी ..उसकी हँसी बहुत मोहक़ थी। उसकी वज़ह से ही मुझे
आगरा शहर बहुत पसंद था। पर जब तक समय साथ न हो, कुछ नहीं होता।
मैं उसके लिए कवितायें लिखा करता था। अगर तुम्हारी भी रुचि होगी तुम्हें
ज़रूर सुनाना चाहूँगा।.. समीर! तुम भी लिखते हो क्या?”
समीर ने असहमति में सिर हिला कर बताया कि वह कविताएं नहीं लिखता।
पर उसने काफ़ी अकादमिक लेख लिखे हैं। समीर की बात सुनकर प्रखर ने उन्हें
पढ़ने की इच्छा ज़ाहिर कर दी। समीर ने पढ़वाने का वादा किया, और प्रखर से

अपनी बात ज़ारी रखने का आग्रह किया। प्रखर की बातों में समीर को मज़ा आ
रहा था, क्योंकि उसके बात करने का तरीका बहुत मोहक़ था। प्रखर ने समीर
की ओर देखते हुए अपनी बात जारी रखी-
“जानते हो समीर जब वो मुझे जानती भी नहीं थी... तब भी मेरी रूह को छूती
थी, और जब जानने लगी..तो मेरी ही रूह का चलता-फिरता हिस्सा बन गई।
जितना वक़्त मैं उसके साथ गुज़ारना चाहता था.. कभी नहीं गुज़ार पाया।
समीर हमारा-तुम्हारा समय बहुत सारी मर्यादाओं की गलियों से गुज़रता रहा है।
इस बात को तो तुम भी मानोगे।”
“सही कहा प्रखर तुमने। तभी तो मर्यादाओं में बंधे प्रेम में अनंत गरिमा होती
थी।” समीर ने प्रखर की बात को मान देते हुए उस पर अपनी भी मुहर लगा
दी।
अब इन तीनों की वो उम्र भी नहीं रही थी कि खोद-खोद कर प्रेम-प्रसंगों की
पड़ताल करते। अब उनके बीच का संबंध हर बात को मन से साझा करने का
था। समीर ने भी प्रखर से छूटी हुई बात को पूरा करने का आग्रह किया तो
प्रखर ने नि:संकोच कहना शुरू किया-
“प्रीति में इंकार करने जैसी कोई कमी नहीं थी। मुझे तो बस एक बार देखकर
अपनी स्वीकृति ज़ाहिर करनी थी। शेष प्रीति का परिवार माँ-बाऊजी के काफ़ी
पुराने परिचितों में से था तो सब जाना-पहचाना ही था। हमारा विवाह बहुत
सादगी से हुआ, क्योंकि मेरे बाऊजी बहुत सादगी पसंद इंसान थे। यह तो मुझे
नहीं पता कि मैं प्रीति के लिये कैसा पति था, क्योंकि वो बताने के लिए अब
नहीं है..पर प्रीति बहुत अच्छी पत्नी थी। उसने मेरे घर को घर बनाया। मेरी
पोस्टिंग एक शहर से दूसरे शहर होती रही। प्रीति हमेशा शारारिक और मानसिक
संबल बनकर साथ निभाती रही।

प्रखर ने बीच में ही अपनी बात को रोककर काका को कॉफी बनाकर लाने को
कहा। अपनी बातें बताते हुए प्रखर बीच-बीच में शिखा को ज़रूर देख लेता
क्योंकि प्रखर के लिए शिखा की प्रतिक्रियाएं आज से नहीं बहुत पहले से ही
मायने रखती थीं। शिखा भी उन क्षणों में सिर्फ़ प्रखर को ही सुनना चाहती थी।
तभी शिखा को संबोधित करके प्रखर ने बताया-
“शिखा! पूरी वॉल पर तुम जो पेंटिंग देख रही हो; यह प्रीति का क्रीऐशन है। वह
बहुत अच्छी पेंटर थी। प्रीति को पेंटिंग्स के अलावा पढ़ाने-लिखाने का भी बेहद
शौक था। जिस-जिस शहर में मेरी पोस्टिंग हुई.. वहाँ के आर्मी और एयरफोर्स
विद्यालयों में उसने पढ़ाया।
ऊँचे ओहदे पर होने की वज़ह से मुझे काफ़ी नौकर मिलते थे। घर पर बहुत
काम नहीं होता था। बस सेवकों को निर्देश देने होते थे। मेरी काफ़ी टफ रात-
बेरात की भी ड्यूटीस होती थी। मेरा खाना-पीना भी काफ़ी अस्त-व्यस्त हो जाता
था। पर प्रीति ने मुझसे कभी कोई शिकायत नहीं की। मेरे ऑफिस से वापिस
आने पर उसने हमेशा साथ बैठकर मुझे खाना खिलाया होगा। मुझे याद नहीं
आता वह कभी अनखनाई हो। जब कि मैं तो उसे रात-बेरात उठने को मना ही
करता था। एक अच्छी पत्नी में जो भी गुण होने चाहिए, वे सभी प्रीति में थे।
हमेशा बोलती थी... आपको खाना खाते हुए निहारना मुझे अच्छा लगता है।
दरअसल वह मुझे कभी अकेला बैठकर खाना नहीं खाने देना चाहती थी।
पुनः अपनी दृष्टि शिखा पर डाल कर प्रखर ने आगे बताया-
मेरा एक ही बेटा है, प्रणय। बहुत ही समझदार और प्यारा है। वह यू.एस.बेस्ड
कंपनी में कार्यरत है, और न्यू जर्सी में रहता है। उसने इंजीनियरिंग के साथ
एम.बी.ए. किया है। उसका मेरे साथ बहुत दोस्ताना व्यवहार है। अचानक प्रखर
ने अपनी बात पर विराम देकर समीर और शिखा से कहा-
“तुम दोनों मेरे बारे में ही सुनते रहोगे तो बोर हो जाओगे। अब अपने बारे में
भी कुछ साझा करो तो टॉपिक्स भी बदलेंगे।”

शिखा ने उसे बीच में ही टोकते हुए कहा-
“नहीं प्रखर आज हम दोनों सिर्फ़ तुम्हें ही सुनना चाहेंगे। अपनी बात जारी
रखो.. बहुत अच्छा लग रहा है, तुम्हारे परिवार के बारे में जानना।”
दरअसल शिखा को एक अरसे बाद प्रखर की बातें सुनना, और साथ-साथ
कनखियों से उसे निहारना भीतर ही भीतर ऊर्जा से भर रहा था। दूसरी ओर
शिखा का कुछ भी बोलना प्रखर के लिए भी जीवन के जैसे था। आज प्रखर को
शिखा पहले वाली शिखा-सी ही महसूस हो रही थी। बहुत मासूम निश्चल और
प्यारी-सी।
एक उम्र के बाद प्रेम का स्वरूप कितना विशाल हो जाता है....प्रखर को अच्छे
से महसूस हुआ। इंसान जिसे सच्चा प्यार करता है उसके साथ के हर रिश्ते से
भी बहुत प्यार करने लग जाता है। तभी तो छोटे से ही अंतराल में समीर भी
उसका मित्र बनने लगा था।
कुछ ऐसा ही समीर और शिखा महसूस कर रहे थे। तभी वह दोनों भी प्रीति हो
चाहे प्रणय, सभी के बारे में जानना चाहते थे।
प्रखर प्रीति के बारे में बताते-बताते बार-बार भावुक हो रहा था। शिखा की आँखें
जैसे ही प्रखर की आँखों से मिली, उसमें तैरती नमी शिखा की आँखों का भी
हिस्सा बन गई।
उसने अचकचा कर समीर की ओर देखा था, जो उस समय प्रीति की बनाई हुई
पेंटिंग की ओर देख रहा था। उसने राहत की साँस ली थी। बीच-बीच में प्रखर
और शिखा एक दूसरे की बातों में खोने लगे थे। उम्र कोई भी हो प्रेम इंसान को
बहुत युवा महसूस करवा देता है। युवावस्था जैसी कुछ भावनाएं चाहते न चाहते
हुए इंसान के इर्द-गिर्द घूमने लगती हैं।
तभी समीर ने प्रखर से कहा-

“बहुत सुंदर पेंटिंग बनाई है प्रीति ने। इसे बनाने में काफ़ी समय भी लगा होगा।
इसको बनाने में लगभग कितना समय लगा?”
कुछ याद करते हुए प्रखर ने जवाब दिया-
“इसको बनाने में प्रीति को छः महीने लगे थे। उसका बहुत मन था, घर के
ड्रॉइंग-रूम में उसकी बनाई हुई पेंटिंग ही लगे। उसके कहने पर मैंने यह
कैनवास बर्थ-डे पर गिफ्ट किया था। जब भी हमारी शादी की वर्षगांठ या हम
दोनों में से किसी का जन्मदिन आता, हम वही देते जो एक दूसरे की पसंद या
ज़रूरत की चीज़ होती। प्रीति अक्सर मुझे गज़लों के कैसेट गिफ्ट करती थी,
जब तक उनका चलन था। बाद में जब कैसेट रेकॉर्डेर नहीं रहे तो वह सी.डी.
गिफ्ट करने लगी।”
प्रखर ने दोनों को बताया उसके पास म्यूजिक का बहुत अच्छा कलेक्शन है।
कभी समीर और शिखा सुनना चाहे तो वह उन्हें ज़रूर साझा करेगा। प्रीति को
समय ज़ाया करना हरगिज़ पसंद नहीं था। वह बहुत-सी किताबें पढ़ा करती थी।
वह उसकी कविताएं भी पढ़कर टिप्पणी किया करती थी।
फिर इस बीच कॉफी आ जाने से उन तीनों ने मिलकर तसल्ली से कॉफी पी।
कॉफी पीते हुए शिखा ने प्रखर से कहा-
“बहुत खूबसूरत पेंटिंग करती थी प्रीति। उनकी यह पेंटिंग बहुत अर्थपूर्ण है। इस
पेंटिंग में बहुत डेप्थ है। जब कभी तुम्हारे पास समय हो तो प्रीति की और भी
पेंटिंग्स दिखाना।”
“हाँ ज़रूर दिखाऊँगा। दरअसल तुम दोनों को भी पेंटिंग की काफ़ी समझ है।
तभी इतना कुछ इसमें खोज़ रहे हो। मैं ख़ुद प्रीति की पेंटिंग्स का प्रशंसक रहा
हूँ। मैंने उसकी पेंटिंग्स की एक प्रदर्शनी भी लगवाई थी। प्रीति की पेंटिंग्स को
लोगों की बहुत अच्छी प्रतिक्रियाएं व सराहना मिली थी। शिखा अगर तुम
चाहोगी तो अपने ड्रॉइंग-रूम के लिए भी उसकी कोई पेंटिंग पसंद करके ले
जाना।”....

“तुमने मेरे मन की बात कर दी प्रखर। तुम्हें नहीं पता मुझे तुम्हारी यह बात
कितनी प्यारी लगी। हम दोनों तो अपना घर अभी भी सेट कर ही रहे हैं।”
प्रखर की बात को शिखा ‘बहुत प्यारे हो प्रखर’ बोलकर पूर्ण करना चाहती थी,
पर समीर के साथ होने से नहीं बोल पाई।
प्रखर ने बताया कि उसका बेटा प्रणय भी बहुत प्यारा है। प्रीति ने उसकी
परवरिश बहुत जतन से की। बचपन से ही वह दोनों से एक-एक बात साझा
करता रहा है तो आज भी उसकी यही आदत है। हर दूसरे-तीसरे दिन फोन
करता है, ताकि मेरा ख्याल रख सके। उसे ऐसा करना अच्छा लगता है।
प्रखर ने तभी समीर की ओर मुखातिब होकर कहा-
“समीर! तुम दोनों को तो पता ही होगा, आजकल फैस-टाइम और व्हाट्सप्प आ
जाने से बहुत सुविधा हो गई है। यू.एस.जाने से पहले प्रणय मेरे फोन में यहीं
सब कुछ डाउनलोड कर गया था। अब तो अधिकतर फोन उसी पर आते हैं।
शिखा! प्रणय बहुत शरारती भी है। न जाने कितने उल्टे-सीधे मैसेज मुझे भेजता
है, ताकि मैं खूब हँसूं। मैं अब तुम दोनों को भी उसके मैसेज भेज दिया करूँगा
ताकि तुम दोनों भी खूब हँसो। बच्चे अगर माँ-बाप का ख्याल रखने वाले हो तो
सब कितना सुखद होता है।”
बेटे की बातें बताते-बताते प्रखर बहुत उत्साहित हो रहा था। उसको देखकर कहीं
न कहीं आभास हो रहा था कि वह बार-बार अपनी ही बताई हुई बातों में खो
जाता था।
“काका और काकी बहुत समय से साथ हैं। प्रणय उनका भी बहुत मान-सम्मान
करता है। उनसे भी अक्सर फोन पर बात करके मेरी पूरी रिपोर्ट लेता है।”
अपनी बात बोलकर प्रखर जोर से हँस पड़ा। शिखा को उसकी मासूम-सी हँसी
पर बहुत प्यार आया।

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उपन्यास की अगली कड़ी मई माह के अंक में.......... 

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रचनाकार परिचय

प्रगति गुप्ता

ईमेल : pragatigupta.raj@gmail.com

निवास : जोधपुर (राजस्थान)

जन्मतिथि- 23 सितंबर, 1966
जन्मस्थान- आगरा (उत्तरप्रदेश)
शिक्षा- एम०ए० (समाजशास्त्र, गोल्ड मैडलिस्ट)
सम्प्रति- लेखन व सोशल-मेडिकल क्षेत्र में काउंसिलिंग
प्रकाशन- तुम कहते तो, शब्दों से परे एवं सहेजे हुए अहसास (काव्य-संग्रह), मिलना मुझसे (ई-काव्य संग्रह), सुलझे..अनसुलझे!!! (प्रेरक संस्मरणात्मक लेख), माँ! तुम्हारे लिए (ई-लघु काव्य संग्रह), पूर्ण-विराम से पहले (उपन्यास), भेद (लघु उपन्यास), स्टेप्लड पर्चियाँ, कुछ यूँ हुआ उस रात (कहानी संग्रह), इन्द्रधनुष (बाल कथा संग्रह)
हंस, आजकल, वर्तमान साहित्य, भवंस नवनीत, वागर्थ, छत्तीसगढ़ मित्र, गगनांचल, मधुमती, साहित्य भारती, राजभाषा विस्तारिका, नई धारा, पाखी, अक्षरा, कथाबिम्ब, लमही, कथा-क्रम, निकट, अणुव्रत, समावर्तन, साहित्य-परिक्रमा, किस्सा, सरस्वती सुमन, राग भोपाली, हिन्दुस्तानी ज़ुबान, अमर उजाला, राजस्थान पत्रिका, दैनिक जागरण, दैनिक ट्रिब्यून, नई दुनिया, दैनिक नवज्योति, पुरवाई, अभिनव इमरोज, हिन्दी जगत, पंकज, प्रेरणा, भारत दर्शन सहित देश-विदेश की लगभग 350 से अधिक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशन और अनुवाद।
कविता अनवरत, कविता अभिराम, शब्दों का कारवां, समकालीन सृजन, सूर्य नगरी की रश्मियाँ, स्वप्नों की सेल्फ़ी, कथा दर्पण रत्न, छाया प्रतिछाया, सतरंगी बूंदें, संधि के पटल पर आदि साझा संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित।
प्रसारण-
जयपुर दूरदर्शन से चर्चा व आकाशवाणी से सृजन का नियमित प्रसारण
सामाजिक और साहित्यिक क्षेत्र में कविता का स्थान विषय पर टी.वी. पर एकल साक्षात्कार
संपादन- अनुभूतियाँ प्रेम की (संपादित काव्य संकलन)
विशेष-
राजस्थान सिन्धी अकादमी द्वारा कहानी संग्रह 'स्टेपल्ड पर्चियाँ' का अनुवाद।
कहानियों और कहानी संग्रह 'स्टेपल्ड पर्चियाँ' पर शोध।
प्रतिष्ठित कथा प्रधान साहित्यिक पत्रिका 'कथाबिम्ब' के संपादक मण्डल में क्षेत्रवार संपादक
कहानियों व कविताओं का अन्य भाषाओं में अनुवाद
हस्ताक्षर वेब पत्रिका के लिए दो वर्ष तक नियमित 'ज़रा सोचिए' स्तंभ
सम्मान/पुरस्कार-
हिंदी लेखिका संघ, मध्यप्रदेश (भोपाल) द्वारा 'तुम कहते तो' काव्य संग्रह पर 'श्री वासुदेव प्रसाद खरे स्मृति पुरस्कार' (2018)
'अदबी उड़ान काव्य साहित्य पुरस्कार' काव्य संग्रह तुम कहते तो और शब्दों से परे पुरस्कृत व सम्मानित (2018)
साहित्य समर्था द्वारा आयोजित अखिल भारतीय 'डॉ० कुमुद टिक्कू कहानी प्रतियोगिता' श्रेष्ठ कहानी पुरस्कार (2019 और 2020)
विद्योत्तमा फाउंडेशन, नाशिक द्वारा 'स्टेपल्ड पर्चियाँ' कहानी संग्रह 'विद्योत्तमा साहित्य सम्राट सम्मान' से पुरस्कृत (2021)
श्री कमल चंद्र वर्मा स्मृति राष्ट्रीय लघुकथा लेखन प्रतियोगिता प्रथम पुरस्कार 2021
कथा समवेत पत्रिका द्वारा आयोजित 'माँ धनपति देवी स्मृति कथा साहित्य सम्मान' 2021, विशेष सम्मान व पुरस्कार
लघु उपन्यास भेद पुरस्कृत मातृभारती 2020
विश्व हिंदी साहित्य परिषद द्वारा 'साहित्य सारंग' से सम्मानित (2018)
अखिल भारतीय माथुर वैश्य महासभा के राष्ट्रीय सम्मेलन में 'समाज रत्न' से सम्मानित (2018)
डॉ० प्रतिमा अस्थाना साहित्य सम्मान, आगरा (2022)
कथा साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थान द्वारा राज्य स्तरीय सम्मान 'रघुनंदन त्रिवेदी कथा सम्मान' स्टेपल्ड पर्चियांँ संग्रह को- 2023
पंडित जवाहरलाल नेहरु बाल साहित्य अकादमी, राजस्थान द्वारा 'इंद्रधनुष' बाल कथा संग्रह को 'बाल साहित्य सृजक' सम्मान 2023 
जयपुर साहित्य संगीति द्वारा 'कुछ यूँ हुआ उस रात' को विशिष्ट श्रेष्ठ कृति सम्मान 2023
संपर्क- 58, सरदार क्लब स्कीम, जोधपुर (राजस्थान)- 342011
मोबाइल- 9460248348 एवं 7425834878