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पंकज चतुर्वेदी की कविताएँ

पंकज चतुर्वेदी की कविताएँ

मेरा साथ इसलिए मत देना
कि मैं तुम्हारा सजातीय हूँ
या मित्र हूँ
या इस प्रत्याशा में
कि मैं भी तुम्हारा साथ दूँगा
व्यक्ति का साथ मत देना

एक- दुआ

आज दोपहर तीखी धूप से
बेहाल थी तबीयत
बैटरी रिक्शा में
एक ख़ूबसूरत स्त्री मिली
मैंने कहा :
चैत में यह आलम है
जेठ-वैशाख में क्या होगा!
वह बोली :
ज़्यादा गर्मी है
तो बारिश होगी
मैंने सोचा :
बारिश हो न हो
उसका कहना
अपने आप में
सुन्दर है
इस पृथ्वी पर हमेशा
कुछ अच्छा बचा रहता है
मैंने विदा समय
कहा :
बारिश होगी
तो आपके लिए
दुआ माँगेंगे!
वह मुस्कराई :
नहीं हो तो भी
दुआ माँगिएगा!

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दो- पेड़ किसी के पास जाता नहीं

पेड़ किसी के पास
जाता नहीं
न कुछ माँगता है
शरण में चाहे जो आए
स्वीकार करता है
कोई उस पर हिंसा करे
तो भी
प्रतिकार नहीं करता
बदले में कुछ
दे ही देता है
पेड़ जितने मनुष्य
हम कभी हो नहीं सकते

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तीन- साथ-साथ यह बताया जाए

मन्दिर में आरती के बाद
सुनता हूँ प्रार्थना का
उत्साहित सिंहनाद :
'धर्म की जय हो!
अधर्म का नाश हो!'
अगर धर्म का मतलब
मनुष्यता है तो
ज़रूर उसकी जय हो
लेकिन उसका अर्थ
धर्म की राजनीति है
तो साथ-साथ
यह बताया जाए
कि जब उसकी जय हो
तो संविधान का क्या हो?
इसी तरह
अधर्म का आशय
अमानुषिकता है तो
निश्चय ही
उसका नाश हो
लेकिन उसका अभिप्राय
असहमति है
तो साथ-साथ
यह बताया जाए
कि जब उसका नाश हो
तो लोकतंत्र का क्या हो?

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चार- राजा यह कल्पना नहीं कर सकता

राजा यह कल्पना
नहीं कर सकता
कि एक दिन वह
राजा नहीं रहेगा
यह कल्पना
उसके अनुयायी भी
नहीं कर सकते
राज्य की संस्थाएँ भी नहीं
नागरिक कर सकते हैं
मगर इसके एवज़ में वे
राज्य द्वारा
अयोग्य
नाकारा
भ्रष्ट
या अपराधी
ठहराए जा सकते हैं
बंदी
बनाए जा सकते हैं
कहने को जनतंत्र है
पर वास्तव में
यह एकतंत्र है
राजा बदला जा सकता है
जो भी यह संभावना
जता रहा है
जोखिम उठा रहा है

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पाँच- साथ

मेरा साथ इसलिए मत देना
कि मैं तुम्हारा सजातीय हूँ
या मित्र हूँ
या इस प्रत्याशा में
कि मैं भी तुम्हारा साथ दूँगा
व्यक्ति का साथ मत देना
सच का देना
क्योंकि फिर मैं तुम्हारा साथ
नहीं भी दे पाया तो
तुम्हें यह रंज नहीं होगा
कि एक निम्न प्रयोजन से
तुम मेरे साथ खड़े रहे थे

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छह- माँ जानती है

जीवन के अंतिम वर्ष
माँ शय्याग्रस्त ही रही
उसका कमरा नीचे था
मेरा छत पर
एक दिन मैंने उससे कहा :
'माँ, मैं पढ़ता हूँ
देर रात तक
जगता रहता हूँ'
वह बोली : 'हाँ, मैं देखती हूँ
तुम्हारे कमरे की लाइट
जलती रहती है'
उस दिन मैंने जाना :
बच्चा भले न जान सके
माँ किस व्यथा में
अँधेरे में
जागती रहती है
रात भर
मगर माँ देह से
असमर्थ होकर भी
जानती है
अगर कहीं
उसके बच्चे को
आराम नहीं है

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रचनाकार परिचय

पंकज चतुर्वेदी

ईमेल :

निवास : कानपुर (उत्तर प्रदेश)

जन्मतिथि- 24 अगस्त, 1971
जन्मस्थान- इटावा(उत्तर प्रदेश)
शिक्षा: इटावा और कानपुर के गाँवों-क़स्बों में आरम्भिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद सातवीं कक्षा से उ.प्र. सैनिक स्कूल, लखनऊ के छात्र हुए। वहाँ से 1989 में आई.एस.सी. और लखनऊ विश्वविद्यालय से 1992 में बी.ए.। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नयी दिल्ली से 1994 में एम.ए. (हिंदी) में प्रथम स्थान हासिल किया और 1998 में एम.फ़िल. में भी। वहीं से 2007 में पी-एच.डी.। कविता, संस्कृति और शिक्षा से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर अन्यान्य समीक्षात्मक निबन्ध, अंग्रेज़ी से हिंदी में सृजनात्मक एवं आलोचनात्मक लेखन के कुछ अनुवाद और अनेक साक्षात्कार प्रकाशित।
सम्प्रति : प्रोफ़ेसर एवं अध्यक्ष, हिंदी विभाग, विक्रमाजीत सिंह सनातन धर्म कॉलेज 
प्रकाशित कृतियाँ :

  • एक संपूर्णता के लिए (1998), एक ही चेहरा (2006), रक्तचाप और अन्य कविताएँ (2015), और सद्यःप्रकाशित कविता संग्रह आकाश में अर्द्धचन्द्र (2022) (कविता-संग्रह) ;
  • आत्मकथा की संस्कृति (2003), निराशा में भी सामर्थ्य (2013), रघुवीर सहाय (2014, साहित्य अकादेमी, नयी दिल्ली के लिए विनिबन्ध), जीने का उदात्त आशय (2015) (आलोचना) ;
  • यही तुम थे (2016, कवि वीरेन डंगवाल पर एकाग्र आलोचनात्मक संस्मरण) ;
  • प्रतिनिधि कविताएँ : मंगलेश डबराल (2017, सम्पादन)।
  • प्रतिनिधि कविताएँ : वीरेन डंगवाल (2022, सम्पादन)।
  • इसके अतिरिक्त भर्तृहरि के इक्यावन श्लोकों की हिंदी अनुरचनाएँ प्रकाशित।पुरस्कार / सम्मान : कविता के लिए वर्ष 1994 के भारतभूषण अग्रवाल स्मृति पुरस्कार और आलोचना के लिए 2003 के देवीशंकर अवस्थी सम्मान एवं उ.प्र. हिंदी संस्थान के रामचन्द्र शुक्ल पुरस्कार से सम्मानित। 2019 में इन्हें रज़ा फ़ेलोशिप प्रदान की गयी है।