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प्रभात भट्टाचार्य की बांग्ला कहानी 'क़ब्ज़ा' का श्याम सुंदर चौधरी द्वारा हिंदी अनुवाद

प्रभात भट्टाचार्य की बांग्ला कहानी 'क़ब्ज़ा' का श्याम सुंदर चौधरी द्वारा हिंदी अनुवाद

अचानक सबकुछ ज़ोरों से हिलने लगा। ऐसे में सबकी नींद का टूटना लाज़मी था। चारों ओर से भूकंप-भूकंप की आवाज़ें आने लगीं। आनन-फानन में लोग घर से बाहर निकल आये। समुद्र की लहरों में काफी ऊपर तक उछाल आ रहा था। एक्स, वाई और ज़ेड तीनों देशों की एक जैसी ही हालत थी। धरती भयावह तरीक़े से ऊपर नीचे हो रही थी। सभी आतंकित से एक-दूसरे को देख रहे थे। एक ही प्रश्न सबकी आँखों में।

आधी रात का वक़्त । अचानक सब कुछ ज़ोरों से हिलने लगा। ऐसे में सबकी नींद का टूटना लाज़मी था। चारों ओर से भूकंप भूकंप की आवाज़ें आने लगीं।आनन-फानन में लोग घर से बाहर निकल आये। समुद्र की लहरों में काफी ऊपर तक उछाल आ रहा था।एक्स, वाई और ज़ेड तीनों देशों की एक जैसी ही हालत थी। धरती भयावह तरीकक़े से ऊपर नीचे हो रही थी। सभी आतंकित से एक दूसरे को देख रहे थे। एक ही प्रश्न सबकी आँखों में। अब क्या होगा ? क्या हम ज़िंदा नहीं बचेंगे ? लेकिन थोड़ी देर बाद सब कुछ शांत हो गया।अपने भीतर की दहशत को दूर भगाने की कोशिश करते हुए सब लोग अपने अपने मकान
में चले गये और फिर पहले की तरह सो गये।
सूरज की सुनहरी चमक के साथ शुरू हुआ अगले दिन का सवेरा। समुद्र पूरी तरह शांत हो चुका था।तीनों देशों की जनता नींद से जाग चुकी थी। समुद्र के बीचोंबीच ये तीनों राष्ट्र अलग अलग द्वीप के रूप में उपस्थित थे। एक्स, वाई और ज़ेड। तीनों ही देश एक दूसरे के यहाँ आते जाते रहते हैं। अच्छे संपर्क हैं तीनों के बीच। हाँ, बाहर की दुनिया से इनका संपर्क नहीं के बराबर है।

" अरे,वह देखो। क्या है वह ? " एक्सलैंड निवासी सम्पान ने उस ओर इशारा करते हुए अपनी जिज्ञासा प्रकट की।

" अरे हां, सही कहा तुमने। एक मिट्टी का ढेर जैसे उग आया है।" मण्डारा ने कहा
एक के बाद एक एक्सलैंड, वाईलैंड और ज़ेडलैंड के लोगों ने उस उभरी हुई ज़मीन को देखा। सही में उनलोगों के सामने ठीक बीचोंबीच एक मैदान सा निकल आया है। एक नये भूखण्ड का जन्म हो गया। शायद रात के भूकंप का ही परिणाम रहा होगा। इस बात को लेकर सब लोग आपस में चर्चा करने लगे। किसी ने राय दी कि वह भूखण्ड अपने आप पानी में समा जाएगा।
धीरे-धीरे वह भूखण्ड बड़ा होने लगा। दो वर्ष बीतते न बीतते उस भूखण्ड ने एक बहुत बड़े मैदानी इलाक़े का रूप ले लिया जिसमें चारों ओर तमाम पेड़ पौधे उग आये। शुरू-शुरू में तीनों देशों के लोग वहाँ जाने से डर रहे थे, लेकिन फिर धीरे धीरे जाना शुरू किया। ढेरों पेड़ पौधों से भरा भूखण्ड जिसमें तरह तरह के फूल, फल और सब्ज़ियों की भरमार थी। किसी किसी ने वहाँ मधुमक्खी के छत्तों से शहद भी निकाला। रहने के लिए वह जगह बहुत सुविधाजनक थी।कुछ लोगों को पता चला वहाँ उस ज़मीन में प्रचुर मात्रा में सोना भी है। सभी को वह जगह बहुत पसंद आयी।
एक्स, वाई,ज़ेड तीनों देशों के नेताओं के मन में अब उस ज़मीन पर क़ब्ज़ा करने की लालच आ गया। उस जगह का नाम रखा गया ' ऐजिना ' ।

एक्सलैंड के सबसे बड़े नेता सुभाना ने एक मीटिंग मे कहा, " जैसे भी हो हमें ऐजिना पर क़ब्ज़ा करना ही होगा। "

"हाँ बिलकुल। बहुत सुन्दर जगह है। हम भी वहां जाकर अपना घर बनायेंगे।" वहीं एक ने अपना मंतव्य प्रकट किया।

" लेकिन वाईलैंड और ज़ेडलैंड भी तो वहाँ क़ब्ज़ा करना चाहते हैं, तो वो लोग ज़रूर हमें रोकने की कोशिश करेंगे। " एक दूसरे सदस्य ने राय दी।

" ठीक है, ज़रूरत पड़ने पर हम युद्ध करेंगे। हम लोगों के पास क्या कोई कम ताक़त है ? " सेनापति ने कहा।

"बिलकुल ठीक बात। युद्ध की तैयारी शुरू कर दी जाए। " सुभाना ने कहा और फिर एक्सलैंड में ऐजिना को क़ब्ज़े में लेने के लिए युद्ध की तैयारी शुरू हो गई।

वाईलैंड के चीफ कुरुगेन के कानों में यह खबर पहुँची तो उन्होंने भी मीटिंग बुला ली।

" सुना है एक्सलैंड वाले इस द्वीप पर क़ब्ज़ा करना चाहते हैं ? हम लोग क्या ऐसे ही हाथों में हाथ धरे बैठे रहेंगे ? "

" नहीं सरकार। ऐजिना पर हम लोगों का ही क़ब्ज़ा होगा।" एक सलाहकार ने विश्वास जताते हुए कहा।

"ज़रूरत पड़ने पर हम लड़ेंगे। मैं आज से ही अपनी सेनावाहिनी को तैयार करना शुरू कर दूँगा।" जनरल ने दृढ़तापूर्वक अपनी बात रखी।

"ठीक है, अब तो ऐजिना हमारे ही क़ब्ज़े में आयेगा।" कुरुगेन बहुत उत्साहित लग रहा था। अंततः वाईलैंड में युद्धाभ्यास शुरू कर दिया गया।
ज़ेडलैंड के प्रधान का नाम है आरुस्का। वह भी इस मामले में काफी उत्साहित हैं।

"ये जो कुछ सुना जा रहा ,वह सब क्या सही है ?" आपातकालीन मीटिंग बुलाकर उन्होंने पूछा।

"जी, बिलकुल शत प्रतिशत सही है। एक्सलैंड और वाईलैंड कभी भी ऐजिना पर क़ब्ज़ा कर सकते हैं।" एक सलाहकार ने कहा।

"और हम लोग क्या सिर्फ देखते रहेंगे। मैंने सुना है कि ऐजिना बहुत खूबसूरत जगह है ?"

"हाँ, सच में बहुत सुन्दर जगह है।" सभा में से एक ने कहा।

"तब तो फिर वहाँ पर हमारा दूसरा महल बनेगा।"

"कोई चिंता की बात नहीं है। मैं भी अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ूँगा।" जनरल सम्पाना ने कहा।
तीनों द्वीपराष्ट्र इस मुद्दे पर एक दूसरे को बढ़चढ़कर चुनौती देने लगे। एकदिन सवेरे एक्सलैंड की तरफ से एक जहाज ऐजिना की ओर उड़ा। कुछ ही पलों में वाईलैंड और ज़ेडलैंड की तरफ से भी जहाजों ने हुंकार भरी। तीनों ही राष्ट्रों का उत्साह अपने चरम पर था। लग रहा था आज कुछ फ़ैसला होकर ही रहेगा। पता नहीं कौन जीतेगा और कौन हारेगा। हर तरफ़ की सेनायें भी लड़ने के लिए पागल हो रही थीं। लंबे समय से युद्ध हुआ भी तो नहीं। तीनों जहाज़ एकदम ऐजिना के सामने आ गये। लेकिन यह क्या? सबने देखा वहाँ तीनों देशों के छोटे बच्चे और बच्चियाँ आपस में खेल रहे थे।

"तुम कब आयी यहाँ ?" जनरल सम्पाना ने अपनी बेटी तुलुक से पूछा।

"मैं, मेरे दोस्त चिलिक, शिरीन, सभी सवेरे-सवेरे कैनोए(छोटी नाव) से आ गये थे। हमने तुम लोगों की बातें सुनी हैं। तुम लोग इस खाली जगह पर क़ब्ज़ा करना चाहते हो और इसके लिए आपस में लड़ाई करोगे। लेकिन हम सब लोग आपस में मिलजुलकर रहना चाहते हैं। इसके बाद भी तुम लोगों को लड़ाई करनी है तो करो लेकिन हम लोग यहाँ से नहीं जायेंगे।"

सभी बड़े लोग आपस में एक दूसरे का मुंह देखने लगे। बात तो सही है। तीनों देशों के लोग इतने दिनों तक मिलजुलकर रहते आये हैं और आज एक सामान्य सी बात को लेकर ऐसी शत्रुता। यह तो बहुत ही ग़लत बात है।इन छोटे-छोटे बच्चों ने उनकी आँखें खोल दीं। तीनों देशों के जनरल और दूसरे लोग जहाज से उतर आये। कुछ देर उन सबमें आपस में मंत्रणा हुई। इसके बाद तीनों जहाज अपने-अपने देशों की ओर वापस चल दिये। अपने-अपने चीफ को सबने यह बात बताई। यह सुनकर तीनों चीफ जहाज से ऐजिना द्वीप पर आये। सारे बच्चे उस वक़्त भी वहाँ खेल रहे थे।

"इन बच्चों के सामने ही हमें हार स्वीकार करनी होगी।" कुरुगेन ने कहा।

"और इस हार पर हमें ज़रा सा भी अफ़सोस नहीं है" सुभाना ने कहा।

"आज से तीनों देशों के लोग इस द्वीप में आयेंगे। जब तक इच्छा होगी अपना समय बितायेंगे" आरुस्का की इस घोषणा के साथ ही वहाँ उपस्थित सभी में खुशी की लहर दौड़ गई। सभी प्रसन्न होकर ताली बजाने लगे।

"आज यहाँ जश्न मनाया जायेगा।सब लोग एकसाथ भोजन करेंगे।" सुभाना ने घोषणा की।

"और हर साल यहां सामुहिक मिलन उत्सव का आयोजन होगा।" कुरुगेन ने कहा।

रिमझिम बरसात शुरू हो गई। इस बीच वहाँ उत्सव की शुरूआत हो गई। लग रहा था जैसे युद्ध की अग्नि को वर्षा की फुहारें शांत कर रही थीं।

"अच्छा, फिर से किसी ने लड़ाई करने की कोशिश की तो उसे क्या दण्ड दिया जायेगा ? " आरुस्का ने तुलुक से पूछा।

"बाद में सोचकर बताऊँगी।" तुलुक ने गम्भीर आवाज़ में कहा।
उसकी इस बात पर सभी हँस पड़े।

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रचनाकार परिचय

श्याम सुंदर चौधरी

ईमेल : ssckanpur9@gmail.com

निवास : कानपुर (उत्तर प्रदेश)

संपर्क- F-17, शांतिनगर, कैंट,
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मोबाइल- 9651924100