Ira
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। दिसंबर 2024 के अंक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।

राजेन्द्र वर्मा के गीत

राजेन्द्र वर्मा के गीत

हर कोई पूँजी के पाँव-तले,
श्रमिकों की छाती पर मूँग दले,
वक़्त नहीं यह चुप रह जाने का,
सौंह तुम्हें, जो तुमने होंठ सिले,

गीत- एक

घर से बाहर निकलो

घर से बाहर निकलो,
जड़ें जमाओ,
बढ़ना सीखो,

जैसे—
रोपा हुआ धान बढ़ता है ।

दुनिया समझो-बूझो,
आँख मिलाओ,
पढ़ना सीखो,

जैसे—
बच्चा माँ का मन पढ़ता है ।

अपने भीतर उतरो,
मन-माटी रौंदो,
गढ़ना सीखो,

जैसे—
कुंभकार दुनिया गढ़ता है ।

सिंधु हहरता देखो,
साहस बाँधो,
चढ़ना सीखो,

जैसे—
माँझी लहरों पर चढ़ता है ।

******************

 

गीत-दो

अपना काम किए

हम तो रहे हाशिए लेकिन,
अपना काम किए ।

मुखपृष्ठों पर वही रहे,
जो श्रेष्ठ-प्रमाणित थे,
बाँचा गया उन्हीं का लेखा,
जो संरक्षित थे,

हम तो रहे घूर पर लेकिन,
जलते हुए दिए ।

वे तो जीते रहे हमेशा
अपनी-ही ख़ातिर,
बाहर-बाहर भले बने,
भीतर-भीतर शातिर,

कहने को सबके हैं, लेकिन
हैं अपने पहिए ।

आग बरसने वाले दिन
जैसे-तैसे गुज़रे,
आया तो आषाढ़ मगर ,
मेघों से अम्ल झरे,

मरना तय था, हम लेकिन
जीवन भरपूर जिए ।

******************

 

गीत- तीन

अनागत हैं

बंदिनी है बुद्धि,
हृद के भाव आहत हैं।
हम रहे अस्तित्त्व में
फिर भी अनागत हैं ।

हम सदा अक्षय रहे,
पर आज हैं क्षय-से,
गीत ग़ज़लों में ढले,
पर खोखली लय से,

व्यंजना से हीन होकर
अर्थ से चूके,
शब्द होकर भी त्वरा से
हीन अभिमत हैं ।

सत्य उतना ही नहीं है,
जो कि दिखता है,
सत्य तो वह भी, जिसे—
तम-तोम लिखता है,

सूर्य की किरनें
पराजित हो गयीं जिससे,
हम उसी तम-तोम की
लिक्खी इबारत हैं ।

स्वार्थ के पथ
प्रेम-संवेदन लुटा जाता,
धर्म के हाथों
हृदय पत्थर हुआ जाता,

काश! हम भी आचरित हो
धन्य हो जाते,
मंत्र हैं हम, सूक्त हैं हम
और आयत हैं।

******************

 

गीत-चार

यह समय

यह समय विस्मय-भरा है,
अब असंभव कुछ नहीं,
कुछ भी नहीं ।

सत्य पर पहरा कड़ा है,
झूठ का रथ चल पड़ा है,
तंत्र-दीक्षित आम जन भी
हो रहा चिकना घड़ा है,
लुट चुका हर आसरा है,
अब असंभव कुछ नहीं,
कुछ भी नहीं ।

धूर्त ने करतब दिखाया,
जोगिया बाना बनाया,
नफ़रतों के मंत्र पढ़-पढ़
सुप्त हिंसा को जगाया,
हर शहर अब गोधरा है,
अब असंभव कुछ नहीं,
कुछ भी नहीं ।

आज है जो भी सुचिंतित,
है नहीं अब वह सुरक्षित,
किंतु कायर देखता कब,
क्या उचित है और अनुचित !
कापुरुष क्योंकर मरा है !
अब असंभव कुछ नहीं,
कुछ भी नहीं ।

******************

 

गीत- पाँच

किससे करें गिला

रोटी मिले पेट-भर भाई !
समझो, बहुत मिला ।

दो जोड़ी कपड़े,
सिर पर छत—
सपने ही तो हैं,
भूखे-प्यासे संगी-साथी
अपने ही तो हैं ।

मिला न क़िस्मत
लिखने वाला,
किससे करें गिला !

फुटपाथों पर लगा हमारा
साझे का बिस्तर,
लोकतंत्र मुँह ढाँपे पहुँचा
पूँजीपति के घर,

बुढ़ा गये, लेकिन अभाव का
दरका नहीं क़िला ।

होनहार बिरवों के पत्ते
हैं धनिकों के गण,
वैभव की चाहत में खोए
परिवर्तन के क्षण,

बच्चे बदल रहे जिंसों में,
थमता न सिलसिला ।

******************

 

गीत- छह 

इतना ही काफी है

साँझ-तलक कैसे भी मिल जाए
गर्म रोटी पर नमक-तेल,
इतना ही काफी है ।

घासी ने दुक्खी को चाँप लिया,
हूक दबाता ही रह गया हिया,
मौन रहा पसरा ही गली-गली,
तैल बिना आख़िर बुझ गया दिया,

फिर गौरय्या को घेरे है बाज़,
तुम उस पर तान दो गुलेल,
इतना ही काफी है ।

सुबह-शाम बस, पूजा- अराधना,
सीख ली, हवा में गाँठ बाँधना,
देह धरे को दंड कहे, लेकिन
फलित करे अपनी छद्म-साधना,

पाखंडी ही आज बना विद्वान,
तुम बिगाड़ दो उसका खेल,
इतना ही काफी है।

हर कोई पूँजी के पाँव-तले,
श्रमिकों की छाती पर मूँग दले,
वक़्त नहीं यह चुप रह जाने का,
सौंह तुम्हें, जो तुमने होंठ सिले,

रोटी को भी लूट रहा है जो,
तुम उसको पहुँचा दो जेल,
इतना ही काफी है ।

 

0 Total Review

Leave Your Review Here

रचनाकार परिचय

राजेन्द्र वर्मा

ईमेल : rajendrapverma@gmail.com

निवास : लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

जन्मतिथि- 8 नवम्बर 1957
जन्मस्थान- बाराबंकी (उ.प्र.) के एक गाँव में
प्रकाशन-
पाँच ग़ज़ल संग्रह, तीन गीत/नवगीत-संग्रह, दो दोहा-संग्रह, दो हाइकु-संग्रह, ताँका, पद, और सात व्यंग्य-संग्रह,
निबंध, उपन्यास, कहानी, लघु कहानी, लघुकथा, आलोचना, काव्य-शास्त्र सहित तीन दर्ज़न पुस्तकें प्रकाशित।
महत्वपूर्ण संकलनों में सम्मिलित।
संपादन-
हिंदी ग़ज़ल के हज़ार शेर, गीत-शती, गीत-गुंजन।
साहित्यिक पत्रिका अविरल मंथन (1996-2003)
पुरस्कार/ सम्मान-
उ.प्र.हिन्दी संस्थान के श्रीनारायण चतुर्वेदी और महावीरप्रसाद द्विवेदी नामित पुरस्कारों सहित देश की अनेक
संस्थाओं द्वारा सम्मानित।
अन्य।
विशेष- लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा रचनाकार पर एम फिल.।
अनेक शोधग्रन्थों में संदर्भित। चुनी हुई कविताओं का अंग्रेज़ी में अनुवाद।
एक निबंध स्नातक स्तर के पाठ्यक्रम में सम्मिलित।
सम्पर्क- 3/29 विकास नगर, लखनऊ 226 022 (मो. 80096 60096)