Ira
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। दिसंबर 2024 के अंक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।

राजेश अरोड़ा की कहानी 'और फिर'

राजेश अरोड़ा की कहानी 'और फिर'

हमेशा जीवंत रहने वाली मेरी कॉलोनी की आवाज़ गुम हो गई थी। हाँ, लेकिन कोयल के बोलने के स्वर अब बिलकुल साफ सुनाई पड़ने लगे थे, बुलबुलें भी ज़्यादा आने लगी थीं। पार्क ख़ाली था, झूलों पर बच्चे नहीं थे, बेंच पर बूढ़े अख़बार नहीं पढ़ रहे थे। आज रामनवमी है, कहीं कन्या भोज का आयोजन नहीं हो रहा।

तुम इला?
वह चौंकी, मुझे देखा और कुछ असमंजस से बोली।
तुम बबली !
हाँ।
इस संवाद के साथ ही, समय ने अपनी डॉयरी के कितने पृष्ठ पीछे पलट दिये थे।

लगभग चालीस वर्ष पहले वाला पृष्ठ खुल गया था। उन दिनों हवा इतनी प्रदूषित नहीं थी। सड़क पर वाहनों की इतनी आपाधापी नहीं होती थी, दुकानें भी इतनी नहीं थी। फुटपाथ पर पैदल चलना कठिन न था । गलियों में बच्चे खेला करते थे। अशोक नगर, जहाँ हम रहते थे, लड़कियों का एक स्कूल हुआ करता था। स्कूल के सामने एक सड़क जाती है, जिसके एक तरफ पार्क और दूसरी "तरफ सिंधी की दुकान थी, जिसमें टॉफी, बिस्कुट, केक, पेन, पेन्सिल, रबर और भी न जाने कितनी चीजें मिलती थीं। लड़कियों के स्कूल के सामने जो गली जाती थी उसका दूसरा सिरा लड़कों के स्कूल से मिलता था।
इस गली के बीच में बाएँ तरफ एक मकान के नीचे वाले पोर्शन में तुम रहती थी।

स्कूल की छुट्टी के बाद नीली स्कर्ट, सफेद ब्लाउज पहने जब तुम निकलती तो एक सरदार लड़का, जिसने अपने बाल कटा लिये तुमको देख कर सावन-भादौ फिल्म का गाना गाता था ।
कान में झुमका, चाल में ठुमका, कमर में चोटी लटके।
झुमका कान में था या नहीं पर चाल में ठुमका और कमर में चोटी ज़रूर थी।

इतने सालों बाद अचानक इस तरह मिलना और मेरे द्वारा अपना नाम सुन चौंक गई थी तुम।

पहचान लिया तुमने ? क्या मैं अब भी वैसी लगती
हूँ?

मैं क्षण भर चुप रहा, फिर बोला तुमने भी तो पहचान लिया। अब जब लोग मुझे समीर या मिस्टर कौल कह कर पुकारते हैं, तो बचपन के दुलार का नाम तुम्हारे मुँह से सुनना चौंका देने वाला ही था। ऐसा लगा अचानक कहीं से कोई बादल आ गया और मुझे पूरा भिगोकर निकल गया। हम दोनों ने अपने फोन नंबर एक दूसरे से बदले और सिनेमा की अपनी अपनी सीट पर जाकर बैठ गए। सामने पिक्चर चलती रही, पर्दे पर चलने वाली कहानी में क्या था, मुझे नहीं मालूम, मेरे सामने तो अतीत के किसी कमरे की खिड़कियाँ एक के बाद एक खुलती और बंद होती रहीं। जिसमें कुछ अधूरे जाने को था चैत आ रहा था। फूलों के खिलने का मौसम जिसमें कुछ अधूरे, कुछ बोलते, कुछ से, कुछ बारिश और कुछ आंधियों के दृश्य उभरते र गुम होते गये। मैं उन्हें पकड़ने की कोशिश करता, { बरसात की रात में चमकने वाले जुगनुओं की तरह भी चमकते, कभी घास में छुप जाते । तुम्हारे घर के मने वाली गली में जामुन का एक पेड़ था । उन दिनों । जामुन बहुत अच्छे लगते थे। जब भी मैं जामुन तोड़ने कोशिश करता तुम घर के दरवाजे पर खड़ी हंस कर र चली जाती। मैं कभी शरमा जाता, कभी खिसिया था। नेकर से पैंट में आती उम्र में तुम्हें देखना अच्छा ता था। पता नहीं फिर क्यों इतना अच्छा लगा तुम्हारे T आज मेरे नाम को उच्चारना । शाम को व्हाट्सएप पर धारा मैसेज देखा, मैंने जवाब में लिखा, “तुमसे मिलना न सुखद रहा।” तुमने लिखा, “पुराने लोग जब भी ते हैं तो अच्छा ही लगता है।" कहने को बहुत था पर दशक का शर्मीलापन फोन की स्क्रीन पर पसर । तब लड़के लड़कियां सालों एक दूसरे को बस देख ही सपनों के महल खड़े कर लिया करते थे । मोबाइल बर के साथ तुम्हारा नाम इला मैम उभरा। मैंने इला को सेव कर लिया।

बहुत देर तक मैं स्क्रीन पर तुम्हारा नंबर देखता फिर कॉल का बटन दबा ही दिया। शाम के लगभग चार बजे होंगे। तुमने फोन रिसीव किया तुम्हारी आवाज में टीचर वाली खनक थी। हमने एक दूसरे को अपने बारे में, कुछ बीते वक्त के बारे में बताया लेकिन किसने सुना नहीं मालूम। मालूम है तो बस इतना मैंने अंत में कहा मेरे घर आना, मुझे तुमसे मिलकर अच्छा लगेगा।

यह होली के कुछ दिन पहले की बात है। फागुन जाबे को था चैट आ रहा था। फूलों के खिलने का मौसम था मुझे अपने एक दोस्त की पंक्ति याद आ गई-

गेहूँ की बाली बाली पर
फागुन की तरह उतरे कोई।

फाग कैसे गेहूँ की हरी बालियों को सोने के रंग में रंग देता है। हमारी कॉलोनी में भी होली का त्यौहार बहुत उल्लास से मनाया जाता है। कॉलोनी के बीच में एक पार्क है जिसके चारों तरफ घर है, उनमें से ही एक घर मेरा भी है होली में पार्क गुलाबी, हरा तो, कहीं बैगनी हो जाता है। बदाम की ठंडाई के साथ भांग का सेवन बरसों के बैरों को भुला देता है। बच्चे नाचते हैं। औरतें टोली बना, रंग खेलते हुए एक दूसरे के घर गुझिया खाने जाती हैं।

हाँ! उसी दिन तो तुमने आने को कहा था। लोगों की बातचीत में करोना के वायरस का जिक्र होने लगा था। चीन से उसकी भयावहता की खबरें आने लगी थी। मेरे मोहल्ले का होली मिलन समारोह को स्थगित कर दिया गया था तुम शाम को आयी थी। मैं बातचीत में पूछ बैठा तुम रिटायर हो गई हो क्या तुम थोड़ा तुनक कर बोली थी नहीं अभी कुछ साल है। हम दोनों जोर से हंसे और देर तक हंसते रहे। तुमने बताया तुम एक कन्या विद्यालय में प्रिंसिपल हो । शहर में अच्छा सम्मान और नाम भी है तुम्हारा। मुझे सुनकर अच्छा लगा। मैंने पूछा और पति क्या करते हैं। शादी नहीं हुई कैरियर बनाने की दौड़ में ही समय गुजर गया, पता ही नहीं चला। दो छोटी बहनें थी उनकी शादी की। तुम्हारी पत्नी नहीं दिख रही।

मेरी भी शादी नहीं हुई।
क्यों?

कोई मिला ही नहीं जो शादी करता, और ना ही किसी ने आवाज दी। मुझे तुम्हारे घर के सामने का जामुन का पेड़ याद आ गया। याद आया मेरा जामुन तोड़ना और तुम्हारा मुझे देखना। याद आया तुम्हारा हंस के अंदर चले जाना और मेरा शर्मा जाना। सामान्य गति से चलती हुई रेलगाड़ी जब किसी पुल से गुजरती है तो उसकी आवाज में अचानक परिवर्तन हो जाता है यह गूंज कुछ समय हमारे अंदर गूँजती रही।

मैं शायद चाय अच्छी बनाता हूँ ऐसा मुझे लगता है। तुम्हें कैसी लगी?
अच्छी है। फिर पिलाओगे ?
बहुत अच्छा लगेगा मुझे तुम्हारे लिए चाय बनाना। चलती हूँ अंधेरा हो रहा है।
हाँ, फिर आना। हम दोनों बाहर आ गये।

अचानक लैंप पोस्ट की लाइट बुझ गई मेरे घर के सामने के हिस्से में अँधेरा पसर गया। मैं तुम्हारे साथ तुम्हारी कार तक आया और पूछा क्या कभी सोचा था हम ऐसे मिलेंगे, बैठेंगे, चाय पिएँगे और बातें करेंगे। “कभी नहीं," वह बोली ।

मुझे लगा कहूँ, तब चाहता तो था, लेकिन कहा नहीं। उसने कार बैंक की। मैं जाती हुई उसकी कार को गली के मोड़ तक देखता रहा, जब तक वह नहीं गई।

टीवी बता रहा था चाइना के बाद इटली में भी कोरोना का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। दिन रुकते नहीं हैं। कोरोना का संक्रमण भारत में अपनी दस्तक देने लगा था। आज शाम 8:00 बजे प्रधानमंत्री टीवी पर देश को संबोधित करने वाले थे। प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में आने वाले दिनों की विभीषिका का खाका खींचा। उससे बचने के लिए सेल्फ आइसोलेशन और सोशल डिस्टेंसिंग की बात की और बताया अभी तक इस बीमारी से लड़ने के लिए पूरे विश्व के पास कोई दवा, कोई वैक्सीन नहीं है। हमें अभी से सावधान होना चाहिए। 22 मार्च को सेल्फ कर्फ्यू की बात की। सब अपने-अपने घरों में रहे, आवश्यक सेवा में लगे लोगों का धन्यवाद दे, सब ने प्रधानमंत्री की बात को मान सब अपने घर में रहे। उसी दिन शाम को मुख्यमंत्री ने आगे के 3 दिनों के लिए लॉक डाउन की घोषणा कर दी। हम सब अपने-अपने घरों में थे। संतोष था हमारे पास रेडियो, टीवी और फोन थे, सब चल रहे थे। अखबार आ रहे थे। हम दूसरे शहर में अपने बच्चों और प्रियजनों से बात कर उनका हालचाल ले सकते थे। रेल और हवाई जहाज अभी चल रहे थे। भय और आतंक का राक्षस धीरे-धीरे अपने पंजे हमारी ओर बढ़ा रहा था। हमें लॉक डाउन में घर में बैठे दो दिन ही हुए थे कि प्रधानमंत्री ने को 21 दिन का लॉक डाउन घोषित कर दिया। कहा और कोई उपाय नहीं है, जो जहाँ है, वह वहीं रहे। जान है तो जहान है।
रेल बंद ।
बस बंद ।
उड़ान बंद।
टैक्सी बंद।
प्रधानमंत्री के घोषणा करने के बाद, दुकानों पर भीड़ उमड़ पड़ी।
पूरे भारत में मजदूर जो अपने गाँव से दूर शहरों में रोजी रोटी की खातिर आए थे। हतप्रभ थे, अपनों दूर, रोज कमाने उसी दिन खा लेने वाले लोग स्तब्ध थे। बच्चों के लिए दूध कैसे लेंगे। दूसरे दिन लॉक डाउन को फेल करता मजदूरों का सैलाब प्रदेश की सीमाओं पर खड़ा था। प्रशासन को सन्निपात मार गया था। ऐसी समस्या पहले किसी ने नहीं देखी थी।

पैदल 100 किलोमीटर 200 किलोमीटर 1000 गाँव के लिये लाखों मजदूर निकल पड़ा था। सूजे पाँव, सूखे होंठ, बेचैन आँखें, सड़क पर चलते लोग। दूसरे दिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने बसों का इंतजाम किया ताकि मजदूर बॉर्डर से अपने गांव पहुंच सकें। बिहार के मुख्यमंत्री ने कहा मजदूरों के वापस आने से लॉक डाउन फेल हो जायेगा। संबंधित राज्य सरकारें और केंद्र सरकार उनको वहां रोककर उनके खाने ठहरने की व्यवस्था करें। दूसरे दिन उत्तर प्रदेश के सीएम ने बार्डर सील करने का आदेश दिया आज दिल्ली के सीएम को प्रदेश के मजदूरों के लिए समुचित व्यवस्था करने को कहा।

15 दिन बाद को फिर फोन आया तुम तुम्हारा तो फिर मुझे भूल गए। 9 को मैं तुम्हारे घर आयी थी । तबसे तुमने एक भी कॉल नहीं की। आज 26 तारीख है। कुछ देर चुप रहने के बाद कहा, "ऐसा नहीं, मैंने हर रोज तुमको फोन मिलाने की कोशिश की थी, लेकिन 80 के दशक का संकोच कॉल का बटन दबाने के पहले आ जाता था।" तुम बोलीं-
लेकिन अब तो 80 के दशक को बीते 4 दशक हो चुके हैं तुम बेधड़क फोन कर सकते हो, लो मैंने डोर जोड़ दी अब तुम पर है, पुल बना लो या कट चुकी पतंग की डोर की तरह वापस खींच लो। हम हँस पड़े।

लेकिन प्रारब्ध भी खेल दिखाता है जब से मिले हैं तब से सोशल डिस्टेंसिंग और अब तो कोरोना के कारण आइसोलेशन की भी बात होने लगी है। हां अपना ध्यान रखना, बाहर नहीं निकलना "निकलना तो पड़ेगा," तुम बोली। "अकेली हूं दूध लाना होगा, सब्जी लानी होगी और भी कई छोटे-मोटे काम हो सकते हैं।" हम देर तक एक दूसरे को सतर्क करते रहे, एक दूसरे का ब्लड प्रेशर और डायबिटीज के आंकड़े सुनते सुनाते रहे। टीवी, सोशल मीडिया अखबार अब और अधिक डराने लगे थे। इटली में मरने वालों की संख्या चीन से अधिक हो गई थी। वहां के शासन अध्यक्ष अपनी जनता से बात करते-करते रो पड़े थे। प्रिन्स चार्ल्स कोरोना पॉजिटिव हो गये थे। स्पेन की राजकुमारी की कोरोना से मौत हो गयी थी। जर्मनी के वित्त मंत्री ने अर्थव्यवस्था के बिगड़ने के डर से आत्महत्या कर ली थी। अमेरिका में वायरस संक्रमित लोगों की संख्या 200000 तक पहुंच गई थी, 4000 से अधिक लोग मर चुके थे। विश्व का सबसे सामर्थ्यवान देश अपने | आप को असहाय महसूस कर रहा था। विश्व अनदेखे शत्रु से लड़ने में अपने को असमर्थ पा रहा था।

हमेशा जीवंत रहने वाली मेरी कॉलोनी की आवाज गुम हो गई थी। हाँ लेकिन कोयल के बोलने के स्वर अब बिल्कुल साफ सुनाई पड़ने लगे थे, बुलबुलें भी ज्यादा आने लगी थीं। पार्क खाली था, झूलों पर बच्चे नहीं थे, बेंच पर बुढे अखबार नहीं पढ़ रहे थे। आज रामनवमी है, कहीं कन्या भोज का आयोजन नहीं हो रहा। छोटी बच्ची उदास है। कितने दिनों का इंतजार करती थी इस दिन के लिए। सलूजा आंटी कितना अच्छा गिफ्ट देती थी। इस बार कुछ नहीं हो रहा था।

शाम के 6:00 बजे थे मैं बाहर में बैठा तुम्हारा नंबर देख रहा था, मैंने कॉल का बटन दबाया। हम बीते समय की और आज की भयानकता की बातें कर
थे।

आगत की आशंका हमरे ऊपर मण्डरा रही थी बात करते-करते तुम । को खांसी आ गयी। मैं सहम गया और तुम्हें डॉक्टर से सलाह लेने का आग्रह किया, हेल्पलाइन के नंबर भी तुमको नोट कराए। तुम हँसीं, “तुम क्यों इतना चिंतित हो। ऐसा कुछ नहीं है।” मैंने दूसरे दिन फिर तुम्हें फोन किया, तुमने फोन पर बताया कि आज बुखार भी हो गया है मैंने कहा मैं आ रहा हूँ। तुमने डाँट कर मना कर दिया।

तब से मैं हर रोज तुम्हारा फोन मिलाता रहा हूँ, लेकिन हर बार वह मुझे बंद मिला है। मैं बेचैन घर की दीवारों से बातें करने लगा। उनसे कभी तुम्हारी तबीयत पूछता, कभी सलामती की दुआ करता, उनको बताता हूँ स्कर्ट पहनकर स्कूल जाती हुई तुम कैसी लगती थीं। जब हाईस्कूल का रिजल्ट आया था तो मोहल्ले में कैसा शोर मचा गया था। तुम्हारी पूरी यूपी में तीसरी रैंक आई थी। सब तुम्हारी चर्चा कर रहे थे।

तारीख 15 अप्रैल 2020 आज का अखबार मेरे सामने पड़ा है, खबर है कोरोना वायरस से शहर में पहली मौत। कन्या विद्यालय की प्रिंसिपल U.NO. की हांगकांग में आयोजित होने एक कांफ्रेंस में महिला हिंसा पर व्याख्यान देने गई थीं।


******************

0 Total Review

Leave Your Review Here

रचनाकार परिचय

राजेश अरोड़ा

ईमेल : shreecotton@rediffmail.com

निवास : कानपुर (उ०प्र०)

जन्मतिथि- 23 अगस्त, 1957
शिक्षा- विज्ञान स्नातक
अभिरुचि- कविता, कहानी और नाटक में समान अभिरुचि
संपर्क- 20 एम०आई०जी० पत्रकार पुरम, कानपुर (उ०प्र०)- 208002
मोबाइल- 9415041442