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जीवन के कई रंग अपने भीतर समेटे है: जैसे बहुत क़रीब- नेहा कटारा पाण्डेय

जीवन के कई रंग अपने भीतर समेटे है: जैसे बहुत क़रीब- नेहा कटारा पाण्डेय

अनमोल जी एक सरल स्वभाव व सादगी प्रिय इंसान हैं। वे हमेशा अपने लेखन को सरल व सहज बनाने की बात कहते हैं। जितना सरल आप लिखेंगे उतनी ही आपके लेखन की पहुँच अधिक पाठकों तक हो सकेगी, ऐसा मानना है उनका। वे वर्तमान में हिन्दी ग़ज़ल के युवा ग़ज़लकार व अनमोल‌‌ सितारे हैं। हमेशा अपने शिल्प व कहन‌ के अंदाज़ से‌ हर‌ ग़ज़ल को एक नया मेयार दे रहे अनमोल जी की ग़ज़लों में मित्रता, गाँव की मिट्टी से लगाव, पर्यावरण के प्रति चिंतन, सामाजिक मुद्दों पर विचार, प्रेम, बुज़ुर्गों के‌ प्रति सम्मान, देश-प्रेम जैसे कई रंग मिलते हैं।


कुछ समय पहले ग़ज़ल संग्रह जैसे बहुत क़रीब से गुज़री हूँ, जिसके रचनाकार हैं के० पी० अनमोल जी सांचौर (राजस्थान) से आते हैं और वर्तमान में रुड़की उत्तराखंड में कार्यरत हैं। इनके चार ग़ज़ल‌ संग्रह 'एक उम्र मुकम्मल', 'कुछ निशान‌ काग़ज़ पर', 'जी भर बतियाने के बाद' एवं 'जैसे बहुत क़रीब' कई अन्य प्रतिष्ठित पत्रिकाओं व संकलनों में निरन्तर छपते रहने के साथ शानदार लेखन को ज़ारी रखते हुए राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर के आर्थिक सहयोग से आपका ये चौथा संग्रह हम सबके बीच उपलब्ध है।

अनमोल जी एक सरल स्वभाव व सादगी प्रिय इंसान हैं। वे हमेशा अपने लेखन को सरल व सहज बनाने की बात कहते हैं। जितना सरल आप लिखेंगे उतनी ही आपके लेखन की पहुँच अधिक पाठकों तक हो सकेगी, ऐसा मानना है उनका। वे वर्तमान में हिन्दी ग़ज़ल के युवा ग़ज़लकार व अनमोल‌‌ सितारे हैं। हमेशा अपने शिल्प व कहन‌ के अंदाज़ से‌ हर‌ ग़ज़ल को एक नया मेयार दे रहे अनमोल जी की ग़ज़लों में मित्रता, गाँव की मिट्टी से लगाव, पर्यावरण के प्रति चिंतन,
सामाजिक मुद्दों पर विचार, प्रेम, बुज़ुर्गों के‌ प्रति सम्मान, देश-प्रेम जैसे कई रंग मिलते हैं।

परिवर्तन संसार का नियम है और आवश्यकता भी पर आधुनिकता की दौड़ कभी-कभी पुरानी चीज़ों को दरकिनार कर देती है या कभी-कभी ऐसा भी होता है कि तमाम नवीनतम चीज़ों के होते हुए भी पुरानी चीज़े या बातें याद आती हैं और मन को सुकून देती हैं। ऐसी ही मनोस्थितियों को पिरोते हुए प्रस्तुत संग्रह से अनमोल जी के कुछ शेर देखिए-

आर० ओ० के‌ दौर में है नहीं इसकी एहमियत
इक फ़ालतू घड़ा है उलटकर रखा हुआ

ये मॉल की चमक है‌ यहाॅं गुण न खोजिए
जूता किताब के है बराबर‌ रखा हुआ
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सारे अहसास इमोज़ी में बयां होते हैं
ये नया दौर है, इसकी है नवेली दुनिया
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युवा शहर की तरफ चल दिए हैं गाँवों से
ज़मीन-खेत है बेकार, कहो है कि नहीं
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कुछ बेड़ियाँ भी ठीक हैं पैरों के वास्ते
हर चीज़ से निजात की आदत न‌ डालिए

पर्यावरण प्रेम आपके शेरों में एक अलग ही स्थान रखता है। आप इतने सुन्दर तरीके पेड़, फूल, मिट्टी, पंछी, नदी, पहाड़ आदि के माध्यम से अपनी बात रखते हैं कि ख़ूबसूरत बिम्ब निकलकर‌ आता है। साथ ही अपने गाँव सांचौर की माटी की याद भी इन्हीं शेरों‌ के माध्यम से इन्होंने प्रकट की है-

गाड़ियाँ रफ्तार से आकर निकलती जा रही हैं
मोड़ पर इक पेड़ है, चुपचाप देखे जा रहा है
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पेड़ ने पहरे बिठाये, डर‌‌ दिखाया, सब किया
पर हवा‌ ख़ुशबू को अपनी‌ गोद में लेकर रही
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ज़रा-सी देर में ही हम झुलसकर ढूँढते हैं छाँव
न जाने फूल कैसे धूप में ख़ुशबू बनाते हैं
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मिट्टी के राज़ क्या ही बताएगी जे०सी०बी०
करनी थी दोस्त तुमको कुदालों से पूछताछ
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बहा ले गयी जल की धाराएँ पल‌ में
निरी रेत का नाम चट्टान रक्खा

मानव मन भी बड़ा‌ ही विचित्र है। इसके‌ बारे‌ में कोई भी पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता। मन के इसी व्यवहार के कारण हमारी संवेदनाएँ हैं और भिन्न संवेदनाओं के कारण ही हमारा व्यक्तित्व भिन्न है। इन्हीं संवेदनाओं की ऊहापोह किस तरह एक मन में उठती है अनमोल जी की जानिब से कुछ शेर-

बढ़ाकर दिन-ब दिन अपनी उम्मीदें, चाहतें, सपने
हम अपनी ज़िन्दगी को ख़ुद ही इक कोल्हू बनाते हैं
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मन में हैरानी भरे कुछ भाव लेकर एक बच्चा
एकटक पानी से उठती भाप देखे जा रहा है
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आदतें, अंदाज़, सारे ढंग उसके हू-ब-हू हैं
अपने बेटे में वो अपनी छाप देखें जा रहा है
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वही हैं हम जिन्हें कीचड़ नहीं सुहाता और
वही हैं हम, जो हैं अनमोल 'मानसून पसंद'
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सोचो-सोचो ऐसा क्या है जिसके कारण
रिश्ते ढूँढे रिश्तेदारी से कुछ फ़ुरसत
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पिता को खोकर ज़रा-सी मुनिया, अगर बताती तो क्या बताती
किसी तरह बस ये कह सके लब, "ज़मीन खिसकी, पहाड़ टूटा"
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रास्ता चिंता का जाता है चिता के द्वार तक
एक बस ये ही नहीं रहनी थी मन में, पर रही

प्रेम सृष्टि का एक ख़ूबसूरत अहसास है। इसी प्रेम की नाज़ुक डोर से हमारे रिश्ते मज़बूती से बँधे हैं। सबकुछ होते हुए अगर प्रेम नहीं तो सबकुछ ख़ाली और कुछ न होते हुए यदि प्रेम संग तो भी ख़ुशहाली, एक शाइर से ज़्यादा अच्छे से ये बात भला कौन बयां‌ कर पाएगा और शाइर ही अनमोल हो तो देखिए कैसे शेर कहे गए हैं-

मैं ग़ौर करते हुए सोचता हूँ फ़ोटो पर
कि माँ की छाया कहीं अब बहन में रहती है
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मैं उसकी साँस-साँस के भीतर समा गया
मेरे वजूद में वो‌ समूची उतर गयी
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कुछ साथ, साथ रहके ही होते हैं ख़ूबतर
'तू' और 'मैं' हैं साथ तभी तो अभी हैं हम
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दरमियां साँसों के थे तुम इसलिए
धड़कनों‌‌ के सिलसिले चलते रहे
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कई आँखों के वो सपने सुहाने तोड़ देती है
ज़रा-सी कम समझदारी घराने तोड़ देती है
जो मसले‌ हैं, उन्हें आपस में बातों ही से हल‌ कर लो
दरार इतनी-सी हो लेकिन चट्टानें तोड़ देती है

कहीं-कहीं पर ऐसे शेर मिल जाते हैं, जिन्हें पढ़कर बस वाह और‌ वाह‌ ही निकलती है, ये शेर अद्भुत चिन्तन और‌‌ गहन‌ साधना के परिणाम ही रहे होंगे। इस तरह के आलातरीन शेरों की केवल ये‌ एक झलक‌ मात्र है। आइए इन‌ शेरों पर एक नज़र करते हैं-

आँसू ख़ुशी के धोते हैं मन को कुछ इस तरह
धुलते हैं सारे मैल ज्यूँ गंगा ‌नहान में
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सच को सच और झूठ को हम झूठ कह पाते नहीं
ले ही बैठेगी हमें इक दिन तरफ़दारी मुई
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मेरे भीतर एक बच्चा था बहुत शैतान-सा
जब तलक ज़िन्दा रहा बच्चो, सुकून देता रहा
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जब तलक बस में हो अपने, तब तलक महका करो
फूल ने संदेश छोड़ा है ये मुरझाते हुए
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ये भी सच है धूप की जायी छायाएँ
अक्सर धूप से बचने के काम आती हैं
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जो ख़ुद को देख सकेगा महीन नज़रों से
वही तो सारे ज़माने की भूल पकड़ेगा

ऐसे तमाम बेहतरीन शेर‌ मिलेंगे हमें अनमोल जी की ग़ज़लों में। मेरा बस चलता तो मैं सारे ही शेर यहाँ लिख डालती, लेकिन कुछ शेर पढ़कर ही आपको पूरे संग्रह के मेयार का अंदाज़ा हो गया होगा। मैं अनमोल जी को इस ग़ज़ल संग्रह के लिए बधाई देते हुए ईश्वर से प्रार्थना करती हूँ कि आगे भी आप इसी तरह के आलातरीन ग़ज़ल संग्रह लाते रहें।
अपनी बात का अंत कर रही हूँ अनमोल जी की एक ग़ज़ल के म़क्ते से, जिसमें उन्होंने कहा है कि-

इक दफ़ा बस ठीक से पढ़ ले उसे
हर कोई अनमोल‌ का हो जाएगा

बिल्कुल सच लिखा है अनमोल जी ने। ये ग़ज़ल संग्रह पढ़ने के बाद पाठक हमेशा के लिए उनसे जुड़ जाएगा।


समीक्ष्य पुस्तक- जैसे बहुत क़रीब
विधा- ग़ज़ल
रचनाकार- के० पी० अनमोल
प्रकाशक- श्वेतवर्णा प्रकाशन, नई दिल्ली
संस्करण- प्रथम, 2023
मूल्य-170/- (पेपरबैक)

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रचनाकार परिचय

नेहा कटारा पाण्डेय

ईमेल : nehakatara63@gmail.com

निवास : पिण्डवाडा (राजस्थान)

जन्मतिथि- 23 सितंबर, 1982
शिक्षा- बी०एस०सी०, एम०ए० (हिन्दी एवं भूगोल)
संप्रति- अध्यापन
प्रकाशन- दो साझा संकलनों में ग़ज़लें प्रकाशित। साहित्यिक पत्रिका 'कविताम्बरा' व राजस्थान पत्रिका में ग़ज़ल प्रकाशित। पाक्षिक समाचार पत्र 'सौरभ दर्शन' व 'शिखर विजय' पत्रिका, दैनिक नवज्योति साहित्य संगम में कविताएँ, ग़ज़ल प्रकाशित। कई ऑनलाइन पत्रिकाओं में ग़ज़लें, कविताएँ, दोहे आदि प्रकाशित।
सम्मान/पुरस्कार- मुक्तक मंच द्वारा- मुक्तक शिल्पी, मुक्तक श्री सम्मान
नवोदित साहित्यकार मंच द्वारा- साहित्य सृजक सम्मान
सुशील शर्मा फाउंडेशन द्वारा सम्मान
गीत गागर पत्रिका द्वारा- महिला युवा ग़ज़लकार में चयन
निवास- पिण्डवाडा, ज़िला- सिरोही (राजस्थान)
मोबाइल- 6378707407