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भीतर की ध्वनि को प्रतिध्वनित करता हुआ संग्रह : सन्नाटे में शोर बहुत है- नेहा कटारा पाण्डे

भीतर की ध्वनि को प्रतिध्वनित करता हुआ संग्रह : सन्नाटे में शोर बहुत है- नेहा कटारा पाण्डे

इनकी ग़ज़लों में ‌जहाँ जीवन‌ की समस्याएँ हैं तो वहीं उनसे जूझने का जोश भी। जहाँ रिश्तों से छले‌ जाने‌ का अहसास है तो उन्हीं रिश्तों के कारण जीवन‌ में मिठास की अनुभूति भी है। जहाँ एक ओर ज़िम्मेदारियों का आभास है तो उनके‌ साथ ही सपनों को‌ देखना और उन्हें पूरे करने के प्रयास भी हैं।

सन्नाटे में शोर बहुत है अंजू केशव जी का पहला ग़ज़ल संग्रह है। अंजू‌ जी के पास सोच का एक विस्तृत ‌आकाश है, जिसे इनके‌‌ शेरों में अनुभव किया जा सकता है। इनकी ग़ज़लें केवल प्रेम, पीड़ा, स्त्री विमर्श ऐसे विषयों तक ही सीमित नहीं हैं। इनकी ग़ज़लों में ‌जहाँ जीवन‌ की समस्याएँ हैं तो वहीं उनसे जूझने का जोश भी। जहाँ रिश्तों से छले‌ जाने‌ का अहसास है तो उन्हीं रिश्तों के कारण जीवन‌ में मिठास की अनुभूति भी है। जहाँ एक ओर ज़िम्मेदारियों का आभास है तो उनके‌ साथ ही सपनों को‌ देखना और उन्हें पूरे करने के प्रयास भी हैं। अंजू जी के शेरों की भाषा आम आदमी की भाषा है। आम आदमी के मन की बात जब उसी की भाषा में कहीं जाए तो सम्प्रेषण प्रभावी हो जाता है। यही बात आपकी ग़ज़लों में दिखाई देती है।

अंजू जी एक आशावादी कवयित्री हैं। इनकी ग़ज़लों में आशा भरी हुई है, जो निराश मन को‌ भी नव‌ उत्साह से भर देती हैं। आशा से भरे ऐसे ही कुछ शेर देखिए-

जब तारे में ज़ोर बहुत है
तो‌ उगने को भोर बहुत है

थकन है सो उतर जाएगी जल्दी
मगर हिम्मत अभी हारी नहीं है

होती हर एक शय में हैं कुछ ख़ूबियाॅं
बस बदल कर ज़रा ज़ाविया देखिए

सूख जाता ये शजर मन का अगर शाखों पे
कोई उम्मीद का पंछी नहीं बैठा होता

कहते हैं न जिस व्यक्ति को‌ स्वयं पर विश्वास है, उसे कोई नहीं हरा सकता। अंजू जी की ग़ज़लें स्व‌ से प्रेम या यूँ कहें कि स्वयं पर विश्वास करना‌ सिखाती हैं-

खड़ी हूॅं उसूलों के संग मैं हमेशा
अकेली ही इक कारवाॅं हो‌ गई हूॅं
मुझे मेरा आकाश मिल के रहेगा
मैं ख़ुद पे ही अब मेहरबां हो गई हूॅं

किस तरह यहाॅं जुगनू से हम हो‌ गए सूरज
किरदार का सब मेरे सफ़र‌ देख रहे‌ हैं

मैं न टूटी न बिखरी न घायल हुई
दुश्मनों की मेरे ख़्वाहिशें तक गयीं

हर सिक्के के दो‌ पहलू  होते हैं। अक्सर‌ हम लोग एक ही तरफ देखते हैं और कोई धारणा बना लेते हैं। अंजू जी का‌ कहना‌ है कि दोनों पहलूओं‌ को‌ जानिए, फिर कोई ‌निर्णय लीजिए-

आप जब कोई भी घटना देखिए
आपका क्या‌ है नज़रिया देखिए
देखिए खम्भे‌ पे‌ चढ़ती चीटियाॅं
गौर से‌ उनका इरादा देखिए

न मीठी बोलियों से होते‌ हैं प्रभावित हम
कि पहले झाॅंक के खंजर बग़ल‌ के देखते हैं

आदमी हमेशा किसी न किसी ज़िम्मेदारी से घिरा रहता है। ये ज़िम्मेदारियाँ उसे किस तरह प्रभावित करती हैं, विशेषकर यदि वो एक महिला है तो इस बात को बड़ी ख़ूबसूरती से शेरों में ढाला है अंजू जी ने-

मैं सोचूॅं सिर्फ ख़ुद को भी तो कैसे
कि घर-परिवार का सबसे बड़ा हूॅं

दिल तो पागल है सो पागल-सी ही चाहत इक
कि थकन चेहरे की ख़ुद से भी तो‌ देखे कोई

लदा है घर की दिनचर्या का इक बेताल कंधे पर
कि अक्सर ही सुहानी भोर मुझसे छूट जाती है

ज़ेवर, लिबास और महल ढँक नहीं सके
और आँख से छलक पड़ी रानी की असलियत

जब भी सोचा कि बदल दें कुछ यहाॅं
बीच में बच्चों का खाना आ गया

नेक नीयत ईश्वर का दिया हुआ एक वरदान‌ ही  होता है। अंजू जी की ग़ज़लों में ‌ये रंग हर कहीं बिखरा मिलता है। सीधी सरल भाषा में वे अपने काम से‌ काम रखने‌ की बात व दूसरों के प्रति सद्भाव रखने का संदेश देती नज़र आती हैं-

बाद में कोई गिला मत कीजिएगा
आज ही ये‌ देखिए क्या बो‌ रहे‌ हैं

दिए हैं कान‌ भी भगवान‌ ने‌ जब
हमेशा जीभ क्यों अपनी‌ चलाएँ
बहुत है‌ राह सीधी ज़िंदगी की
अगर देखें कभी दाएँ न बाएँ

आत्मनिरिक्षण करते‌ रहने से बेहतर कोई विकल्प स्वयं के‌ सुधार का नहीं हो‌ सकता। हम स्वयं अपने‌ सबसे‌ बड़े आलोचक व‌ प्रशंसक हो सकते हैं। बशर्ते ‌स्व आकलन‌ पूरी ईमानदारी से किया गया हो। अंजू जी के‌ शेर‌ देखिए-

न‌ करते‌ व़क्त जाया हैं परखने में ज़माने‌ को
मगर हाॅं! ख़ुद को‌ हम‌ गाहे-बगाहे‌ देख लेते‌ हैं

जब मुक़ाबिल हुए दुनिया के‌ तो‌ जीना‌ आया
लोग चुपचाप दें जीने नहीं ऐसा होता

वो सारी उम्र जूझा पत्थरों से‌ पर नहीं बदला
कभी झरने ने आजिज़ हो के अपना स्वर नहीं बदला

होशियारी है नहीं किरदार में उस शख़्स के
वो हमें चालाकियों से बेख़बर अच्छा लगा

सचबयानी भी अंजू जी की ग़ज़लों में है। वे‌ अपने‌ शेरों के माध्यम से सही व ग़लत में फ़र्क भी कर रहीं हैं। आज की व्यवस्थाओं पर रोष भी उनके शेरों में दिखता है-

नज़र आएगी असलियत आप देखें
हिमायत का चश्मा कभी जो हटा के

हर आदमी में ख़ूबी है खोजें तो मिलेगी
या आप फ़क़त ऐब गिनाने के लिए हैं

लगते बहुत हैं मीठे जो हैं साथ दूर के
बजने लगे क़रीब तो फटने को कान था

अब रुकेगा काम मेरा भी नहीं
अब मुझे भी गिड़गिड़ाना आ गया
यूॅं समझिये आधुनिक हैं आप भी
अवसरों को‌ जो भुनाना आ गया

सामाजिक रूढ़ियों व अंधविश्वासों के प्रति भी अपने विचार अंजू जी ने अपने शेरों के माध्यम से दर्ज कराए हैं-

किसी की जान का क्या रब्त इससे
किसी के माथे पर बिंदी नहीं है

इक चुटकी सिंदूर हूॅं मैं
पर लाखों में बिकता हूॅं

सामने जब अकड़ हमारे थी
उसको मेरे प्रणाम ने मारा

एक साधारण इंसान की जीवन से जद्दोजहद और भीतर की ध्वनि को प्रतिध्वनित करता हुआ संग्रह है 'सन्नाटे में शोर बहुत है'। इसी तरह के कई दमदार अहसासों व ग़ज़लों से सजे इस संग्रह का स्वागत है। अंजू जी को बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ।

 

 


समीक्ष्य पुस्तक- सन्नाटे में शोर बहुत है
विधा- ग़ज़ल
रचनाकार-अंजू केशव
समीक्षक- नेहा कटारा पाण्डेय
प्रकाशक- लिटिल बर्ड पब्लिकेशन
मूल्य- 210/-

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रचनाकार परिचय

नेहा कटारा पाण्डेय

ईमेल : nehakatara63@gmail.com

निवास : पिण्डवाडा (राजस्थान)

जन्मतिथि- 23 सितंबर, 1982
शिक्षा- बी०एस०सी०, एम०ए० (हिन्दी एवं भूगोल)
संप्रति- अध्यापन
प्रकाशन- दो साझा संकलनों में ग़ज़लें प्रकाशित। साहित्यिक पत्रिका 'कविताम्बरा' व राजस्थान पत्रिका में ग़ज़ल प्रकाशित। पाक्षिक समाचार पत्र 'सौरभ दर्शन' व 'शिखर विजय' पत्रिका, दैनिक नवज्योति साहित्य संगम में कविताएँ, ग़ज़ल प्रकाशित। कई ऑनलाइन पत्रिकाओं में ग़ज़लें, कविताएँ, दोहे आदि प्रकाशित।
सम्मान/पुरस्कार- मुक्तक मंच द्वारा- मुक्तक शिल्पी, मुक्तक श्री सम्मान
नवोदित साहित्यकार मंच द्वारा- साहित्य सृजक सम्मान
सुशील शर्मा फाउंडेशन द्वारा सम्मान
गीत गागर पत्रिका द्वारा- महिला युवा ग़ज़लकार में चयन
निवास- पिण्डवाडा, ज़िला- सिरोही (राजस्थान)
मोबाइल- 6378707407