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उम्मीदों और सपनों से भरी ग़ज़लों का प्रतिनिधि संग्रह: ज़िंदगी आने को है

उम्मीदों और सपनों से भरी ग़ज़लों का प्रतिनिधि संग्रह: ज़िंदगी आने को है

ज़िंदगी आने को है विनय मिश्र का चौथा ग़ज़ल संग्रह है। इस संग्रह को पढ़ने के बाद कविता के विषय में और विशेषत: हिंदी ग़ज़ल के विषय में जो एक बात स्पष्ट दिखाई पड़ती है, वह यह कि ग़ज़ल में, कविता का पूरा संसार समाया है। कविता इस संसार को 360 डिग्री पर दिखाने की सामर्थ्य रखती है और दिखाती भी है।


ग़ज़ल कविता की उस समृद्ध परम्परा से आती है, जहाँ कम शब्दों में बड़ी बात कहने की योग्यता प्राप्त करना बहुत महत्वपूर्ण है। यही कारण है कि यहाँ वाच्यार्थ और व्यञ्जनार्थ ही ग़ज़ल की बात को समझने में अधिक काम आते हैं। ऐसा नहीं कि यहाँ अभिधा से काम लिया ही नहीं जाता लेकिन जिस कहन की बदौलत अरबी, फ़ारसी और उर्दू कविता ही नहीं, हिंदी कविता में भी यह सिरमौर की तरह अहमियत रखती है, वह उसके वाच्यार्थी और व्यञ्ज्यार्थी होने से ही संभव हुआ है। लगभग आधी सदी से चली आ रही हिंदी ग़ज़ल परम्परा में ऐसी ही असरदार कहन में ग़ज़ल कहने वाले कवि हैं डॉ० विनय मिश्र।

ज़िंदगी आने को है विनय मिश्र का चौथा ग़ज़ल संग्रह है। इस संग्रह को पढ़ने के बाद कविता के विषय में और विशेषत: हिंदी ग़ज़ल के विषय में जो एक बात स्पष्ट दिखाई पड़ती है, वह यह कि ग़ज़ल में, कविता का पूरा संसार समाया है। कविता इस संसार को 360 डिग्री पर दिखाने की सामर्थ्य रखती है और दिखाती भी है। बहुत बार यह कहा गया है कि कवि द्रष्टा होता है। वह देखते हुए लिखता है। इस 'देखते हुए' में वह उन चीज़ों को भी देखता है, जो सामान्यत: सामान्य मनुष्य की आँख नहीं देख पाती। यह असामान्यता दरअसल उसका दृष्टिबोध है, दृष्टिसम्पन्नता है। विनय मिश्र ऐसे ही दृष्टिसम्पन्न कवि हैं।

ऐसे में कवि की ज़िम्मेदारी मनुष्य और मनुष्यता के प्रति बढ़ जाती है। इस ज़िम्मेदारी को निभाते हुए विनय मिश्र अपनी ग़ज़लों में जिस भाषा का इस्तेमाल करते हैं, वह उनकी ग़ज़ल में शब्द से अधिक किसी वस्तु या चित्र की तरह ही काम नहीं करती बल्कि वह भावचित्र भी गढ़ती है। उनके शब्द एक पूरा दृश्य अंकित कर देते हैं। कुछ शेर देखते हैं-

एक सूरज डूबता जाता हुआ
इक समंदर में उतर दिल में रहा

इस जगह कुछ ग़रीबों की थीं बस्तियाँ
यह इमारत तो थी इसके पहले नहीं

एक पानी की विकलता के सिवा
और क्या है बोलिए झरनों के पास

जिसके कंधों पर अब तक केवल हल था
उसके प्रश्नों का अभियान सड़क पर है

इस जटिल समय में जब ज़्यादातर कविता, कविता की तरह नहीं बल्कि किसी स्टेटमेंट, नारे या मात्र प्रतिरोध की तरह लिखी जा रही हो और कविता को कविता की तरह लिखने वाले कम लोग हों तो विनय मिश्र महत्वपूर्ण हो जाते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि विनय मिश्र किसी प्रतिरोध के लिए या स्टेटमेंट की तरह ग़ज़ल नहीं कहते। उनकी ग़ज़लों में मनुष्य मात्र का पक्ष, उसकी ज़िंदगी, उसकी संवेदनीयता है। उनके शेरों की शेरियत देखते बनती है। इस शेरियत का ही कमाल है कि कोई शेर जिस ज़मीन से कहा गया होता है, उसकी अर्थ ध्वनि वहाँ से बहुत दूर तक जाती है।

ज़रूरी जितना है उतना बना हुआ है वो
मेरा सफ़र है तो रस्ता बना हुआ है वो

अँधेरी रातों में ज़्यादा चमकने वाला कुछ
मेरी ही आँखों का सपना बना हुआ है वो

जब वे कहते हैं-

कितने मौसम, कितने रंगों, कितने बरसों बाद भी
इक सितारा चाहतों का झिलमिलाता ही रहा
इक अदद उम्मीद पर ही काटकर दुख के पहाड़
रास्ता कोई न कोई मैं बनाता ही रहा

तो यह 'चाहतों का सितारा' किसी मनुष्य के लिए ही नहीं बल्कि पूरी मनुष्यता और प्रकृति के लिए भी झिलमिला रहा है। ये शेर मनुष्य की उस जीवट जिजीविषा को दिखा रहे हैं, जो अनगिन मौसम, रंगों, बरसों और दुर्धर्ष कठिनाइयों के होते हुए भी ज़िंदगी आसान बनाने के लक्ष्य की ओर रास्ता बनाते हुए कभी थका नहीं। वे यह भी कहते हैं कि-

उतरा हूँ एक ऐसी नदी के बचाव में
बहते हुए जिसे यहाँ देखा नहीं कभी

साथ ही

मौत का बहुमंज़िला घर है मगर
ज़िंदगी की बात तहखाने में है

लिखते हुए विनय मिश्र बड़ा सच बयान कर जाते हैं। इस सच की कई परतें हैं। समूची सृष्टि में मौत अनेक-अनेक रूपों और स्थितियों में आती है किन्तु सृष्टि के निर्माण से लेकर निरन्तर कोई भी जन्म अँधेरे में ही होता है। इतना ही नहीं हर तरह के उन्नयन के लिए उठने वाली आवाज़ें, आंदोलन, दुखों, मुसीबतों, कठिनाइयों, संत्रासों, अत्याचारों के प्रतिरोध की आवाज़ें, हताशाओं के गहन अँधेरों के कहीं बीच से ही आती हैं। इस तरह के शेर पाठक को बहुत दूर तक ले जाते हैं और उसके विचारों में बहुत देर तक बने रहते हैं। अपनी श्रेष्ठता के क्रम में वे स्थायी प्रभाव छोड़ते हैं और अपने उसी रूप में रह भी जाते हैं।

कवि की यात्रा का उत्स पीड़ाओं, त्रासदियों, विसंगतियों को मिटाने के लिए, उनके उत्सों के प्रतिकार और प्रतिरोध से शुरू होती है और यह पूरा प्रतिरोध, पूरा संघर्ष एक उम्मीद पर जीता है और अनवरत चलता है। इस अर्थ में विनय मिश्र उम्मीदों के कवि हैं और उनकी ग़ज़ल उम्मीदों की ग़ज़ल है। तभी तो कहते है-

ख़त्म होगा एक सूरज पर सफर
एक कतरा धूप तो शुरुआत है

और

यह दिया है जो उमीदों का रखा दहलीज़ पर
इसकी आदत अब हवा से रोज़ टकराने की है

रास्ते में साथ हो लेती हैं आँखें दूर तक
आज मौसम में कोई आहट तेरे आने की है

न केवल रात की उलझन है दुनिया
उमीदों से भी कुछ रौशन है दुनिया

यह उम्मीद ज़िन्दा है और मनुष्य की जीवट जिजीविषा बनी हुई है इसीलिए मनुष्यता के शेष भाव भी ज़िन्दा हैं। गहन निराशा और संघर्ष के बीच भी मनुष्य राग-अनुराग भरे क्षण जीता ही है। कवि उम्मीद से भरा हुआ इसलिए भी है क्योंकि वह सच की ताकत को और झूठ बोलने-फैलाने वालों, झूठ जीने वालों के खोखलेपन और डर को पहचानता है। इसीलिए वह कहता है-

सच की ताक़त का अंदाज़ा उसको भी है वरना क्यों
झूठी बातें कहने वाला सच कहने से डरता है

इक सागर की प्यास कभी जब बादल होकर उठती है
एहसासों के जंगल-जंगल पानी खूब बरसता है

इस सबके बावज़ूद झूठ, संत्रास, अँधेरा, स्वार्थ और छद्म के बढ़ाने-पालने-पोसने के काम में जो लगा है, वह भी तो आदमी ही है। इसीलिए वे कहते है-

रंग जिन चीज़ों का बदला है मैं उसमें
सबसे ऊपर आद‌मी को देखता हूँ

कभी-कभी आदमी को यह भी लगता है कि जो कुछ भी उसके जीवन में अच्छा होना चाहिए या भविष्य में अच्छा होने की उम्मीद करनी चाहिए,उसके आसार अभी दिखाई नहीं देते। विनय मिश्र इन भावनाओं और स्थितियों को भी उनकी हद तक पहचानते हैं। तभी तो कहते हैं-

अभी तो रात ही ऐसी तनी बैठी है लगता है
अभी तो दिन निकलने का मुहूरत ही नहीं शायद

लेकिन वे फिर भी एक सपने की ताक़त को जानते हैं। सपना, जो संघर्ष की प्रेरणा बनता है और उम्मीद को कभी मरने नहीं देता। वे कहते हैं-

अगर आँखों में सपना हर तरफ़ है
अँधेरे में उजाला हर तरफ़ है

इस जगह फिर से उम्मीद बनकर
मेरी आँखों में सपना जगा है

जब हताशा के बादल सभी दिशाओं से घेरे हों तब भी वे सपनों के लिए उम्मीद की एक किरण खोजने के पक्षधर हैं।

इस उदासी में बची है क्या कोई उम्मीद
अपने ख़्वाबों की ये तहक़ीकात भी तो है

किसी उम्मीद से कुछ भी बड़ा क्या है
न हो यह तो बताओ रास्ता क्या है

विनय मिश्र की ग़ज़‌लों की समकालीनता प्रामाणिक है। प्रामाणिक इस तरह है कि वे जीवन को समग्रता में देखते हैं। वे मनुष्य की उस प्रवृत्ति पर भी लिखते हैं, जो ख़ुशियों की खोज अपने भीतर, घर के भीतर करने की बजाय बाज़ार में करती है। विनय मिश्र, बाज़ार के छल और उसकी सर्वग्रासी प्रवृत्ति पर भी लिखते है। उम्मीदों और उम्मीदों की ताकत पर भी लिखते हैं। सड़क पर उतरने को विवश किसानों पर भी लिखते हैं। वे यह ख़ूब जानते हैं कि स्थितियाँ बड़ी विकट हैं। जिन्सों से अटे पड़े बाज़ारों, रैलियों की रेलमपेल और घोषणाओं के सैलाब के बावज़ूद आम आदमी की ज़िंदगी जिस रास्ते जा रही है, वह रास्ता एक भ्रम और भटकाव को ज़रूर गढ़ता है, लेकिन सुख उस रास्ते में नहीं है। वे कहते भी हैं-

ख़ूबसूरत दिन के सपने रास्ते में हैं
यह ख़बर अख़बार में हर रोज़ पढ़ता हूँ

रास्ता कोई नहीं जाता सुखों की ओर
इतना दुख तो मैं भी दुनिया का समझता हूँ

ज़िन्दगी आने को है ग़ज़ल संग्रह में विनय मिश्र ने अकेलापन, उदासी, भूख, धरती, आसमान, नदी, समुंदर, लहरों को प्रतीक बनाकर सपनों, उम्मीदों, जद्दोजहद के बहाने मनुष्य और उसकी ज़िंदगी से बावस्ता ख़ूब बातें कही हैं और बेहतरीन अंदाज़ में कही हैं। इन सबके मूल में जो एक भाव अनवरत बहता दिखाई पड़ता है और जिसकी कल-कल, सर-सर लगातार महसूस होती है, वह प्रेम और करुणा का भाव है। वे कहते हैं-

ज़िंदगी मुझसे मिली उस रोज़ यूँ
रो पड़ा था मैं उसे बाहों में भर

प्रेम जीना चाहता है हर कोई
प्रेम की चाहे दुहाई दे न दे

डाॅ० विनय मिश्र को पढ़ते हुए उनकी ग़ज़लों में हम आद्यंत यह पाते हैं कि एक सलीकेदार भाषा में सादगी के साथ ग़ज़ल में कैसे ग़ज़लियत से भरे रहकर बहुत बड़ी, गंभीर और महत्वपूर्ण बातें कही जा सकती हैं, यह सीखा जा सकता है। यह विनय मिश्र की ग़ज़लगोई का ही हुनर है कि बहुत जानी-पहचानी और सादी भाषा में एक सौ बीस ग़ज़लों का यह संग्रह ज़िंदगी आने को है हमारे हाथ में है। अपनी कहन, पठनीयता और स्मरणीयता की खासियत वाले इस ग़ज़ल संग्रह के लिए डाॅ० विनय मिश्र को हार्दिक बधाई। शुभकामनाएँ।

 

 

समीक्ष्य कृति- ज़िंदगी आने को है
विधा- ग़ज़ल
रचनाकार- डाॅ० विनय मिश्र
प्रकाशन- लिटिल बर्ड पब्लिकेशंस, नई दिल्ली
पृष्ठ- 128
मूल्य- रुपये 200/-

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रचनाकार परिचय

राजा अवस्थी

ईमेल : raja.awasthi52@gmail.com

निवास : कटनी (मध्यप्रदेश)

पिता- पं० दर्शरूप अवस्थी
माता- श्रीमती गंगा देवी
जन्मतिथि- 4 अप्रैल, 1966
शिक्षा- परास्नातक (हिन्दी साहित्य), शिक्षा स्नातक
सम्प्रति- मध्यप्रदेश स्कूल शिक्षा विभाग में शिक्षक
लेखन विधाएँ- नवगीत एवं अन्य काव्य विधाओं के साथ आलोचनात्मक आलेख
प्रकाशन- 'जिस जगह यह नाव है' (नवगीत संग्रह, 2006) एवं 'जीवन का गुणा-भाग' (नवगीत कविता संग्रह, 2021)
साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित 'समकालीन नवगीत संचयन', नयी सदी के नवगीत, नवगीत नई दस्तकें, गीत वसुधा, समकालीन नवगीत कोश, नवगीत के नये प्रतिमान, नवगीत का लोकधर्मी सौंदर्यबोध, नवगीत का मानवतावाद, सहयात्री समय के सहित कई समवेत संकलनों एवं नवगीत विशेषांकों में नवगीत संकलित। नवगीत आलोचना पर केंद्रित कई ग्रन्थों में आलेख शामिल।
सन् 1986 से पत्र-पत्रिकाओं में नवगीत-कविताओं एवं आलेखों का प्रकाशन।
प्रसारण- आकाशवाणी केन्द्र, जबलपुर एवं दूरदर्शन, भोपाल के साथ स्थानीय चैनलों पर कविताओं का प्रसारण।
सम्मान- कादम्बरी साहित्य परिषद, जबलपुर का अखिल भारतीय नवगीत सम्मान- निमेष सम्मान 2006, प्रतिष्ठित किस्सा-कोताह नवगीत सम्मान 2020 एवं इनके अतिरिक्त और भी कई संस्थाओं द्वारा सम्मान।
विशेष- यूट्यूब पर 'नवगीत धारा' श्रृंखला अंतर्गत नवगीत पर चर्चा
सम्पर्क- गाटरघाट रोड, आज़ाद चौक, कटनी (मध्यप्रदेश)- 483501
मोबाइल- 9131675401