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इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। दिसंबर 2024 के अंक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।

सोशल मिडिया के मंच, साहित्य और हमारा प्रयास- के० पी० अनमोल

सोशल मिडिया के मंच, साहित्य और हमारा प्रयास- के० पी० अनमोल

आप सभी को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ

यह सर्वस्वीकृत है कि सोशल मीडिया के आगमन के बाद साहित्य फिर से पाठकों के क़रीब आया है। पिछले दसेक सालों में जहाँ अनेक उत्कृष्ट लेखक सामने आये हैं, वहीं अनेक उत्कृष्ट साहित्यिक उपक्रम भी अपने आपको स्थापित करने में क़ामयाब रहे हैं। सोशल मीडिया पर चाहे वह फ़ेसबुक हो, एक्स अर्थात ट्विटर हो, इन्स्टाग्राम हो या कोई अन्य मंच साहित्य की धूम आपको हर जगह मिलेगी। यह बहुत ख़ुशी की बात भी है। लेकिन इसके साथ यह भी सच है कि इन मंचों के आने के बाद लेखकों व लेखन की बाढ़-सी आयी हुई है। संपादन एवं चयन की कोई बाध्यता न होने के कारण यहाँ हर तरह की कच्ची-पक्की, संगत-असंगत सामग्री के भण्डार मिलने लगे हैं। ऐसे में वेब पत्रिकाओं जैसे ऑनलाइन साहित्यिक मंच पाठकों को उत्कृष्ट सामग्री का चयन कर उन्हें पठनीय सामग्री उपलब्ध करवाते हैं।

प्रिंट पत्रिकाओं की दुनिया के इतर ऑनलाइन मंचों के पाठक अच्छी-ख़ासी संख्या में उपस्थित हैं तथा उतने ही परिपक्व व गंभीर हैं, यह मैंने 8 साल तक हस्ताक्षर तथा साहित्य रागिनी वेब पत्रिकाओं का संपादन करते हुए पाया है। जहाँ वेब पत्रिकाओं में प्रकाशित एक-एक रचना को हज़ारों पाठकों का स्नेह मिलता है, वहीं उन पर अच्छी उर्जावान प्रतिक्रियाएँ भी मनोबल बढ़ाती हैं। ऐसे में लेखकों को असीमित पाठकों तक पहुँच बनाने के अवसर मिल रहे हैं, वहीं पाठकों को उनकी रूचि की मनोरंजक सामग्री सहजता से उपलब्ध हो रही है।

मुझे याद आता है अपनी उच्च शिक्षा का वह समय, जब इंटरनेट का आगमन तो हो चुका था लेकिन इतना अधिक चलन नहीं था। स्कूली शिक्षा से ही साहित्य और साहित्यिक पुस्तकों में रूचि होने के कारण ख़ूब पढ़ने का मन होने के बावजूद सामग्री उपलब्ध न हो पाना हताश करता था। अपनी पहली वेब पत्रिका की परिकल्पना के पीछे यह एक बड़ा कारण रहा था कि इच्छुक पाठकों को अच्छी रचनाओं व अच्छी रचनाओं को इच्छुक पाठकों तक पहुँचाया जाए। यही जूनून बराबर बना रहा है और अभी भी बरक़रार है।

हस्ताक्षर का संपादन प्रीति जी को सौंपने के बाद से यह इच्छा लगातार मन में थी कि परिस्थितियाँ पक्ष की होते ही पुन: संपादन में लौटूँगा। उचित समय के आते ही साथी संपादक अलका मिश्रा जी से इस काम की चाह का पता चला और उनके साथ हो लिया। इस बार हम दोनों का सामूहिक श्रम और पूरी टीम के सहयोग ने इरा वेब पत्रिका का रूप लिया। माँ सरस्वती का यह अन्य नाम मुझे व्यक्तिगत रूप से बहुत आकर्षक लगा। नए साल के नए दिन से अच्छा समय इसे आप सबके समक्ष लाने के लिए और हो ही नहीं सकता था।

चेतना का बहुआयामी स्वर लिए इरा वेब पत्रिका मासिक आवृत्ति में आप सबके लिए प्रस्तुत होगी, जो हिंदी साहित्य की लगभग सभी विधाओं को अपने भीतर समाहीत करने का प्रयास करेगी। आप सभी पाठकों और रचनाकारों का स्नेह और सहयोग हमारे लिए ऊर्जा का काम करेगा। आशा है आप सबको हमारा यह प्रयास पसंद आएगा। अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रियाओं से हमें, हमारी टीम और हमारे रचनाकारों को प्रेरित करें, यह आग्रह है।

नव वर्ष की अनेकानेक शुभकामनाओं के साथ।

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रचनाकार परिचय

के० पी० अनमोल

ईमेल : kpanmol.rke15@gmail.com

निवास : रुड़की (उत्तराखण्ड)

जन्मतिथि- 19 सितम्बर
जन्मस्थान- साँचोर (राजस्थान)
शिक्षा- एम० ए० एवं यू०जी०सी० नेट (हिन्दी), डिप्लोमा इन वेब डिजाइनिंग
लेखन विधाएँ- ग़ज़ल, दोहा, गीत, कविता, समीक्षा एवं आलेख।
प्रकाशन- ग़ज़ल संग्रह 'इक उम्र मुकम्मल' (2013), 'कुछ निशान काग़ज़ पर' (2019), 'जी भर बतियाने के बाद' (2022) एवं 'जैसे बहुत क़रीब' (2023) प्रकाशित।
ज्ञानप्रकाश विवेक (हिन्दी ग़ज़ल की नई चेतना), अनिरुद्ध सिन्हा (हिन्दी ग़ज़ल के युवा चेहरे), हरेराम समीप (हिन्दी ग़ज़लकार: एक अध्ययन (भाग-3), हिन्दी ग़ज़ल की पहचान एवं हिन्दी ग़ज़ल की परम्परा), डॉ० भावना (कसौटियों पर कृतियाँ), डॉ० नितिन सेठी एवं राकेश कुमार आदि द्वारा ग़ज़ल-लेखन पर आलोचनात्मक लेख। अनेक शोध आलेखों में शेर उद्धृत।
ग़ज़ल पंच शतक, ग़ज़ल त्रयोदश, यह समय कुछ खल रहा है, इक्कीसवीं सदी की ग़ज़लें, 21वीं सदी के 21वें साल की बेह्तरीन ग़ज़लें, हिन्दी ग़ज़ल के इम्कान, 2020 की प्रतिनिधि ग़ज़लें, ग़ज़ल के फ़लक पर, नूर-ए-ग़ज़ल, दोहे के सौ रंग, ओ पिता, प्रेम तुम रहना, पश्चिमी राजस्थान की काव्यधारा आदि महत्वपूर्ण समवेत संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित।
कविता कोश, अनहद कोलकाता, समकालीन परिदृश्य, अनुभूति, आँच, हस्ताक्षर आदि ऑनलाइन साहित्यिक उपक्रमों पर रचनाएँ प्रकाशित।
चाँद अब हरा हो गया है (प्रेम कविता संग्रह) तथा इक उम्र मुकम्मल (ग़ज़ल संग्रह) एंड्राइड एप के रूप में गूगल प्ले स्टोर पर उपलब्ध।
संपादन-
1. ‘हस्ताक्षर’ वेब पत्रिका के मार्च 2015 से फरवरी 2021 तक 68 अंकों का संपादन।
2. 'साहित्य रागिनी' वेब पत्रिका के 17 अंकों का संपादन।
3. त्रैमासिक पत्रिका ‘शब्द-सरिता’ (अलीगढ, उ.प्र.) के 3 अंकों का संपादन।
4. 'शैलसूत्र' त्रैमासिक पत्रिका के ग़ज़ल विशेषांक का संपादन।
5. ‘101 महिला ग़ज़लकार’, ‘समकालीन ग़ज़लकारों की बेह्तरीन ग़ज़लें’, 'ज़हीर क़ुरैशी की उर्दू ग़ज़लें', 'मीठी-सी तल्ख़ियाँ' (भाग-2 व 3), 'ख़्वाबों के रंग’ आदि पुस्तकों का संपादन।
6. 'समकालीन हिंदुस्तानी ग़ज़ल' एवं 'दोहों का दीवान' एंड्राइड एप का संपादन।
प्रसारण- दूरदर्शन राजस्थान तथा आकाशवाणी जोधपुर एवं बाड़मेर पर ग़ज़लों का प्रसारण।
मोबाइल- 8006623499