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ज़िंदगी का कोलाज :  निस्यन्दिनी- डॉ० अरुण कुमार निषाद

ज़िंदगी का कोलाज :  निस्यन्दिनी- डॉ० अरुण कुमार निषाद

प्रो० जनार्दन पाण्डेय ‘मणि’ केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय गंगानाथ झा परिसर प्रयागराज में संस्कृत के प्रोफेसर एवं साहित्य विभाग के विभागाध्यक्ष हैं। निस्यन्दिनी गीत संग्रह में उन्होंने पल-प्रतिपल अपने अन्त:करण में उभरे मनोभावों को चित्रमयी शब्दों में पिरोया है।

प्रो० जनार्दन पाण्डेय ‘मणि’ केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय गंगानाथ झा परिसर प्रयागराज में संस्कृत के प्रोफेसर एवं साहित्य विभाग के विभागाध्यक्ष हैं। निस्यन्दिनी गीत संग्रह में उन्होंने पल-प्रतिपल अपने अन्त:करण में उभरे मनोभावों को चित्रमयी शब्दों में पिरोया है। विषयवस्तु की दृष्टि से देखा जाए तो इनके गीत अनुभूत यथार्थ की भावात्मक अभिव्यक्ति हैं। वे आद्यान्त यथार्थ से जुड़ी रहती हैं, वह यथार्थ जो देखा हुआ, भोगा हुआ सच है, जो परिवर्तनशील है, गतिशील है, प्रेरणात्मक है, परिवेश के प्रति सजग है और इतना ही नहीं अधुनातन परिवेशगत राजनैतिक और सामाजिक परिदृश्यों में व्याप्त विसंगतियों का प्रतिवाद करता हुआ नये प्रतिमान बनाता है, नये संदेश देता है और नए बिम्ब रचता है। भाषा में गतिशीलता है। कहीं भी पाठक को शिथिलता का अनुभव नहीं होता।
 
गीत संग्रह का आरम्भ वीणावादिनी माँ सरस्वती की चरण वंदना से किया गया है। बाज़ार के भाव की तरह बदलते हुए रिश्तों पर प्रो० मणि लिखते हैं। वक्त के साथ-साथ लोग बदल जाते हैं। कोई किसी का सगा नहीं है। इस स्वार्थी मतलबी दुनिया को देखकर कवि कहता है-
 
अयि मानवीय चेताने! भवितव्यता क्व नु ते गता। (पृष्ठ- 24)
 
ज़िंदगी के तजुर्बों को, उसकी जद्दोजहद को उनके गीतों में देखा जा सकता है।
 
वर्धतेऽहर्निशं मे व्यथावल्लरी!
वेदनामूर्च्छनाभि: श्रिता मञ्जरी!! (पृष्ठ- 25)
 
प्रो० जनार्दन प्रसाद पाण्डेय ‘मणि’ के गीतों में यदि संयोग है तो वियोग भी है। अगर प्रेम है तो बेवफाई भी।
 
अन्तर्द्वन्द्वे व्यथते हृदयम्।
ब्रूते तथ्यं लषतेऽभ्युदयम्।। (पृष्ठ- 36)
 
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जीवनं वेदनावारिणा सम्भृतम्!
हा हृदयत: शुभस्पन्दनं नो गतम्!! (पृष्ठ- 76)
 
प्रो० जनार्दन प्रसाद पाण्डेय ‘मणि’ के गीतों में यत्र–तत्र राष्ट्रप्रेम की भावना भी देखने को मिलती है।
 
वेदनाव्याकुलं वेपते भारतम्!
क्वास्ति चेतोहरा रागिणी साम्प्रतम्!! (पृष्ठ- 55)    
 
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पठ्यतां प्रत्यहं राष्ट्रसंवेदना!
तस्य दैनन्दिनी मानसी मूर्च्छना!! (पृष्ठ- 74)
 
कवि अपने गीतों में संस्कृत संवर्धन की बात भी करता है-
 
सरलैषा संस्कृतभाषा सदा पठनीया भजनीया सखे!
मधुरैषा संस्कृतभाषा सदा पठनीया श्रवणीया सखे!! (पृष्ठ- 57)
 
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जयेत् संस्कृत वाक् सदा भूतलेऽस्मिन्!
लसेद् देवता वाक् सदा भूतलेऽस्मिन्!! (पृष्ठ- 67)
 
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वयं सर्वदा संस्कृतं संवदाम:!
स्फुरत्संस्कृते: शुभ्ररूपं नमाम:!! (पृष्ठ- 73)
 
ऋतुराज व रसराज के नाम से प्रसिद्ध बसन्त का वर्णन प्रत्येक भाषा के कवि ने किया है। प्रो० जनार्दन प्रसाद पाण्डेय ‘मणि’भी लिखते हैं–
 
सखी रे! माद्यं तनुते वातो विलसति फाल्गुनमासोऽयम्!
ग्रामे नगरे सरितस्तीरे
धवले पश्य शीलते नीरे
पुलकितयुवसमुदायो वै
क्रीडन् गायन् नृत्यन् विहरति विलसति फाल्गुनमासोऽयम्!!1!! (पृष्ठ- 58)
 
प्रेम में रुठना मानना तो चलता ही रहता है। अपनी प्रेमिका को मनाते हुए कवि लिखता है-
 
शमय सखि! सकलं भवपरितापम्!
रसय मम मृदुलं मधुरिममलापम्!! (पृष्ठ- 43)
 
जीवन के कटु अनुभवों के विषय में प्रो० ‘मणि’ लिखते हैं-
 
अद्य लोके जीवन सङ्घर्षलिखितं दृश्यते!
कल्पनाया: सौख्यमपि सङ्गीतरहितं वर्तते!! (पृष्ठ- 53)
 
प्रो० जनार्दन प्रसाद पाण्डेय ‘मणि’ ने भी कभी न कभी उस विरह की पीड़ा को सहा है। उस बेवफाई को सहा जिस जिससे शायद ही कोई नवयुवक बच पाया हो।
 
कदा यास्यतीयं निशा नैव जाने!
मुदा भास्यतीयं प्रभा नैव जाने!! (पृष्ठ- 56)
 
सारांशत: हम कह सकते हैं कि प्रो० जनार्दन प्रसाद पाण्डेय ‘मणि’ के गीतों  में प्रेम भी है और वियोग भी। जीवन में अवसाद है तो जुझारुपन भी। बेवफाई है तो प्रणय भी। इन्हीं शुभकामनाओं के साथ कि आप लेखनी यूँ ही निर्बाध रुप से प्रवाहमान होती रहे। अशेष मंगलकामनाएँ।
 
 
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समीक्ष्य पुस्तक- निस्यन्दिनी
विधा- संस्कृत गीत 
रचनाकार- प्रो० जनार्दन पाण्डेय ‘मणि’
प्रकाशक- वैशम्पायन प्रकाशन, इलाहाबाद (उ०प्र०)
द्वितीय संस्करण- 2011 ई०
पृष्ठ संख्या- 69 
अंकित मूल्य- रु. 250

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रचनाकार परिचय

डॉ० अरुण कुमार निषाद

ईमेल : arun.ugc@gmail.com

निवास : सुल्तानपुर (उत्तरप्रदेश)

नाम- डॉ० अरुण कुमार निषाद 
जन्मतिथि
- 25 जुलाई, 1984

शिक्षा- एम०ए० (संस्कृत साहित्य), नेट, पी०एचडी, डिप्लोमा पत्रकारिता एवं जनसंचार, संगीत प्रभाकर (गायन)
सम्प्रति- असिस्टेण्ट प्रोफेसर (संस्कृत विभाग) मदर टेरेसा महिला महाविद्यालय, कटकाखानपुर, द्वारिकागंज, सुल्तानपुर (उत्तरप्रदेश)
प्रकाशन- आधुनिक संस्कृत साहित्य की महिला रचनाधर्मिता, आधुनिक संस्कृत साहित्य : विविध आयाम, तस्वीर-ए-दिल (काव्य-संग्रह)
'गगनवर्णानां गूहगवेषा' (डॉ.हर्षदेव माधव की संस्कृत कविताओं का अवधी अनुवाद)
देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं यथा- कादम्बिनी, सरिता, जनकृति, सरहद, आरम्भ, सेतु (पिटर्सबर्ग अमेरिका), अम्स्टेलगंगा (नीदरलैंड), हस्ताक्षर, प्रणाम पर्यटन, साहित्य कुञ्ज (कनाडा), पहचान (आकलैण्ड), जय-विजय इत्यादि में शोधपत्र, कविता, गीत, ग़ज़ल, कहानी, आलेख आदि प्रकाशित।
अनेक राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों में शोधपत्र वाचन तथा कार्यशालाओं में सहभागिता, संस्कृत मनीषियों का साक्षात्कार, संस्कृत/हिंदी पुस्तकों की समीक्षा, अनेक कवि सम्मेलनों में सहभागिता, सञ्चालन तथा अध्यक्षता, हिंदी तथा संस्कृत की स्वतन्त्र पत्रकारिता।
संपादन- कोरोना-विजय (काव्य संकलन)
उपसम्पादक-
हस्ताक्षर ई-मासिक पत्रिका (राजस्थान)
दस्तक दर्पण समाचार पत्रिका (गुजरात)
Knowledgeable Researchjournal (Peer-reviewed monthly journal)
सम्मान- लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा नाट्य निर्देशक सम्मान, लखनऊ पुस्तक मेले में कवि तथा भजन गायक सम्मान, रायल ह्यूमिनिटी एण्ड एजूकेशनल वेलफेयर सोसाइटी सुल्तानपुर द्वारा फखरुद्दीन अली अहमद अवार्ड, जिला सुरक्षा संगठन सुल्तांपुर द्वारा आदर्श शिक्षक अलंकरण सम्मान
निवास- ग्राम- अर्जुनपुर, पोस्ट- बेलहरी, जनपद- सुल्तानपुर (उत्तरप्रदेश)- 228133