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संदीप तोमर की कविताएंँ

संदीप तोमर की कविताएंँ

मैं खिड़की से देखता हूँ
अपने पिता को
वह पिता, जिसने
अपना पसीना बहा
सींचा है मुझे
और बनाया है
एक कमज़ोर पौधे से
मज़बूत विशाल दरख़्त,

एक- असमय की एक कविता

आजकल एकदम खाली हूँ
इतना खाली कि मेरे हिस्से
कोई काम ही नहीं बचा,
कभी समय मुझ पर हँसता है
कभी मैं समय पर
और यह भी क्या इत्तेफ़ाक़ है
मेरा समय सापेक्ष होना
मुझे निरपेक्षता का सिद्धान्त समझा रहा है
वैसे न समय मेरे साथ है और
न ही मैं ही समय के साथ
जो लोग समय की रट लगा
दुहाई देते थे
अब पास नहीं फटकते,
मौत का खौफ कभी रहा नहीं
आज भी नहीं है लेकिन
मैंने देखा है क़रीब से मौत को
एक नहीं, तीन-तीन बार
लोगों ने कहा कि मृत्यु ही सत्य है
लेकिन सत्य तो जीवन ही है
ऐसा न होता तो सब
जीने को लालायित न होते
हाँ, आज मैं महसूस कर रहा हूँ
मौत को भी उतने ही क़रीब से
जितने क़रीब से जीवन को देखा
मेरी बैसाखी की टक-टक की आवाज़
क़रीब आती मौत का बुलावा है
मौत ने बना लिया है एक औरा
मेरे इर्द-गिर्द,
कहते हैं- सात ऊर्जा स्तर हैं
जो मेरुदंड के गिर्द ऊर्जा चक्र की तरह
रहते हुए सुरक्षारत हैं
ये इंद्र्धानुषी रंगों से शुद्ध और चमकदार बन
स्वस्थ रखते तो कभी
चमकविहीन हो करते बीमार भी
अगर ऐसा है तो
फिर इंतज़ार किया जा सकता है
एक बार फिर से मौत का
चेहरा, पीठ, ज़बान सब कुछ ही तो अब
समय की छाप दिखा
चिढ़ा रहे हैं पल-पल
मौत से पहले कुछ काम कर लेना चाहता हूँ
इस खाली समय में
कब से गाँव नहीं गया
बचपन के दोस्त, खेल, प्रेम, झगड़ा
सब पर सोचने का ये माकूल वक़्त है
बहुत से हिसाब-किताब हैं जो अब
चुकता कर लेने चाहिए,
एक इच्छा थी कि जब कभी
खाली समय होगा
दिन भर मदिरा पान करूँगा
वक़्त है लेकिन प्याला नसीब कहाँ
साक़ी और हमप्याला भी नहीं कोई,
एक अरसा हुआ जब खरीदी थी कुछ और किताबें
बंडल पड़ा है लाइब्रेरी की किसी दराज में
सोचता हूँ- उन्हें निकाल सजा दूँ हर सफ़े में
ट्रॉफियों पर भी तो जम गया है
धूल का एक पूरा अम्बार
जिन पर लिखी उपलब्धियाँ अब पढ़ नहीं पाता
खाली समय में मौत का इंतज़ार करना
कितना असहज कर रहा
ज़िंदगी के बेतरतीब पन्ने खुल रहे हैं
मैं पढ़ लेना चाहता हूँ हर वो पन्ना
जिसे पढ़ने का वक़्त ही नहीं मिला कभी,
कुछ दोस्त जो छोड़ गए हैं साथ
उनको याद कर लेना या फिर
उस व्यक्ति पर दया दिखाना
जिसकी बीवी छोड़ गयी
चार बच्चों को उसके भरोसे,
पानी का घड़ा भी तो बदलना है
जो पिछली गर्मी में भी रिस रहा था
टपकती छत की मरम्मत भी लाज़मी है
बूढ़े हो चुके पिता का
हाल भी तो नहीं पूछा एक अरसे से
उनकी दवा का पर्चा भी चिढ़ाता है,
बचपन की सहेली का हाल-समाचार भी जानना है,
मौत से पहले का समय
अचानक कितना अहम लगने लगा है
मैं इसका भरपूर उपयोग कर लेना चाहता हूँ ।

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दो- जीवन गणना

पार नहीं पाया जा सकता
जीवन की गणितीय आकृति संग
कि
उसका गोलीय पृष्ठ
अनवरत यात्रा है
अंतहीन छोर के साथ
कि
जीवन वृत्त की परिधि का
भ्रमण भी तो है
जिसपर पथ बार बार
दोहराता है खुद को
कि
यह परिमाप है त्रिभुज के
तीन कोनों का
जिसके शीर्ष कोशिश में होते
लाने को ठहराव

कि
यह हो जाता तब्दील
अर्धवृत्त में कभी भी कहीं भी
कभी यात्रा समतल
व्यास की मानिंद
तो कभी कर्व में घुमाती
कि
षट्कोण, चतुर्भुजी या कि अभिलम्ब में
विचरण करती जिन्दगी की साँसे
रास्ते तय करती, पर कर न पाती

कही उलझती, कहीं सुलझती
जिन्दगी
लेकिन इतना तय मानिए
कि इसे जीना है हर हाल में
जैसे हर आकृति कहलाती ज्यामिति।

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तीन- समय की दरकार

कोई नहीं जानता
कि कब बन्द करेगी
पृथ्वी घूमना, थम जाएगी, जम जाएगी
कि
कब सूरज प्रकाशित होना
बन्द कर देगा और
घूमने लगेगा पृथ्वी के गिर्द
कि
मिलेंगे हम
अंतरिक्ष की अन्य पृथ्वियों से
नए रिश्तों के लिए
कि
हमारा स्थिर हो जाना भी
हो जाएगा नियति
जैसे मृत्यु सत्य है
हाँ, इतना तय है कि
हर सत्य को सत्य होने में
लम्बे समय की दरकार है।

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चार- उदास गलियाँ

मैं गॉव की उदास गलियों से
निकलकर
यहाँ महानगर में
चला
आया हूँ;
नहीं, नहीं
ये विस्थापन नहीं,
विस्थापन तो एकदम नहीं है,
रोज़ी-रोटी, गुज़ारे का सवाल
मुझे ले आया है
महानगर के वीराने में,
ये वीराना मुझे गुज़ारे का
सब सामान तो देता है
लेकिन रोज़ लील लेता है
मेरे अन्दर के भावों को
और याद आने लगती है मुझे
अपने गॉव की उदास गलियाँ।

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पाँच- फसल

मैं खिड़की से देखता हूँ
अपने पिता को
वह पिता, जिसने
अपना पसीना बहा
सींचा है मुझे
और बनाया है
एक कमज़ोर पौधे से
मज़बूत विशाल दरख़्त,
वह पिता सुबह निकल पड़ता
खेत में
कभी रोपने धान, तो कभी
उगाने गेहूँ की फसल
रात को मैं खिड़की खोल,
देखता-उस पिता को
जो नींद से उठ
चल पड़ता-
खेत को सींचने,
ताकि
खेत की फसल से
पल्लवित हो उसकी अपनी फसल,
वह पिता हर रोज़
मरता, जब बेमौसम बरसात,
या फिर सूखा
बरसाता अपना कहर
तब वो पिता
डूबता चिंता में
मुझे मैं बनाने की चिंता में
घुल जाता वो पिता
और मैं बस बंद कर खिड़की
जुट जाता
उसके सपने का
सपना पूरा करने में।

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रचनाकार परिचय

सन्दीप तोमर

ईमेल : gangdhari.sandy@gmail.com

निवास : नई दिल्ली

जन्मतिथि- जून 1975
जन्म स्थान- खतौली (उत्तर प्रदेश)
शिक्षा- स्नातकोत्तर (गणित, समाजशास्त्र, भूगोल), एम.फिल. (शिक्षाशास्त्र) पी.एच.डी. शोधरत
सम्प्रति- अध्यापन
प्रकाशन- 4 कविता संग्रह , 4 उपन्यास, 2 कहानी संग्रह , एक लघुकथा संग्रह, एक आलेख संग्रह सहित आत्मकथा प्रकाशित। 
पत्र-पत्रिकाओं में सतत लेखन।
सम्पर्क- ड़ी 2/1 जीवन पार्क, 
उत्तम नगर नई दिल्ली 110059
मोबाइल- 8377875009