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संध्या सिंह की कविताएँ

संध्या सिंह की कविताएँ

बड़ा दुर्गम और सँकरा है
स्त्री के मुस्कुराते होंठ
और पनीली आँखों के
बीच का रास्ता

एक- विरोधाभास

सराय
यात्राओं की संजीवनी है
और नींद ही है
चेतना का अमृत कलश
केवल जन्म ही सुन पाया
पास आती मृत्यु की पदचाप
एक फ़िक्र की नोक पर टिके रहे
रिश्तों के लापरवाह घूमते
सारे लट्टू
विपदाएँ
खुशियों की डोर बेल की तरह बजीं
विरह का टैग लगते ही
आसमान छूने लगी मिलन की क़ीमत
दर्दनाक चीखें
दूर तक सुनायी दे सकें
इसका पूरा उत्तरदायित्व सन्नाटे ने ही निभाया
सब्र की कार्बन डाई ऑक्साइड में
घुटते लोगों को
हमेशा क्रोध की ऑक्सीजन बचाती रही
तुम सकारात्मक शब्दों के
पर्यायवाची इकट्ठे करते रहे
और ज़िंदगी
विलोम के बिना अधूरी रह गयी

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2- खुराक

हमारी बेचारगी
तुम्हारा पोषण करती थी
हमारी दयनीयता
तुम गटकते थे
दूध के गिलास की तरह

हमारा सहमना
तुम सुबह शाम
मेवों की तरह चबाते थे
और
हमारा हाथ फैलाना
तुम्हारी भूख बढ़ा देता था
हाजमे के चूरन की तरह

मगर आज
तुम्हारा ये घटता वज़न
तुम्हारी निस्तेज आँखें
तुम्हारे मुरझाये चेहरे पर
पपडाये होंठ
और तुम्हारे
ये झुके हुए कंधे

बुरा हो
हमारी आत्मनिर्भरता
और हमारे आत्मविश्वास का

तुम तो कुपोषण का
शिकार ही हो गये

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3- शॉर्ट कट

बड़ा दुर्गम और सँकरा है
स्त्री के मुस्कुराते होंठ
और पनीली आँखों के
बीच का रास्ता

प्रवेश करोगे तो
यहीं कहीं कुछ शिलालेख मिलेंगे
जिन पर गुदी हुई है
उसके आँसुओं की वज़ह
उसकी थकन के रहस्य
उसके मौन की डी-कोडिंग
मगर तुमने तो वो लिपि सीखी ही नहीं

आगे बढ़ते हुए देखना ध्यान से
यहीं कहीं अटकी होगी
वो किसी खजूर में
अपनी ही हाँ और ना के बीच

और आगे बढ़ो तो देखना
एक अँधेरे मोड़ पर
तुम्हारे प्यार के पत्थर के नीचे
उसने दबा कर रख दिये हैं
अपनी विद्वत्ता के सारे प्रमाणपत्र

मगर तुम छोड़ो
ये पैदल का रास्ता
तुम सीधे टेक ऑफ करना
उसकी भीगी पलकों के रन-वे से

फिर दूरबीन से निहारना
उसकी देह का मानचित्र
और सीधे लैंड करना
उसके मुस्कुराते होंठों के हवाई अड्डे पर

क्यों कि बड़ा दुर्गम और संकरा है
स्त्री के मुस्कुराते होंठ
और पनीली आँखों के
बीच का रास्ता

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चार- फफूँद 

हमारे सपने
स्थगित रखे गए
विदाई की रस्म तक

और फिर
विवाह के आँगन में
हमारे सपनों को वरीयता क्रम में
टाँग दिया गया
सबसे पीछे वाली अलगनी पर
जो अस्त होते सूरज के
हिस्से में थी

आखिरकार
एक दिन पड़ने ही लगी
ढलती धूप
हमारे सीलन भरे सपनों पर भी

मगर अफ़सोस
वक्त ने मुल्तवी नहीं की थी
हमारी उम्र

जिस समय
धूप सपने सुखा रही थी
देह पर आने लगी थी
फफूँद

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पाँच- पुनर्जन्म

मरघट जैसे पुस्कालय की
क़ब्रगाह सरीखी शेल्फ

जिसमे बरसों
ठोस जिल्द के ताबूत में
ममी की तरह रखी
अनछुई
मुर्दा किताब

जी उठती है अचानक
दो हाथों की ऊष्मा पाकर

साँस लेने लगते हैं पृष्ठ
अनायास
उँगलियों का स्पर्श मिलते ही

धड़कने लगते हैं शब्द
घूमती हुई
आँख की पुतलियों के साथ

बड़ी फुर्ती से रंग भरने लगता है
हर दृश्य में
ज़ेहन का चित्रकार

और चहल क़दमी करने लगते हैं
पन्नों से निकल कर
किरदार

और अन्ततः
गूँजने लगती हैं आवाजें भी
कानों में बोलने लगती है
एक गूँगी किताब

यह सब कुछ
अचानक हो जाता है
एक निर्जीव पुस्तक के साथ
एक संजीदा पाठक
मिलते ही
अकस्मात......!!

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रचनाकार परिचय

संध्या सिंह

ईमेल :

निवास : लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

जन्म तिथि- 20 जुलाई 1958
जन्म स्थान- ग्राम लालवाला, तहसील देवबंद, जिला सहारनपुर
शिक्षा- स्नातक विज्ञान, मेरठ विश्वविद्यालय
सम्प्रति- हिन्दी संस्थान, रेडिओ, दूरदर्शन, निजी चैनल पर काव्य पाठ एवं अनेक पत्र पत्रिकाओं एवं समाचार पत्रों में निरंतर रचनाएँ प्रकाशित, इसके अतिरिक्त स्वतन्त्र लेखन
प्रकाशित पुस्तकें-
चार प्रकाशित काव्य संग्रह ‘आखरों के शगुन पंछी ‘, "उनींदे द्वार पर दस्तक ‘मौन की झनकार’ और "संध्या सिंह की चयनित कविताएँ "
सम्मान एवं पुरस्कार-
अपने प्रथम नवगीत संग्रह ‘’ मौन की झंकार ‘ पर दुबई की संस्था ‘’अभिव्यक्ति विश्वम ‘ की ओर से "अंकुर पुरस्कार २०१६ " से पुरस्कृत
अभिनव कला परिषद् भोपाल की और से शब्द शिल्पी २०१७ सम्मान 
हिंदुस्तानी अकादमी दिल्ली द्वारा आयोजित गीत प्रतियोगिता में प्रथम स्थान
राज्य कर्मचारी संस्थान द्वारा 2018 में स्री लेखन पर सम्मानित
आयाम संस्था पटना द्वारा स्त्री लेखन पर 2017 में सम्मानित
समन्वय संस्था सहारनपुर द्वारा सृजन सम्मान 2018
संपर्क- लखनऊ(उत्तर प्रदेश)
मोबाईल- 7388178459