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एग्ज़ाम का रिज़ल्ट और एक क़िस्सा- सीमा मधुरिमा

एग्ज़ाम का रिज़ल्ट और एक क़िस्सा- सीमा मधुरिमा

मेरा हाई स्कूल का रिज़ल्ट आया था। हम लोग हर बार की तरह इस बार भी गर्मी की छुट्टियों में मामा के घर छुट्टियाँ बिताने गये हुए थे। उसी बीच रिज़ल्ट आया। उस समय रिज़ल्ट पेपर में छपा करता था। मेरे बड़े भैया को रोल नंबर देकर गये थे कि जब रिज़ल्ट आएगा देख लीजिएगा। रिज़ल्ट के बाद ही बड़े भैया हमें मामा के यहाँ लेने आ गये और उन्होंने दुख भरी ख़बर सुनाई की सीमा फेल हो गयी है।

यह बात तब की है, जब मेरा हाईस्कूल का रिज़ल्ट आया था। हम लोग हर बार की तरह इस बार भी गर्मी की छुट्टियों में मामा के घर छुट्टियाँ बिताने गये हुए थे। उसी बीच रिज़ल्ट आया, उस समय रिज़ल्ट पेपर में छपा करता था। मेरे बड़े भैया को रोल नंबर देकर गये थे कि जब रिज़ल्ट आएगा, देख लीजिएगा। रिज़ल्ट के बाद ही बड़े भैया हमें मामा के यहाँ लेने आ गये और उन्होंने दुख भरी ख़बर सुनाई की सीमा फेल हो गई है। बहुत देर तक तो हमें मज़ाक लगता रहा पर जब वह अपनी बात पर अटल रहे तो लगने लगा शायद बात सच हो। मैंने कहा, "अख़बार दिखाइए।" बोले, "लखनऊ चलकर ख़ुद अपनी आँखों से देख लेना अख़बार लेकर नहीं आया हूँl"

दो दिन बाद जब हम लोग लखनऊ पहुँचे, सबसे पहले मैंने अख़बार ही खंगाला। भैया सही थे क्योंकि मेरा रोल नंबर अख़बार से ग़ायब था। उस रोल नंबर को ढूँढने के लिए मैंने अख़बार का कोई भी कोना नहीं छोड़ा, ऐसा लग रहा था कि कहीं और न छप गया हो। खैर अगले ही दिन मैं अपनी बहन के साथ अपना रिपोर्ट कार्ड लेने गयी। दुखी मन से हताशा चेहरे पर लिए हुए जब मैं ऑफिस पहुँची तो उदास होकर कहा, "फलाने रोल नंबर की मार्कशीट निकाल दीजिए।" बाबू ने मार्कशीट निकाल कर देते हुए कहा कि "ख़ाली हाथ क्यों चली आयी, मिठाई का डब्बा तो ले आना चाहिए था।" मैंने कहा, "क्यों मज़ाक कर रहे हैं, फेल होने की कौन मिठाई खिलाता है?" तब तक मैंने धीरे से कनखियों से अपने टोटल मार्क्स देखे तो लगा कि यह तो कुछ 65 पर्सेंट जैसा दिख रहा है। फिर मैंने, चूँकि फर्स्ट और फेल दोनों की स्पेलिंग एफ से शुरू होती है, तो धीरे-धीरे मैंने स्पेलिंग पढ़ने की कोशिश की। अचानक मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा। मैं वहीं पर चिल्लाने लगी और अपनी बहन को गले लगा लिया, "देखा, मैं फेल नहीं हूँ फर्स्ट हूँ। यही मैं कहूँ कि मैं फेल कैसे हो गयी?"

इधर मेरी माँ भी बहुत उदास थी, क्योंकि उन्हें अपनी इस लड़की पर बहुत भरोसा था। ख़ासकर इसकी पढ़ाई, वह सोच रही थी कि इतनी मेहनत की है इसने फिर भी फेल हो गयी। मार्कशीट लेकर मैं और मेरी बहन अपनी ही धुन में वहाँ से चल पड़े। आपको बताते चलें कि मैं चारबाग़ स्थित जुबली गर्ल्स कॉलेज की छात्रा हुआ करती थी। जहाँ बगल में के०के०सी० और के०के०वी० लड़कों के कॉलेज हुआ करते थे l हमारे कॉलेज के बिल्कुल पीछे एक शॉर्टकट रास्ता था, जिससे पैदल होकर हम पुराना किला वाला रास्ता अपनाकर अपने घर तक आते थे। 13-14 साल की मैं थी और 2 साल छोटी मेरी बहन, मेरे पैरों में जाने कहाँ से जान आ गयी थी। मैं जल्द से जल्द घर पहुँच जाना चाहती थी और अपनी माँ को अपना रिज़ल्ट सुनाना चाहती थी, जिससे माँ की उदासी दूर हो सके।

हमने वह नाले वाला पुल पार किया ही था कि पीछे से चार-पाँच लड़के एक साथ आ रहे थे, उनमें से एक-दो के पास साइकिल थी पर सभी पैदल ही थे। मुझे कुछ ऐसा अंदेशा हुआ कि उन लड़कों में से सबने मिलकर किसी एक लड़के से शर्त रखी। वह शर्त शायद मुझे मारकर आगे बढ़ने की थी। ऐसा मुझे अपनी छठी इंद्रिय से आभास हो गया था हालाँकि मैंने अपनी बहन को कुछ नहीं आभास होने दिया। उनमें से वह लड़का साइकिल लेकर आगे आया। (आपको बताते चलें कि मैं 2 साल पहले से गेम्स में थी और कई प्रकार के मेडल जीत चुकी थी) उस लड़के ने अपना हाथ उठाकर मुझे सामने से मारना चाहा और मेरा बायाँ हाथ उसके हाथ में जाकर अड़ गया। (इन दोनों के साथ ही एक बुजुर्ग अंकल चल रहे थे) मैंने उन अंकल जी को आवाज़ दी और उस लड़के का हाथ उसकी पीठ की तरफ़ ले जाकर दाहिने हाथ से उसके पीठ पर कम से कम 10 मुक्के मारे। वह लड़का सकपका गया और पूरे समय तक कहता रहा कि "मैंने किया क्या है?" मैंने कहा, "अपने घर जाकर आराम से अपनी माँ-बहन से पूछना कि तूने क्या किया? और क्रोध में ही आकर उन अंकल को, जो बग़ल में सकपकाये हुए खड़े थे, उनको हड़काना शुरू कर दिया और उनसे कहने लगी कि "जब कभी आपके घर की किसी बच्ची को लड़के ऐसे छेड़ रहे होंगे तो आप ऐसे ही खड़े रहना।"जबकि बाद में मुझे एहसास हुआ की अंकल बेचारे तो कुछ माजरा भी नहीं समझ पाए थे कि अचानक क्या हो गया। लेकिन मैंने लड़कों का सारा क्रोध अंकल पर ही उतार दिया। इस बात को जब भी सोचती हूँ तब मुझे अंकल पर बहुत दया आने लगती है और ख़ुद पर क्रोध आता है। हालाँकि वह बेचारे तो अब इस दुनिया में भी नहीं होंगे, उसी समय बहुत बुजुर्ग थे।

जब उस लड़के का हाथ मेरे हाथ से छूटा, तब वह अपनी साइकिल लेकर इतनी तेज़ भागा कि दो मिनट के अंदर ही आँखों से ओझल हो गया। जो बाक़ी तीन-चार लड़के पीछे आ रहे थे, वो बाद में नज़र झुकाए हुए मेरे बगल से गुज़र गये l मेरी बहन रोने लगी थी, उसे भी डाँटकर चुप कराया। बोली, "तू क्यों रो रही है, जब मैं नहीं रो रही?" जब भी एग्ज़ाम का रिज़ल्ट आने वाला होता है, मुझे अपने साथ हुआ यह क़िस्सा ज़रूर याद आता और यह भी याद आता है कि शायद उस लड़के ने अपने जीवन में किसी लड़की को दोबारा नहीं छेड़ा होगा और न ही कोई ऐसी शर्त लगाई होगी लड़कों के बीच।

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रचनाकार परिचय

सीमा मधुरिमा

ईमेल : seemamadhurima@gmail.com

निवास : लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

जन्मतिथि- 1 अगस्त
जन्मस्थान- मऊ नाथ भंजन
लेखन विधा- छंद मुक्त कविता, लघुकथा, कहानी, संस्मरण, उपन्यास
शिक्षा- एम. ए. (अंग्रेजी साहित्य), एम.ए. (प्राचीन भारतीय इतिहास), एम.ए. (समाज शास्त्र) बी. एड.
सम्प्रति- स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत एवं स्वतंत्र लेखन
प्रकाशन- चार कविता संग्रह, एक लघुकथा संग्रह "अगली सीट", एक व्यंग्य संग्रह "खरी मसखरी", अनेकों साझा संग्रह
पुरस्कार/सम्मान- सृजन युवा सम्मान 2016, सुरभि सम्मान, भारत की प्रतिभाशाली कवियित्री सम्मान, भव्या फाउंडेशन सम्मान, पुस्तक मुखर मौन को मिर्जा ग़ालिब सम्मान, एक लाख धनराशि राज्य कर्मचारी संस्थान की तरफ से, सुंदरम साहित्य सम्मान एवं अन्य अनेकों सम्मान से सम्मानित!
प्रसारण- दूरदर्शन एवं आकाशवाणी से रचनाएँ प्रसारित
विशेष- स्त्री मुद्दों को बेबाकी से उठाना , स्त्री विमर्श की रचनाएँ ज्यादा मुखर हैं। 
पता- एल्डिको कॉलोनी लखनऊ (उत्तर प्रदेश)-226025
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