Ira
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। दिसंबर 2024 के अंक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।

सीमा अग्रवाल के गीत

सीमा  अग्रवाल के गीत

ओढ़े अबीर पहने गुलाल
फगुआ की धुन पर
नाच रही
बगिया बगिया।

एक- छन छनन छनन

छन छनन छनन
छन छनन छनन
लो बाँध हवा ने
पत्तों की ली
पायलिया

इस गली चली उस गली चली
मन मौज भरे मनचली चली
महुआ पलाश से बतियाती
मस्ती की बन पोटली चली

ओढ़े अबीर पहने गुलाल
फगुआ की धुन पर
नाच रही
बगिया बगिया।

इससे खटपट उससे खट पट
हर घूँघट को छेड़े नटखट
कर रही ठिठोली ढीठ अली
अब इस पनघट अब उस पनघट

ठुनकी आँखों को देख कहे
"मत बुरा मान
होली है री
ओ बावरिया"

ख़ुशबू की गगरी छलकाती
हर ओर नेह रस ढलकाती
रस-रंग-गंध के ढोल बजा
हर देहरी का मन थिरकाती

होलियार हुयी निर्बंधी ने
जल-थल-नभ सबको
सम्मोहन में
बाँध लिया

******************



दो- बहुत दिनो के बाद मिली हो

बहुत दिनो के बाद मिली हो
कैसी हो कमला?

क्या बतलाऊँ, कुछ दिन पहले
झाड़ू-खटका छोड़ चुकी हूँ
सोचा अब आराम करूँगी
ख़ुद को बहुत निचोड़ चुकी हूँ

लेकिन इस मुँहजले भाग ने
ढंग नहीं बदला

बेटे की नौकरी लग गयी
बेटी का भी ब्याह हो गया
पहले ही कम कब था, जीवन
थोड़ा और तबाह हो गया

अगला क़िस्सा भी वैसा है
जैसा था पहला

दारू, गाली,मार-पीट से
सुबह शाम घर भर देता है
कसर बाप जो रखता है वो
बेटा पूरी कर देता है

पिछला नहला था तो दूजा
नहले पर दहला

पात्र महज़ बदले हैं, लेकिन
सब कुछ जैसे का तैसा है
पगली, जो तब था वो रोना
अब भी वैसे का वैसा है

तेरी रामकथा का क्यों कर
रावण नहीं जला

******************



तीन- तुम क्या कहते हो बोलो

मैं जीवन के हर इक पल को मीत बुलाती हूँ
तुम क्या कहते हो बोलो

कोई तो है जो कपास के
फूल सरीखा
मन की घाटी में उड़ता है
कोई तो है, जो जुड़ता है
धीरे धीरे
और तरंगों सा बहता है

मैं तो उसको बड़े प्यार से
गीत बुलाती हूँ
तुम क्या कहते हो बोलो

सतरंगी नभ, हवा चंदनी
अंतर झन झन जल-तरंग सा
खनके-झनके
ध्वनियों में भी दृश्य दिखे जब
और दृश्य में मनचीती ध्वनि
लहके बहके

मैं इसको पहली अनबूझी
प्रीत बुलाती हूँ
तुम क्या कहते हो बोलो

मेरी सूरत जैसा कोई अनजाना
चौखट पर बैठा
गुहराता है
खोलो खोलो साँकल खोलो
बार बार कहता है
कहता ही जाता है

मैं उसको जग की अनचाही
रीत बुलाती हूँ
तुम क्या कहते हो बोलो?

******************



चार- तू कबीर है, तू फ़क़ीर है

तू कबीर है, तू फ़क़ीर है
तेरा इकतारा बोलेगा
तुनक तुनक तुन तुनक तुनक तन
सब मीठा खारा बोलेगा

इसे न इसका ‘नहीं’ चाहिए
और न उसकी ‘हाँ’ से मतलब
कोई भी तय समय नहीं है
यह बोलेगा ही बिन अब तो

सूरज बादल से बतियाता
गाता बंजारा बोलेगा

जो होना है पता नहीं है
किंतु हुआ जो उसका लेखा
खुली आँख से मुक्त हृदय से
सब बोलेगा जो जो देखा

कान लगा कर सुनना फिर यह
मस्त न दोबारा बोलेगा

नही पराया और न अपना
तने तार का मनमौजी मन
छुअन किंतु नाज़ुक सी कोई
रख सकती है अनगिन थिरकन

इसका अर्थ नहीं आवारा
बस प्यारा प्यारा बोलेगा
तुनक तुनक तुन तुनक तुनक तुन
सब मीठा खारा बोलेगा

******************



पाँच- चल कमली

चल कमली
चल चल बतियाएँ

खटपाटी ले
पड़ी हुई क्यों
किस पर अकड़ी
कितने दिन की
भूख बता
किस किस से झगड़ी

वही ढाक के तीन पात होंगे
अब हम भी
क्या समझाएँ

तेरी ही हम सुने
कब तलक,
और सुने क्यों ?
गाँठम गाँठ
भरी बस तेरी
रुई धुने क्यों

हममें भी है
तुझ सी ही कोई कमली
आ जा मिलवाएँ

तू बीड़ी पी,
गाली दे
ग़ुस्सा कर ले कम
मुँह में जो भी
आए कह ले
अटरम सटरम

लाभ तुझे अनपढ़ होने के
अरी सयानी
क्या बतलाएँ

******************

0 Total Review

Leave Your Review Here

रचनाकार परिचय

सीमा अग्रवाल

ईमेल : thinkpositive811@gmail.com

निवास : मुंबई (महाराष्ट्र)

जन्मतिथि- 8 अक्टूबर 1962 
जन्मस्थान- कानपुर(उत्तर प्रदेश)
लेखन विधा- नवगीत,ग़ज़ल,कहानी,आलेख 
शिक्षा- संगीत से स्नातक, मनोविज्ञान से परास्नातक, पुस्तकालय विज्ञान में डिप्लोमा
संप्रति-आकाशवाणी कानपुर में कई वर्ष तक आकस्मिक उद्घोषिका, स्वतंत्र लेखन
प्रकाशन- खुशबू सीली गलियों की, नदी ने बतकही की पत्थरों से, आहटों के अर्थ ( एकल गीत संग्रह)
अनेक साझा संकलन, प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशन, मॉरिशस गाँधी विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित वसंत एवं रिमझिम पत्रिकाओं में रचनाओं का निरंतर प्रकाशन, “साहित्य रागिनी, अनुभूति, शब्दाक्षर, कविता कोश आदि इ-पत्रिकाओं और साहित्यिक कोशों में उपस्थिति।
सम्मान- विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित
संपर्क- मुंबई (महाराष्ट्र)
मोबाईल- 9810290517