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सीमा सिंह की लघुकथाएँ

सीमा सिंह की लघुकथाएँ

चाय की ट्रे हाथ में लिए आती उपासना ने अपने सास-ससुर की बातचीत अनजाने में सुन ली थी। “माँ, आपको मेरा इस घर में रहना अधिक कष्ट देता है या मेरे कपड़े?”

एक- रंग

“तू जानता भी है, छोटे, कि तू क्या बोल रहा है? ऐसा अनर्थ हमारे कुल में ना कभी हुआ, ना होगा। दद्दा आप समझाइए इसे।”

किसी गहरी नदी की सी गंभीरता लिये ही देखा था उन्हें बचपन से। मुँह अँधेरे उठकर घर के कामों में जुटी, हर आवाज़ पर दौड़ती, सबकी जरूरत का ख्याल करती, सफ़ेद लिबास में लिपटी शांता बुआ। चार भाई और भाभियों, और उनके हम सब बच्चे। सबकी आदतों से परिचित बुआ की आवाज़ ,तो कभी-कभी ही सुनाई देती। इतनी शांत बुआ झगड़े की वज़ह भी हो सकती हैं, विश्वास ही ना हुआ था। पर बड़े चाचा की आवाजों से पूरा दालान गूँज रहा था।

“बहन हम सबकी नौकरानी बनकर रह गई ,उसमे अनर्थ नहीं है? दुबारा घर बसने में अनर्थ हो जाएगा?” ये छोटे चाचा का स्वर था।

“आप एक बार सोचिए तो सही, दद्दा,” अब तक चुप खड़े मँझले चाचा भी छोटे चाचा के समर्थन में उतर आए थे।

पिताजी ने थोड़ा समय माँगा था सोचने के लिए। इस बीच घर की स्त्रियों ने भी मौन आहुति डाल दी थी छोटे चाचा के यज्ञ में।

घर में उत्सव मन उठा। सफ़ेद लिबास उतार, लाल जोड़े में लिपटी शांता बुआ की आँखों में जीवन की ज्योति जल उठी थी।

तब पहली बार जाना नारी जीवन में लाल और सफ़ेद रंग का फ़र्क।



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दो- महकती बगिया

खन्ना जी क्यारी में बैठे खुरपी चला रह थे, और बीच-बीच में सर उठा कर देखते भी जा रहे थे कि कोई आ तो नहीं रहा है। ऐसे तो निश्चिन्त। थे पत्नी नहा कर पूजाघर में गई थी तभी बाहर आए थे। मगर पत्नियों का क्या भरोसा? नज़र डालने चली आए कि सब ठीक तो है।

दरअसल, अभी दो माह पूर्व ही खन्ना जी की शल्य-चिकित्सा हुई थी, ह्रदय की। धमनियों में कुछ अवरोध जैसा हो गया था। चिकित्सीय सलाह के अनुसार उन्हें पूर्ण विश्राम करना चाहिए था। परन्तु खन्ना जी को अब बिस्तर पर टिक पाना असह्य हो गया था,, सो टहलने के बहाने बाहर आ, अपनी बागबानी में जुट गए थे। चुपचाप, चोरी-चोरी।

पत्नी पर नज़र रखते रहे पर बेटी को कैसे भूल गए जो अचानक प्रकट हो गई? चिल्लाकर माँ को पुकारने वाली ही थी कि खन्ना जी ने लपक कर उसका मुँह बंद कर आवाज़ वहीं रोक दी।

“क्या कर रही है? पिटवाएगी क्या?”

बेटी के आश्वस्त करने पर ही उसका मुँह छोड़ा। “छिः पापा, आपने मेरे मुँह में मिट्टी भर दी!” बिटिया ने नकली गुस्सा दिखाते हुए अपना मुँह झाड़ा।

“और तू! तू क्या कर रही थी? माँ को बुलाने वाली थी ना?” खन्ना जी भी लड़ गए।
“आप माँ से डरते हैं ये तो मैं जानती थी , मगर इतना डरते हो ,ये आज पता चला!” बिटिया खिलखिला रही थी।

आवाजें सुन श्रीमती जी भी बाहर आ गई। “क्या हो रहा है यहाँ, भई?”

पिता पुत्री ने समवेत स्वर में ठहाका लगाया। क्यारी के साथ-साथ खन्ना जी की पूरी बगिया महक उठी थी।



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तीन- तोहफ़ा 

सुबह से घर की सफाई और किचन में जुटी नीना चौंक गई, “बाप रे! अतुल के आने सिर्फ दो घंटे बचे हैं और मैं भूत जैसी घूम रही हूँ! माँ, आप ज़रा गैस बंद कर देना, प्लीज, मैं नहाने जा रही हूँ!”

अतुल की पसंद की पीली साड़ी में तैयार होकर आई तो माँ अर्थ पूर्ण ढंग से मुस्कुरा रही थी। “वाह, जी! खाने से लेकर सजावट तक सब अतुल का मनपसंद, अब तो साड़ी भी,” माँ ने कहा तो नीना शरमा गई।

“क्या बात हुई थी वैसे तेरी?” माँ ने उत्सुकता से पूछा।

“आवाज़ कट रही थी, माँ, अतुल की। वो अमेरिका से पिछले ही सप्ताह लौटा है। मुझसे मिलने तो सीधे यहीं आना चाहता, था मगर माता-पिता सबसे पहलें हैं। तो अब आ रहा है। उसकी माँ को अब शादी की बहुत जल्दी है!”

शादी के नाम पर नीना की रंगत और गुलाबी हो गई। माँ नें दुलार से नीना के सिर पर हाथ फिराते हुए कहा, “बेटा तूने बहुत तपस्या की। पांच साल बहुत होते हैं।”

“दीदी आपके लिए तो गिफ्ट-शिफ्ट भी आ रहें होगे ना?” छोटे भाई ने बहन को छेड़ते हुए कहा।

“वो खुद आ गया वापस, इस से बड़ा क्या तोहफा होगा?” माँ ने कहा।

तभी बाहर घंटी बजी नीना ने दौड़ कर दरवाजा खोला। हाँ ये अतुल ही था, हाथ में बड़ा सा पैकिट पकड़े।

“अरे! रुक क्यों गए? अंदर आओ ना!”

“नहीं, बहुत जल्दी में हूँ! ये सारे बाँटने हैं, फिर कभी जरूर आऊँगा। अभी ये पकड़ो; सबको आना है, बहाना नही चलेगा!”

नीना को कार्ड थमा।कर चला। वापस मुड़कर आँख दबाते हुए कहा, “गज़ब लग रही हो! अब तो तुम भी शादी कर ही डालो…”



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चार- पहचान

“इकलौते पुत्र के शव पर आँसू गिराने से भी बड़ा दुःख होता है उसकी पत्नी को सफेद लिबास में देखना। जो हर दिन याद दिलाता है कि हमारा बेटा इस संसार में नहीं है।”

शहीद कैप्टन अभिनव के पिता का दर्द बोल बन बह निकला।

“अभी इसकी उम्र ही क्या है जो जिद करके बैठी है कि फिर से शादी नहीं करेगी?”

अभिनव की माँ ने कहा।

चाय की ट्रे हाथ में लिए आती उपासना ने अपने सास-ससुर की बातचीत अनजाने में सुन ली थी। “माँ, आपको मेरा इस घर में रहना अधिक कष्ट देता है या मेरे कपड़े?”

बिना लाग-लपेट के प्रश्न माँ अचकचा गई।

"सारी उम्र पड़ी है तेरे आगे बेटा!आज हम हैं कल नहीं होंगे तो जिंदगी मुश्किल हो जाएगी।"

माँ ने अपने मन का दर्द कहा।

" जाने वाला चला गया बेटे! कब तक उसकी यादों को खुद से लपेटे रहोगी?"

पिता ने सफेद वस्त्रों की ओर इशारा करते हुए कहा।

“डैडी जी, ये सफेद लिबास मुझे हर पल अहसास कराता है कि मैं कोई आम औरत नहीं, उस इंसान की पत्नी हूँ ,जिसने देश के लिए प्राण दे दिए। ये मेरी पहचान है

मैं इसे नहीं बदलना चाहती।”


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रचनाकार परिचय

सीमा सिंह

ईमेल : libra.singhseema@gmail.com

निवास : ग्रेटर नोएडा (उत्तर प्रदेश)

जन्मतिथि- 30 नवम्बर 1973 
जन्मस्थान- बदायूँ (उत्तर प्रदेश)
लेखन विधा- लघुकथा एवं कहानी
शिक्षा- स्नातकोत्तर – (हिंदी साहित्य, मनोविज्ञान।) 
संप्रति- महासचिव,शक्ति ब्रिगेड सामाजिक एवम् साहित्यिक संस्था, सदस्य, सम्पादक मंडल, लघुकथा कलश (अर्धवार्षिक पत्रिका) एवं स्वतंत्र लेखन 
प्रकाशन- • पड़ाव और पड़ताल खण्ड-28 (छह नवोदिताओं की छियासठ कथाएँ), लघुकथा-अनवरत संकलन (साझा संकलन), नई सदी की धमक (साझा संकलन), स्त्री-पुरुष सम्बन्धी लघुकथाएँ (साझा संकलन), उद्गार (सांझा संकलन) सहित चालीस से अधिक साझा संकलनों में सम्मिलित।
• लघुकथा कलश पत्रिका, शोध-दिशा पत्रिका, दृष्टि पत्रिका, साहित्य अमृत पत्रिका, मृगमरीचिका पत्रिका, चेतना पत्रिका, मरु गुलशन के साथ ही पंजाबी पत्रिका गुसाइयाँ में अनुवाद सहित विभिन्न पत्रिकाओं में। • दैनिक जागरण, दैनिक ट्रिब्यून, राजस्थान पत्रिका, हिंदुस्तान,अमर उजाला, महानगर मेल, लोकजंग सांध्य दैनिक सहित विभिन्न समाचार पत्रों में। • yourstoryclub.com, openbooksonline.com, laghukatha.com, pratilipi.com वेबसाईट, तथा सेतु (Pittsburgh), हस्ताक्षर, अटूट बंधन सहित कई अन्य वेब पत्रिकाओं में
प्रसारण- बोल हरियाणा, रेडियो पर रवि यादव द्वारा लघुकथाओं का पाठ।
सम्मान/ पुरस्कार- कलश लघुकथा गौरव सम्मान - 2017
ग्वालियर साहित्य एवं कला परिषद द्वारा - महादेवी वर्मा सम्मान - 2017 आशा किरण समृद्धि फाउंडेशन द्वारा - शिक्षा गौरव सम्मान - 2017
रोटरी क्लब इलीट द्वारा - हिंदी भाषा सेवा सम्मान - 2018
विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ द्वारा - विद्या वाचस्पति सारस्वत सम्मान - 2018 रोटरी क्लब कानपुर इलीट द्वारा - वीमेन अचीवर सम्मान - 2019भारत उत्थान न्यास सम्मान - 2019
पुरस्कार: प्रतिलिपि कथा सम्मान प्रतियोगिता - प्रथम पुरस्कार - 2017
साहित्य सृजन संवाद कहानी प्रतियोगिता - विशिष्ट कहानी पुरस्कार - 2017
सेतु लघुकथा प्रतियोगिता - प्रथम पुरस्कार - 2018
संपर्क- रॉयल नेस्ट टेक ज़ोन -iv, ग्रेटर नोएडा गौतम बुद्ध नगर,(उत्तर प्रदेश)-201306
मोबाईल- 8948619547 / 7303311942