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शादाब आलम की बाल कविताएँ

शादाब आलम की बाल कविताएँ

बिल्ली है फुलवारी में
फूल सभी दुश्वारी में।

एक- एक गिलहरी मस्तीखोर

ना थकती ना होती बोर
एक गिलहरी मस्तीखोर।
उछल-कूदकर थोड़ी देर
चढ़ी पेड़ पर खाने बेर
हुआ पत्तियों का जब शोर
बंदर लपका उसकी ओर
पीछे वो खिसकी चुपचाप
लिया इरादा उसने भाँप
फौरन मारी एक छलांग
तो बंदर की पिछली टाँग
आई उसके दोनों हाथ
डाल समझकर उसके साथ
झूली खूब लगाके ज़ोर
एक गिलहरी मस्तीखोर।

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दो- चार हाथ जो होते

चार हाथ जो होते सबके तो? तो?

गंदे हाथों को धोने में, पानी नल का ख़ूब बहाते।
दो मिनटों की जगह, फालतू चार मिनट का समय गँवाते।
थक जाया करते हाथों को धो,धो !
चार हाथ जो होते सबके तो? तो?

ज़्यादा कपड़े, पैसे लगतें, सिलवाने में नई कमीज़ें।
हाथ बनातें और बिगाड़ा करते हर दिन ज़्यादा चीजें।
कंधे झुक जाते हाथों को ढो, ढो!
चार हाथ जो होते सबके तो? तो?

ज़्यादा चलतें, घूँसे, लाठी, पत्थर, बंदूकें, तलवारें।
ज़्यादा बहते आँसू, आतीं ज़्यादा चोटें, चीख़-पुकारें।
अच्छा है हमने पाए बस दो!दो!
चार हाथ जो होते सबके तो? तो?

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तीन- फुलवारी में बिल्ली

बिल्ली है फुलवारी में
फूल सभी दुश्वारी में।

आँखें चमकीं बड़ी–बड़ी
लाल फूल पर लपक पड़ी।

तभी एक तितली आई
बोली 'ओ बिल्ली ताई

इसमें मेरी जान बसी
बिल्ली सुनकर जरा हँसी।

फिर वो बोली 'चल बहना
मान लिया तेरा कहना

लाल फूल मैं छोड़ूँगी
पीला वाला तोड़ूँगी'

भौंरा था मौजूद वहीं
बोला दीदी नहीं! नहीं!

मेरा यही सहारा है
मुझे बहुत यह प्यारा है।

भौंरा रोया गुन-गुन गुन
बिल्ली बोली भैय्ये सुन

बात मान ली तेरी चल!
यहाँ रुकूँगी मैं कुछ पल

फुलवारी में घूमूँगी
फूलों को बस सूँघूँगी।

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चार- पका पपीता

पका पपीता
लाया चीता
खुशबू पाकर
बंदर आकर
बोला काटो
आधा बाँटो
चीता बोला
इतना भोला
मुझे समझ ना
देख, उलझ ना
बंदर डपटा
उस पर झपटा
लिए पपीता
भागा चीता
ज़िद्दी बंदर
उठकर, तनकर
होके चौड़ा
पीछे दौड़ा

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पाँच- झू
लेलाल

झूले से डरते हैं बेहद झूलेलाल

मगर झूलने में दें उनकी लोग मिसाल।

कंधे तक हैं लंबे-लंबे उनके बाल
चलें झूलते हुए बड़ी मस्तानी चाल।

सुबह पाँच बजते ही हो जाते तैयार
झूल-झूल कर पढ़ डालें पूरा अखबार।

महफ़िल में तो सबका दिल लेते हैं जीत
झुला-झुला सिर को गाते मनचाहे गीत।

कभी-कभी दफ़्तर में वो कर बैठें भूल
आँख झपकती, कुर्सी पे ही जाते झूल।

अगर झूलने पर उनको कोई दे टोक
ग़ुस्सा होकर चिढ़न भरी नज़रें दें भोंक।

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रचनाकार परिचय

शादाब आलम

ईमेल : shadab.alam60@gmail.com

निवास : लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

जन्मतिथि- 10 जुलाई 1988
जन्मस्थान- अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश)

शिक्षा- परास्नातक
विधाएँ- बालसाहित्य की लगभग सभी विधाओं में लेखन, मुख्य रूप से बाल कविताओं एवं बाल गीतों में लेखन।
प्रकाशन- वर्ष 2002 से देश की लगभग सभी मुख्य पत्र-पत्रिकाओं में अनवरत प्रकाशन।
सम्मान एवं उपलब्धियाँ-
1-उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा वर्ष 2015 का उमाकान्त मालवीय युवा सम्मान
2-भारतीय बाल कल्याण संस्थान, कानपुर द्वारा सम्मानित
3-टेक महिंद्रा द्वारा 'अमेजिंग टैलेंट अवार्ड'।
4-एन.सी.आर.टी. द्वारा कक्षा 2 के बच्चों के लिए तैयार की गई पुस्तक 'गणित है मज़ेदार' में पाँच कविताएँ शामिल।
5- साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित 'प्रतिनिधि बाल कविता संचयन' पुस्तक में 5 कविताएँ शामिल
6- बच्चों के पाठ्यक्रम में कविताएं
6- राष्ट्रीय स्तर की कई कार्यशालाओं में प्रतिभाग
पुस्तक - हँसी का चूरन (बालकाव्य संग्रह) लोकोदय प्रकाशन से प्रकाशित
संपर्क– प्लॉट नंबर 18, शेरवानी नगर, एम.टी.नेशनल स्कूल के पास, लखनऊ–226020
मोबाइल- 09899261552