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शेफालिका झा की लघुकथाएँ

शेफालिका झा की लघुकथाएँ

अत्यंत संवेदनशील लेखनी की धनी शेफालिका झा की लघुकथाएँ पढ़िए। 

एक- नीयत

"ठहरो"

इस कड़कती हुई आवाज को सुनते ही अक्षत के मन की उड़ान  और मोटरसाइकिल की गति दोनों को ब्रेक लग गए।

बाँध किनारे पीपल  की ओट से दो साये निकल आये।

एक ने रिवाल्वर कनपटी से सटाया और दूसरे ने तीव्रता से उसकी सभी जेबें खाली कर ली।

कमेटी के तमाम पैसों समेत उस निर्दयी ने उसकी  नन्हीं परी की पायल भी निकाल ली । जिसके कारण बाजार से वापसी में इतनी देर हुई थी ।

जान की खैर मनाते हुए अक्षत ने ज्यों ही मोटरसाइकिल स्टार्ट की , एक फूला हुआ पर्स रोशनी में नहा गया। जो हड़बड़ी के कारण लुटेरों की जेब से गिर गया था।

उसने हार्न देकर पुकारा,

"ओ भाई साहब...आपका पर्स गिर गया।"

 लुटेरा हैरत में पड़ गया " मैंने तुम्हारा सब धन लूट लिया फिर भी? गजब आदमी हो।"

अक्षत मुस्कुरा उठा “कोई गजब नहीं हूँ। सब कुछ लूटना तुम्हारे बस का नहीं... जो तुम लूट सकते थे लूट लिए , लेकिन और भी कई अनमोल चीजें हैं जिन्हें हम खुद बचा सकते हैं। मैं वही बचा रहा हूँ।”

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दो- उम्मीद

"बेटा प्रणव! उठो तो, देखो सात बजने को हैं और आज तुझे वापस हॉस्टल भी जाना है।" अर्पिता ने बेटे प्रणव को जगाते हुए कहा।

"ऊंहुऊऊऊ.. मम्मा... कुछ देर और सोने दो न प्लीज़! होस्टल जाने पर तो फिर वही बोरिंग रूटीन" प्रणव ने कहा। इसके साथ ही वह खिसक कर अर्पिता के पास आ गया। अर्पिता को लगा उसके अंदर कुछ दरक रहा है।

‘सच ही तो कहता है मेरा बच्चा इसका बचपन मेरी नौकरी की भेंट चढ़ रहा है और मैं असहाय हूँ।’ अर्पिता की आँखों के कोर में नमी तैर गई।

वह कुछ नरम होते हुए बिछावन पर बैठ गई।  बेटे का सिर अपनी गोद में लेके उसके बालों से खेलते हुए बोली "बेटा, देख तो ले एक बार। तेरे सामानों की पैकिंग कर दी है मैंने। कुछ छूट तो नहीं रहा।

फ्रूट, ड्राई फ्रूट, रबड़, कटर, पेंसिल सब कुछ रख दिये हैं। तुम्हें बोर्नविटा चाहिए था न? वो भी पापा ला दिए। देख लो, कुछ और भी चाहिए तो.."

बेटा अपनी माँ की गोद में चुपचाप लेटा रहा।

"प्रणव....!मैं पूछ रही तुमसे कुछ और भी चाहिए क्या?" न चाहते हुए भी अर्पिता का स्वर तेज़ हो गया।

प्रणव  अपनी अधखुली ऑंखें बंद करते हुए बोला, "कुछ नहीं चाहिए मुझे,मुझे तो बस…मेरी मम्मा चाहिये" और प्रणव की बन्द आँखों के कोर से दो मोती लुढ़ककर  अर्पिता के आँचल में समा गए।

अर्पिता ने अपने आँसू पीते हुए कहा,“बेटा उठो... माँ के आँचल तले ही सोया रहेगा तो बड़ा आदमी कैसे बनेगा!”

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रचनाकार परिचय

शेफालिका झा

ईमेल : shefalikajha82@gmail.com

निवास : समस्तीपुर (बिहार)

जन्मतिथि- 11 नवंबर 1985
जन्मस्थान- समस्तीपुर (बिहार )
लेखन विधा- कविता,कहानी, संस्मरण,लघुकथा, गीत, ग़जल, छंद इत्यादि।
शिक्षा- स्नातकोत्तर 
सम्प्रति- अध्यापिका (बिहार सरकार ) के रूप में कार्यरत।
प्रकाशन- काव्य अश्व, शब्द -समिधा, कॉफी हॉउस, तिर्भुक्ति, तीतिक्षा,(सभी साझा संकलन ) देसिल बयना, ज्ञान सबेरा, समग्र तूलिका..समय -संकेत, माही संदेश त्रैमासिक पत्रिका समेत कई साप्ताहिक और दैनिक पत्र - पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन।
सम्मान- "गीत- प्रहरी सम्मान", साहित्य श्री सम्मान, अहिल्या देवी काव्य गौरव सम्मान, सर्वश्रेष्ठ रचनाकार सम्मान, मुक्तकमणि सम्मान, उड़ान -रत्न सम्मान,मिथिला भूषण सम्मान इत्यादि।
प्रसारण- आकाशवाणी दरभंगा से कविताओं का प्रसारण।
विशेष- महामहिम पूर्व राज्यपाल श्री फागू चौहान ( बिहार )द्वारा राजभवन, पटना में सम्मानित।
संपर्क- एरौत, रोसड़ा, समस्तीपुर, बिहार (848210)
मोबाइल-8294690359