Ira
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। दिसंबर 2024 के अंक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।

शिव मोहन यादव की बालकथा- चोर की खोज

शिव मोहन यादव की बालकथा- चोर की खोज

अगले दिन फिर दरबार लगा। चोरी वाली बात उन्होंने सबके सामने रखी। भालू, बंदर और लोमड़ी को भी बुलाया गया। मंत्री हाथी दादा बोले-‘‘प्यारे बंधुओं! हमारे प्यारे जंगल में कोई चोर घुस आया है, जो खाने-पीने की चीजों पर हाथ साफ करता है। हम सब लोगों को सावधानी से अपने भोजन की निगरानी करनी होगी और पता लगाना होगा कि ये चोर है कौन?‘‘

सुंदरवन में सभी जानवर मिलकर रहते थे। शेर सिंह राजा थे, मन्त्री थे हाथी दादा। राजा शेर सिंह बहुत न्यायप्रिय थे। उनके राज में कोई दुखी नहीं था। जंगल के सभी जानवर उनसे खूब प्रेम करते थे। जंगल की किसी समस्या का वे तत्काल समाधान खोज लेते थे।
एक दिन सुबह-सुबह भालू दादा शेर सिंह के दरबाज में दौड़े आये और बोले-

‘‘महाराज! महाराज गजब हो गया।‘‘

भरे दरबार में सब भालू दादा को देखने लगे। शेर सिंह ने पूछा-‘‘क्या हुआ? बताओ तो।‘‘
‘‘महाराज, मेरे घर में चोरी हो गयी।‘‘
‘‘चोरी! मेरे राज में चोरी। क्या चोरी हुआ?‘‘
‘‘महाराज, मैंने गागर भरकर दही रखा था, सोचा था ऐसी गरमी में लस्सी बनाकर पियेंगे और अपने मित्रों को पिलायेंगे। लेकिन रात में कोई पूरा घड़ा खाली कर गया।‘‘-भालू ने बताया।
‘‘ओहो! हाहाहा। हमने सोचा कोई बड़ी चोरी हो गयी। अरे तुम बेवजह परेशान हो रहे हो। खाने-पीने की चीजों के चोरी होने की शिकायत लेकर आते हो। जाओ, अपने दही की रखवाली किया करो।‘‘-कहते हुए शेर सिंह ने उसे टाल दिया। भालू दादा मुँह लटकाये चले गये।
अगले दिन सुबह जैसे ही दरबार लगा, बंदर मामा दौड़े चले आये-‘‘महाराज! महाराज चोरी हो गई।‘‘
‘‘अरे क्या चोरी हो गया?‘‘-मन्त्री हाथी दादा ने पूछा।
‘‘महाराज! हमारे यहां गरमागरम दूध रखा था। सोच रहे थे बाद में पियेंगे, लेकिन कोई आकर पहले ही गटक गया।‘‘-बंदर मामा ने बताया।
‘‘अरे बंदरू, तुम कैसे हो! खाने-पीने की चीजों की शिकायतें लेकर आते हो। इसी प्रकार कल भालू भी अपनी शिकायत लाया था। तुम खुद अपने भोजन की रखवाली क्यों नहीं करते! अब तुम ही बताओ, मैं तो तुम्हारे घर रखवाली करने तो जाऊँगा नहीं। अब जाओ, और दूध-दही को संभाल के रखो।‘‘

बंदर मामा ने शेर सिंह की घुड़की सुनी तो चुपचाप पूँछ दबाकर चले आये। सोच रहे थे, फालतू में चले गये महाराज के पास। इस छोटी चोरी के लिए उनके पास नहीं जाना चाहिए था।‘
अगले दिन दरबार चल रहा था। इस बार कुछ अनोखी घटना हो गई। लोमड़ी मौसी दौड़ी आईं-
‘‘महाराज! हमारे घर में चोरी हो गई।‘‘

‘‘फिर चोरी! क्या चोरी हो गया?‘‘
‘‘महाराज! घर में मक्खन का पतीला भरा रखा था। आज देखा तो पतीले का पूरा मक्खन साफ दिखा।‘‘
‘‘ओहो। तुम लोगों के खाने-पीने की चोरियों से तो मैं तंग आ गया हूँ। पहले भालू का दही, फिर बंदरू का दूध अब तुम्हारा मक्खन। तुम लोग खुद खयाल नहीं रखते और जब कोई भूखा खा जाता है, तो दौड़े चले आते हो दरबार में। अरे भई! कोई कोई धन-दौलत की चोरी हो तो उसकी खोजबीन कराई जाये। अब इन चीजों के लिए तो कोई पेट खोलकर भी दिखाये, तब भी कुछ नहीं मिलेगा। अच्छा, तुम ही बताओ मैं क्या करूँ?‘‘-शेर सिंह ने जोर देकर कहा।
‘‘महाराज, आप सही कह रहे हैं। मक्खन तोे हजम हो गया होगा।‘‘-

इतना कहकर लोमड़ी भी चली गई। महाराज ने तो इस बात को हल्के में लिया, लेकिन मन्त्री हाथी दादा बहुत देर तक इन्हीं चोरियों के बारे में सोचते रहे। थोड़ी देर में दरबार खतम हुआ तो शेर सिंह ने मंत्री जी को बुलाया और कहा-
‘‘मन्त्री जी, आज आप हमारे साथ भोजन करने चलिए। आज आप की पसंद की खीर बनाई गई है।‘‘

मन्त्री जी को तो ऐसे आमंत्रण की प्रतीक्षा ही रहती थी। उन्हें खीर बहुत पसंद थी, इसलिए उन्होंने तुरंत दावत उड़ाने चल दिए। अंदर पहुँचकर दोनों ने हाथ पैर धुले और भोजन करने के लिए बैठ गये। महारानी शेरनी जब खीर लाने गईं तो बड़ी चिंतित। कभी वे कमरे में इधर जाएं, कभी उधर। महाराज ने जब उन्हें चिंतित देखा तो पूछा-
‘‘क्या बात है? अभी तक खीर क्यों नहीं परोसी गई?‘‘

महारानी कुछ नहीं बोलीं। महाराज के चिल्लाने पर बोलीं-‘‘क्षमा करें महाराज! खीर तो बची नहीं। उसे कोई और खा गया।‘‘
‘‘क्या!‘‘ अब तो महाराज सन्न रह गए। मानो उनके प्रिय भोजन की थाली किसी ने उनके हाथों से छीन ली हो। आज उन्हें पहली बार अहसास हुआ कि दूसरों को भी खाने की चोरी पर इसी तरह अफसोस होता होगा। वहीं, मंत्री दादा इन सब बातों की तह में जाने के लिए दिमाग खपा रहे थे। उनके दिमाग में भालू, बंदर और लोमड़ी की बातें भी घूम रही थीं। मंत्री जी उठे और बोले-‘‘महाराज! माफ करें, आज कुछ काम भी हैं, हम कल खीर की दावत करेंगे।‘‘ इतना कहकर हाथी दादा चले आये।
राजा शेर सिंह ने दूसरी चीजें खाईं और कमरे में जाकर लेट गये । बहुत देर सोचते रहे चोरी के बारे में, उन्हें नींद नहीं आई।
अगले दिन फिर दरबार लगा। चोरी वाली बात उन्होंने सबके सामने रखी। भालू, बंदर और लोमड़ी को भी बुलाया गया। मंत्री हाथी दादा बोले-‘‘प्यारे बंधुओं! हमारे प्यारे जंगल में कोई चोर घुस आया है, जो खाने-पीने की चीजों पर हाथ साफ करता है। हम सब लोगों को सावधानी से अपने भोजन की निगरानी करनी होगी और पता लगाना होगा कि ये चोर है कौन?‘‘
हाथी दादा की बात सभी ने मान ली और सब अपने-अपने घर चले गये। रात बीती, लेकिन फिर वही हुआ। इस बार चूहे चाचा के मोदक गायब हो गये। लेकिन लोमड़ मौसी ने आशंका जताई और बोली-‘‘महाराज! हमें एक जानवर पर शक है। आज्ञा हो तो कहूँ?‘‘
‘‘आज्ञा है।‘‘
‘‘महाराज मुझे बिल्लू बिलौटे पर शक है। रात को मुझे ऐसा लगा, जैसे कोई कोई चूहे चाचा के घर से पूँछ दाबकर भाग रहा हो। आप उसे बुलाकर पूछ लीजिए।‘‘
तत्काल बिल्लू बिलौटे को बुलाया गया, लेकिन उसने साफ इन्कार कर दिया। बिना सुबूत के उसे पकड़ा नहीं जा सका। तभी मंत्री हाथी दादा बोले-‘‘अगर बिल्लू चोर है, तो कल ही पकड़ लिया जाएगा।‘‘

यह बात सुनकर शेर सिंह प्रसन्न हुए। शाम को मंत्री ने एक छोटे मुँह का गागर मंगाया। उसमें दही-मलाई भर दी और बर्तन को मुख्य चैराहे पर रख दिया गया। सभी लोग अपने घरों में सोने चले गये। रात हुई। बिल्लू बिलौटा उसी रास्ते से भोजन की तलाश में निकला। महक पाकर वह बर्तन के पास गया। छोटे मोहरे के कारण बिल्लू का मुँह उसके अंदर नहीं जा रहा था। उसने आड़ा तिरछा मुँह करके जोर लगाया और वह सफल हो गया। अब उसका मुँह बर्तन में फँस गया। अब वह बहुत परेशान था। वह चिल्लाने लगा-
‘‘म्यांव-म्यांव! बचांव-बचांव!‘‘

उसकी चीख-पुकार सुनकर आसपास के जानवर आ गये। भालू, बंदर और लोमड़ी भी आ गये। राजा और मंत्री को भी बुलाया गया। चोर को पकड़कर सब खुश थे। हँस रहे थे कि चोर बिल्लू बिलौटा पकड़ा गया।
अगले दिन दरबार में बिल्लू को चोरी के लिये दण्डित किया गया और चोर पकड़ाने वाले मंत्री हाथी दादा को सम्मानित किया गया।

******************

(लेखक एनसीईआरटी, नई दिल्ली में सहायक संपादक हैं।)

0 Total Review

Leave Your Review Here

रचनाकार परिचय

शिव मोहन यादव

ईमेल :

निवास : कानपुर (उत्तर प्रदेश)

जन्मतिथि- 01 मई 1990
जन्म स्थान- कानपुर देहात, उत्तर प्रदेश, भारत
पिता/ माता का नाम- श्री सूरज सिंह एवं श्रीमती कुषमा देवी
शिक्षा- एम.ए. (हिंदी साहित्य), नेट/जेआरएफ, एम.ए. (जनसंचार एवं पत्रकारिता), पी-एच.डी. (जारी)
संप्रति- बाल साहित्य एवं पत्रकारिता।
लेखन विधा- कहानी, कविता, नाटक, उपन्यास।
पहली रचना का प्रकाशन- बालहंस में कहानी ‘ईमानदारी’ (वर्ष 2006)

प्रकाशित पुस्तकें-
लल्ला और बिट्टी (2018)
सिंहों के अवतार तुम्हीं हो (2020)
उड़ने वाली कार (2021)
जंगल में मस्ती (2022)
चुनिंदा बाल कविताएं (2023)
गन्ना (2023)

सम्मान / पुरस्कार-
उमाकांत मालवीय युवा बाल साहित्य सम्मान (उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान) - 2017
पंडित प्रताप नारायण मिश्र युवा साहित्यकार सम्मान -2018
बाल कृष्ण शर्मा नवीन युवा साहित्यकार सम्मान - 2018
अतुल माहेश्वरी साहित्यकार सम्मान -2019
राजनारायण चौधरी बाल साहित्य शिखर सम्मान -2022

अन्य उपलब्धियाँ- एससीईआरटी में शिक्षकों की राज्य स्तरीय कहानी सुनाओ प्रतियोगिता में ज्यूरी मेंबर।
एनसीपीसीआर में तीन बार अतिथि के रूप में आमंत्रित।
NBT में विशेषज्ञ के रूप में आमंत्रित।