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श्यामसुंदर निगम की व्यंग्य कविता

श्यामसुंदर निगम की व्यंग्य कविता

ग़रीब को धकियाता ग़रीब
अमीर से ऐंठता अमीर
ग़रीब से बिदकता अमीर
बचाने में लगा हर कोई
अपना-अपना मरा ज़मीर

जोखू की जेब में भी एक धेला है

बहुत बड़ा हो गया है
दूध का चट्टा
रामदयाल का भट्ठी में दहकते कंडे
खलबल-खलबल उबलता दूध
छोटे-से भी छोटे डिब्बे में नोआते हैं
जानवरों को
फेना से भी ज़्यादा फेना बनाते हैं
सारे नौकर इसी का तो खाते हैं।

अब
गोबर के लिए छोटा पड़ गया है रामलीला मैदान
हैरान रहता है पूरा मुहल्ला
किंतु
चुप
बिल्कुल चुप,
विशुद्ध हिंदुस्तानी पत्नी की तरह
अनुशासित खूँटे से बँधी चालीस भैंसें

बीस गायें
बूढ़े/ युवक/ बच्चे
बहन जीयें, मायें
और भी बहुत सारे लोग
जैसे बुढ़ापे को घेर लें एक साथ सारे रोग।

लिपिस्टिक के रंग से मैच करती
साड़ी, सैन्डिल, स्लीवलेस ब्लाउज़
गाउन में गुप्ताजी
सुथना सरकाता रमेशर टाल वाला
फूले गाल वाला दुखीलाल
सब के सब बेतरतीब
क़रीब से क़रीब

ग़रीब को धकियाता ग़रीब
अमीर से ऐंठता अमीर
ग़रीब से बिदकता अमीर
बचाने में लगा हर कोई
अपना-अपना मरा ज़मीर

रामदयाल नहीं है तो सब गरजते हैं
उसके आते ही सबके मुँह से फूल बरसते हैं
नमस्ते करते हैं समवेत स्वर में
पर रामदयाल अभी भी सनकता है
वैसा ही, जैसा तब
जब मैं
जाता था अठन्नी का दूध लाने
पहुँचता सबसे पहले
किंतु सबके बाद आता था
खाली गिलास हिलाता
रो-रोकर बताता कि दूध खतम हो गया।

आज भी रामदयाल आता है तो
तेज़ हो उठती है किन-किन खड़र-खड़र की आवाज़ें
फेने से लबालब बाल्टी से ज़्यादा वह उफनाता है
घुमाता है चारों और नज़र
पानी फेरता है सबके मंसूबों पर
बहुत दूर खड़ी गप्पियाती
अपने हसबैण्ड के दोस्त का स्वेटर बुनती
मिसेज ललिता
श्यामकली को बॉडीवेट बढ़ जाने के अवगुण/
घटाने के गुर बताती हैं
वह उन्हें ही डिस्टर्ब करता है
पूरे संज्ञान के साथ

चार लीटर,
ढाई लीटर,
गाय का आठ सौ,
दूसरा, तीसरा, चौथा, तीसवाँ,
मेरा भी नम्बर आता है
पर मुझसे पहले
जोखू
अलमूनियम की टूटी-पिचकी पतीली आगे बढ़ाता है
'दो रुपए का हमें दे दो।'

पर रामदयाल तो रामदयाल
जैसा तब
वैसा ही अब
उसकी अपनी हड़क
कड़क कर बोला- 'चुप बे!
अभी आया नहीं, लगा जान खाने
ये धंधे का बखत है या दान धर्म का?'
जोखू बक्सुओं से फँसी अपनी कमीज़ ठीक करने लगा

थोड़ा पीछे खिसका
दीवाल से सट गया
मारुति के रास्ते से हट गया
लोग घूरने लगे
ये भी दूध पियेगा?

रोज़मर्रा वाले ग्राहक घटे
बँधे कस्टमर भी निपटे
ठिठुरते
दाँत किटकिटाते जोखू पर दया आई
बोला, 'चल बे इधर!
बर्तन ला अपना, रख इधर तखत से अलग
कितने लीटर लेना है? जल्दी बता।'

जोखू पहले पैसे देता है
रामदयाल पतीली में कुछ डालता है
गुप्तदान की तरह।
जोखू कई बार हिलाता है, झाँकता है।
झाँकता है, हिलाता है।
रामदयाल के मुँह की ओर ताकता है
और रामदयाल
पतीली छीनकर बाल्टी में पलटने का उपक्रम करता है
झिड़कता है
ये ले अपने पैसे
हिला-हिलाकर देखना है तो कहीं और जा।

जोखू धूल, गोबर, भूसे में अपने सिक्के खो देता है
एक हाथ से जाँघिया ऊपर खिसकाता
गिड़गिड़ाता है
बापू को देना है
डॉक्टर जी ने बताया है, दवा दूध के साथ लेना है
वरना कल रिक्शा लेकर नहीं जा पायेंगे

अबे जाता है कि रसीद करूँ दो-चार
लंबरदार हो गया रामदयाल
और जोखू
ताबेदार की बीवी का अकेले का बेटा
शहीद हो गया वहीं तत्काल

रोज़ ही मिलता था
नंगे पैर भागता, उचकता, लंगड़ाता
मैं अपनी कार रोकता
वह हाँफता
दावा ठोकता
बाबू जी! आज आप हमसे पीछे आए हैं

पहले दूध हमें मिलेगा
मुटल्ली से भी पहले
जिस मुट्ठी में पैसे होते हैं
उसे हवा में उछालता है
बहुत हरामी है ये रामदयाल
पर आज तो हम पहले आए हैं
पहले नपवायेंगे
फेना भी हटवायेंगे
नहीं तो पूरी बाल्टी वहीं सड़क पर बहायेंगे
क्या कर लेगा? मारेगा?
खा लेंगे मार
पर दूध अपने नंबर पर लेंगे।

रामदयाल को देखते ही
अनुशासित होने लगती है भीड़
जो सबसे आगे खड़ा
अपने ज़िद फाँसे अड़ा
पैसे दिखाता
पतीली हिलाता

ऐ रामद्याल! दूध पहले हमें दो
दूसरा हाथ भी दिखाता है
खाडू की छड़ी लिए
दूध पहले में हमें दो
चौकआ हुए लोग
लगे बुदबुदाने
फुसफुसाने
किसका लड़का है?
बहुत बदतमीज है
सऊर न सलीक़ा है
ये भी कोई तरीक़ा है

जोखू बोला-
'झोपड़ी का बेटा है
हर रोज़ हर जगह
सुविधाओं के धक्के खाता है
पीछे रह जाता है
पर अब नहीं
ये देखो!
उसकी जेब में भी
एक धेला था
खीसें निपोरता रामदयाल
अपनी धुन में मस्त
चार लीटर, तीन लीटर में व्यस्त
सब कुछ हवा में उड़ाता है
और जोखू
खुल-खुल जाते बक्सुओं को बंद करता-
खाडू को टिकटिक घोड़ा बनाता
डेढ़ टाँग से ऊलता
दुलकी भरता
निकल जाता है

सबसे दूर
जैसे हथगोला संस्कृति के नवजवान
मोटर साइकिल सवार का
ऑल इंडिया टूर

लोग, जो पढ़े-लिखे-से हैं
जुगाली करते हैं
तरीक़े सुझाते हैं
हल निकालते हैं
खोट निकालते हैं
हर दूसरे, तीसरे व्यक्ति में
'स्वयं को छोड़कर'
जोखू को छोड़कर
रामदयाल को छोड़कर
यानी कि
क्रिया और प्रतिक्रिया के
बाहर की प्रक्रिया थी
बहस जारी थी
दूध मिल गया तो
बोले बहुत-बहुत शुक्रिया
रामदयाल जी
बहुत-बहुत शुक्रिया।

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रचनाकार परिचय

श्यामसुंदर निगम

ईमेल : shyamsunder1415@gmail.com

निवास : कानपुर (उत्तर प्रदेश)

जन्मतिथि-15 अगस्त, 1946
जन्मस्थान- बहरौली, कानपुर (देहात) उ.प्र.
लेखन विधा- कवि, कथाकार, समीक्षक, संपादक
शिक्षा- एम.ए., एलएल.बी.
सम्प्रति- भारतीय रिजर्व बैंक अधिकारी (2003 से सेवा-निवृत्त), स्वतंत्र लेखन, सक्रिय लेखन1985 से
प्रकाशन-
प्रकाशित कृतियाँ- खदबदाहट (कविता-संग्रह)/अनुकथन, पहरुए, भीतर  मोड़, इम्तिहान (कथा-संग्रह) /जंगल का तापमान,घाम-बाहर छाँव (समीक्षा)/कुछ उपमेय कुछ उपमान,
संपादन- पत्रकारिता प्रदीप 'प्रताप' (संपादन) / स्मृति मंजूषा,
'प्रार्थना', सफर-ए-हयात (लेखक डॉ. तिलक) का संकलन एवं संपादन...
निमित्त (साहित्यिक संवाद कि पत्रिका) स्थगित
सम्पर्क- 1415, 'पूर्णिमा', रतनलाल नगर, कानपुर- 208022 (उ.प्र.)
मोबाईल- 9415517469/7985320725