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सुधा ओम ढींगरा कि कहानी- एग्ज़िट

सुधा ओम ढींगरा कि कहानी- एग्ज़िट

''क्या बेहूदा बात कर रही हो, तुम भी जानती हो कि मेहता परिवार कितना ओछा है, कृत्रिमता अंग-अंग से छलकती है, बातें कितनी बनावटी करते हैं।''

कार के नैविगेटर की आवाज़ उभरती है ''टेक लेफ्ट ...''
सुधांशु ने स्टीयरिंग व्हील बाईं ओर घुमा दिया----

'' अजय मेहता से नफरत और नापसंद की बात नहीं है संपू , समस्या है उसकी डींगे....पूरी पार्टी में वह हाँकता है और अफसोस कि लोग उसे सुनतें हैं।''

''आज कल पार्टियों में मेहता दम्पति दिखाई नहीं देता, क्या बात है ?''
''उनका समाचार जानने की उत्सुकता क्यों ? तुम तो उन्हें पसन्द नहीं करते। सब लोग महसूस करते हैं कि पार्टियों में तुम उन्हें बर्दाश्त भी नहीं कर पाते।''
''कितनी बड़ी बात कह दी तुमने। ''

"सही नहीं क्या ?''
''सम्पदा , जब मैंने कभी कोई प्रतिक्रिया ही नहीं दी, तो लोग कैसे जान गए ! यह सब तुम्हारे मन की बातें हैं।''
''सुधांशु , मेहता दम्पति के पार्टी में प्रवेश करते ही, तुम्हारी भाव भंगिमाएँ बदलनी शुरू हो जाती हैं और जब तक वे पार्टी में रहते हैं, तुम उन्हें पूरी तरह से इग्नोर करते हो। एक कोने में गुप्ता जी, महेश जी, आनंद सेठ , सुहास भाई के साथ टोला बना कर बैठे रहते हो और फिर वहाँ से, बस घर वापिस आने के लिए ही उठते हो।''
''सम्पदा, इसका अर्थ यह तो नहीं हुआ कि मैं उन्हें बर्दाश्त नहीं करता या पसन्द नहीं करता। ''
''तो और क्या हुआ ?''
''क्या बेहूदा बात कर रही हो, तुम भी जानती हो कि मेहता परिवार कितना ओछा है, कृत्रिमता अंग-अंग से छलकती है, बातें कितनी बनावटी करते हैं।''

कार के नैविगेटर की आवाज़ उभरती है ''टेक लेफ्ट ...''
सुधांशु ने स्टीयरिंग व्हील बाईं ओर घुमा दिया----

'' अजय मेहता से नफरत और नापसंद की बात नहीं है संपू , समस्या है उसकी डींगे....पूरी पार्टी में वह हाँकता है और अफसोस कि लोग उसे सुनतें हैं।''
''क्या लोग कान बंद कर लें, सोच अपनी-अपनी, ख़याल अपने-अपने और पसंद अपनी -अपनी..आप इसे क्यों नहीं समझते ? सुधांशु, सब की रुचियाँ एक जैसी तो नहीं होतीं।''

''कब कहता हूँ कि एक जैसी होती हैं, पर पार्टी में अनर्गल बेवजह वार्तालाप सुनने तो मैं नहीं जाता, बौद्धिक न सही कोई तो महत्त्वपूर्ण बात हो। सार -गर्भित कुछ भी नहीं, मौलिकता बेचारी दूर खड़ी रोती है। गप्प के बिना बात ही शुरू नहीं करता अजय मेहता।''
''क्या मेहता परिवार का बड़ा घर, सच नहीं। बी.एम.डब्लू , मर्सीडीज़, लैक्सिस कारें झूठी हैं। बच्चे प्राइवेट स्कूल में पढ़ रहे हैं। साल में चार बार मंहगें स्थलों पर छुट्टियाँ बिताने जाते हैं । मिसिज़ सुंदरी मेहता गहने, कपड़ों से लदी रहती है, नित नई पार्टियाँ करना क्या गप्पे हैं?''

कार ५४० हाई वे पर सरपट दौड़ रही थी।
सुधांशु ने कार दाईं ओर की लेन में कर ली।पथ निर्धारित सड़क पर चार पंक्तियों में कारें ८० मील की रफ्तार से भाग रही थीं। दाईं ओर की लेन में सुधांशु ने क्रूज़ कंट्रोल में ६५ मील की रफ्तार सेट कर गाड़ी चलानी शुरू कर दी। दाईं लेन धीमी रफ्तार वालों व निर्धारित स्थान आने पर प्रस्थान करने वालों के लिए होती है।
''सम्पदा, अमेरिका में किस के पास यह सब नहीं है... पार्टियों में आते ही कहना---आज सिस्को के दस हज़ार शेयर ख़रीदे, पंद्रह डालॅर पर और एक घंटे बाद सोलह डालॅर पर बेच दिए, साठ मिनटों में मैंने दस हज़ार डालॅर बना लिए।''
''उसका धंधा है।''
''और क्या धंधे के बिना हैं। तुम भी क्या बात करती हो..कितने लोग अपने धंधे के झूले झुलाने पार्टियों में जाते हैं।''
''जो कमाएगा वही तो बात करेगा।''
''बाकी सब तो बेकार हैं।''

''मैंने कब कहा बेकार हैं।''
''डॉ. वाणी कितने शांत रहते हैं। पार्टियों में, मंदिर में, पब्लिक प्लेसिज़ पर, सबसे हँस कर बात करते हैं। उनका सान्निध्य सुख देता है। कभी उन्होंने अपनी रिसर्च की बात की ? उन्हें मिल कर कोई कह सकता है कि ब्रैस्ट कैंसर की दवाई ''टैक्साल'' खोजने वाला यही इंसान है, कितने विनम्र हैं।''
''सब तो डॉ. वाणी नहीं हो सकते।''
''यहाँ कितना कॉम्पिटिशन है और तुम भी जानती हो, मैं काम के तनाव से मुक्त होने पार्टियों में जाता हूँ, आनन्द और मनोरंजन के लिए। वहाँ देश- परिवार की बात हो जाती है, प्यार से सबसे मेलमिलाप हो जाता है वर्ना एक दूसरे की सूरत देखने को तरस जाएँ।''
''मैं कब कहती हूँ कि हम ऐश करने जाते हैं...यहाँ के जीवन में पार्टियाँ हमारी मजबूरी है..दूरी इतनी है कि चाह कर भी रोज़- रोज़ एक दूसरे से मिल नहीं सकतें...पार्टी तो आपस में मिलने का बहाना होती है...'' 

''एग्ज़ैकटली, यही तो मैं कह रहा था..पर तुम तो मेहता के लिए झंडा लेकर खड़ी हो जाती हो...''

'' सुधांशु, तुम मुझे .. ..?''

सम्पदा की बात बीच में ही रह गई...

तभी एक कार साथ की लेन से सुधांशु की बी.एम.डब्लू के आगे आ गई, उसे हाई वे छोड़ना था। सुधांशु ने कार गति को क्रूज़ कंट्रोल से हटा कर सामान्य में डाल दिया। कार की गति धीमी हो गई। पहली कार के एग्ज़िट लेते ही, सुधांशु फिर अपनी गति में आ गया, पर इस बार उसने कार को क्रूज़ कंट्रोल पर नहीं डाला। सुधांशु ने अपनी बात फिर शुरू कर दी......
''पार्टी में आते ही अजय वाईन का ग्लास पकड़ता है, दो चार पैग पीता है और शुरू हो जाता है---''आई.बी.एम में पैसा लगा दो।डेल आज कल ख़रीदा जा सकता है। दवाइयों की किसी भी कंपनी में पैसा न लगाओ । एफ.डी.ऐ ने सब की बजा दी है।वैसे मैंने आज ग्लैक्सो से बीस हज़ार डालर बनाए हैं।'' सम्पदा कुछ बोली नहीं....सुधांशु रोष में बोलता गया--
''ख़ुद तो दवाइयों की कंपनी के शेयरों से पैसा बनाता है और दूसरों को मना करता है।''

''वह अनुभवी है। पिछले दस सालों से यही काम कर रहा है। तभी तो मना करता है।इसीलिए तो नौकरी छोड़ दी।''
''छोड़ी नहीं, निकाला गया है नौकरी से। वहाँ भी काम के समय शेयर बाज़ारी करता था।भारत थोड़े ही है कि सरकारी नौकरी ले ली और उम्र भर की रोटियाँ लग गईं।''
''सुन्दरी तो कह रही थी कि स्टेट बजट पर कट लगने से मेहता जी की नौकरी चली गई।''


चौथी लेन से एक नवयुवक तेज़ गति से कारों को ओवर टेक करता सुधांशु के आगे आ गया। अगले मोड़ पर उसे हाई वे छोड़ना था। क्षणिक तेज़ घटना क्रम ने सम्पदा के हाथ डैश बोर्ड की ओर बढ़ा दिए और सुधांशु कार सँभालते हुए बुदबुदाया - ''मरेगा साला, साथ में दूसरों को भी मारेगा।'' पलों में कार सम्भल गई.... कुछ देर ख़ामोशी का बादल दोनों को धुंधला गया।

''सम्पदा, जब कट लगता है, तो काम चोर लोग पहले निकाले जाते हैं। वर्षों से तुम इस देश में रह रही हो, फिर भी हरेक की बातों में आ जाती हो।''

''सुन्दरी इसे वरदान समझती है, बहुत खुश है।अमेरिका की सरकारी नौकरी में प्राइवेट कंपनियों के मुकाबले बहुत कम वेतन मिलता है और सुरक्षा भी नहीं।''

''भारत की सरकारी नौकरी समझ कर यहाँ की सरकारी नौकरी ली थी। काम और समय के प्रति भारतीय सोच चली नहीं यहाँ।''
''मिसिज़ मेहता, महिला मंडल में बड़ी शान से कहती है -- हम तो उस नौकरी में कुछ भी न कर पाते, भगवान् जो करता है सही ही करता है। ये दस हज़ार डालर से बीस हज़ार डालर दिन के बना लेतें हैं।''

''क्या यह शेखी नहीं? उस दिन पार्टी में मेहता भी कह रहा था, अमेरिका में डॉक्टर बहुत कमाते हैं और मेरी ओर देख कर कहने लगा, पर दिन के पचास हज़ार डालर नहीं। मैं आज अभी पार्टी में आने से पहले इतना ही पैसा बना कर आया हूँ, यह बड़बोलापन नहीं तो और क्या है ? सम्पदा कोई भी डॉक्टर मेहता का मुकाबला क्यों करेगा ?''
''उसके ऐसा कहने से तुम्हें चोट लगी।''
''मुझे चोट क्यों लगेगी? उस पर शराब हावी थी, उसे तो पता भी नहीं था, वह क्या बक रहा है।''

सम्पदा ने घड़ी पर सरसरी नज़र डाली -- वेक फारेस्ट पहुँचने में अभी समय था।उसने रेडियो पर ८८.१ ऍफ़ .एम लगा दिया। गीत बाज़ार कार्यक्रम चल रहा था--होस्ट अफ़रोज़ और जॉन काल्डवेल की नोंक -झोंक चल रही थी---
''जॉन अमेरिकन हो कर भी कितनी अच्छी हिन्दी बोलता है।''

''हाँ , तेरे मेहता को तो इसे सुन कर भी शर्म नहीं आती--पंजाबी भी अंग्रेज़ी लहज़े में बोलता है।''

''मेहता मेरा कब से हो गया।''
''तुम्हीं तो उसका पक्ष लेती हो। ''
''कुछ भी कहो, पैसा तो उस के पास है। पता है मिसिज़ मेहता के पास हीरे , मोती और जवाहरात के कितने सेट हैं।''
''तुम्हें ईर्ष्या होती है।''

''हाँ, होती है, सर्जन की पत्नी हो कर भी क्या मैं ऐसे जी पाई हूँ जैसे मिसिज़ मेहता जीती है।''

''मिसिज़ मेहता अपने लिए जीती है, तुम अपने से पहले दूसरों के लिए जीती हो।''

''अपने लिए जीने में क्या बुराई है।''
''तो जी लो अपने लिए, कौन रोकता है... मत दो हज़ारों का दान, खरीद लो अपने लिए हीरे -जवाहरात।''

सम्पदा चुप हो गई। रेडियो पर राहत फतेह अली का गाना चल रहा था..... ]
तुझे देख -देख जगना, तुझे देख-देख सोना.....
गाने को सुनते हुए दोनों उसका आंनद लेते रहे.... 

घड़ी की सुई देखते ही सुधांशु बोल पड़ा....

'' कैरी से वेक फारेस्ट का रास्ता इतना लंबा पड़ता है कि ड्राइविंग करते-करते इन्सान थक जाता है। अपनी सहेली ऊषा कुमार से कहो, कैरी में घर ले- ले, हर महीने पार्टी रख लेती हैं।''

''डॉ. ध्रुव कुमार तुम्हारे भी तो दोस्त हैं, तुम क्यों नहीं कह देते।''

तभी फ़ोन की घंटी बजी...बी.एम.डब्लू में एक आसानी है, फ़ोन कार के स्पीकर पर बजने लगता है, सिर्फ़ टॉक बटन दबाना पड़ता है...बिन्दु सिंह की आवाज़ उभरी--
''सम्पदा, आज की पार्टी केंसल हो गई है, अजय मेहता हास्पिटल में है उसे हार्ट-अटैक के साथ ही स्ट्रोक भी आया है। डॉ.ध्रुव कुमार तो हस्पताल चले गए हैं।ऊषा जी ने पार्टी केंसल कर दी है। कुछ फ़ोन काल्स वे कर रही हैं, कुछेक मैं कर रही हूँ और पार्टी में लोग भी तो बहुत आ रहे थे।''
''पर हुआ क्या--'' सम्पदा सुधांशु दोनों बोल पड़े।
''यहाँ की इकॉनोमी और पिछले दिनों शेयर बाज़ार में जो मंदी आई, उसको मेहता परिवार ने सहज लिया। पुराने खिलाड़ी थे, कई उतार- चढ़ाव देख चुके थे। सम्पदा, जो बात अब पता चली, मेहता परिवार तो बूँद-बूँद कर्ज़े में डूबा हुआ था...''
''क्या कह रही हो ...बिन्दु |''

"हाँ,और घर, कारें, क्रेडिट कार्ड, गहने सब बैंकों के पास गिरवी थे, उन पर ऋण लिया हुआ था। यहाँ तक कि घर की एक्विटी (घर में इकठ्ठे हुए पैसे ) पर भी लोन ले रखा था और पूरा पैसा शेयर बाज़ार में डाला हुआ था। यू नो शेयर बाज़ार की गिरावट तो रोज़ बढ़ती ही गई और अजय के पास कई तरह के कर्ज़ों की किश्तें देने के लिए पैसा नहीं बचा। अब जब किश्तें चुका नहीं पाए, तो बैंक ने कारें ले लीं..''''हम में से किसी को पता नहीं...''

''और क्या... सब को अब पता चला है ....घर तो पिछले दिनों फोर क्लोज़र पर आ गया था, अब नीलाम हो रहा है। ज़ेवर तक बिक चुके हैं। एक तरह से सड़क पर आ गए अजय मेहता इस सदमें को सह नहीं सके। तुम लोग अगले एग्ज़िट से कार वापिस मोड़ लो। रैक्स हस्पताल में उन्हें दाखिल किया गया है। '' इसके साथ ही बिन्दु का फ़ोन सम्पर्क कट गया।सुधांशु ने कार अगले एग्ज़िट की ओर बढ़ा दी......

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शशि श्रीवास्तव

12 July 2024

अपने समय के सच से साक्षात कराती यर्थाथ परक कहानी

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रचनाकार परिचय

सुधा ओम ढींगरा

ईमेल : sudhadrishti@gmail.com

निवास :

संपर्क-101 Guymon Ct., Morrisville, NC-27560, USA
फ़ोन- 919-801-0672