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उर्मिला शुक्ला की कहानी- बँसवा फुलाइल मोरे अँगना

उर्मिला शुक्ला की कहानी- बँसवा फुलाइल मोरे अँगना

अब तक तो बस एक ही बार वह मिसेज मल्होत्रा के करीब जा पाया था। वह भी बस कुछ घंटों के लिए। दीपा उसकी दोस्त थी, पत्नी नहीं। उसकी भी अपनी कुछ सीमायें थीं, सो सब कुछ आधा-अधूरा ही रह गया था। वह दृश्य उसकी आँखों में बार-बार उभरता रहा; मगर अब ? अब तो सारा का सारा समय उसका अपना होगा। कोई रोक टोक, कोई प्रतिबन्ध नहीं। अब वह क्लब का स्थायी मेम्बर होगा। सोचकर ही उसे रोमांच हो आया और उसकी आँखों की वह, चमक...!

बाथरूम में शीशे के सामने खड़ी वह देख रही थी, अपने आपको। लग रहा था, जैसे एक ही रात में सब कुछ बदल गया है। उसे लग ही नहीं रहा था कि वह वही सीमा है, जो अपने आप पर रीझ जाया करती थी।़ अपनी एक एक गढ़न पर खुद ही सम्मोहित हुआ करती। मगर आज....? उसे अपनी ही देह कितनी अजनबी लग रही थी, आज सम्मोहन की जगह एक लिजलिजा सा अहसास उभर आया था। उसने एक बार, दो बार, कई-कई बार साबुन लगाया, साबुन की सारी टिकिया ही घुल गयी थी; मगर वह अहसास लगातार चिपका रहा, जोंक की तरह लिजलिजा, धृणास्पद और तकलीफदेह। उसका मन पीड़ा से कराह उठा। फिर पीड़ा घृणा में बदली, और घृणा ने वितृष्णा का रूप धर लिया। फिर उसे लगा कि वह सब कुछ खत्म कर दे, सारे बन्ध, सारे सम्बन्ध और अपने आपको भी; मगर दिमाग ने बाधा दी – ‘वाह क्या बात है! आ गई न तुम भी उसी तथाकथित सतीत्व की लपेट में ! फिर अगर यह मामला सतीत्व पर ठहरता भी है तो? यह चाह, किसकी थी ? तुम्हारी ? नहीं न? फिर तुम्हारी ये सोच ! आखिर तुम भी ठहरी वही की वही ! सम्भलो। अपने आपको दूसरों की कसौटी पर कसना कहाँ तक उचित है ?’ दिमाग उसे बार-बार सहेज रहा था, मगर मन? अपनी तमाम स्त्रीवादी धारणाओं के बावजूद वह सामान्य नहीं हो पा रही थी और पिछली रात की घटना बारबार उसकी आँखों में घूम रही थी... ’साथिया क्लब’ की वह बीती रात ? उफ्फ़...! क्या रातें ऐसी भी होती हैं ? उसने तो कभी कल्पना भी नहीं की थी।

’’शाम को तुम तैयार रहना। हमें आज क्लब चलना है।’’ उसके चेहरे पर जिज्ञासा देख कांत ने उसे याद दिलाया, ’’अरे ! मैंने तुम्हें बताया तो था, हमारा एक अपना क्लब है। ’साथिया क्लब’। कपल क्लब है ये।’’ कहते हुए कांत के चेहरे पर कुछ उभरा था और साथ ही आँखों में उभरी थी एक चमक।
“अब तक तो मैं इस क्लब का आधा-अधूरा मेम्बर था। सम्पूर्ण मेम्बरशिप तो मुझे अब मिलेगी। तुम्हारे कारण।“ सोचते हुए उसने सीमा की ओर देखा। सचमुच सीमा बहुत सुन्दर है और साथ में बौद्धिक भी। मेरी तो अब धाक जमकर ही रहेगी और मिसेज मल्होत्रा ? कांत की आँखों में कल्पना के अनेक पल उग आये। मैंने कितना, कितना इंतजार किया है इस पल का। उसकी सोच कुछ और पीछे सरक गयी।

अब तक तो बस एक ही बार वह मिसेज मल्होत्रा के करीब जा पाया था। वह भी बस कुछ घंटों के लिए। दीपा उसकी दोस्त थी, पत्नी नहीं। उसकी भी अपनी कुछ सीमायें थीं, सो सब कुछ आधा-अधूरा ही रह गया था। वह दृश्य उसकी आँखों में बार-बार उभरता रहा; मगर अब ? अब तो सारा का सारा समय उसका अपना होगा। कोई रोक टोक, कोई प्रतिबन्ध नहीं। अब वह क्लब का स्थायी मेम्बर होगा। सोचकर ही उसे रोमांच हो आया और उसकी आँखों की वह, चमक...!

’’और हाँ। शाम को अच्छे से तैयार होना। आज क्लब में तुम्हें सब पर छा जाना है। समझीं।’’ कहते हुए कांत ने अपना सारा प्यार उड़ेल दिया था और वह उस प्यार के नद में डूब चली थी।

वह खूब-खूब मन लगाकर तैयार होना चाह रही थी। वैसे भी इन दिनों उसे वो सब कुछ अच्छा लगने लगा था, जो पहले पसन्द ही नहीं था। कांत के लिए सजने सॅंवरने से लेकर, उसे रिझाने की हर संभव कोशिश करने लगी थी वह ! सब कुछ उसके लिये, जैसे उसका अपना कोई वजूद ही न हो। कांत उसके समूचे वजूद पर छा सा गया था। अपनी सारी बौद्धिकता और सारी सोच को दरकिनार कर वह अब उसकी प्रिया मात्र रह गई थी और ऐसा करना उसे अच्छा लगने लगा था। उसे लगता कि वह कितनी ख़ुशनसीब है कि उसे कांत जैसा प्रेमिल पति मिला। इतना रोमांटिक, इतना ख़ुशमिज़ाज़। उसकी एक-एक बात, एक-एक अदा पर निछावर होने वाला। उसकी इन्हीं बातों ने तो उसे बाँध लिया था। उसे अब अपना हनीमून याद आ रहा था। लम्बे हनीमून के बाद कल ही तो लौटे हैं वे और आज एक नया रोमांच उसके सामने है। सचमुच कितनी ख़ुशनसीब है वह। वरना ये क्लब, ये पार्टी, इनके विषय में तो उसने कभी सोचा भी न था ! एक छोटे से कस्बे की एक साधारण सी मगर पढ़ाकू लड़की के लिए यह सब एक सपना ही तो था।

कितना संकोच था उसमें। बात-बात में असहज हो उठती थी। कांत के साथ भी तो बहुत दिनों तक सहज नहीं हो पायी थी। एक अनजानी, अनचाही सी झिझक से घिरी रहती थी। उसमें एक अनचाहा सा संकोच था जिसे कांत कस्बाई सोच कहता था और उसे तोड़ने में उसने बहुत मदद की थी। हर कदम पर उसके साथ होने की इस कोशिश ने ही सीमा को बदला था। अब हनीमून के पल उसकी आँखों में तैर रहे थे। वह देर तक उनमें डूबी रही। उसके लिए तो सब कल्पनातीत था, उसने कहाँ सोचा था कि अब तक फ़िल्मों में देखे दृश्य कभी उसके जीवन में भी आयेंगे या कि...! जब उसका रिश्ता कांत से हो रहा था, तब भी वह कितने असमंजस से थी; मगर अब कोई आशंका नहीं है। वह सचमुच बहुत भाग्यशाली है, जो...। अपनी रोमांसी कल्पनाओं में डूबी सीमा को समय का पता ही नहीं चला। जब घड़ी ने तीन बजाये तो वह चौंक उठी- अरे ! इतनी देर हो गयी और मैं यूँ ही बैठी हॅूं। पाँच बजे कांत आ जायेंगे फिर...।

“खूब अच्छे से तैयार होना...।’’ उसके कानों में कांत का वाक्य गूंज उठा और वह मुस्कुरा कर बाथरूम में जा घुसी।

बहुत मन से तैयार हुई थी वह। पूरी तरह तैयार होकर जब उसने अपने आपको निहारा, तो अपने आप पर मुग्ध हो उठी। उसने समय देखा, अभी साढ़े चार ही बजे थे। अब उसे पाँच बजने का इंतजार था; मगर घड़ी के काँटे तो जैसे ठहर गये थे। उसे लग रहा था, जैसे घड़ी की सुइयाँ एक स्थान पर चिपक गयी हों। इंतजार के पल तो यूँ भी लम्बे ही होते हैं और अगर यह इंतजार प्रिय का हो तो...? उसके ये पल भी लम्बे और लम्बे होते जा रहे थे। बाहर जैसे ही गाड़ी रूकने की आवाज आयी, वह दौड़कर बालकनी में आ गयी थी। सीढ़याँ चढ़ते हुए कांत की नजरें उससे हट ही नहीं रही थी- ’’आज तो तुम सचमुच गजब ढा रही हो। जो देखेगा वही पागल हो जायेगा।’’
उसकी यह बात सुन पल भर को झटका सा लगा; मगर नज़रें मिलते ही सारे गिले शिकवे काफूर हो गये थे। उसकी आँखें बहुत कुछ कह रही थीं। धीरे-धीरे वह करीब और करीब आ रहा था। एक नशा सा तारी होने लगा था; मगर बहुत करीब आकर एकाएक रूक गया था वह।

’’नऽ। अभी कुछ नहीं। क्लब में तुम्हें बिल्कुल फ्रेश लगना है। समझी।’’ कहकर उसने जैसे सब कुछ रोक लिया था और उसकी सारी भावनायें पलभर में जैसे उड़ गयी थीं।

और वह, उसके बढ़ते कदम एकाएक ठिठक से गये, अवाक थी वह। “क्या भावनाओं का भी कोई स्विच है ? जब चाहा ऑन और जब चाहा ऑफ। क्या कांत इंसान नहीं, रोबोट है; मगर मैं तो रोबोट नहीं। मेरे पास ऐसा कोई स्विच नहीं है। पर मेरी परवाह ही किसे है। कांत के लिए तो शायद यह सब एक खेल है ,पर मैं...!” और अब तक आकाश नापते उसके कदम पलभर को धरती से आ लगे थे। उसका सारा शरीर झनझना रहा था। बवंडर में घिरी थी वह। और कांत! आज वह बहुत खुश था। बाथरूम से उसके गुनगुनाने की आवाज बाहर तक आ रही थी। खुशी के अतिरेक में वह कभी जोर से गाने लगता, तो कभी गुनगुनाता। उसका रोम-रोम खुशी से झूम रहा था। सीमा आज कितनी सुंदर लग रही है। यह सोचकर वह और रोमांचित हो उठा था। उसकी आंखों में कल्पनाओं में संजोये अनेक दृश्य तैर उठे। अब तो मेरी सारी कल्पनायें साकार हो जायेंगी। मगर ? सोचते हुए उसकी सोच पल भर को ठिठकी। क्या वह उसे सब साफ-साफ बता दे ? वैसे भी वह तो मार्डन सोच रखती है। उसकी नारीवादी सोच ने ही तो उसे बल भी दिया था; मगर नहीं। अभी कुछ भी बताना ठीक नहीं होगा। यूँ बताने पर बात बिगड़ भी सकती है? फिर मोटे-मोटे संकेत तो दे ही चुका हूँ। अब वह इतनी भी नासमझ नहीं है कि कुछ न समझे और बाकी सब वहाँ जाकर समझ जायेगी। और भी तो लेडीज आती हैं वहाँ। जब मिसेज पाल वहाँ एडजस्ट हो गयीं, तो सीमा तो उनसे बहुत...। और उसने अपनी सारी आशंकाओं का पीछे ठेल दिया था। अब वह फिर अपनी कल्पनाओं में था। उसकी आंखों में एक तस्वीर उभरी और वह उसमें रंग भरने लगा। देर तक अपनी रची दुनिया में ही खोया रहा। फिर समय का ध्यान आते ही झटपट बाथरूम से बाहर आया। अब वह तैयार हो रहा था -
’’अरे ! यह क्या तुमने ब्लेक सूट निकाल दिया ? आज तो मुझे ब्लू सूट ही पहनना है।’’ कहते हुए उसके चेहरे से उल्लास टपक रहा था। इस उल्लास के अतिरेक में वह यह भी भूल गया था कि सीमा को ब्लैक सूट कितना पसंद है। वैसे भी आज वह कुछ और याद भी कहाँ करना चाहता था। सो अपनी रौ में बहते हुए उसने कहा ’’जल्दी निकालो न...! हमें वहाँ जल्दी पहुंचना होगा।’’

सीमा ने मुरझाये मन से ब्लू सूट निकाल दिया; मगर वह लगातार उसे ही देख रही थी। कल के कांत और आज के कांत में कितना फर्क है। दोनों में कोई मेल ही नहीं। पहली मुलाकात से लेकर आज तक, उसकी पसंद-नापसंद को जीने वाला कांत, आज कुछ अलग ही नजर आ रहा था और क्लब पहुंचकर तो उसे यकीन ही नहीं आ रहा था कि वह ऐसा भी हो सकता है। वह हैरान थी ! कोई ऐसा कैसे हो सकता है ? वहाँ पहुंचकर, तो जैसे वह भूल ही गया था कि सीमा उसके साथ है, और वह उसकी कुछ लगती भी है। “आने वाली हर औरत को बाहों में भरकर चूमता यह अजनबी क्या सचमुच उसका कांत है?” सोच रही थी वह।

’’हाय हैंडसम...! तो तुम्हें आज तक मेरी पसंद का ख्याल है? थैंक्स।’’ कहते हुए एक खूबसूरत सी महिला ने बढ़कर उसे चूम लिया और वह उससे लिपटता चला गया था।

सीमा का मन कैसा - कैसा तो हो उठा था। "तो इसीलिए आज मेरी पसंद की परवाह नहीं की गई। यह है कांत का असली रंग, इसी के लिए मै अपने भाग्य पर इतना इठला रही थी?” अब तक आसमान पर उड़ती सीमा एक झटके से धरती पर आ पडी थी और अपने तार-तार मन और छलकती आँखों को वह छिपा पाती कि-
’’होता है होता है। यहाँ पहले दिन अक्सर ऐसा ही होता है। लगता है, कांत ने तुम्हें, कुछ बताया नहीं।’’ एक सौम्य सा चेहरा उसके सामने था।
अपने दुःख में डूबी सीमा ने उसे एक नजर देखा। अब उसकी आँखों में आंसुओं के साथ-साथ कुछ आश्चर्य भी उतर आया था-
“अरे हाँ, मैंने अपना परिचय तो दिया ही नहीं। मैं दिवाकर। दिवाकर राय।“
उसकी आँखें और और उमड़ रही थीं; मगर उसने उन्हें बरबस रोका।
’’आओ बैठो यहाँ। क्लब पर रंग चढ़ने में अभी कुछ देर है।’’ दिवाकर ने उसके लिए कुर्सी खींची।

अब दिवाकर और सीमा पास-पास बैठे थे, मगर अपनी अपनी दुनिया में डूबे हुए से। कुछ घंटे पहले तक खुशी की लहरों पर तैरने वाली सीमा, अब दुःख के अथाह सागर में डूब रही थी। तभी डांस फ्लोर से कपल डांस के लिए एनाउन्स हुआ। उसे कुछ आस बंधी कि अब कांत उसके पास आयेगा और उसे डांस के लिए ऑफर देगा; मगर उसने देखा कि कांत मिसेज मल्होत्रा का हाथ थाम डांस फ्लोर की ओर जा चुका था। उसका मन किया कि वह जोर-जोर से रोये और हिचकियॉं ले लेकर अपना सारा दुःख कह सुनाये; मगर किससे ? तभी -
’’हाय मिसेज कांत...! मैं संजय मल्होत्रा। आज का तुम्हारा पार्टनर।’’ एक अधेड़ पुरूष उसके सामने था।
’’पार्टनर ! किस बात के पार्टनर? मैंने तो आपको अपना पार्टनर नहीं चुना ? ’’ कहती सीमा की आँखों में अब आँसुओं के साथ क्रोध घुलने लगा था।
’’अरे तुम्हें नहीं मालूम! आज तुम्हारा पार्टनर मैं हॅूं। आज डांसिंग, किसिंग एंड एवरीथिंग्स। तुम समझ रही हो न। अच्छा-अच्छा। आज तुम पहली बार आयी हो न! क्या कांत ने तुम्हें यहाँ के रूल्स नहीं बताये ? रूल्स के अनुसार मैं आज का तुम्हारा पार्टनर हॅूं।’’ कहते हुए उस आदमी की आँखों से, चेहरे से, उसकी बातों और पूरे उसके वजूद से उसकी लिप्सा टपक रही थी। सीमा का मन किया कि उस घिनौने चेहरे को नोच लें और उसे इतने थप्पड़ मारे कि वह...। तभी अचानक कांत आ गया और वह अपनी सारी पीड़ा, सारी शिकायत भूल उससे लिपट गयी थी।

’’कांत चलो यहाँ से।’’ कहती सीमा कांत को खींचकर बाहर ले चली थी।
’’सीमा रुको तो सही, ऐसा करना ठीक नहीं है। तुम्हें कोई गलत फहमी हुई है।’’ कहकर कांत ने धीरे से आँख दबाई और मल्होत्रा उनसे दूर चला गया।
’’अच्छा-अच्छा मैं तुम्हारे साथ ही रहूँगा। ठीक? अब तो खुश हो न ?’
’’नहीं कांत मुझे यहाँ कुछ ठीक नहीं लग रहा, प्लीज घर चलो।’’
सीमा ने कहा, तो कांत के चेहरे पर सख्त नागवारी उभरी; मगर उसने अपने को सम्भाल लिया।’’ तुम जैसा सोच रही हो न, वैसा कुछ भी नहीं है। बस डांस–वांस ही है और इतना तो चलता है यार।’’ कांत ने सीमा को अश्वस्त किया, मगर वह अश्वस्त नहीं हो पायी थी। पर कांत की जिद के कारण उसे वहाँ ठहरना पड़ा था।

डांस समाप्त हो चुका था और ड्रिंक का दौर चल रहा था। सीमा ने देखा वहाँ स्त्रियाँ भी ड्रिंक में शरीक थीं। उन्हें किसी तरह का संकोच या असुविधा नहीं थी। वे उसकी ओर ऐसे देख रही थीं, मानो वह कोई अजूबा हो या उसने कोई बड़ा अपराध किया हो। उसका मन अजीब सा हो रहा था। उस माहौल में वह खुद को अनफिट पा रही थी। मगर....

’’तुम बैठो मैं तुम्हारे लिए कुछ लाता हूँ।“ कहकर कांत खड़ा हो गया।

उसके मन में आया कि वह कांत को रोक ले, कहीं न जाने दे, मगर फिर उन स्त्रियों की निगाहें उसे याद हो आयीं और उसने अपने को रोक लिया। कांत दो ड्रिंक ले आया, अपने लिए जिन और सीमा के लिए ऑरेन्ज जूस।
’’लो, इसमें तो कोई ऐतराज नहीं न? संतरे का जूस है।’’ उसने उसे गिलास थमा दिया था।

सीमा का मन नहीं था, मगर उसने बेमन से ले लिया। पहला घूँट भरते ही उसे अजीब सा लगा; मगर उसने कुछ कहा नहीं। कुछ कहने का मतलब था, कांत पर अविश्वास करना और वह अविश्वास को अपने बीच लाना नहीं चाहती थी। सो एक के बाद दूसरा और अब तीसरा पैग चल रहा था और सीमा उसका साथ दे रही थी। उसका भी यह तीसरा दौर था। कांत की दलील थी कि शराब न सही, जूस से उसका साथ तो दे ही सकती है। फिर धीरे-धीरे उसका सिर भारी होने लगा, उसकी पलकें बोझिल हो चलीं। फिर उसके बाद उसे कुछ याद न रहा। जब उसकी नींद टूटी तो उसने देखा, मिस्टर मल्होत्रा उसके साथ थे। बिल्कुल आदम अवस्था में। उससे लिपटे हुए बेसुध। फिर उसने अपने आपको देखा और उसका मन हुआ वह जोर-जोर से रोये, मगर रो नहीं पायी। उसका मन हुआ कि अपने पास सोते हुए उस पुरूष को धक्के मार कर गिरा दे; मगर वह ऐसा नहीं कर पायी। बस शून्य में ताकती रही, जैसे कुछ ढूंढ रही हो, मगर जो खो गया था वह....? वह क्या मिल पायेगा ? पतिव्रत, सतीत्व आदि बातों को वह नहीं मानती, मगर उसका अपना मन। क्या उसकी इच्छा-अनिच्छा का कोई मोल नहीं ? शायद नहीं। तभी तो...!

अब उसे सुबह का इंतजार था। उस सुबह का, जो रात में भी अधिक अंधियारी थी, मगर थी तो सुबह ही और जैसे ही पौ फटी, उसने अपने को किसी तरह व्यवस्थित किया और चल पड़ी थी। उसने ये जानने की कोशिश भी नहीं की कि कांत कहाँ और किसके साथ है? पैदल चलते-चलते पस्त हो चुकी थी, मगर चलती रही वह और घर पहुंच कर सीधे बाथरूम में जा घुसी; मगर बीता समय कोई मैल तो नहीं, जिसे खुरच कर धो लिया जाय। उसके भीतर क्रोध, ग्लानि और अवसाद जैसा कुछ-कुछ था। एक छीजन से गुजर रही थी वह। उसका मन नोनी लगी दीवार की तरह झर रहा था, लगातार। क्षण भर को मन में आया कि तहस-नहस कर दे सब कुछ। अपने आपको भी, मगर दिमाग ने थामा उसे “नहीं यह ठीक नहीं और इससे होगा भी क्या। फिर मेरा दोष भी क्या है? जिसने धोखा दिया, विश्वासघात किया वह तो निर्द्वन्द है। और मैं...? ‘
मन ने पूछा “क्या वह भी सदियों पुरानी औरत की तरह, अपने आपको अपवित्र या कलंकिनी मान रही है? “
“नहीं, हरगिज नहीं। मैं ऐसा बिल्कुल नहीं मानती, मैं उन औरतों-सी कभी नहीं रही, जो वर्जिनिटी या पवित्रता को अपना सर्टीफिकेट मानकर गौरवन्वित होती हैं। मैं तो स्त्री स्वातंत्र्य की पक्षधर रही हूँ; मगर यह तो कोई स्वतंत्रता नहीं है। ये तो घोर सामंती स्थिति है जब जैसा जी चाहा, वैसा उपयोग किया। कभी खुद, तो कभी कोई और। और इससे उन्हें कोई शिकायत भी नहीं है। अब अपनी पत्नी से पतिव्रत, एकनिष्ठता की कोई चाह नहीं है उन्हें। क्यों ? क्योंकि वे ऐसा चाहते हैं। अब कहाँ गये वे सारे मानदंड...? यह तो गुलामी है। घोर गुलामी। उसे तो कुछ करना होगा। कुछ ऐसा जिससे कांत को अपने इस कृत्य पर पछतावा हो। नहीं, सिर्फ पछतावा ही नहीं और भी बहुत कुछ, ऐसा, जिससे उसे कभी निजात ही न मिले।“ सोचा और उसने अपने भीतर की छीजन पर काबू पा लिया। ऐसा नहीं कि अब उसे कोई दुःख नहीं था; मगर उसने उस दुःख की धारा को एक नया मोड़ दे दिया था।
जब वह बाथरूम से बाहर आयी तो देखा, कांत कमरे में थे। अपनी रौ में वह कमरे का दरवाजा बन्द करना भी भूल गयी शायद। कांत ने आशंकित नजरों से देखा उसे, मगर वह उसे अनदेखा कर आगे बढ़ गयी।
अब ऊपर से सबकुछ सामान्य था। वे साथ खाना खाते, टी.वी. देखते, बेडरूम भी साझा करते, मगर कहीं कुछ था जो असहज था। बिस्तर पर एक अनदेखी दीवार-सी खड़ी हो गई थी। बिस्तर पर जाते ही सीमा करवट बदल लेती। और कांत की हिम्मत ही नहीं होती कि वह अपनी ओर से कोई पहल करे। यहाँ तक उस रात के विषय में भी, चाह कर भी; कोई बात नहीं हो पा रही थी।
फिर शनिवार आया। यानि क्लब डे। इस बार कांत ने उससे कुछ नहीं कहा था; मगर शाम को जब वह वापस आया तो सीमा तैयार थी। उसने सोचा, कहीं और जाना होगा उसे, मगर जब सीमा ने क्लब जाने की बात कही; तो उसे अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ। ऐसा कैसे हो सकता है भला ! तो क्या सीमा सब स्वीकार लिया है, सोचकर वह खुशी से भर उठा। रास्ते में सीमा ने उसे बताया कि आज से क्लब में वह अपना पार्टनर खुद चुनेगी और उसे उसी की पत्नी को अपना पार्टनर बनाना होगा। कांत ने आश्चर्य से उसे देखा, मगर कहा कुछ नहीं। “कोई बात नहीं, कुछ दिन यह भी सही। बाद में तो...।“ सोचकर वह शांत रहा। क्लब पहुंचकर सीमा ने देखा दिवाकर आज भी वहीं बैठे थे। वह उसी ओर बढ़ गयी।
’’आइये सीमा जी, मैं आपके बारे में ही सोच रहा था।’’ कहकर उन्होंने सीमा के लिए कुर्सी खिसका दी।
’’मेरे बारे में ! हम तो एक दूसरे को अभी जानते भी नहीं ? ’’ सीमा ने दिवाकर की ओर देखा।
’’कितने आश्चर्य की बात है न सीमा जी! किसी को तो हम जिन्दगी भर नहीं जान पाते। उसे जानने की हमारी सारी कोशिश व्यर्थ हो जाती हैं और किसी को जानने में पल भर भी नहीं लगते। लगता है जैसे बरसों की पहचान हो।’’ कहते हुए दिवाकर की आँखों में गहरा अपनापन उतर आया।

अब तक डांस का समय हो चुका था। सभी अपने-अपने पार्टनर के साथ डांस फ्लोर की ओर बढ़ रहे थे; मगर आज कांत ने अपना पार्टनर नहीं चुना था, उसे प्रतीक्षा थी, उसने सीमा की ओर देखा; मगर वह तो अपने आप में गुम थी। देर तक प्रतीक्षा करने के बाद, कांत ने मिसेज तनेजा का हाथ थाना और डांस फ्लोर की ओर बढ़ चला। सीमा अब भी अपने में डूबी हुई थी।

’’हैलो मिसेज कांत ! मैं तनेजा। आपका पार्टनर।’’ तनेजा सीमा के सामने खड़ा था। सीमा ने देखा कि डांस फ्लोर पर कांत मिसेज तनेजा के साथ था। ओह ! तो कांत ने उसकी बात का कोई नोटिस ही नहीं लिया।

’’मिस्टर तनेजा।़ आज मैंने अपना पार्टनर चुन लिया है।’’ कहते हुए उसकी आवाज सामान्य मगर दृढ़ थी।

’’मगर ! क्लब के नियम के अनुसार तो ?’’
’’मिस्टर तनेजा, मैं भी क्लब की मेम्बर हूँ तो पार्टनर चुनने का अधिकार मुझे मिलना चाहिए।’’ आवाज में वहीं दृढ़ता।

मिस्टर तनेजा ने फिर उससे कुछ नहीं कहा। उसका कोई विरोध भी नहीं किया। वे उसी तरह शांत और संयत बने रहे। उसे आश्चर्य हुआ। पिछले सप्ताह की घटना उसकी आँखों में कौंध आयी थी; मगर...।

उधर कांत को पता चला तो वह देर तक असहज रहा। ’फिर चलो ये पार्टनर भी बुरी नहीं‘ सोचकर वह मिसेज दिवाकर के साथ डांस, एन्ज्वाय करने की कोशिश करने लगा; मगर दिमाग बार-बार कहीं और ठहर जाता। आज भी वही क्लब था। लोग भी वही थे; मगर कुछ बदल गया था। इसे कांत अच्छी तरह महसूस रहा था।

“सीमा ने दिवाकर को क्यों चुना ? वे उसे क्या दे पायेंगे भला ?’’ मिसेज दिवाकर ने कांत से कहा।
’’मतलब ?’’ कांत ने जानना चाहा कि आखिर ऐसा क्या है, जो मिसेज दिवाकर ऐसा कह रही है।
’’वो क्या है कांत, मैं तो उन्हें आज तक समझ ही नहीं पायी। यहाँ क्लब में भी अपना पार्टनर मैं ही चुनती आयी हूँ। वे तो यूँ ही निरपेक्ष बैठे रहते हैं। कभी-कभी तो बड़ी झेंप होती है मुझे। जब उनकी पार्टनर...? मेरा मतलब है, वे किसी को अपने साथ लेते ही नहीं।
’’तो क्या दिवाकर...?’’ कांत ने जान बूझकर वाक्य अधूरा छोड़ दिया था।
’’पता नहीं ? अब उनका मुझसे तो कोई रिलेशन है ही नहीं और यहाँ क्लब में भी। तो शायद...। छोड़ो हमें क्या ? हम क्यों अपना वक्त बरबाद करें।’’ कहकर मिसेज दिवाकर यानी कामना राय उसके और करीब आ गईं।
डांस का क्लोजप राउन्ड शुरू हो चुका था; मगर कांत आज मिसेज दिवाकर के करीब होकर भी करीब नहीं था। उसके दिमाग में उनकी कही बाते घूम रही थीं। तो क्या सीमा भी अब मुझसे ? नहीं, नहीं। अगर ऐसा होता, तो वह आज यहाँ आती ही क्यों ? और उसने अपनी सारी सोच झटक दी। अब वह बिल्कुल सामान्य था।

पर सीमा सामान्य नहीं थी। बहुत बेचैन थी वह। वह सोच रही थी कि पता नहीं दिवाकर उसके बारे में क्या सोच रहे होंगे। बस एक ही तो मुलाकात है हमारी और मैंने उन्हें अपना पार्टनर ? उसमें एक अनाम सा अपराधबोध उभरने लगा था ।

’’आइये सीमा जी लॉन में चलते हैं।’’ कहकर दिवाकर चल पड़े थे।

उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि कोई इतना अच्छा भी...! शायद उन्होंने उसकी परेशानी भाँप ली थी। कृतज्ञ सी सीमा उनके पीछे हो चली थी। सीमा कहाँ जानती थी कि दिवाकर तो ऐसे ही हैं। उन्होंने अपने लिये मुकर्रर पार्टनर का कभी वैसा उपयोग नहीं किया, जैसा क्लब का नियम था। इसीलिए तो मिसेज दिवाकर, कांत से वह सब कह गयी थीं, जो किसी भी पुरूष के लिए सहनीय नहीं है; मगर दिवाकर अपने विषय में यह सब सुनते चले आ रहे थे, उन्हें इस सबसे अब कोई फर्क नहीं पड़ता था। क्लब में अब ड्रिंक और डिनर का दौर चल रहा था, मगर सीमा मिस्टर दिवाकर के साथ लॉन में चुपचाप बैठी थी। उनके बीच मौन ही मौन था; मगर यह मौन भी बहुत कुछ बोल रहा था।

’’सीमा जी ! चाँद देख रही हैं न ? वह भौतिक रुप से तो बहुत दूर है हमसे, लेकिन मन के बहुत ही पास है। ऐसे ही कुछ लोग भी मन के बहुत पास हो उठते हैं। इतने पास कि लगता ही नहीं कि कोई दूरी भी है।’’

दिवाकर सीमा से कह रहे थे, मगर वह तो जैसे वहाँ थी ही नहीं। उसने तो कुछ सुना ही न था। पिछले क्लब डे से लेकर, आज तक की घटनाओं के साथ उसका मन जाने कहाँ-कहाँ भटक रहा था। दूर कहीं बारह का गजर बजा, तो वह अपने आप में लौटी।

’’चलिए सीमा जी ! हम भी डिनर कर लेते हैं। यूँ भूखे रहने से तो काम नहीं चलेगा।’’

वे डिनर हाल की ओर बढ़ चले थे। उनके साथ जाते हुए सीमा सोच रही थी कि ’’अब डिनर के बाद बात फिर वहीं आ पहुँचेगी, तब? तब क्या करेगी वह? कैसे रोकेगी इन्हें ? आज तो उसने ही चुना है इन्हें।’

डिनर हाल खाली पड़ा था। डिनर के बाद सारी जोड़ियाँ अपने अपने मुकाम पर पहुँच गयी थीं। सीमा ने बेमन से डिनर लिया। उसके मन की उथल-पुथल उसे असहज बना रही थी। उसने थहाने के लिए दिवाकर की ओर देखा; मगर वे बिल्कुल सहज थे। वहाँ ऐसा कुछ भी तो नहीं। वह कुछ कुछ आश्वस्त हुई।
’’मैं अब घर जाना चाहूँगी ।’’ कह कर उसने दिवाकर की ओर देखा। उनके भावों को फिर थहाने की कोशिश की। उसे लगा था कि वह बात सुनकर वे चौंक उठेंगे। उसे रोकेंगे; मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ, वे बिल्कुल सहज थे और उसी सहजता से पूछा उन्होंने-
’’अभी इतनी रात को ? अकेली ?’’
सीमा ने कोई जवाब नहीं दिया । बस हाँ में गर्दन हिलायी।
’’चलो मैं तुम्हें छोड़ देता हूँ।’’ वे चलने को तत्पर थे।
’’नऽ, नहीं, मैं चली जाऊंगी। गाड़ी तो है न।’’ उसने उन्हें रोका और आगे बढ़ चली।

वे देख रहे थे उसे। शायद समझ भी रहे थे; उसे और उसके मन को; उसकी हलचल को। उसके जाने के बाद अब वे बिल्कुल अकेले थे। यह अकेलापन कोई नई बात न थी। हर शनिवार को वे यूँ ही अकेले अपनी तन्हाइयों के साथ रहा करते है; मगर आज का अकेलापन कुछ ज्यादा ही बोझिल हो रहा था।
सीमा रास्ते भर सोचती रही। घर लौटकर भी वह देर तक सो न सकी। आँखों में बार-बार क्लब का दृश्य उभर उभर आता। कभी मिस्टर मलहोत्रा, तो कभी मिस्टर तनेजा। उसका मन अदहन सा खदबदा रहा था। क्लब का वह नियम ? जिसके चलते उसे ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ रहा था ? वह चाहती थी कि यह स्थिति बदले। पर कैसे ? आज तो मिस्टर दिवाकर ने भी कुछ नहीं कहा, मगर कब तक ? मैने क्लब जाने का फैसला तो ले लिया; मगर अब क्या करूँ, कैसे निपटूं इन स्थितियों से? अपनी सोचों में घिरी सीमा न जाने कब तक जागती रही। फिर कब नींद आ गयी, उसे पता नहीं चला। सुबह देर तक सोती रहीं। कांत कब लौटा, उसे पता ही नहीं चला। उठी तो वह सोफे पर था। सामने मेज पर रखे खाली कप प्लेट इसके गवाह थे कि वह नाश्ते से निपट चुका है। उसने भी अपने लिए चाय बनायी और उससे कुछ दूरी बनाते हुए अपने लिए कुर्सी खींच ली। उनके बीच आज भी मौन था। कांत बहुत कुछ पूछना चाहता था। पर पूछ नहीं पा रहा था और सीमा...! वह तो न कुछ पूछना चाह रही थी और न बताना। वह तो बस अपने भीतर की उथल-पुथल से उबरना चाहती थी। वह चाह रही थी कि कल वाली स्थिति फिर अगले सप्ताह भी न आने पाये; मगर कैसे ? वह सोच नहीं पा रही थी। अगर वह उन सब स्त्रियों से बात करे तो ? पता नहीं कोई उसका साथ देगा भी या नहीं ? निश्चित रुप से उसका साथ तो कोई नहीं देगा। वे सब तो उस माहौल में रच-बस सी गई है और उन्हें कोई आपत्ति ही कहाँ है? फिर?

’’कल रात तुम जल्दी लौट आयीं?’’ कांत ने बात करने की कोशिश की।

उसने कोई जवाब नहीं दिया और वहाँ से उठ गयी। कांत को उस पर गुस्सा तो बहुत आया; मगर वह संयत रहा। यह समय उसके नाराज होने का नहीं था। पिछले क्लब डे पर जो हुआ था; उसके चलते इससे अलग कोई आशा भी न थी। वह तो बहुत डर गया था; पता नहीं और क्या-क्या हंगामा हो? कहीं बात उसके घर तक न पहुँचे। खैर! अब सब कुछ ठीक हो चला है। धीरे-धीरे ये भी सहज हो ही जायेगी। शायद अगले क्लब डे तक। सोचकर वह कुछ आश्वस्त हुआ।

अब सीमा ने फैसला ले लिया था कि उसे क्या करना है। अगले क्लब डे पर कांत ने बिना कुछ कहे मिसेज दिवाकर को अपना पार्टनर चुन लिया था। सो आज के उसके पार्टनर भी दिवाकर ही थे। उसे कांत की चालाकी समझ में आ गयी थी। कोई बात नहीं। वह भी तो यही चाह रही थी। उसने देखा दिवाकर आज भी वहीं अपने उसी कोने में बैठे हुए हैं, जहाँ हमेशा बैठा करते हैं। वह उनकी ओर बढ़ चली और कांत और मिसेज दिवाकर डांस फ्लोर की ओर।

’’आइये सीमा जी। मैं आपका ही इंतजार कर रहा था।’’ वही नपा तुला वाक्य, वही नपे तुले शब्द; पिछली बार की तरह।

‘यह आदमी क्या अपने शब्दों का भी हिसाब रखता है ?’ सोचते हुए सीमा ने दिवाकर को देखा। वह उसके कथन का आशय ढूँढ रही थी; मगर वहाँ और कुछ भी नहीं था, था तो बस एक निश्च्छल स्वागत। उसे अच्छा लगा। उसकी आशंका कुछ कम हुई। दिवाकर ने सर्विस ब्वाय को बुलाया और दो औरेंज जूस आर्डर किया। जूस पीते हुए वे फिर अपनी-अपनी सोच के दायरों में सिमटे रहे। सीमा सोच रही थी क्या दिवाकर को मालूम है, आज की उसकी पार्टनर भी वही है। तो क्या आज...? और दिवाकर आज भी सीमा का साथ पाकर आश्वस्त थे; कम से कम उन्हें उस जलालत से दो-चार नहीं होना पड़ेगा। वरना अब तक तो...? अपनी-अपनी सोचों में घिरे वे देर तक यूँ ही बैठे रहे। 

’’आइये चलें।’’

दिवाकर के इस कथन पर सीमा कुछ चौंकी, उसे लगा कि दिवाकर भी उसे आज के पार्टनर की हैसियत से डांस फ्लोर...? मगर उसने देखा दिवाकर बाहर लॉन की ओर बढ़ चले थे, वह भी उनके पीछे हो ली। लॉन में फिर वही मौन? मगर यह मौन बोझिल नहीं था। क्वार की झरती चांदनी, निरभ्र आकाश, केतकी और चंपा के फूलों की बिखरती ख़ुशबू। लॉन और आसपास का दृश्य बहुत सुन्दर था; मगर उसे महसूस करने वाला कोई न था। लोग डिनर के बाद के काम में व्यस्त थे और ये अपनी-अपनी सोच में। चारों ओर ख़ामोशी ही ख़ामोशी।
’’सीमा जी, आज अपना डिनर यही मंगवा लें। वहाँ भीतर कुछ अच्छा नहीं लगता।’’ उसकी सहमती देख दिवाकर ने ऑर्डर दे दिया। अब वे साथ-साथ डिनर ले रहे थे।
’’सीमा जी! आज कल कैन्डल लाइट डिनर का फैशन है; मगर ये मून लाइट डिनर; यह हर किसी की किस्मत में नहीं होता न ?’’ वे कुछ ठहरे, कुछ देर तक सोचते रहे फिर बोले, “अब देखिये न इतनी ख़ूबसूरत रात, इतना ख़ूबसूरत चाँद, आज शरद पूर्णिमा की रात है; मगर ये लोग ?’’

दिवाकर के कहने पर उसने चाँद को देखा, अपनी परेशानियों में वह तो भूल ही गयी थी कि आज शरद पूर्णिमा है। उसके कस्बे में इस रात की तैयारियाँ तो महीनों पहले होने लगती थीं! कितने तरह के कार्यक्रम और वह भव्य कवि गोष्ठी। कितना इंतजार रहता था सभी को; मगर यहाँ ! यहाँ तो वह भी भूल गयी थी कि...! क्या ये शहर ही ऐसा है कि ? पर मिस्टर दिवाकर ? उसने देखा वे अभी भी चाँद को निहार रहे थे। मगर वह ? उसका मन तो थिर ही नहीं हो रहा था। उसने सोचा कि आज फिर घर चली जाये। मगर दिवाकर जी? उनकी भलमनसाहत का यूँ फायदा उठाना और वह बेमन से बैठी रही।

’’सीमा जी! अगर आप घर जाना चाहें, तो जा सकती हैं।’’ दिवाकर ने कहा तो सीमा चौंक उठी।
‘क्या इस आदमी को दूसरे का मन पढ़ना भी आता है।‘ सोचा और ’’मगर आप ।’’ कहते हुये बहुत संकोच हो रहा था उसे।
’’मेरा क्या ? मुझे तो आदत है। बल्कि मुझे तो ऐसे अच्छे पल और ऐसा अच्छा साथ मिला ही नहीं।’’ उनकी आँखों में गुजरे दिनों की बेशर्मियाँ और जलालतें घूम गई; मगर उन्होंने उन्हें पीछे ठेल दिया।
’’चलिये। मैं आपको छोड़ आता हूँ। और हाँ, आज आप अकेले जाने की जिद नहीं करेंगी।’’ रास्ते भर फिर वही मौन। घर पहुंचकर सीमा ने बेमन से औपचारिकता निभाई।
’’आइये न।’’
’’नहीं। ये सही समय नहीं है। फिर कभी।’’ वे लौट चले थे।

सीमा फिर अकेली थी। उन्हीं सोचों और समस्याओं से घिरी; मगर आज लहरें उतनी विकराल न थीं। आज उसने महसूस किया था कि दिवाकर औरों से अलग हैं। इसके बाद कई क्लब डे पर उनका साथ रहा। क्लब और कांत ने जैसे उनका स्थायी साथ स्वीकार ही लिया था और वह भी अब उन्हें समझने लगी थी। अब उनका अधिकांश समय क्लब से बाहर बीतता। दिवाकर के साथ रहकर सीमा ने बहुत कुछ महसूसा था। उसने यह भी जान लिया था कि क्लब में जो कुछ प्रचारित है, वह सच नहीं है। बल्कि वे संवेदना और प्रेम से लबालब एक ऐसे इंसान हैं, जिनके लिए भावनायें ही महत्व रखती हैं और प्रेम की उनकी वह परिभाषा।

’’सीमा जी! प्रेम और सेक्स एक सिक्के के दो पहलू नहीं हैं। वे साथ हो सकते हैं; मगर एक दूसरे के पूरक नहीं हैं। सेक्स से अलग होकर प्रेम अलौकिक, पवित्र और पूजनीय हो जाता है; मगर प्रेम से अलग होकर सेक्स सिर्फ वासना का खेल रहा जाता है। प्रेम का एक चेहरा होता है, मगर सेक्स का कोई चेहरा नहीं होता।’’

दिवाकर के इस कथन को उसने महसूसा भी था। वह उनसे प्रभावित थी और उनकी ओर आकर्षित भी; मगर ये उसकी मंजिल न थी। वह दिवाकर से कुछ छिपाना भी नहीं चाहती थी। सो उसने उन्हें सब कुछ बता दिया था, दोबारा अपने क्लब आने का मकसद भी।

’’दिवाकर जी, अब मैं आपसे नहीं मिल पाउॅंगी। अब तो मुझे बस अपना लक्ष्य पाना है।’’ कहते हुए उसके शब्दों में दृढ़ता झलक रही थी।
’’मैं रोकूंगा नहीं; मगर आगाह जरूर करूंगा, यह राह आसान नहीं है।’’ कहते हुए उनकी आंखों में दुश्चिंतायें तैर गयी थीं।
सीमा ने कुछ कहा नहीं, मगर उसके चेहरे की दृढ़ता कह रही थी, जो भी हो मुझे तो अपने लक्ष्य तक पहुंचना ही है। अगले क्लब डे पर वह अपनी मंजिल की ओर बढ़ गयी थी। कांत के फैसले पर उसने अपना विरोध जताया था। फिर तो सब ओर कानाफूसी होने लगी थी। पिछले दिनों वह लगातार दिवाकर की पार्टनर रही थी, सो लोगों ने मान लिया था कि उसे दिवाकर के साथ से कोई ऐतराज नहीं; मगर आज उसके फैसले ने सबकों चौंका दिया था। उसने आज दीपांश को अपना पार्टनर चुना था।

अब तक दीपांश का क्लब डे लाइब्रेरी में ही बीतता रहा है। कारण उसकी पत्नी इतनी मोटी और भद्दी थी कि...मगर आज...। एक बारगी किसी को यकीन हीं नहीं हुआ। लोगों को लगा कि उन्होंने कुछ गलत सुन लिया है; मगर जब सीमा ने उसे डांस ऑफर किया तो...! सब आवाक थे और कांत भीतर ही भीतर क्रोध और अपमान से उबल पड़ना चहाता था, मगर बाहर से वह बिल्कुल शांत रहा। उसने तो कभी सोचा भी न था, कि कभी उसे उस औरत के साथ रात गुजारनी होगी; जिससे वह नफ़रत की हद तक नफ़रत करता था। इस बात को सीमा भी जानती थी। सीमा ने एक नज़र देखा था उसे। फिर डांस फ्लोर की ओर बढ़ चली थी। उस रात सीमा ने अपनी सभी सीमायें तोड़ दी थीं। फिर तो हर क्लब डे पर वह अपना नया पार्टनर चुनती। अब तक क्लब के सारे मेम्बर उसके पार्टनर रह चुके थे। अब घर पर उसे कांत से भी कोई परहेज नहीं था। कभी-कभी तो वह खुद भी पहल किया करती। कांत अवाक था, यह सीमा अब तक कहाँ थी ! सीमा को अपने फैसले पर कोई मलाल न था। कांत अब मन ही मन कुढ़ने लगा था; मगर उसके पास कोई उपाय नहीं था। खेल तो उसने ही शुरू किया था; मगर अब गेंद सीमा के पाले में थी। फिर बीतते समय के साथ सब कुछ सामान्य हो चला था और एक दिन।

’’भउजी। एगो खुशखबर है।’’ सीमा फोन पर थी।
’’का जी, ननदोइ और बड़का अफसर बन गइल का।’’ भाभी ने अनुमान लगाया।
’’न, वो से भी बड़ खुशखबर है। सुन कय मन नाच उठी।’’ कह कर सीमा ने कनखियों से देखा, कांत का सारा ध्यान उसकी बातों में था।
’’का खुशखबर है। तनि बताइए न।’’ भाभी की आवाज में उतावली झलक आयी थी।
’’वो का है कि आप...। आप मामी बने वाली हो।’’ सीमा ने फिर कांत को देखा। वह चौंक पड़ा था, ऐसे जैसे उस पर छिपकली गिर पड़ी हो। उसने आश्चर्य से उसे देखा; मगर सीमा ने उसका कोई नोटिस ही नहीं लिया।
’’ यह तो सही म बहुते बड़ खुशखबर है। हम अभी सारे गांव म सोंठउरा बँटवाते हैं।’’ भाभी का स्वर उल्लास से छलक रहा था।
’’और। उहाँ सब ठीक बा?’’
’’अब का कहें दिदिया। अब की फसल कुछ खास नाहीं हुई और एक असगुन भी होय गया।’’ भाभी का स्वर बदल गया था, अब वहां परेशानी झलक आयी थी।
’’अइसा का हुआ कि आप...?’’
’’वो का कि बबुआ के मूंड़ म कउवा ठोर मार दिया।’’ कहती भाभी रूऑंसी हो आयीं।
’’तुम भी न भउजी ये सगुन-असगुन कुछ नहीं होता। सब मन का बहम है। फ़िक्र न करो। कुछु नहीं होगा।’’ कहती सीमा देर तक उन्हें समझाती रही।
उधर कांत व्याकुल हो उठा था। ‘यह नहीं हो सकता। इतना बड़ा फैसला ये अकेले कैसे ले सकती है? तय तो यह था कि, हम जब बच्चा प्लान करेंगे तब; बल्कि उससे बहुत पहले क्लब छोड़ देंगे। ताकि...। मगर...? यह बात तो सीमा भी जानती थी। फिर भी...?’ सोचा और ’’सुनो मुझे तुमसे बात करनी है।’’ कांत सीमा के सामने आ खड़ा हुआ।
’’अच्छा भउजी हम फिर फोन लगाते हैं।’’ सीमा ने फोन रख दिया था।
’’हाँ कहो ? क्या कहना है ?’’ सीमा ने सीधे उसकी आँखों में देखा, तो कांत कुछ हड़बड़ा-सा गया।
’’मैं कह रहा था कि हम अभी इसे....अर्बाट कर - फिर बाद में प्लान करें.?’’
’’क्यों इससे तुम्हारी तथाकथित शुद्धता बाधित होती है इसलिए?’’ सीमा ने सवाल किया।
’’मगर ऐसा बच्चा तो ! हम...? मेरा मतलब है तुम भी नहीं चाहोगी।’’ कांत ने अपनी बात रखनी चाही।
’’क्यों ? क्योंकि इसमें तुम्हारा अंश सुनिश्चित नहीं है इसलिए ? मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। यह बच्चा मुझे उतना ही अजीज है जितना...? और यह तुम्हारा हो न हो, मेरा तो है ही। इसमें मेरा अंश तो अभी भी उतना ही है।’’ कहकर सीमा ने देखा कि कांत का चेहरा निचुड़ सा गया था। उसे कुछ दया आई फिर याद आ गया-वह पहला क्लब डे, और कांत का वह चेहरा और वह और ज्यादा दृढ़ हो गयी।
’’और कुछ कहना है तुम्हें। मुझे अम्माजी से बात करनी है।’’ सीमा ने देखा कांत अब और हड़बड़ा गया था।
’’नहीं सीमा। अम्मा से क्या बात करोगी ? अभी तो हमें फैसला...।’’
’’फैसला ? कैसा फैसला ? मैं इस विषय में अब कोई बात नहीं करना चाहती। वैसे भी मैं भ्रूण हत्या के पक्ष में नहीं हूँ। सो ?’’ कहकर सीमा फिर फोन पर थी।
“अम्मा जी परनाम। वो क्या हय कि आप क एगो खुशखबर देय का है।’’
’’हाँ – हाँ दुलहिन, कहो का खबर है? का हम दादी...?’’ कहता उनका स्वर खुशी से भर गया था।
’’प्लीज-प्लीज सीमा एक बार फिर सोच लो, यह हमारे लिए ठीक नहीं है।’’ कांत ने दबी जुबान से बीच में दखल दी।
’’का दुलहिन इ कांत का कह रहा है ?’’
’’कुछु नही अम्मा। कह रहे हैं कि ये ख़ुशख़बर हम देंगे।’’ कहकर सीमा ने कांत को देखा। उसके चेहरे पर अब असमंजस और विवशता झलक उठी थी।
’’जी अम्मा जी ! आप दादी बनय वाली हैं।’’ सीमा ने कहा तो कांत खीझकर बाहर निकल गया।
’’सच्ची दुलहिन! इ दिन का तो हम रस्ता ही देखत रहे। हम अबहिन सोंठउरा बाँटते है।’’ कहती अम्मा के मन का हुलास उनकी आवाज में उभर आया और वे देर तक उसे हिदायतें देती रहीं, उसे क्या करना है और क्या नहीं करना है।
’’अम्मा जी और सब ठीक है न?’’
"ठीक का है दुल्हिन। खेती बारी तो ठीकय है, फेर एक असगुन होय गया है। हमरा जी तो बहुतय डेरा रहा है।’’ उनकी आवाज कुछ लरज गयी थी।
’’का हुआ ?’’ सीमा भी चिंतित हो उठी।
’’उ का है दुलहिन अबकी अपने बंसवारी में बॉंस म फूल आ गवा है आउर बांस का फूलना तो बहुत असुभ होत है। अब न जाने का होगा ?’’ कहते उनकी आवाज कुछ और चिंतित हो उठी थी।
’’हाँ। अम्मा जी। कहा तो अइसा जाता है; फेर बाँस फुलने में बॅंसवारी का भला का दोस ? जब देख भाल ठीक से नहीं भई, तभी तो बॉंस म फूल आया ?’’ कहकर सीमा ने उस अपशकुन का जैसे समर्थन किया। वैसे इसमें उसका कोई विश्वास न था; मगर आज उसका लक्ष्य कुछ और ही था।
’’हाँ ! दुलहिन। इहाँ कोई देखभाल करवइया भी तो नाहीं है न। तबहि तो ?’’ कहती वे उदास हो उठी थीं।

सीमा देर तक बाँस के फूलने और उसके विनाश की बात कहती-सुनती रही।
और कांत ! उसके मन मस्तिष्क में अब बाँस का फूल ही घूम रहा था। उसने सुन रखा था कि जब बाँस फूलता है, तब भारी तबाही लाता है और वह आने वाली थी। वह आते हुए देख रहा था उसे; मगर जिस तरह बाँस फूलने के बाद कुछ किया नहीं जा सकता, बस नियति मान उसे स्वीकारना ही होता है; वैसे ही...? वह भीतर से दरक गया था, किसका होगा यह बच्चा, उसका ? या मल्होत्रा का ? या दीपांश या फिर दिवाकर का? किसका ? माना कि यह जानना आज के दौर में मुश्किल भी नहीं है; मगर जानकर भी क्या होगा ? अगर बच्चा इन्हीं में से किसी का हुआ तो ? उसकी आँखों के सामने बॅंसवारी घूम गयी और उसमें खिला बाँस का फूल भी, जो बाँस से भी ज्यादा कटीला होता है, मगर कहलाता है फूल। उसके ऑंगन में भी तो.....?

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शशि श्रीवास्तव

11 July 2024

समकालीन समय व समाज के सत्य से साक्षात कराती बेहतरीन कहानी पर गुनहगार को सजा देने की बजाय । पीड़ित का खुद को सजा देना ?

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रचनाकार परिचय

उर्मिला शुक्ल 

ईमेल : urmilashukla20@gmail.com

निवास : रायपुर(छत्तीसगढ़)

जन्मतिथि- 20 सितंबर, 1962 
जन्मस्थान- रायपुर 
लेखन विधा- उपन्यास,कहानी, कविता, संस्मरण 
शिक्षा-एम. ए. (हिंदी साहित्य ) पीएच. डी. , डी. लिट 
सम्प्रति- प्रोफेसर 
प्राकाशन-  कविता, कहानी, उपन्यास, संस्मरण और समीक्षा  की 22 किताबें प्रकाशित 
सम्मान- अखिल भारतीय स्पेनिन साहित्य गौरव सम्मान 2017, अखिल भारतीय गंगेश्वर प्रसाद कहानी सम्मान 2016,अमलतास सृजन सम्मान 2022, सृजन सम्मान 2022, अखिल भारतीय सुभद्रा कुमारी चौहान सम्मान 2023, सहित अनेक सम्मान.
प्रसारण- आकाशवाणी -रायपुर, भोपाल, दिल्ली मथुरा से साक्षात्कार और  रचनाओं का  प्रसारण।
दूरदर्शन रायपुर, भोपाल और दिल्ली से रचनाओं और साक्षात्कार  का प्रसारण।
विशेष
मंचन- कहानियों का नाट्य रूपांतरण और मंचन कविताओं एवं कहानियों का मलयालम, उड़िया, पंजाबी, गुजराती मराठी में अनुवाद,
सम्पर्क- ए 21 स्टील सिटी, अवन्ति विहार रायपुर 
मोबाइल-9893294248