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वैक्सीन की कहानी की पहली कड़ी- डॉ० ज्योत्सना मिश्रा

वैक्सीन की कहानी की पहली कड़ी- डॉ० ज्योत्सना मिश्रा

भारत में चेचक से कहीं वंश वृद्धि ही न रुक जाये इसके लिये कुछ रजवाड़ों में एक रानी चेचक की परीक्षा पास की हुई भी ली जाती थी संभवतः इस लिये कि बच्चे पैदा करने से पहले उसके चेचक से मर जाने का चांस न था, दूसरे राजा के बीमार पड़ने के दौरान उसकी सेवा करते इस रानी के स्वयं बीमार पड़ जाने की चिंता न थी। 

सबसे पहले सबसे पहली वैक्सीन ,स्मॉल पॉक्स की वैक्सीन 
वैक्सीन से पहले इस बीमारी पर कुछ ,क्योंकि सौभाग्य से आज हम इसे भूलने लगे हैं। स्मॉल पॉक्स नाम की जानलेवा या जान बच जाये तो चेहरा बिगाड़ कर पहचान लेवा बीमारी हुआ करती थी।
बारह मई 2021 को कोविड  के नये केस करीब साढ़े तीन लाख थे और करीब सवा चार हजार मृत्यु हुईं थीं, लग रहा है किसी प्रलय से कम नहीं यह समय ।हम त्राहिमाम कर उठे हैं।
एक बार सोच कर देखिये शताब्दियों तक एक ऐसी बीमारी का विश्व पर काबिज़ रहना जिसमें तीस से साठ प्रतिशत मृत्यु दर थी और बच्चों में अस्सी प्रतिशत से ऊपर,रशा में हर सातवां बच्चा मर जाता था , विश्व के एक तिहाई दृष्टिहीन इसी की वजह से थे ।
अठारहवीं शताब्दी में यूरोप में चार लाख लोग प्रतिवर्ष मरते थे, उन्नीसवीं में विश्व में करीब तीन सौ मिलियन और अपने आखिरी सौ वर्षों के इतिहास में इस हत्यारे वायरस ने करीब पांच सौ मिलियन मनुष्यों को मारा।
संभवतः प्लेग ऑफ एथेंस और एन्टोनीन प्लेग(प्लेग उस समय किसी भी महामारी को कहते थे)इसी वायरस का कारनामा थे । युद्धों से लौटते हुये सिपाही अपने साथ यह बीमारी सायरिया और इटली ले आये जहां ये पंद्रह साल तक तबाही मचाती रही और रोमन साम्राज्य के पतन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही। कहां से शुरू हुई यह तो काल के गर्त में है मगर बंजारा और योद्धा समुदाय जैसे अरब और क्रूसेडर इसे वैश्विक बनाने में आगे थे ।
 
जापान में एक आइनू समुदाय हुआ करता था ,इस वायरस के जापान में घुसने के पहले तक। 
कहते तो यह भी हैं कि अमेरिका और आस्ट्रेलिया की मूल आबादी जो अभी तक चेचक से बची थी उसका सफाया करके यूरोपियन सेटलर्स को बसाने में भी इसकी भूमिका थी, कहानियाँ हैं कि बाहर से आते 'सभ्य' लोग मूल इंडोजीनस लोगों को चेचक के छालों से निकलने वाले द्रव से सने तौलिये और कंबल उपहार में देते थे ।
इस तरह यह एक जैविक हथियार की तरह भी इस्तेमाल किया गया। 
 
फ्रैंको प्रूशियन वार के दौरान इस महामारी के फैल जाने से 1870  से1875 के बीच करीब पांच लाख लोग मरे और यह आंकड़ा युद्ध में मरने वालों के अतिरिक्त है। 
1868 से 1907 के बीच भारत में करीब 4.7 लाख मरे कलकत्ता में इस बीच करीब तेरह प्रतिशत मौतें चेचक से होती थीं । 
 
संस्कृतियां बदल दीं,जनजातियां समाप्त कर दीं, बड़े बड़े साम्राज्य गिरा दिये एक छोटे से वायरस ने। 
 
मैं बचपन में सोचती थी इसे स्मॉल पॉक्स या छोटी माता क्यों कहा जाता है जबकि यह इतनी भयावह विकराल व्याधि थी।
दरअसल पहले सिफिलिस को ग्रेट पॉक्स कहते थे तो इस पूरे शरीर में कम बड़े  छालों वाली बीमारी को उससे अलग समझने के लिये सोलहवीं शताब्दी में इसका नामकरण हुआ स्मॉल पॉक्स।
 
अब तक बहुत छटपटाहट शुरू हो चुकी थी ।मानव जाति घुटने टेकने को तैयार न थी 
इस बेचैनी में ही ध्यान गया इस तथ्य पर कि जिसे यह बीमारी एक बार हो गयी दोबारा नहीं होती !और कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिन्हें यह बीमारी हुई मगर बहुत हल्के लक्षणों में 
छठी सातवीं शताब्दी के कुछ मेडिकल लेख मिलते हैं चीन और भारत में जिसमें इस बीमारी का अध्ययन लक्षण और बचाव के तरीके मिलते हैं । 
भारत में चेचक से कहीं वंश वृद्धि ही न रुक जाये इसके लिये कुछ रजवाड़ों में एक रानी चेचक की परीक्षा पास की हुई भी ली जाती थी संभवतः इस लिये कि बच्चे पैदा करने से पहले उसके चेचक से मर जाने का चांस न था, दूसरे राजा के बीमार पड़ने के दौरान उसकी सेवा करते इस रानी के स्वयं बीमार पड़ जाने की चिंता न थी ,साथ ही यह भी उस समय ज्ञात था कि चेचकरू रानी के शिशु को चेचक होने की संभावना कम थी । 
चीन में भी बचाव के कुछ तरीके अपनाये जाने शुरू हो गये थे , वहीं अफ्रीका के कुछ समुदाय आश्चर्यजनक रूप से बच निकल रहे थे 
सन 1796 में एडवर्ड जेनर के रॉयल सोसायटी में वैक्सीन की स्टडी दाखिल करने के बहुत पहले ही चीन भारत सोमालिया प्रूशिया और ओटोमॉन एम्पायर में एक बचाव विधि प्रयोग में थी जिसे वैक्सीनेशन न कह कर हम वैरियोलेशन कहते हैं। 
वैरियोलेशन की जो विधि भारत में दी जाती थी उसे टीका देना कहते थे और देने वाले कहलाते थे टीकादार आज भी भारत में वैक्सीन को टीका कहा जाता है । 
वैरियोलेशन की कहानी के बिना वैक्सीनेशन की कथा संभव नहीं और वो इतनी छोटी भी नहीं । 
 
तो अगली कड़ी में जानिए..  
वो अफ्रीकन ग़ुलाम जिसने बचाई मालिकों की चेचक से जान 
सोलह छोटी बीयर की बोतलों का वैरियोलेशन में रोल 
कंबल से ढंक कर आग के पास घंटों बिठा कर चेचक से बचाव। 
 

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रचनाकार परिचय

ज्योत्सना मिश्रा

ईमेल : docjyotsna1@gmail.com

निवास : नई दिल्ली

नाम- डॉ० ज्योत्सना मिश्रा 
जन्मस्थान- कानपुर

शिक्षा- एम बी बी एस, डी जी ओ
सम्प्रति- स्त्री रोग विशेषज्ञ
विधा- कविता, कहानी, लेख एवं यात्रा-वृतांत
प्रकाशन- औरतें अजीब होती हैं (काव्य संग्रह)
देश के प्रतिष्ठित पत्र , पत्रिकाओं में लेख, कहानी एवं कविताओं आदि का प्राकाशन।
सम्पादन- साझा-स्वप्न 1 (साझा-काव्य संग्रह)
सम्मान- विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित  
संपर्क- नई दिल्ली 
मोबाईल- 9312939295