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वसंत पञ्चमी की हार्दिक शुभकामनाएँ- अलका मिश्रा

वसंत पञ्चमी की हार्दिक शुभकामनाएँ- अलका मिश्रा

प्रवेशांक पर आपकी पहुँच एवं प्रतिक्रियाओं द्वारा उत्साहवर्धन करने हेतु आप सभी का हार्दिक आभार। आपसे यह निवेदन है कि आप निरंतर इसी प्रकार अपने सुझाव, रचनाएँ एवं प्रतिक्रियाएँ देकर हमारी इस यात्रा में हमारे सहयोगी बने रहें।

आप सभी को वसंत पञ्चमी की हार्दिक शुभकामनाएँ!

वसंत का मौसम आ चुका है और यदि हम प्रकृति के सान्निध्य में रह रहे हैं तो देख पा रहे होंगे कि जिन पौधों एवं वृक्षों की पत्तियाँ झड़ गई थीं, उन पर दोबारा नई-नई कोपलें फूटना प्रारम्भ हो चुकी हैं और मौसम का असर हमारी मनोदशा पर भी पड़ रहा है, नई कोपलों की भाँति नई आशाओं का भी सूत्रपात हो चुका है। वसंत  प्रेम का मौसम है इसी मौसम में प्रेमी युगल प्रेम का उत्सव मानते हैं और इसी मौसम में अंग्रेजी वैलेंटाइंस डे भी आता है तो हिंदी के प्रेमी युगल के लिए भी वसंत प्रेम का उल्लास लेकर आता है। इस मौसम में प्रेम के भाव हर आयु वर्ग के लोगों को आने प्रारम्भ हो जाते हैं। यह प्रेम के भाव दुनियावी प्रेम के हो सकते हैं तो ईश्वरीय प्रेम के भी हो सकते हैं।आप सभी को प्रेम मुबारक!

वसन्त पञ्चमी भी इसी मौसम में मनाई जाती है जिसमें कला एवं साहित्य से जुड़े लोग ज्ञानदायिनी माँ सरस्वती की पूजा कर अपनी कृतज्ञता तो ज्ञापित करते ही हैं साथ ही उनसे ज्ञान का वरदान भी माँगते हैं।

प्रकृति बिना माँगे हम पर अपने सभी संसाधनों को खुले हाथों से लुटा कर हमारे जीवन को सुगम बनाने के लिए निरंतर प्रयासरत है, बावजूद इसके कि हम विकास के नाम पर उसका दोहन लगातार किये जा रहे हैं जिससे धरती के वायुमण्डल का संतुलन लगातार बिगड़ता चला जा रहा है। वहीं दूसरी ओर हम अपने आस-पास के वातावरण को भी ज़हरीला बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। जाति, धर्म, भाषा, राष्ट्र और भी न जाने कितने ही मुद्दों को लेकर दिनों दिन इतनी नफ़रत फैला रहे हैं कि इतनी सुन्दर धरती की ऊर्जा को नकारत्मक बनाते जा रहे हैं बिना यह सोचे कि यह नकारात्मकता हमारे लिये ही हानिकारक है और इसका प्रभाव हमारे अपने मानसिक, शारीरिक व आध्यात्मिक क्षरण का कारण तो बन ही रहा है वहीं दूसरी ओर जिस सभ्यता एवं संस्कृति पर हम इतने गौरवान्वित होते हैं वह भी कहीं विलुप्त होती नज़र आ रही है। कई बार तो नफ़रत की आँधी इतनी प्रचण्ड हो जाती है कि ऐसा लगता है कि हम अपने भूतकाल में क़बीलाई वातावरण में पहुँच गये हैं जहाँ हमें अपने अस्तित्व को बचाने के लिए आक्रमकता आवश्यक थी।

वैचारिक दृष्टिबाधिता के साथ शक्ति एवं सामर्थ्य की निरंकुशता आज इतनी बढ़ चुकी है कि हम उचित एवं अनुचित में भेद करना भूलते जा रहे हैं। इसीलिये ‘वसुधैव कुटुंबकम’ एवं ‘जियो और जीने दो’ जैसी सूक्तियाँ अपने अर्थ खोती जा रही हैं और ऐसा प्रतीत हो रहा है कि जैसे हम जिस टहनी पर बैठे हैं उसी को काटने की जुगत लगा रहे हैं, बिना यह सोचे समझे कि उसी टहनी से हमारा अपना अस्तित्व भी सुरक्षित है। आज पीछे मुड़ कर देखने पर बहुत कष्ट होता है कि मनुष्यता के उत्कर्ष हेतु अब तक जितने भी प्रयास किए गये आज वह सब विस्मृत होते नज़र आते हैं। ऐसा लगता है कि प्रेम, सद्भाव आपसी भाईचारा आदि शब्द मात्र किताबों तक सीमित होकर रह गए हैं, अब उनकी दस्तक हमारे दिलों तक नहीं पहुँचती। ऐसे वातावरण में भी निश्चित रूप से कुछ लोग ऐसे हैं जो मानव जाति की गरिमा बनाए रखने हेतु संकल्पबद्ध हैं मैं उन सभी का आहवाहन करती हूँ कि वो हताश न हों और आशा एवं विश्वास की डोर को थामे अपने-अपने स्तर पर सकारात्मकता बनाए रखने हेतु प्रयास करते रहें चाहे वह धरती के वायुमण्डल को बचाने का प्रयास हो या कि मानवता को। जिस प्रकार गहरी अँधेरी रात के बाद स्वर्णिम सवेरा आता है और पतझड़ में पत्तियों के झड़ने के बाद वृक्षों पर वसंत के आते ही पुनः नई कोंपलें फूटती हैं वैसे ही इस ज़हरीले एवं नफ़रत भरे वातावरण के बाद पुनः स्वच्छ एवं प्रेम पूर्ण वातावरण आयेगा जिसमें वसंत का आना सार्थक प्रतीत होगा। ईश्वर से यही प्रार्थना है कि मनुष्यता पर पुनः वसंत आये और हर ओर प्रेम का महोत्सव हो जाये।

प्रवेशांक पर आपकी पहुँच एवं प्रतिक्रियाओं द्वारा उत्साहवर्धन करने हेतु आप सभी का हार्दिक आभार। आपसे यह निवेदन है कि आप निरंतर इसी प्रकार अपने सुझाव, एवं प्रतिक्रियाएँ देकर हमारी इस यात्रा में हमारे सहयोगी बने रहेंगे इसी आशा के साथ सभी अपनी लेखनी को विराम देती हूँ।                         

मनुष्यता पर वसंत के आगमन की प्रतीक्षा में...

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रचनाकार परिचय

अलका मिश्रा

ईमेल : alkaarjit27@gmail.com

निवास : कानपुर (उत्तर प्रदेश)

जन्मतिथि-27 जुलाई 1970 
जन्मस्थान-कानपुर (उ० प्र०)
शिक्षा- एम० ए०, एम० फिल० (मनोविज्ञान) तथा विशेष शिक्षा में डिप्लोमा।
सम्प्रति- प्रकाशक ( इरा पब्लिशर्स), काउंसलर एवं कंसलटेंट (संकल्प स्पेशल स्कूल), स्वतंत्र लेखन तथा समाज सेवा
विशेष- सचिव, ख़्वाहिश फ़ाउण्डेशन 
लेखन विधा- ग़ज़ल, नज़्म, गीत, दोहा, क्षणिका, आलेख 
प्रकाशन- बला है इश्क़ (ग़ज़ल संग्रह) प्रकाशित
101 महिला ग़ज़लकार, हाइकू व्योम (समवेत संकलन), 'बिन्दु में सिन्धु' (समवेत क्षणिका संकलन), आधुनिक दोहे, कानपुर के कवि (समवेत संकलन) के अलावा देश भर की विभिन्न साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं यथा- अभिनव प्रयास, अनन्तिम, गीत गुंजन, अर्बाबे कलाम, इमकान आदि में रचनाएँ प्रकाशित।
रेख़्ता, कविता कोष के अलावा अन्य कई प्रतिष्ठित वेब पत्रिकाओं हस्ताक्षर, पुरवाई, अनुभूति आदि में रचनाएँ प्रकाशित।
सम्पादन- हिज्र-ओ-विसाल (साझा शेरी मजमुआ), इरा मासिक वेब पत्रिका 
प्रसारण/काव्य-पाठ- डी डी उत्तर प्रदेश, के टी वी, न्यूज 18 आदि टी वी चैनलों पर काव्य-पाठ। रेखता सहित देश के प्रतिष्ठित काव्य मंचों पर काव्य-पाठ। 
सम्मान-
साहित्य संगम (साहित्यिक सामाजिक एवं सांस्कृतिक) संस्था तिरोड़ी, बालाघाट मध्य प्रदेश द्वारा साहित्य शशि सम्मान, 2014 
विकासिका (साहित्यिक सामजिक एवं सांस्कृतिक) संस्था कानपुर द्वारा ग़ज़ल को सम्मान, 2014
संत रविदास सेवा समिति, अर्मापुर एस्टेट द्वारा संत रवि दास रत्न, 2015
अजय कपूर फैंस एसोसिएशन द्वारा कविवर सुमन दुबे 2015
काव्यायन साहित्यिक संस्था द्वारा सम्मानित, 2015
तेजस्विनी सम्मान, आगमन साहित्य संस्था, दिल्ली, 2015
अदब की महफ़िल द्वारा महिला दिवस पर सम्मानित, इंदौर, 2018, 2019 एवं 2020
उड़ान साहित्यिक संस्था द्वारा 2018, 2019, 2021 एवं 2023 में सम्मानित
संपर्क- एच-2/39, कृष्णापुरम
कानपुर-208007 (उत्तर प्रदेश) 
 
मोबाइल- 8574722458