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ये मोहब्बत की सायबानी है- डॉ० साकेत रंजन प्रवीर

ये मोहब्बत की सायबानी है- डॉ० साकेत रंजन प्रवीर

फ़लसफ़ी  शायर मंचों से और मुशायरे लूटनेवाले शायर किताबों और रिसालों से मुसलसल ग़ायब होते चले गए। दर'अस्ल आज ऐसे गिनती के शो'अरा हैं जो मंच पर होते हुए भी अदब  को उसके हिस्से का हक़ देते हैं। इन्हीं चन्द शो'अरा और शायरात से ग़ज़ल के मुस्तक़बिल की उम्मीद बची है। नई नस्ल में ऐसे शो'अरा/शायरात की सफ़ में एक मख़सूस नाम चाँदनी पाण्डेय का है।

ग़ज़ल की तारीफ़ से मुत,अल्लिक़ मुख़्तलिफ़ मुज़ाकिरात में अगर ये ज़िक्र है कि ग़ज़ल एक दिल से दूसरे दिल तक का सफ़र है तो एक ख़ुसूसी ज़िक्र ये भी है कि ग़ज़ल अल्फ़ाज़ की बंदिश में जज़्बात का इज़हार है। ये इज़हार सिर्फ़ पैग़ाम नहीं है क्योंकि पैग़ाम तो फ़ल्सफ़ी का भी सरमाया है। जब ग़ज़लगो अपने जज़्बात का इज़हार करता है तो पैग़ाम के साथ साथ बयान, ज़बान, लहजा, हुस्न, अरूज़, बलाग़त, फ़साहत, सलासत वगैरह को भी यकसाँ तवज्जो देता है। 
 
ग़ज़ल अरसा दराज़ से किताबों की ख़ुशबू और मंचों की रंगत रही है। हालाँकि गुज़िश्ता चन्द सालों में ये ख़ुशबू और रंगत फीकी पड़ी है जब ये महसूस किया जाने लगा कि किताबी ग़ज़लें अदब से ज़ियादा फ़लसफ़ा हो गईं और मुशायरे फूहड़ और सतही हो गए। फ़लसफ़ी  शायर मंचों से और मुशायरे लूटनेवाले शायर किताबों और रिसालों से मुसलसल ग़ायब होते चले गए। दर'अस्ल आज ऐसे गिनती के शो'अरा हैं जो मंच पर होते हुए भी अदब  को उसके हिस्से का हक़ देते हैं। इन्हीं चन्द शो'अरा और शायरात से ग़ज़ल के मुस्तक़बिल की उम्मीद बची है। नई नस्ल में ऐसे शो'अरा/शायरात की सफ़ में एक मख़सूस नाम चाँदनी पाण्डेय का है। चाँदनी मंच की वो शायरा हैं जिन्होंने अदब के वक़ार से कभी कोई सुल्ह नहीं की. लुत्फ़ और क़ायदा दोनों का भरम रखते हुए अदबी अश'आर कहना चाँदनी की ख़ासियत है। सहले मुम्तना की शायरा हैं और मिसरों के साँचे में बड़ी से बड़ी बातों को सलीस और ख़ूबसूरती के साथ पेश करती हैं।
 
सख़्त से सख़्त ख़याल का नाज़ुकी के साथ पेश होना रंगे शायरी है। ये नज़ाकत इस शायरा में बख़ूबी है-
 
किसी गुलाब की सूरत मैं नर्म हूँ लेकिन
किसी चटान में ख़ुद को बदल भी सकती हूँ 
 
तुझे ख़याल भी आया कभी मेरे रहबर
तुझे मैं छोड़कर आगे निकल भी सकती हूँ 
 
इनमें रंगे तख़य्युल है तो हुक़ूक़े ज़िन्दगी की भी अक्कासी है-
 
दुःखों की झील नहीं है तो ज़िन्दगी क्या है 
हरेक आँख में हर वक़्त ये नमी क्या है
 
ख़ुशी से अपनी अना में हैं क़ैद हम ऐसे
हमे ख़बर भी नहीं है के ज़िन्दगी क्या है 
 
ग़ैर उर्दू पसेमंज़र से आने वाले शो'अरा सबसे ज़ियादा बहरे मुतदारिक मुसम्मन में अश'आर कहते हैं। शायद ये उनके लिए सबसे सहल होता है। लेकिन चाँदनी ने बहूरे मुफ़रद मसलन बहरे मुतक़ारिब, बहरे हज़ज और बहूरे ज़हाफ़ मसलन बहरे मुजतस मुसम्मन मख़बून महजूफ, बहरे मज़ारेअ मुसम्मन अख़रब मकफूफ़ महज़ूफ़, बहरे रमल- मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़, बहरे हज़ज मुसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ महज़ूफ़ वगैरह में पुख़्तगी के साथ बख़ूबी हसीन अश'आर कहे हैं। 

शायरा चाँदनी पाण्डेय का मज'मूआ-ए-कलाम ‘अब के बारिश तो सिर्फ़ पानी है’ ग़ज़लों और नज़्मों का एक ऐसा गुलदस्ता है जिसमें इश्क़, ग़म, ख़ुशी, उड़ान, उम्मीद, ख़्वाब जैसे फूल गुँथे हैं और सब के सब अपनी ख़ुशबू बिखेर रहे हैं। ज़िन्दगी की कड़ी धूप में चाँदनी के अश'आर के बादल मुहब्बत की सायबानी कर रहे हैं-
 
धूप  लगती है बादलों जैसी 
ये मोहब्बत की सायबानी है 
 
उम्मीद है ‘अब के बारिश तो सिर्फ़ पानी है’ अशिक़ाने ग़ज़ल के लिए अमृत लेकर आयेगा और दिल से दिल तक का सफ़र तय करने में कामयाब होगा. आमीन।
 
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रचनाकार परिचय

साकेत रंजन प्रवीर

ईमेल : saketwsu@gmail.com

निवास : भिलाई (छत्तीसगढ़)

नाम- डॉ० साकेत रंजन प्रवीर
जन्मतिथि- 7 फरवरी, 1969
जन्मस्थान- सारण, बिहार
लेखन विधा- ग़ज़ल
शिक्षा- पीएच.डी. 
सम्प्रति- प्राध्यापक
प्राकाशन- अनेक पत्र पत्रिकाओं में ग़ज़ल व ग़ज़ल पर आलेख प्रकाशित
सम्मान- उर्दू अकादमी छत्तीसगढ़, स्टील अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया लिमिटेड, इंदिरा गांधी ट्राईबल केंद्रीय विश्वविद्यालय के साथ-साथ कई संस्थानों से सम्मानित
प्रसारण- आकाशवाणी, दूरदर्शन रेडियो मिर्ची, आईबीसी 24 से रचनाएं प्रसारित
विशेष- डब्लू एस विश्वविद्यालय इथियोपिया के शोध सलाहकार, छत्तीसगढ़ तकनीकी विश्वविद्यालय के पूर्व संकाय अध्यक्ष, छत्तीसगढ़ उर्दू अकादमी के सदस्य
संपर्क- 15 मेरीगोल्ड, चौहान ग्रीन वैली, स्मृति नगर, भिलाई, छत्तीसगढ़ 490020
मोबाइल- 6263168945