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ज़िंदगी के सच्चे अफ़साने- डॉ० राकेश शुक्ल

ज़िंदगी के सच्चे अफ़साने- डॉ० राकेश शुक्ल

जया राजपूत की कहानियाँ ऐसी ही हैं, जिनमें ज़िंदगी के सच्चे अफ़साने हैं --बिल्कुल सच्चे। झूठ कुछ भी नहीं। वैसे भी कहानियाँ झूठी नहीं होतीं। उतनी ही तिक्त- मधुर, नर्म और कठोर, जितना हमारा जीवन।

सबके जीवन में सैकड़ों, हज़ारों कहानियाँ होती हैं। हमारी अपनी, अपनों की, और दूसरों की भी। स्मृतियों का खजाना, अनुभूतियों का संसार और कल्पनाओं की उड़ान ये कहानियों के रूप में संचित रहती हैं। हम किसी को देखते हैं, मिलते हैं। वह जाते-जाते हमें अपनी एक कहानी दे जाता है। मनुष्य ही नहीं, पेड़-पौधे, पुष्प, पहाड़, झील-झरने और जीव-जंतुओं के अफ़साने भी हमारी ज़िंदगी में अनिवार्यतः शामिल रहते हैं।

जया राजपूत की कहानियाँ ऐसी ही हैं, जिनमें ज़िंदगी के सच्चे अफ़साने हैं --बिल्कुल सच्चे। झूठ कुछ भी नहीं। वैसे भी कहानियाँ झूठी नहीं होतीं। उतनी ही तिक्त- मधुर, नर्म और कठोर, जितना हमारा जीवन।

तो चलो, इस संग्रह की कहानियों पर कुछ बात कर ली जाए। 'उस रात की सुबह' बहुत ही मार्मिक कहानी है। रम्मो उर्फ रमा शुक्ला की कहानी, प्रतिभा और सद्गुणों की खान रम्मो। एक छोटी-सी घटना ने उसके जीवन को अँधेरी गुफ़ाओं में कैद कर दिया, और विक्षिप्तावस्था से मृत्यु के आगोश में जाने को अभिभप्त किया। कहानी का अंत थोड़ा आदर्शवादी है।

'रश्मि का चरित्र' एक उभरती हुई कथा-लेखिका निमिषा की प्रश्नाकुलता से प्रारम्भ होती है। उसके आदर्श लेखक, वरिष्ठ कथाकार मधुसूदन दत्त के कथा-पात्र उसकी प्रेरणा के विषय हैं। खासकर उनके स्त्री-पात्र। उनके कथा-पात्र जितने आदर्श और प्रेरणास्रोत दिखते हैं, क्या मधुसूदन का व्यक्तिगत जीवन भी उतना ही आदर्श और प्रेरणाप्रद है? यह कुतूहल अंत तक हमे बाँधे रखता है।

सदियों से सभ्यता और संस्कृति का काम मनुष्य को और अधिक संवेदनशील तथा मानवीय बनाना रहा है। सम्बन्धों में रागात्मकता, उष्णता पैदा करना और भीतरी अँधेरों को मिटाना भी। लेकिन आज हम सभ्यता की जिस की अंधी दौड़ में शामिल हैं, उसमें तो स्वार्थपरता, लोभ और लालच ही सर्वोपरि है। पड़ोसी तक के दुःख-सुख से हमारा कोई सरोकार नहीं रह गया है। ऐसे में 'नेहा' कहानी की कथा-नायिका सिलबिल का मासूम चरित्र हमें बहुत प्रभावित करता है।

देश का बहुत विकास हो रहा है। हम खुश हैं। पर इस विकास के पीछे कितना नारकीय जीवन है। गन्दगी है, गरीबी है, और उन गरीबों के अंतहीन दुःख हैं। 'निषिद्ध' कहानी किसी भी संवेदशील मनुष्य को गर्म सलाखों की तरह चुभती है। शहर की झोपड़पट्टी में रहने वाला दीनू अपनी पत्नी के साथ कबाड़ बीनने का काम करता है, जिसमे कभी-कभी कुछ काम का सामान भी मिल जाता है। उसकी गृहस्थी में उपयोग होने वाला बहुत -सा समान कचरे के ढेर में मिला था। दीनू और लख्खी औरों से थोड़ा अलग हैं। वे अपनी चार-पाँच साल की बेटी ऐसुरिया उर्फ ऐश्वर्या को पढ़ाते-लिखाते हैं। एक दिन वह भी अपने माता-पिता के साथ कबाड़ का सामान बीनने जाती है, और अपने आने वाले भाई के लिए पुराने जमाने का रंग-बिरंगे झुनझुने बंधे झूले को देखकर उसे उठाने दौड़ती है, और तभी कंटेनरों द्वारा पलटे गए कूड़े के ढेर में दफन हो जाती है। ऐसे न जाने कितने हादसे झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों के जीवन मे होते रहते हैं, पर वे अखबारों की एक पंक्ति की खबर तक नहीं बनते।

जया जी की कहानियों के अनेक दृश्य हमें बेचैन और विक्षुब्ध करते हैं, तो अनेक आत्मचिन्त करने को विवश भी। 'कहाँ हो तुम? वृंदा' उन तमाम वृंदा जैसी गृहणियों की कहानी है, जो आजीवन, अहर्निश अपने पति और बच्चों की सेवा में संलग्न रहती हैं, तथा मौन रहकर पति की झिड़कियां, गालियां, यहां तक कि मार-पीट भी सहती रहती हैं। गजानन बाबू को उस दिन वृंदा के मान और महत्व का पता चलता है, जब वह नहीं रहती, और वे बेटे-बहू के आश्रित होते हैं। तब "गजानन बाबू को घर, घर नहीं लगता। आत्मा बगैर शरीर, कुछ ऐसा ही लगता है।" कहानी लेखिका का यह वाक्य कितना अर्थपूर्ण है, " पुरुष सुविधाओं को खरीदने में उम्र गवां देता है, और स्त्री खुशी पाने की आस में उम्र बिता देती है।"

'समीकरण का सच' तीन सहपाठियों की कुतूहल और सस्पेंस से भरी एक रोचक कहानी है। जिसका मर्म कथा-लेखिका के शब्दों में, " लोग कहते हैं कि कहानियां और सपने कभी सच नहीं होते, ये तो कल्पना की उड़ान भर हैं। असल ज़िंदगी का इससे क्या वास्ता? लेकिन कभी-कभी सच्चाई इतनी बड़ी अकल्पनीय और अविश्वसनीय-सी होती है कि उसके आगे आसमान भी छोटा पड़ जाता है।"

'गली-गली अजगर' में ढोंगी, पाखण्डी तांत्रिक बाबाओं के दुष्कृत्यों को उजागर किया गया है, तो 'एक मनोहर की मौत' और 'उनके हिस्से का सुख' भी अलग-अलग विषय वस्तु की सार्थक कहानियाँ हैं। थोड़ी इतिवृत्तात्मक, पर सन्देशप्रद।

'साहब, हवेली और परिंदे' अद्भुत कहानी है। ठाकुर विजयेंद्र पाल सिंह के परिवार , गाँव और एक घटना पर केंद्रित दीर्घ वितान की यह कहानी सुधाकर पण्डित की स्मृतियों और एकालाप के सहारे हम तक पहुँचती है। इसे पढ़ते हुए हमारे जैसे वे लोग जो लगभग आधी शताब्दी का जीवन पार कर चुके हैं और जो थोड़ा-बहुत अपने गाँव-समाज से जुड़े रहे हैं, की स्मृतियाँ पखेरुओं की तरह पंख लगाकर उड़ने लगती हैं। कहानी अतीत के बुर्जुवा, सामन्ती परिवेश और समाज का जीवन्त लेखा-जोखा है। जब विज्ञान और टेक्नोलॉजी का हमारी ज़िंदगी में इतना हस्तक्षेप नहीं हुआ था, तब ग्राम्य स्त्री-पुरुषों, बच्चों और बुज़ुर्गों का सामाजिक जीवन, दिनचर्या, रहन-सहन, खान-पान, मनोरंजन के साधन, नौटंकी वाली बाइयों के लटके-झटके, तीन दिन तक रुकने वाली बारातों के चाक्षुष विवरण, स्त्रियों की दशा, विशेषकर बहुओं की, आदि के सूक्ष्म और जीवंत विवरण इसे उपन्यास का फलक प्रदान करते हैं। उस परिवेश में सामान्यतः लड़कियों को यह पता ही नहीं होता था कि प्रेम किस चिड़िया का नाम है? और अगर भूले-भटके यह पता चल भी जाता था, तो उसका अंजाम क्या होता था, हम यह भी जानते हैं।

'अंजाम' उन लेखकों और सम्पादकों की विकृत मानसिकता तथा यौन कुंठाओं को उजागर करती है, जो न सिर्फ व्यभिचारी हैं, बल्कि इसे साहित्य में भी दुहते हैं। 'थैंक यू मालती मै'म' एक सामान्य रंग-रूप वाले युवती में आत्मविश्वास पैदा करने वाली सार्थक और सन्देशप्रद कहानी है।

संग्रह की कहानियों में विषयों का वैविध्य है, तो ये शिल्प के आतंक से भी रहित हैं। सहज, सरल और कथारस से भी भरपूर इन कहानियों का साहित्य जगत में निश्चित ही स्वागत होगा।

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समीक्ष्य पुस्तक- उस रात की सुबह 
लेखक-
डॉ० जया राजपूत 
प्रकाशक-
इरा पब्लिशर्स, कानपुर 
पृष्ठ संख्या- 
128 
मूल्य- 
रु. 200/

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रचनाकार परिचय

राकेश शुक्ल

ईमेल : rakeshshukla940@gmail.com

निवास : कानपुर (उत्तरप्रदेश)

जन्मतिथि22-04-1967
जन्मस्थान- फ़तेहपुर(उत्तर प्रदेश)
शिक्षा- एम० ए० (हिन्द), पी० एच० डी० 
संप्रति- प्रोफ़ेसर, हिन्दी विभाग , वी० एस० एस० डी० कॉलेज, कानपुर
प्रकाशन-
प्रकाशित पुस्तकें-
1.जलता रहे दीया (कविता संग्रह) सन् 2002 ई0
2.नई कविता में उदात्त तत्व (शोध-समीक्षा), 2008 ई0
3.उनकी सृष्टि अपनी दृष्टि (पुस्तक-समीक्षाएँ एवं टिप्पणियाँ), 2019 ई0
सम्पादित पुस्तकें-
1.छायावादोत्तर काव्य संचयन, 2005 ई0
2.हमारा समय और साहित्य, 2014 ई0
3.प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्य, 2016 ई0
4.अद्यतन काव्य, 2016 ई0
5.हिन्दी काव्य, 2021 ई0
6.कार्यालयी हिन्दी और कम्प्यूटर, 2022 ई0
7.हिन्दी गद्य,  2022 ई0
प्रकाशित कार्य-
● 75 शोध पत्र राष्ट्रीय शोध पत्रिकाओं एवं पुस्तकों में प्रकाशित।
● 50 से अधिक आलेख, एक दर्जन कहानियाँ एवं दो दर्जन से अधिक कविता, गीत, ग़ज़ल आदि प्रकाशित। 
● 100 से अधिक पुस्तक समीक्षाएँं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित।
शोध निर्देशन- 16 विद्यार्थियों का शोध निर्देशन एवं 22 विद्यार्थियों के लघु शोध का निर्देशन। 
राष्ट्रीय संगोष्ठियों/ कार्यशालाओं में प्रतिभागः
● राष्ट्रीय एवं अन्य संगोष्ठियों में विषय विशेषज्ञ/अतिथि वक्ता के रूप में 100 से अधिक व्याख्यान।
● राष्ट्रीय संगोष्ठियों में प्रतिभागी के रूप में 50 से अधिक शोध पत्रों का वाचन।
सम्पादन-
● ’वन्दना डाइजेस्ट’ (साहित्य की त्रैमासिकी) कानपुर, सन् 2000 ई0 से 2008 तक।
● ’ऋतम्भरा’, कॉलेज की पत्रिका 2009 से अद्यावधि।
● ’पुनरीक्षण’, कॉलेज की पत्रिका, 1995-2008 तक।
सहभागिता/दायित्व- 
● उपाध्यक्ष, भारतीय विचारक समिति। 
● जनपद प्रभारी, अखिल भारतीय साहित्य परिषद (10 वर्षों तक)। 
● अनेक शैक्षिक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में योगदान।
प्रसारण- आकाशवाणी लखनऊ से विभिन्न विषयों पर दो दर्जन से अधिक वार्ताएँ प्रसारित।
सम्मान- विभिन्न संस्थाओं द्वारा दो दर्जन सम्मान प्राप्त जिनमें कतिपय महत्वपूर्ण।
● कृति ‘जलता रहे दीया’ के लिए उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल श्री विष्णुकान्त शास्त्री द्वारा राजभवन में सम्मान।
● श्री महावीर प्रसाद दीक्षित अलंकरण (औरैया हिन्दी प्रोत्साहन निधि, 2003)
● हिन्दी साहित्य सेवा सम्मान कर्नाटक के राज्यपाल श्री टी०एन० चतुर्वेदी द्वारा (श्री महेश चन्द्र द्विवेदी ज्ञान प्रसार संस्थान, लखनऊ 2006)
● डॉ० रामविलास शर्मा समीक्षा सम्मान (अखिल भारतीय मंचीय कवि पीठ लखनऊ, 2012)
● ‘साहित्य श्री’ सम्मान गुजरात के राज्यपाल श्री ओ०पी०कोहली द्वारा (जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय युवा केन्द्र, कानपुर, 2016)
● भाषेन्दु भारती सारस्वत सम्मान (हिन्दी प्रचारिणी समिति कानपुर, 2016)
● सारस्वत सम्मान (प्रेस्टिज संस्था देवरिया, 2016)
● साहित्य सेवा सम्मान, बिहार के राज्यपाल श्री रामनाथ कोविंद द्वारा (भारतीय विचारक समिति, जून 2017)
● साहित्य भूषण सम्मान (अखिल भारतीय साहित्य परिषद, 2017)
● शिक्षक-साहित्यकार अलंकरण (शिवोऽहम संस्था, कानपुर, 2018)
● समीक्षा के लिए ‘इनोवेशन लीडरशिप एवार्ड’ (पं० बंगाल के राज्यपाल श्री केशरीनाथ त्रिपाठी द्वारा (पं0 विश्वम्भरनाथ शर्मा कौशिक स्मारक समिति, कानपुर, 2018)
● पद्मश्री श्याम नारायण पाण्डेय स्मृति कीर्ति भूषण अलंकरण (केरल के राज्यपाल श्री आरिफ मोहम्मद खान द्वारा, 2022)
● हिन्दी भाषा रत्न मैथिलीशरण गुप्त सम्मान (इंटिग्रेटेड सोसायटी आफ मीडिया प्रोफेशनल्स द्वारा, 2022) 
अन्य- विभिन्न विश्वविद्यालयों में पी.एच.डी. के परीक्षक, विषय विशेषज्ञ चयन समिति, अनेक प्रान्तों के लोक सेवा आयोगों के विशिष्ट दायित्वों का निर्वहन।
सम्पर्क- ‘सांकृत्यायन’ 117/254-ए, पी-ब्लॉक हितकारी नगर, काकादेव, कानपुर(उत्तर प्रदेश)-208025      
मोबाइल- 983997046