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चक्रधर शुक्ल की बाल कविताएँ

चक्रधर शुक्ल की बाल कविताएँ

चक्रधर शुक्ल साहित्य के उत्थान लिए निरंतर क्रियाशील हैं । कानपुर में जितनी भी साहित्यिक गतिविधियाँ होती हैं उनके केन्द्रबिन्दु में आपका होना अनिवार्य है। आप श्रेष्ठ क्षणिकाकार, व्यंगकार होने के साथ ही बाल साहित्य के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए निरंतर प्रयास करते रहते हैं। 

अमरबेल न बनना

इन बेलों से सीखो जी
कैसे यह दीवाल चढ़े,
बिना सहारे चढ़ जाती
लिपट-लिपटकर ख़ूब बढ़े।

बच्चों देखो बेलों को
पकड़ बनाती चलती हैं,
फैल रहीं हैं जगह-जगह,
अच्छी कितना लगती हैं।

कुछ परजीवी भी होतीं
पेड़ों पर छा जाती हैं,
पीले-पीले रंग वाली
अमरबेल कहलाती हैं।

पेड़ों पर आश्रित होकर
भोजन-पानी पाती हैं,
कभी न बनना अमरबेल
जीवन-सीख सिखाती हैं।।

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खरबूजा

खरबूजा कितना मीठा है,
महक मिली, आता चींटा है।

अम्मा मंदिर भी ले जाती,
सब देवों में इसे चढ़ाती।

एकादशी में रखती ध्यान,
खरबूजा संग, शरबत दान।

लौह तत्व भी पाया जाए,
प्रतिरोधकता ख़ूब बढ़ाए।

इसका बीज बड़ा गुणकारी,
इसको खाते हैं नर-नारी।

वट सावित्री व्रत जब आए,
खरबूजे की माँग बढ़ाए।

उपचारक फल यह कहलाता,
खरबूजा से जाना जाता।।

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गन्ने का रस

गन्ने का रस है उपयोगी,
पीता इसे पीलिया रोगी।

दादी जी रसिआउर खाती,
इसमें मट्ठा-दही मिलाती।

बर्फ डाल के पीती नानी,
दिनभर सुनिए राम-कहानी।

दादा खट्टा दही मिलाते,
पीकर खेत-बाग़ में जाते।

बोतल में भरकर रख देती,
अम्मा रस सिरका कर देती।

कोल्डड्रिन्क से यह रस अच्छा,
पीकर ख़ुश हो जाता बच्चा।।

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सत्तू

सत्तू का बाज़ार गरम,
खाते गरमी हुई नरम।

लू से पारा हाई है,
ए०सी० की बन आयी है।

जीरा-सत्तू गुणकारी,
बतलाती है महतारी।

शरबत सत्तू का पीते,
मस्ती में दादा जीते।

लिट्टी-चोखा खाओगे,
सत्तू उसमें पाओगे।

सत्तू जो भी खाएगा,
गर्मी से बच जाएगा।।

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आम फलों का राजा

आम बाग़ में बौराए,
छोटे-छोटे फल आए।

उनको कहते हैं केरी,
पकने में होगी देरी।

आम फलों का राजा है,
बिकता ताजा-ताजा है।

होता बहुत रसीला है,
मन को भाता पीला है।

हापुस का क्या कहना जी,
दाम में ऊँचे रहना जी।

देशी होता गुणकारी,
गुण बतलाती महतारी।

लगड़ा, हिंगहा, दशहरी,
खाते ख़ूब गाँव-शहरी।

तुम भी लाओ, खाओ जी,
अपनी प्यास बुझाओ जी।।

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रचनाकार परिचय

चक्रधर शुक्ल

ईमेल : chakradharshukl78@gmail.com

निवास : कानपुर (उ. प्र.)

जन्मतिथि- 18 जनवरी, 1957 
जन्मस्थान- खजुहा, जिला- फतेहपुर (उ. प्र.) 
पिता- पं. कृष्ण दत्त शुक्ल
माता- श्रीमती सावित्री देवी शुक्ला
पत्नी- श्रीमती दीपा शुक्ला
शिक्षा- बी.एस-सी., एम.ए. (अर्थशास्त्र)
प्रकाशन- अँगूठा दिखाते समीकरण (क्षणिका -संग्रह) 2015, दादी की प्यारी गौरैया (बाल कविता संग्रह) 2018, हास्य-व्यंग्य सरताज : चक्रधर शुक्ल 2019
सम्पादन- 'सुगंध-ज्योति से हवन के बीच' का संपादन', 'आईने रूठे हुए' (डॉ. सुरेश अवस्थी जी का व्यंग्य संकलन), 'कुछ उपमेय : कुछ उपमान', 'पत्रकारिता प्रदीप- प्रताप' तथा 'प्रार्थना में' का सहसम्पादन। समकालीन सांस्कृतिक प्रस्ताव पत्रिका के बाल विशेषांक का अतिथि सम्पादन। 'चाँई-माँई खेलो' (बाल कविता संकलन) में सम्पादन सहयोग।
प्रसारण- दूरदर्शन एवं आकाशवाणी से।
अन्य- अनेक पत्र-पत्रिकाओं, वेबपत्रिकाओं एवं प्रतिष्ठित साहित्यकारों द्वारा संपादित करीब 50 संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित। बाल साहित्य में सक्रियता गोष्ठी-विमर्श के साथ सम्मान समारोह का आयोजन/संचालन। अतीत की धरोहर : खजुहा, फतेहपुर के वृत्तचित्र आलेख लेखन में सहयोग। 
लेखन विधा- हास्य-व्यंग्य, ग़ज़ल, बाल कविता, क्षणिका, हाइकु, दोहा तथा आलेख आदि।
सम्बद्धता- मासिक पत्रिका दि अण्डरलाइन के सम्पादकीय सलाहकार का दायित्व 2020 से। संगठन मंत्री- भारतीय बाल कल्याण संस्थान, कानपुर तथा बाल साहित्य संवर्धन संस्थान के संस्थापक सदस्य।
सम्मान- साहित्य मण्डल श्रीनाथ द्वारा बाल साहित्य भूषण सम्मान, अम्बिका प्रसाद दिव्य स्मृति सम्मान, भोपाल, पं. हर प्रसाद पाठक स्मृति बाल साहित्य सम्मान, मथुरा, भारतीय बाल कल्याण संस्थान, कानपुर, मानस संगम, कानपुर, प्रभा स्मृति बाल साहित्य सम्मान, शाहजहाँपुर एवं विकासिका सहित अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानित। 
सम्प्रति- स्वतन्त्र लेखन।
सम्पर्क- एल.आई.जी.- 1, सिंगल स्टोरी, बर्रा- 6, कानपुर (उ. प्र.)
पिन कोड- 208027
मोबाइल- 9455511337