Ira
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। दिसंबर 2024 के अंक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।

डॉ० अमर कांत कुमर की दो पुस्तकों का लोकार्पण

डॉ० अमर कांत कुमर की दो पुस्तकों का लोकार्पण

डॉ० अमर कांत कुमर की दो पुस्तकें गा बंजारा (गीत संग्रह) और समय के साये (ग़ज़ल संग्रह) का लोकार्पण समारोह आयोजित किया गया। यह समारोह एक मनोरम-सारस्वत साहित्यिक समारोह के रूप में संपन्न हुआ।

दरभंगा शहर स्थित महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह मेमोरियल महाविद्यालय के सभागार में दिनांक 9 जून, 2024 (रविवार) को डॉ० अमर कांत कुमर की दो पुस्तकें 'गा बंजारा' (गीत संग्रह) और 'समय के साये' (ग़ज़ल संग्रह) का लोकार्पण समारोह आयोजित किया गया। यह समारोह एक मनोरम-सारस्वत साहित्यिक समारोह के रूप में संपन्न हुआ। समारोह में न सिर्फ दरभंगा बल्कि बाहर से आए हुए अनेक साहित्य-प्रेमियों ने इस साहित्यिक समागम में रसास्वादन किया। समारोह की अध्यक्षता हिंदी के जाने-माने समालोचक-ललित निबंधकार, विश्वविद्यालय हिंदी विभाग, ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के पूर्व अध्यक्ष प्रोफ़ेसर प्रभाकर पाठक ने की। समारोह में बतौर मुख्य अतिथि कथाकार, कवि-आलोचक, हिंदी की प्रतिष्ठित पत्रिका 'साहित्य यात्रा' के संपादक प्रोफ़ेसर कलानाथ मिश्र की गरिमामय उपस्थिति रही। विशिष्ट वक्ता के रूप में जाने-माने कवि, गीतकार, लोकगीतों के क्षेत्र में अत्यंत लोकप्रिय डॉ० रत्नेश्वर सिंह का आगमन पटना से हुआ। मुख्य वक्ता के रूप में विश्वविद्यालय हिंदी विभाग ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के पूर्व अध्यक्ष प्रोफ़ेसर अजीत कुमार वर्मा की सारस्वत उपस्थिति रही। कार्यक्रम में बतौर विशिष्ट वक्ता कवि श्री शंकर प्रलामी और बैजनाथ मिश्र एवं ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय दरभंगा के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ० उमेश कुमार उत्पल मंचासीन रहें। आगत अतिथियों के स्वागत हेतु बतौर स्वागताध्यक्ष, महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह मेमोरियल महाविद्यालय, दरभंगा के प्रधानाचार्य शंभू कुमार सिंह मंचासीन रहे। मंच का सम्मोहक संचालन डॉ० रामचंद्र सिंह चंद्रेश एवं धन्यवाद ज्ञापन महाविद्यालय के प्राध्यापक डॉ० ज्वालाचंद्र चौधरी ने किया। प्रसिद्ध कवि, पत्रकार, पूर्व प्रोफ़ेसर डॉ० कृष्ण कुमार झा आदि मंच पर आसीन थे।

श्रोता के रूप में भी बड़ी संख्या में जैन समूह की उपस्थिति सभागार में बनी रही। डॉ० उमेश कुमार शर्मा (सीतामढ़ी), डॉ० चंदीर पासवान, डॉ० अमित कुमार मिश्र (मधेपुरा), डॉ० नियति कुमारी (दरभंगा), डॉ० रीना यादव (दरभंगा) जैसे विभिन्न शहरों से साहित्य प्रेमियों का आगमन इस समारोह में दर्ज की गई। इनके अलावा भी शताधिक साहित्य प्रेमी, जिनके नाम का उल्लेख स्थानाभाव के कारण किया जाना संभव नहीं है, सभा में उपस्थित रहे। इस साहित्यिक समागम की शुरुआत मंचासीन अतिथियों के स्वागत से हुई। अतिथियों का स्वागत करते हुए अंग वस्त्र, पुष्पगुच्छ, मिथिला का परंपरागत पाग, माला आदि अर्पित कर किया गया।

तदुपरांत मंचासीन विद्वतजनों ने पुस्तक को अनावृत्त करते हुए पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया। पुस्तक पर परिचर्चा की शुरुआत करते हुए मुख्य अतिथि डॉ० कलानाथ मिश्र ने कहा कि अमर कांत कुमर एक भावुक और प्रकृति प्रेमी साहित्यकार हैं। उनके गीत एवं ग़ज़ल एक ओर तो प्राकृतिक सौंदर्य एवं उपमानों से भरे पड़े हैं, दूसरी ओर वे जन-सरोकारों से भी गहराई से जुड़े हुए हैं। जनहित से जुड़ा हर पहलू उनकी रचनाओं में उद्घाटित है। न सिर्फ भाव पक्ष की दृष्टि से अपितु शिल्प की दृष्टि से भी अमर कांत कुमर की रचनाएँ बेजोड़ हैं। उन्होंने रेखांकित किया कि ग़ज़ल संग्रह की पहली ग़ज़ल का पहला शेर 'जहाँ का दर्द पचा लो तो ग़ज़ल लिखना/ अश्क आँखों में छुपा लो तो ग़ज़ल लिखना' उनके ग़ज़ल लेखन के उद्देश्य को दर्शाता है। इस एक शेर में उनके ग़ज़ल लिखने की प्रेरणा को टटोला जा सकता है। उनका स्पष्ट मत है कि जो व्यक्ति समाज के दर्द को अपने भीतर पचा ले, वही ग़ज़ल लिखने का साहस करे।

विशिष्ट वक्ता के रूप में उपस्थित डॉ० रत्नेश्वर सिंह ने कहा, अमर कांत कुमर जितना सुंदर लिखते हैं, उतना ही सुंदर गायन भी करते हैं। उन्होंने कहा कि अनेक अवसरों पर मैंने अमर कांत जी के गीत और ग़ज़ल सुने हैं। गीत के साथ ग़ज़ल भी वे तरन्नुम में गाते हैं और दोनों ही अत्यंत मनमोहन रहते हैं। आज यहाँ लोकार्पित दोनों ही संग्रहों में मौजूद उनके सभी गीत और ग़ज़लें बेजोड़ हैं। डॉ० अमरकांत कुमर के शेर 'सिर्फ परछाइयों का यह शहर बुलंद हुआ / इसमें इंसान उगा लो तो ग़ज़ल लिखना' को उद्धृत करते हुए डॉ० सिंह ने कहा कि अमर कांत जी मानव समाज में इंसानियत को जिलाए रखने की वकालत करने वाले ग़ज़लकार हैं। डॉ० रत्नेश्वर सिंह ने अमर कांत कुमर के कुछ गीत और ग़ज़लों को गाकर समा बांधा।

हिंदी विभाग ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर अजीत कुमार वर्मा ने अमर कांत कुमर के गीतों की चर्चा करते हुए कहा कि उनके गीत पाठकों के लिए प्राणवायु की तरह काम करते हैं और मुर्दा शरीर में भी प्राण फूँकने की क्षमता रखते हैं। उन्होंने कहा कि डॉ० कुमर के स्वर से अमृत की वर्षा होती है। उनके गीतों-ग़ज़लों को मैं निरंतर सुनता रहा हूँ। एक वाक्ये का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि एक बार जब मैं बीमार होकर अस्पताल में पड़ा था तब अमर कांत मुझे देखने आए थे और मैंने उनसे एक गीत सुनाने को कहा। भाव-विह्वल होकर उन्होंने जो गीत सुनाया था, उससे मुझे अपने भीतर एक नवीन ऊर्जा का संचार होता महसूस हुआ। इनके गीतों में एक जादुई शक्ति है। इनका कंठ प्रकृति के द्वारा इन्हें मिला एक अनुपम उपहार है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रोफ़ेसर प्रभाकर पाठक ने डॉ० अमर कांत कुमर को दरभंगा के समकालीन सर्वाधिक चर्चित व्यक्तित्व के रूप में रेखांकित करते हुए कहा कि कविता हृदय का स्वच्छंद प्रवाह है और गीत-ग़ज़ल आदि उसकी लोक लहरें हैं। अमर कांत कुमर की दोनों पुस्तकें सारस्वत साधना का फल हैं। इस क्रम में डॉ० प्रभाकर पाठक ने हिंदी गीत के तात्विक पहलुओं पर विचार रखते हुए दिखलाया कि अमरकांत कुमर के गीत, हिंदी गीत परंपरा में एक नई ऊंचाई को जोड़ने का काम करते है। हिंदी ग़ज़ल के विकास क्रम पर भी उन्होंने अपनी बात रखते हुए अमर कांत कुमर की ग़ज़लों के तत्वों पर विचार प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि दरभंगा के साहित्यकारों में डॉ० अमर कांत कुमर अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाने में सफल रहे हैं। उनकी रचनाओं में गहरी मानवीयता बोध देखने को मिलती है।

महाविद्यालय के पूर्व प्राध्यापक एवं हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ० कृष्ण कुमार झा ने अमर कांत कुमर के गीत 'मन महकने लगा तन बहकने लगा' का गायन करते हुए कहा कि उनके गीतों में यह गीत सर्वाधिक प्रसिद्ध है। दरभंगा में इस गीत ने सबसे पहले अमर कांत कुमर को स्थापित करने का कार्य किया। इसके बाद वे राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने में सफल रहे। साथ ही उन्होंने यह भी कहा की शुरुआती दिनों में मैं अमर कांत जी को कई जगहों पर लेकर जाया करता था। गीतकार के रूप में इनका परिचय कराता था और लोग बड़े चाव से इनके गीत सुना करते थे। मौके पर कवि शंकर प्रलामी जी ने अमर कांत कुमर के साहित्यिक सफ़र पर विचार प्रस्तुत किया। महाविद्यालय के संस्थापक डॉ० बैद्यनाथ चौधरी बैजू ने मैथिली में अपनी बात रखकर सभा को मुग्ध किया।

श्रोताओं के अनुरोध पर अमर कांत कुमर जी ने अपने सद्य: लोकार्पित ग़ज़ल संग्रह 'समय के साये' से एक ग़ज़ल- 'जहां का दर्द पचा लो तो ग़ज़ल लिखना/
अश्क आँखों में छुपा लो तो ग़ज़ल लिखना/ क़तरा-क़तरा है लहू कर्ज ज़माने का तेरा/ उन पे कुछ प्यार लुटा लो तो ग़ज़ल लिखना' का तरन्नुम में गायन करते हुए समारोह को रस-विभोर कर दिया। साथ ही उन्होंने अपने गीत संग्रह 'गा बंजारा' से अपने लोकप्रिय प्रेम-गीत 'मन महकने लगा, तन बहकने लगा' एवं लोक-जीवन के दर्द को लोकगीत के स्वर में प्रस्तुत करने वाले गीत 'कमला की बाढ़' का गायन कर पूरी सभा का मन मोह लिया।

पूरा समारोह डॉ० रामचंद्र सिंह चंद्रेश के कुशल संचालन से जीवंत बना रहा। डॉ० ज्वाला चंद्र चौधरी ने मंचासीन विद्वतजनों एवं सभा में आए साहित्य प्रेमियों का अभिवादन करते हुए उनका धन्यवाद ज्ञापन किया। साहित्यिक समारोहों की कड़ी में यह सारस्वत समारोह एक अमिट छाप छोड़ते हुए सफलता के उत्कर्ष को समेटने में सफल रहा।

******************

(प्रस्तुतकर्ता: डॉ० अमित कुमार मिश्रा)

0 Total Review

Leave Your Review Here

रचनाकार परिचय

अमित कुमार मिश्रा

ईमेल : amitraju532@gmail.com

निवास : उदाकिशुनगंज, मधेपुरा (बिहार)

नाम- डॉ० अमित कुमार मिश्रा
जन्मस्थान- जानीपुर, सीतामढ़ी (बिहार)
जन्मतिथि- 06 मई 1993
शिक्षा- एम.ए., पी. एच.डी.
सम्प्रति- सहायक प्राध्यापक, एच.एस.कॉलेज, उदाकिशुनगंज (मधेपुरा)
लेखन विधाएँ- कविता, कहानी, व्यंग्य, आलोचना
प्रकाशन- २१ वीं सदी में बिहार की साहित्यिक पत्रकारिता (पुस्तक), छः सांझा संकलन एवं पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित

सम्मान/पुरस्कार- 'हिन्दी रत्न सम्मान' - बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन, पटना
निवास- उदाकिशुनगंज, मधेपुरा
मोबाइल- 9304302308