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छन्द के गुण- मनोज शुक्ल 'मनुज'

छन्द के गुण- मनोज शुक्ल 'मनुज'

इस बार छंद को छन्द बनाने के लिए उसके गुणों के विषय में विस्तार से जानिए। 

काव्य गुण

काव्य में आंतरिक सौन्दर्य तथा रस के प्रभाव से स्थायी रूप से विद्यमान तत्व को काव्य गुण कहते हैं। ये कविता में उसी प्रकार विद्यमान रहता है जैसे व्यक्ति में आत्मा। मुख्यतः माधुर्य, ओज, प्रसाद ये तीन काव्य गुण हैं।

माधुर्य गुण

किसी काव्य को पढने या सुनने से ह्रदय में मधुरता का संचार होता है , वहाँ माधुर्य गुण होता है । यह गुण विशेष रूप से श्रृंगार, शांत, एवं करुण रस में पाया जाता है । माधुर्य गुण युक्त काव्य में कानों को प्रिय लगने वाले मधुर वर्णों का प्रयोग होता है जैसे- क,ख, ग, च, छ, ज, झ, त, द, न, ....आदि। (ट वर्ग को छोडकर) इसमें कठोर एवं संयुक्ताक्षर वाले वर्णों का प्रयोग नहीं किया जाता। इस प्रकार कर्ण प्रिय माधुर्य गुण युक्त काव्य होता है। जिन कविताओं में सरसता हो और उनको पढ़कर वह सीधे मन में उतरती चली जायें वहाँ माधुर्य गुण होता है।

उदाहरण-
1

बसों मोरे नैनन में नंदलाल
मोहनी मूरत सांवरी सूरत नैना बने बिसाल।

उदाहरण- 2

जीवन्त तुम्हारी छवि निर्मल मैं बोझिल-बोझिल सा तन हूँ,
तुम बुद्धि प्रखर हो श्रेष्ठ बहुत मैं बिखरा-बिखरा सा मन हूँ।

देदीप्यमान मुखमण्डल तुम मेरा आलोक तिरोहित है,
मुझसे जग दूर-दूर रहता तुम पर जगतीतल मोहित है।
वेदों की पावन ऋचा हुईं मैं गरुड़ पुराणी पाठ हुआ,
तुम चन्दन जैसी महक रहीं मैं वन का त्याज्य कुकाठ हुआ।

तुम बरस रहीं बदरी बनकर जो गरज रहा मैं वो घन हूँ,
तुम बुद्धि प्रखर हो श्रेष्ठ बहुत मैं बिखरा-बिखरा सा मन हूँ।
मनोज शुक्ल "मनुज"

प्रसाद गुण

जिस गुण के कारण किसी रचना अर्थ तुरंत समझ में आ जाय उसका पूरा प्रभाव मन पर पड़ जाय उसे प्रसाद कहते हैं।सरल शब्दों में प्रसाद गुण का यह अर्थ कि रचना ग्राह्य हो। प्रसाद गुण सभी रसो में पाया जाता है।

उदाहरण

कौन साधक प्रेम से होकर विरत साधक हुआ,

या कहो कब साधना में प्रेम है बाधक हुआ।
कृष्ण सा प्रेमी कहो तुम दूसरा फिर कौन है,
योग भी केशव के आगे सर झुकाता मौन है।

ध्यान धरते ही लगे जप एक माला हो गया,
आप मुझको मिल गए मन में उजाला हो गया।
मनोज शुक्ल"मनुज"

ओज गुण

ओज गुण वीर रस व वीभत्स रस की रचनाओं में परिलक्षित होता है, जिनको पढ़कर मन में जोश भर जाता है।

उदाहरण-

नाग पालते रहे हैं मुण्डमाल धारते हैं,
बात ये हठात आज याद आनी चाहिए।
पुलवामा के शहीदों को न चाहिए हैं अश्रु,
रक्त से हो लाल सिंधु वाला पानी चाहिए।
मनोज शुक्ल"मनुज"

शब्द शक्तियाँ

अभिधा,लक्षणा व व्यंजना को शब्द शक्तियाँ कहा जाता है।

अभिधा

जहाँ वाचक शब्दों के सीधे अर्थ का बोध होता है,वहाँ अविधा शब्द शक्ति होती है। सामान्य रूप से जो शाब्दिक अर्थ है वही अविधा है।
रूढ़ियों के रूप में कुछ शब्दों के अर्थ प्रचलित हैं, उनको रिवाज के कारण विशेष अर्थ में ग्रहण किया जाता है वह अविधा की रूढ़ि शक्ति ही है व्यंजना नहीं हैं।

उदाहरण- 1

ख ग शब्द का अर्थ पक्षी होता है। यह छिपा अर्थ है क्योंकि प्रचलन में आ गया है। वस्तुतः ये सीधा अर्थ नहीं है।
ख- आकाश
ग- गमन करने वाला
खग- अर्थात पक्षी किंतु आकाश में उड़ने वाला सभी कुछ पक्षी तो नहीं होता किन्तु अब खग इस अर्थ में रिवाज के कारण प्रचलन में है।

उदाहरण-2 

जलजात- कमल 

जलजात अर्थात् जल में उतपन्न। जल में तो सिंघाड़ा, काई, मछली बहुत कुछ उतपन्न होता है किन्तु जलजात कमल को कहते हैं। ये प्रचलित अर्थ हो गया। अभिधा का अर्थ सामान्य शाब्दिकअर्थ वाले वाक्य से लिया जाता है किन्तु ये रूढ़ि अभिधा के उदाहरण थे।

लक्षणा

यदि शाब्दिक अर्थ है तो अविधा है। शाब्दिक अर्थ से इतर अर्थ यानी वाक्य का दूसरा अर्थ लक्षणा है।

उदाहरण- 1 

सारा गाँव मेला देखने गया है।

क्या गाँव जा सकता है? पर इस वाक्य का छिपा हुआ अर्थ है कि सारे गाँव वासी मेला देखने गए, यही लक्षणा है।

उदाहरण-2 

भारत न्यूजीलैंड से क्रिकेट मैच जीत गया।

इसका अर्थ ये समझा जाता है कि भारत की क्रिकेट टीम न्यूजीलैंड की क्रिकेट टीम से क्रिकेट मैच जीत गयी यानी शाब्दिक अर्थ से अलग अर्थ है।

व्यंजना 

जिस शक्ति के द्वारा व्यंग्यार्थ का बोध होता है उसे व्यंजना कहते हैं। अभिधा, व्यंजना के बाद भी यदि कोई अर्थ(व्यंग्य)रहता है तो उसे व्यंजना कहते हैं।
व्यंजना के मुख्य दो भेद होते हैं। शाब्दी व्यंजना व आर्थी व्यंजना।
नाम से ही स्पष्ट है कि जहाँ-जहाँ शब्द विशेष में व्यंजना होती है वहाँ शाब्दी व्यंजना और जहाँ अर्थ में व्यंजना होती है वहाँ आर्थी व्यंजना होती है।

शाब्दी व्यंजना

उदाहरण-

काँकर पाथर जोरि कै, मस्जिद लई बनाय।
ता चढ़ि मुल्ला बाँग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय।

यहाँ आप बाँग शब्द की जगह अजान लिख दें तो मुल्ला के लिए मुर्गा व्यंग्यार्थ समाप्त हो जाएगा।अतः बाँग शब्द में शाब्दी व्यंजना है।

आर्थी व्यंजना

उदाहरण-

जल बिनु मीन पियासी। 


साधारण अर्थ है जल के बिन मछली प्यासी है
किन्तु क्या कबीर ने यही कहा?
कबीर का अर्थ है कि परमात्मा के बिना जीवात्मा व्याकुल है। स्पष्ट है कि यहाँ आर्थी व्यंजना है।

 
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रचनाकार परिचय

मनोज शुक्ल 'मनुज'

ईमेल : gola_manuj@yahoo.in

निवास : लखनऊ (उत्तरप्रदेश)

जन्मतिथि- 04 अगस्त, 1971
जन्मस्थान- लखीमपुर-खीरी
शिक्षा- एम० कॉम०, बी०एड
सम्प्रति- लोक सेवक
प्रकाशित कृतियाँ- मैंने जीवन पृष्ठ टटोले, मन शिवाला हो गया (गीत संग्रह)
संपादन- सिसृक्षा (ओ०बी०ओ० समूह की वार्षिकी) व शब्द मञ्जरी(काव्य संकलन)
सम्मान- राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान, उत्तर प्रदेश द्वारा गया प्रसाद शुक्ल 'सनेही' पुरस्कार
नगर पालिका परिषद गोला गोकरन नाथ द्वारा सारस्वत सम्मान
भारत-भूषण स्मृति सारस्वत सम्मान
अंतर्ज्योति सेवा संस्थान द्वारा वाणी पुत्र सम्मान
राष्ट्रकवि वंशीधर शुक्ल स्मारक एवं साहित्यिक प्रकाशन समिति, मन्योरा-खीरी द्वारा राजकवि रामभरोसे लाल पंकज सम्मान
संस्कार भारती गोला गोकरन नाथ द्वारा साहित्य सम्मान
श्री राघव परिवार गोला गोकरन नाथ द्वारा सारस्वत साधना के लिए सम्मान
आगमन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समूह द्वारा सम्मान
काव्या समूह द्वारा शारदेय रत्न सम्मान
उजास, कानपुर द्वारा सम्मान
यू०पी०एग्री०डिपा०मिनि० एसोसिएशन द्वारा साहित्य सेवा सम्मान व अन्य सम्मान
उड़ान साहित्यिक समूह द्वारा साहित्य रत्न सम्मान
प्रसारण- आकाशवाणी व दूरदर्शन से काव्य पाठ, कवि सम्मेलनों व अन्य साहित्यिक कार्यक्रमों में सहभागिता
निवास- जानकीपुरम विस्तार, लखनऊ (उ०प्र०)
मोबाइल- 6387863251