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छन्द और छन्दों के प्रकार-मनोज शुक्ल 'मनुज'

छन्द और छन्दों के प्रकार-मनोज शुक्ल 'मनुज'

वेद के छः अंगों- शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द तथा ज्योतिष में छन्द भी है तथा वेद की ऋचाएँ छन्द बद्ध हैं ,जिससे यह स्पष्ट है कि छन्द ईश्वर प्रदत्त हैं और देव स्वरूप हैं।

छन्द 

वेद के छः अंगों- शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द तथा ज्योतिष में छन्द भी है तथा वेद की ऋचाएं छन्द बद्ध हैं ,जिससे यह स्पष्ट है कि छन्द ईश्वर प्रदत्त हैं और देव स्वरूप हैं।

वेदों में अधिकांशतः संस्कृत के गायत्री, त्रिष्टुप, जगति, पँक्ति तथा अनुष्टुप छन्द का प्रयोग है।
गीता और बाल्मीकि रामायण में भी अनुष्टुप छन्द का प्रयोग बहुतायत में है।

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि हिंदी के छन्द और उर्दू की बहरों का मूल स्रोत संस्कृत के छन्द हैं।
अर्थात् आपका छन्द सीखने के बाद ग़ज़ल लिखना स्वतः आसान हो जाता है।

मान्यता ये है कि छन्द का ज्ञान शिव के मस्तिष्क की उपज है। शिव से विष्णु ,विष्णु से इन्द्र, इन्द्र से बृहस्पति , बृहस्पति से माण्डव्य,माण्डव्य से सैतव, सैतव से यास्क आदि से होता हुआ आचार्य पिंगल नाथ के पास पहुँचा। पिंगल ऋषि ने ही इस अलौकिक ज्ञान को लिपिबद्ध करके मानव सुलभ बनाया। इसीलिए छन्द शास्त्र को पिंगल शास्त्र भी कहते हैं।

आचार्य पिंगल की कृति पिंगल छन्दः सूत्र को छन्दशास्त्र की प्रथम कृति माना जाता है।ये माना जाता है कि 500 ईसा पूर्व इसकी रचना की गई। इसमें वैदिक और लौकिक दोनों तरह के छन्दों की विवेचना है।
छन्द शास्त्र की अन्य कृतियां भी दृष्टव्य हैं-
यथा-
पिंगलनाथ----छंदशास्त्रः
कालिदास---श्रुतबोध
जयकीर्ति... छंदोनुशासन
सुखदेव मिश्र.....पिंगल
जगन्नाथ प्रसाद" भानु"...छन्द प्रभाकर
रघुनंदन शास्त्री.... हिंदी छन्द प्रकाश

छन्दों के प्रकार

मुख्य रूप से तो छन्द दो प्रकार के ही होते हैं
1-मात्रिक छन्द
2-वर्णिक छन्द

सामान्यतः हर छन्द में चार चरण होते हैं।सामान्यतः इसलिए कि इसके अपवाद भी हैं।

1-मात्रिक छन्द- जिन छन्दों के कुल चरणों की कुल मात्राएँ निश्चित होती हैं,उन्हें मात्रिक छन्द कहते हैं।मात्राओं का क्रम नियत नहीं होता।
जैसे- दोहा,रोला, सोरठा,चौपाई आदि।

दोहा:-
इसमें चार चरण हैं 13 11 मात्रा के पर ये 13 मात्राएँ किस क्रम से होंगी तय नहीं इसलिये ये मात्रिक छन्द हैं।

2-वार्णिक छन्द- ऐसे छन्द जिनकी मात्राओं का क्रम नियत होकर गणों पर आधारित हो या जो छन्द वर्ण समूह पर आधारित हों इनमें वर्णों की या मात्राओं व वर्णों दोनों की गिनती होती है।जैसे-- सवैया व घनाक्षरी

दुर्मिल सवैया:-
शुचिता मन की बढ़ती नित हो अब अम्ब मुझे बढ़ ये वर दो।
जगती पर जो ठगते सबको उनको अविलम्ब बढ़ो छर दो।
धर दो अब हाथ कृपा कर दो दुख दीन गुणी जन के हर दो।
हर दो सब ज्ञान अमानुष का मुझ को कविता सविता कर दो।

मनोज शुक्ल 'मनुज'

इसमें सभी पंक्तियों का मात्रा क्रम निर्धारित है।
8 सगण अर्थात
112 112 112 112 112 112 112 112

सभी पँक्तियाँ इसी मात्राक्रम पर हैं। इसलिए यह वर्णिक छन्द है।
घनाक्षरी में मात्राएँ नहीं वर्ण गिने जाते इसलिये घनाक्षरी भी वर्णिक छन्द हैं।

मात्रिक व वर्णिक दोनों प्रकार के छंदों के मुख्यतः 3 भेद होते हैं।

सम मात्रिक छन्द-
 नाम से ही स्पष्ट है ,जिस मात्रिक छन्द के सभी चरणों की मात्राएँ समान 
होती हैं ,उनको सम मात्रिक छंद कहा जाता है।
जैसे- चौपाई 
चौपाई:- इसमें चार चरण होते हैं व प्रत्येक चरण में16-16 मात्रायें होती हैं।
उदाहरण-
माँगी नाव न केवट आना। कहइ तुम्हार मरमु मैं जाना।।
पाहन ते न काठ कठिनाई।तरनिउ मुनि धरनी हुइ जाई।।

अर्द्धसम मात्रिक छन्द- जिनमें आधे चरणों की मात्राएँ समान होती हैं। जिन छंदों में पद के चरणों में क्रमशः मात्राएँ नियत होती हैं वो अर्द्धसम मात्रिक छन्द होता है।
दोहा:-

दोहे के पहले और तीसरे चरणों में १३-१३ मात्राएँ होती हैं तथा दूसरे और चौथे चरणों में ११-११ मात्राएँ होती हैं।इस प्रकार प्रत्येम दल में २४ मात्राएँ होती हैं।
जैसे-
कल के सुख के फेर में ,नर्क बनाया आज।
कल तो आता ही नहीं,करो समझ ये काज।।

विषम मात्रिक छन्द-
जो छन्द न सम मात्रिक हो न अर्द्धसम मात्रिक हो उसे विषम मात्रिक कहते हैं। जैसे- कुंडलिया

कुंडलिया छन्द:-
कुंडलिया छंद दो छंदों का सम्मिलित रूप है ।इसमें पहला दोहा ओर दूसरा रोला होता है।इस तरह दोहा और रोला को जोड़कर कुंडलिया छः पंक्तियों / पदों का विषम मात्रिक छन्द है।
दोहा:-
दोहे के पहले और तीसरे चरणों में १३-१३ मात्राएँ होती हैं तथा दूसरे और चौथे चरणों में ११-११ मात्राएँ होती हैं।इस प्रकार प्रत्येक पद में २४ मात्राएँ होती हैं।विषम चरणों के आरंभ में जगण(१२१)नहीं होना चाहिए किन्तु सम चरणों के अंत में गुरु लघु का रहना अनिवार्य है।दूसरे और चौथे चरण का तुकांत मिलना चाहिए।
रोला छंद:-
रोला छंद एक मात्रिक छंद है, इसमें में कुल 24 मात्राएँ होती हैं , इस छंद को चार पंक्ति में लिखा जाता है, तथा प्रत्येक पंक्ति के दो भाग होते हैं ।
प्रत्येक पंक्ति में 11 एवम् 13 मात्रा पर यति होनी चाहिए ।आप इसे इस तरह भी समझ सकते हैं कि विषम चरणों में 11-11 मात्राएँ और सम चरणों में 13-13 मात्राएँ होनी चाहिए। ग्यारहवीं और तेरहवीं मात्राओं पर विराम होता है।
जिस प्रकार दोहे का दूसरा चरण लिखा जाता है ठीक उसी प्रकार रोला छंद की पहली पंक्ति का आधा भाग (11 मात्रा) का अंत 21 से होना चाहिए, तथा दूसरा भाग (13 मात्रा) का अंत 1111 या 211 या 112 या 22 से होना चाहिए । (22 अति उत्तम) ।
चारों पंक्ति में दो- दो पंक्तियों का तुकांत भी आवश्यक है ।

कुंडलिया छन्द:-
कविता चोरों से यहाँ, पटे जा रहे मंच।
पकड़े जाने पर करें ताक झांक परपंच।।
ताक झांक परपंच ,बात फिर भी कब मानें,
अड़े रहें बिन बात , झूठ की चादर तानें।
कहता हूँ ये सत्य, हुए जुगनू सब सविता,
खूब कमाई करें, पढ़ें चोरी की कविता।

मनोज शुक्ल ' मनुज'

वर्णिक छंदों के भेद:-
वर्णिक छन्दों में भी यही भेद होते हैं बस उनमें मात्राओं के स्थान पर वर्ण के आधार पर सम वर्णिक, अर्द्धसम वर्णिक और विषम वर्णिक का निर्धारण होता है।

दंडक- जिन रचनाओं के पद में 26 से अधिक मात्राएं होती हैं उन्हें दंडक कहते हैं।

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रचनाकार परिचय

मनोज शुक्ल 'मनुज'

ईमेल : gola_manuj@yahoo.in

निवास : लखनऊ (उत्तरप्रदेश)

जन्मतिथि- 04 अगस्त, 1971
जन्मस्थान- लखीमपुर-खीरी
शिक्षा- एम० कॉम०, बी०एड
सम्प्रति- लोक सेवक
प्रकाशित कृतियाँ- मैंने जीवन पृष्ठ टटोले, मन शिवाला हो गया (गीत संग्रह)
संपादन- सिसृक्षा (ओ०बी०ओ० समूह की वार्षिकी) व शब्द मञ्जरी(काव्य संकलन)
सम्मान- राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान, उत्तर प्रदेश द्वारा गया प्रसाद शुक्ल 'सनेही' पुरस्कार
नगर पालिका परिषद गोला गोकरन नाथ द्वारा सारस्वत सम्मान
भारत-भूषण स्मृति सारस्वत सम्मान
अंतर्ज्योति सेवा संस्थान द्वारा वाणी पुत्र सम्मान
राष्ट्रकवि वंशीधर शुक्ल स्मारक एवं साहित्यिक प्रकाशन समिति, मन्योरा-खीरी द्वारा राजकवि रामभरोसे लाल पंकज सम्मान
संस्कार भारती गोला गोकरन नाथ द्वारा साहित्य सम्मान
श्री राघव परिवार गोला गोकरन नाथ द्वारा सारस्वत साधना के लिए सम्मान
आगमन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समूह द्वारा सम्मान
काव्या समूह द्वारा शारदेय रत्न सम्मान
उजास, कानपुर द्वारा सम्मान
यू०पी०एग्री०डिपा०मिनि० एसोसिएशन द्वारा साहित्य सेवा सम्मान व अन्य सम्मान
उड़ान साहित्यिक समूह द्वारा साहित्य रत्न सम्मान
प्रसारण- आकाशवाणी व दूरदर्शन से काव्य पाठ, कवि सम्मेलनों व अन्य साहित्यिक कार्यक्रमों में सहभागिता
निवास- जानकीपुरम विस्तार, लखनऊ (उ०प्र०)
मोबाइल- 6387863251