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अश्विनी कुमार त्रिपाठी की ग़ज़लें

अश्विनी कुमार त्रिपाठी की ग़ज़लें

अश्विनी कुमार त्रिपाठी हिंदी की ग़ज़ल का एक प्रतिभाशाली युवा नाम हैं। इनकी ग़ज़लों में ग़ज़ल की परंपरागत नफ़ासत के साथ अपने समय का सच बाख़ूबी दर्ज होता है। मज़बूत शिल्प, प्रभावी कहन और सरोकारसंपन्नता इनकी ग़ज़लों की विशेषताएँ हैं।


ग़ज़ल-

खाद बन जाती हैं ख़ुद को वार, सूखी पत्तियाँ
हैं नई पीढ़ी की ख़िदमतगार सूखी पत्तियाँ

वक्त रहते कोंपलो उनकी नसीहत मान लो
जानती हैं मौसमों की मार सूखी पत्तियाँ

कुछ किताबों में सनद बनकर रखी हैं प्यार की
कुछ दिवानों के लिए पतवार सूखी पत्तियाँ

है नदी जीवन कि जिसके दो किनारों पर खड़े
पौध है इस पार तो उस पार सूखी पत्तियाँ

था जवानी का नशा तब ये कहा दरवेश ने
पर्स में रक्खा करो दो-चार सूखी पत्तियाँ

कुछ समझते अनुभवों की गठरियाँ, कुछ कह रहे-
चरमराहट से भरी बीमार सूखी पत्तियाँ

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ग़ज़ल-

दर्द को अश्आर में कहने के फ़न से राब्ता
हिज्र की रातों ने जोड़ा है सुख़न से राब्ता

पेड़ से दीमक का, रोगों का बदन से राब्ता
यूँ भी है कुछ सरफिरों का इस वतन से राब्ता

दिल के साथी बन गये हैं दर्द-ओ-ग़म कुछ इस क़दर
जिस क़दर है रूह का मेरे बदन से राब्ता

ज़िंदगी थी, ज़िंदगी में ज़िंदगी थी ही नहीं
जब तलक था ज़िंदगी की अंजुमन से राब्ता

इश्क़ में यूँ राब्ता रक्खा करो माशूक़ से
ज्यूँ चमन का गुल से, सूरज का किरन से राब्ता

गर सुख़नवर इश्क़, उल्फ़त, प्यार से अंजान है
हो न पाएगा सुख़न का बाँकपन से राब्ता

वक़्त-ए-रुख़्सत तुमसे मिलना चाहता हूँ इस तरह
जिस तरह होता है जिस्मों का कफ़न से राब्ता

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ग़ज़ल-

सुन न पाया ख़ुद को ही, दुनिया का डर हावी रहा
दिल पे मेरे जब तलक, मेरा ये सर हावी रहा

शहर की आब-ओ-हवा तन पर तो हावी हो गई
मन पे लेकिन गाँव का छोटा-सा घर हावी रहा

मंज़िलें मिलने की ख़ातिर राह देखेंगी तेरी
हर सफर की मुश्किलों पर तू अगर हावी रहा

ख़ाक में मिलने तलक भी ख़ुद से मिल पाये नहीं
जिनके सर पर दौलत-ओ-ज़र उम्र भर हावी रहा

खेतिहर मजदूर में तब्दील होकर रह गये
गाँव पर कुछ इस तरह से भी शहर हावी रहा

इस बदलते दौर की वे नब्ज़ पढ़ पाये नहीं
हाशिये पर आ गये जिन पर हुनर हावी रहा

जिनको थी मंज़िल की चाहत, मंज़िलें पा, थम गये
जिनमें थी यायावरी उन पर सफ़र हावी रहा

दुश्मनों की बद्दुआएँ भी दुआ बनकर लगीं
मुझपे यूँ माँ की दुआओं का असर हावी रहा

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ग़ज़ल-

जब कभी बदलाव की ख़ातिर उठा है सर नया
उसको दिखलाया गया हर बार कोई डर नया

पर्वतों को चीरकर राहें बना लेता है वो
जो समझता है मुसीबत को भी इक अवसर नया

हर गली, कूचे, मुहल्ले में लहर उन्माद की
कोई बतलाए कहाँ जाकर बनाऊँ घर नया

काम ले बेशक पुराने तू रदीफ़-ओ-क़ाफ़िए
पर ज़रा अपनी कहन को और थोड़ा कर नया

हर नया तेज़ी से होता है पुराना आजकल
किस तरह रक्खूँ बनाकर ख़ुद को जीवन भर नया

क्या विरोधाभास है देखो पुराने लोग भी
छोड़ देते हैं पुराना आज अपनाकर नया

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ग़ज़ल-

अश्क, आहें और मुनाजातें मेरे हिस्से में आयीं
इश्क़ में केवल ये सौगातें मेरे हिस्से में आयीं

जिनके हिस्से आ गया यूँ ही मेरा पूरा वजूद
ख़्वाब में उनसे मुलाकातें मेरे हिस्से में आयीं

मैं समंदर-सा तपा हूँ तब कहीं बादल बने हैं
पर न सावन और न बरसातें मेरे हिस्से में आयीं

ये न होतीं तो मेहरबां भी ग़ज़ल मुझ पर न होती
शुक्रिया जो हिज्र की रातें मेरे हिस्से में आयीं

इस जमा पूँजी से भी बाक़ी सफ़र कट जाएगा
चंद वादे, अनगिनत बातें मेरे हिस्से में आयीं

4 Total Review

विनय जैन

09 August 2024

हर एक शे'र पढ़ते हुए अपने आप वाह निकलती गई बधाई आपको

A

Ashvini Tripathi

09 August 2024

शुक्रिया 🙏🙏

वीरेन्द्र खरे 'अकेला'

09 August 2024

वाह वाह, बेहतरीन ग़ज़लें।👌

अविनाश भारती

09 August 2024

उम्दा ग़ज़लें

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रचनाकार परिचय

अश्विनी कुमार त्रिपाठी

ईमेल : ashvin7677@gmail.com

निवास : कोटा (राजस्थान)

जन्मतिथि- 10 अगस्त, 1978
जन्मस्थान- बाराँ (राजस्थान)
शिक्षा- स्नातकोत्तर (हिंदी साहित्य), बी० एड
संप्रति- माध्यमिक शिक्षा विभाग, राजस्थान में उप प्राचार्य पद पर कार्यरत।
लेखन विधाएँ- गीत, ग़ज़ल, कविता एवं कहानी।
प्रकाशन- हाशिये पर आदमी (ग़ज़ल संग्रह, 2020)
समकालीन भारतीय साहित्य, वागर्थ, अहा ज़िंदगी, हंस, वीणा, मधुमती, सेतु, पाखी, ककसाड़, हरिगंधा, राजस्थान पत्रिका सहित अनेक पत्र-पत्रिकाओं में ग़ज़लें प्रकाशित।
प्रसारण- टी०वी० चैनलों व आकाशवाणी से ग़ज़लों का प्रसारण।
सम्मान- राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा सुमनेश जोशी पुरस्कार, 2021
पता- 4-P-13, दादाबाड़ी विस्तार योजना, वंडर मार्ट के पास, कोटा (राजस्थान)- 324009
मोबाइल- 8890628632