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फ़ानी जोधपुरी की ग़ज़लें

फ़ानी जोधपुरी की ग़ज़लें

फ़ानी जोधपुरी उर्दू की युवा ग़ज़ल का प्रतिनिधि नाम हैं। इनकी ग़ज़ल जहाँ एक तरह तमाम परंपरागत पैमानों को निभाते हुए चलती हैं, वहीं दूसरी तरफ आधुनिकता को भी अपनी ज़द में समेटती हुई एक नया रास्ता तैयार करती हैं। इनकी ग़ज़लें सही मायनों में उर्दू ग़ज़ल की जगमगाती हुई रोशन राहों में नई तरह के उजाले भरती हैं।

ग़ज़ल- 1

वो जिसके हाथ में तिनका नहीं था
नदी‌ में बस वही डूबा नहीं था

कफ़स का दिल अभी टूटा नहीं था
परिंदा इसलिए छूटा नहीं था

बहुत-सी‌ ख़ुश्बुएँ आ जातीं लेकिन
हवा ने रास्ता छोड़ा नहीं था

तुम्हारा शहर छुटना ही था इक दिन
गुज़ारा अब वहाँ होता नहीं था

कमानें, तीर, तरकश सब थे लेकिन
चलाते कैसे, अंगूठा नहीं था

इसे भी इश्क़ की आदत थी फ़ानी
ये‌ बूढ़ा शहर तब बूढ़ा नहीं था

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ग़ज़ल- 2

हिज्र की हद को लाँघते हुए मिल
अब तो सदियों के फ़ासले हुए मिल

तीरगी को पुकारते हुए मिल
रात का‌ बुत तराशते हुए मिल

मर गया‌ जो तलाशते तुझको
तू भी उसको तलाशते हुए मिल

घुल गई जिनमें तेरी ख़ुश्बु-ए-नाम
उन हवाओं को फाँकते हुए मिल

साए के कांधे पर खड़े होकर
धूप का छोर थामते हुए मिल

जिस्म कहती है जिसको ये दुनिया
वो लबादा उतारते हुए मिल

अब ये दुनिया सँवार ली फ़ानी
अब वो दुनिया सँवारते हुए मिल

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ग़ज़ल- 3

आग, हवा और मिट्टी की तस्वीरें हैं
पास हमारे गिनती की तस्वीरें हैं

जिनमें मैं मसरूफ़ ज़ियादा दिखता हूँ
वो सब मेरी छुट्टी की तस्वीरें हैं

जलती सिगरेट, चाय की होटल, लव लेटर
सब उन्नीस सौ अस्सी की तस्वीरें हैं

उसका ख़त, मेरी अल्मारी, रुसवाई
मेरी पहली ग़लती की तस्वीरें हैं

इक अल्बम है छूटी हुई तस्वीरों का
जिसमें आँगन, चिमनी की तस्वीरें हैं

मजमा, मजलिस, रेला, जमघट, भीड़, जुलूस
मिट्टी पर बस मिट्टी की तस्वीरें हैं

राम की आँखों से देखो तो फ़ानी जी
हर इक बेर पे शबरी की तस्वीरें हैं

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ग़ज़ल- 4

ख़ामोशी के शोर का मतलब समझे हैं पर कभी-कभी
यानी हम सुक़रात‌ के जैसे होते हैं पर कभी-कभी

जब भी लड़कपन हावी हो जाता है पकती उम्रों में
आईने से‌ हम भी बातें करते हैं पर कभी-कभी

कुछ बच्चे जो अस्ल में बच्चे हैं उनके आ जाने पर
साहिल के सीने पे घरौंदे बनते हैं पर कभी-कभी

ऐसा नहीं बस फ़स्ले-ग़म की काश्त ही होती रहती है
शाख़े-लब पर गुले-तबस्सुम खिलते हैं पर कभी-कभी

रोज़ कहाँ मुमकिन है फ़ानी महंगा नशा कर लेना भी
अपनी ग़ज़ल को उसकी ज़बां से सुनते हैं पर कभी-कभी

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ग़ज़ल- 5

जिसको चाहा उसी मेयार तक आते-आते
सर क़लम हो गया दस्तार तक आते-आते

दिलकशी अपनी कहीं और लुटा देते हैं
रंग सारे मेरी दीवार तक आते-आते

उस मरज़ ने मुझे जकड़ा है दवा तक जिसमें
ज़हर हो जाती है बीमार तक आते-आते

ड्राइविंग सीट से मैं भी नहीं उतरा इस बार
रूक गया वो भी मेरी कार तक आते-आते

पस्त हो जाएँगे ये‌ आज के लड़के फ़ानी
तेरी सख़्ती, तेरे किरदार तक आते-आते

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अविनाश भारती

09 August 2024

बहुत ख़ूब... शानदार ग़ज़लें

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रचनाकार परिचय

फ़ानी जोधपुरी

ईमेल : fani.jodhpuri@gmail.com

निवास : जोधपुर (राजस्थान)

जन्मतिथि- 24 फरवरी, 1984
जन्मस्थान- जोधपुर (राजस्थान)
शिक्षा- स्नातकोत्तर (अंग्रेजी साहित्य), बी०एड
सम्प्रति- राजनैतिक क्षेत्र में सोशल मीडिया सलाहकार एवं विश्लेषक, स्वतंत्र लेखन, पूर्व उद्घोषक ऑल इंडिया रेडियो
लेखन विधाएँ- ग़ज़ल, नज़्म, गीत, मनक़बत, मर्सिया एवं कहानी
प्रकाशन- 'आसमां तक सदा नहीं जाती' एवं 'पानी बैसाखियों पे' (ग़ज़ल संग्रह)
देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन, दूरदर्शन एवं आकाशवाणी के कई मुशायरों में भागीदारी
संपादन- फ़स्ले-गुल (डॉ० ज़ेबा फ़िज़ा की ग़ज़लों का संग्रह), चेहरा रिश्तों का (यूसुफ रईस की ग़ज़लों का संग्रह)
सम्मान- हिन्दुस्तान गौरव सम्मान, के.डी.'मूनिस' युवा शायर अवार्ड, निशान-ए-लतीफ़ अवार्ड, दलित साहित्य अवार्ड, शान-ए-अदब अवार्ड, त्रिसुगन्धी अवार्ड, युवा रचनाकार सम्मान
निवास- के-851, कमला नेहरू नगर, जोधपुर (राजस्थान)
मोबाइल- 9829270098