Ira
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। दिसंबर 2024 के अंक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।

अनुज पाण्डेय के गीत

अनुज पाण्डेय के गीत

टूटी थी पतवार कि
कैसे इतनी जल्दी छोर पकड़ते?
कैसे सबकुछ छोड़
इश्क़ की इक पतंग की डोर पकड़ते
हम समाज के धुर निर्धन थे
धन में बस दो-चार सपन थे
सपने बेच इश्क़ ले आते
उर इतना भी अभय नहीं था

रास्ता मुझको पता था

राह कर्तव्यों की मुझको बस पुकारे जा रही थी
वरना तुम तक पहुँचने का रास्ता मुझको पता था

बढ़ रहे तेरी तरफ़ थे, रोटियों ने हाथ पकड़ा
ले अजब उत्साह, ज़िम्मेदारियों ने साथ पकड़ा
ज़ीस्त से उम्मीद का पिछले जनम का वास्ता था
राह कर्तव्यों की मुझको बस पुकारे जा रही थी
वरना तुम तक पहुँचने का रास्ता मुझको पता था

बेख़ुदी की राजपुत्री नींद पूरी सो न पाई
दो घड़ी भर साथ थे पर बात तुमसे हो न पाई
एक-इक कर सब मधुर स्मृतियों के पुतले मारता था
राह कर्तव्यों की मुझको बस पुकारे जा रही थी
वरना तुम तक पहुँचने का रास्ता मुझको पता था

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पास हमारे समय नहीं था

छत पर से चाँद को निरखते
सब तारों की ख़बरें रखते
लेकिन ये सब कर लेने को
पास हमारे समय नहीं था

उम्र देख कुछ ने बोला,
यह मौक़ा था ताका-झाँकी का
पर हमको ख़याल रखना था
दादी का, बूढ़ी काकी का
जीवन ने सवाल जो पूछे
छूट गए सब छूछे-छूछे
प्रश्न वहीं से आए सारे
जो कि हमारा विषय नहीं था
पास हमारे समय नहीं था

टूटी थी पतवार कि
कैसे इतनी जल्दी छोर पकड़ते?
कैसे सबकुछ छोड़
इश्क़ की इक पतंग की डोर पकड़ते
हम समाज के धुर निर्धन थे
धन में बस दो-चार सपन थे
सपने बेच इश्क़ ले आते
उर इतना भी अभय नहीं था
पास हमारे समय नहीं था

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भले नहीं उपवन हो

काग़ज़ का टुकड़ा भले न हो
आशा जैसा धन हो

योद्धा, योद्धा क्यों कहलाए
साहस से वह अगर हीन हो?
इक छोटी-सी त्रास-जाल में
कंपन करती बड़ी मीन हो

आपद यदि हो, साहस-रूपी
ईश्वर का अर्चन हो।

आशहीनता से जो हारा,
हार गया वह अपना जीवन
सबने पाया पुलकित तन-मन
उसने पायी केवल सिहरन

हाथों में बस एक बीज हो
भले नहीं उपवन हो।

हो ऐसी उच्चता तुम्हारी
बौना हो जाए वह अंबर
घाव करो पत्थर पर ऐसा
करता है जैसा, इक निर्झर

अंधकार में मोती-सा
उज्ज्वल तेरा आनन हो।

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निर्मम नहीं पिता

डाँटें-मारें,
इसका मतलब
निर्मम नहीं पिता

ग़लतियाँ गिनवा रहे
हर दिन हमारी
राह से करवा रहे
ईमानदारी

नहीं दुलारें,
इसका मतलब
निर्मम नहीं पिता

"बन ज़रा क़ाबिल
कि ख़ुद का ख़याल कर ले
मुँह दिखाने योग्य
अपना हाल कर ले"

दोष निहारें,
इसका मतलब
निर्मम नहीं पिता

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मन बहुत विह्वल हुआ

हर सुबह
अख़बार के पन्ने पलटकर
मन बहुत विह्वल हुआ
हाँ, मन बहुत विह्वल हुआ

योजनाएँ,
योजनाएँ रह गईं
और खुशियाँ,
कल्पनाएँ रह गईं

आदमी के हाथ ही
जब आदमी के साथ
केवल छल हुआ
हाँ, मन बहुत विह्वल हुआ

शब्द था 'बदलाव'
केवल भाषणों में
'मुफ़लिसी पर घाव'
केवल भाषणों में

जीतकर जबसे खड़ा है
डाकुओं का
राजनीतिक दल हुआ
हाँ, मन बहुत विह्वल हुआ।

2 Total Review
D

Dipankar Yadav

10 November 2024

Bahut acha laga अद्भुत 🙏

A

Anuj Pandey

10 November 2024

संपादक मंडल का हृदय तल से आभार! मेरा सौभाग्य कि इरा ई मैगज़ीन में मुझे स्थान मिला। आप सब का स्नेह अपेक्षित है!

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रचनाकार परिचय

अनुज पाण्डेय

ईमेल : anujp2462@gmail.com

निवास : पड़ौली (गोरखपुर)

जन्मतिथि- 18 अक्टूबर, 2007
जन्मस्थान- पड़ौली (गोरखपुर)
शिक्षा- बारहवीं कक्षा में अध्ययनरत।
लेखन विधाएँ- गीत, ग़ज़ल, दोहा, छंदमुक्त कविता एवं बाल साहित्य
प्रकाशन- निकट, वीणा, अभिनव प्रयास, गीत गागर, चेतना स्रोत आदि पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित।
निवास- ग्राम- पड़ौली, पोस्ट- ककरही, ज़िला- गोरखपुर (उ०प्र०)- 273408
मोबाइल- 8707065155