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इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। दिसंबर 2024 के अंक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।

डॉ. निर्मल प्रवाल की कविताएँ

डॉ. निर्मल प्रवाल की कविताएँ

फ़रिश्ते कभी पर लगाकर
आसमान से नहीं उतरते
वो छिपे रहते हैं आस-पास ही
वो जानते हैं
कब प्रकट होना है
कब रहना है अदृश्य

एक- अभाव

क्या आपने
जूते की तस्में ज़रूरत से ज़्यादा कसी हैं!
उनमें आगे रूई डालकर पहना है!
बेल्ट में असंख्य छिद्र किए है!
पेंट को बिना हूक के कैसे पहना जाता है, पता है!
या आपने पहना है
पायजामा दो-चार बार ऊपर से लपेट कर!

अच्छा!
ज़रूरत ही नहीं पड़ी कभी?
नहीं किया कभी कुछ ऐसा?
फिर जनाब कमाल करते हो
फिर क्या देखा अभाव जैसा?

अच्छा!
किया है सब इनमें से
या कुछ इनमें से

बधाई हो जनाब!
आपने ज़िंदगी देखी है
और वो भी बेहद क़रीब से।

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दो- फरिश्ता

फ़रिश्ते कभी पर लगाकर
आसमान से नहीं उतरते
वो छिपे रहते हैं आस-पास ही
वो जानते हैं
कब प्रकट होना है
कब रहना है अदृश्य

खेत में बाजरे की फसल पकते ही
माँ ने संदेशा भेजा 'कुम्हारी दादी' को
अपना घर-बार छोड़
दादी पाँच दिन आई
बाजरे की उपज बोरियों में भरी
ढांग लगवाई
दादी लौट गई

शादी का सवा महीना शेष
और तैयारियों के ढेरों काम
माँ ने 'कुम्हारी दादी' को कहलवा दिया 'तुम्हारा ही घर है देख लो'
पूरे घर की सफाई, मांडने
चूल्हे-चौके की गोबर से पुताई
दाल साफ करना, मंगोडी चूंटना
बहू आने के बाद आख़िरी बर्तन साफ करके
दादी लौट जाती है विदा में 'धान-कपड़े पोटली में बांध'
आशीषों की झड़ी लगाती हुई

घर में बहू पूरे समय पेट से थी
माँ ने 'कुम्हारी दादी' को याद किया
कि दादी एक साँस में हाज़िर

सवा महीने तक
जच्चा-बच्चा की सार संभाल साफ-सफाई
देवता के गीत, गीगले का लाड़
चकरी बन घूमती है सारे दिन एक पाँव पर
शुभाशीष फूल से बरसते हैं दादी के मुँह से

अपनी पसंद की पोशाक, कम्बल लेकर माथा छुआती हुई दादी
लौट जाती है अंतर्धान होती-सी

किसी के घर धन-धान्य खुशियों किलकारियों का
लालन-पालन करके लौट आती है
अपने खुरदरे मिट्टी सने जीवन में
इसी आस में कि
पुनः कोई संदेशा किसी घर से आ जाए

फरिश्तों की दुआओं में तासीर होती है।

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तीन- ताव की ज़रूरत

आपको चाँद मुबारक
मुझे थेपड़ी बनाने दो

आप चाँद पर कविता लिखो
मुझे गोबर का धामा भरने दो

आप कविता के श्रोता ढूँढो
मुझे सिर पर धामा रखवाने वाला ढूँढने दो

आप कविता के लिए सम्मानित होइए
मुझे सर्दियों के लिए व्यवस्था करनी है

आपका चाँद भी गोल
मेरी थेपड़ी भी गोल

आपका चाँद रोटी की याद दिलाता है
मेरी थेपड़ी रोटी सेंकने का ताव देती है

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चार- दायाँ हाथ

दुर्घटना में दाँए हाथ की
अंगुलियों में फैक्चर हुआ
हथेली पर चुन्ने की पट्टी बाँध
कंधे पर लटका दिया

दाँए हाथ के काम अब कैसे संपन्न होंगे
दाँया हाथ कौन बनेगा?

दो दफा रोटी के निवाले देती है
नहाने में सहायता करती है
शर्ट के बटन जुड़ती है
चश्मा लगा देती है
पीठ पर खुजली होने पर सहला देती है
जूते की डोरी बाँध देती है

दाँए हाथ की आकस्मिक आपात ज़रूरत
पूरी करने वाली मेरी पत्नी ने
सिद्ध कर दिया कि
दाँया हाथ बनने के लिए
समर्पण चाहिए, न कि कोई मुहावरा
प्रेम चाहिए, न कि कोई शर्त
कोई हेतु नहीं बेवजह चाहिए।

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10 Total Review

जितेन्द्र सिंह निर्वाण

17 November 2024

सामाजिक जीवन की सहज और स्वाभाविक घटनाओं पर कलम चलाना आपके यथार्थवादी और आदर्शोन्मुखी दृष्टिकोण को दर्शाता है। साहित्य जगत के मजबूत स्तंभ 'इरा' पत्रिका में उत्तरोत्तर प्रगति व योगदान के लिए बहुत-बहुत आशीर्वाद एवं मंगलमय शुभकामनाएं....

जितेन्द्र सिंह निर्वाण

17 November 2024

'फ़रिश्ते कभी पर लगाकर आसमान से नहीं उतरते' सचमुच कब कौन किसके जीवन में फ़रिश्ता बनकर आ जाए कोई नहीं जानता। कभी मां फ़रिश्ता बन जाती है तो कभी कुम्हारी दादी तो कभी पत्नी दांया हाथ बनकर थेपड़ी के ताव पर चांद सी गोल रोटी सेंक कर खिला देती है।

जितेन्द्र सिंह निर्वाण

17 November 2024

सामाजिक जीवन में "अभाव" की जिन्दगी को समझाने में सफल रहे हैं। नई पीढ़ी ने ऐसी अभाव की जिन्दगी नही देखी है। अपनों को ऊंचाईयों पर पहुंचाने के लिए न जाने कितनी बार पुरानी पीढ़ी नई पीढ़ी के लिए 'सीढ़ी' बनी है।

वसंत जमशेदपुरी

14 November 2024

आपकी रचनाएँ मन को छू गईं,बार-बार पढ़ने को जी चाहता है

वसंत जमशेदपुरी

14 November 2024

आपकी रचनाएँ मन को छू गईं,बार-बार पढ़ने को जी चाहता है

अनिता मंडा

12 November 2024

अच्छी कविताएँ हैं। डॉ. निर्मल सैनी जी को शुभकामनाएं। लिखते रहिए।

अच्छी कविताएँ हैं। डॉ. निर्मल सैनी जी को शुभकामनाएं। लिखते रहिए।

12 November 2024

अच्छी कविताएँ हैं। डॉ. निर्मल सैनी जी को शुभकामनाएं। लिखते रहिए।

K

kuldeep singh

11 November 2024

बाकमाल

V

virendra jain

10 November 2024

बहुत अच्छी कबितायें, बहुत सुन्दर बातें जैसे - दाँया हाथ बनने के लिए समर्पण चाहिए, न कि कोई मुहावरा प्रेम चाहिए, न कि कोई शर्त कोई हेतु नहीं बेवजह चाहिए।

डॉ. निर्मल प्रवाल

10 November 2024

अनजान राह पर कदम बढ़ाने के बाद सुस्ताने के लिए सुख भरी छाँव सी 'इरा' पत्रिका में चार कविताएँ प्रकाशित हुई। इरा परिवार का हिस्सा बनकर बहुत उत्साहित हूँ। धन्यवाद आपका। सादर।

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रचनाकार परिचय

निर्मल प्रवाल

ईमेल : drnksaini@gmail.com

निवास : डूंडलोद सैनीपुरा (राजस्थान)

शिक्षा- एम० कॉम, पीएच० डी०
संप्रति- माध्यमिक शिक्षा विभाग राजस्थान में उपप्राचार्य पद पर कार्यरत
प्रकाशन- वागर्थ एवं सहज साहित्य में कविता प्रकाशित।
निवास- पोस्ट- डूंडलोद सैनीपुरा, ज़िला- झुंझुनूं (राजस्थान)- 333707
मोबाईल- 7690040827