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अनिता रश्मि की कविताएँ

अनिता रश्मि की कविताएँ

पृथ्वी के दिए गए अवदानों को कैसे
हमने लूट-खसोट की वजह बना ली
हमने जी भर लूटा
अब कैसे बदला लिया प्रकृति ने हमसे
लेती हुई करवटें, कँपकँपाती हुई हमें
दोष कितना धरा का, कितना हमारा

एक- पहाड़ से उतरती औरतें

देखी थीं कभी
सुदूर पहाड़ की
बेहद ख़ूबसूरत पहाड़ी औरतें
उनकी ललाई एवं लुनाई में
गया था खो, आसक्त मन

पर एक अलग ही रूप देख
अब भी स्तब्ध हूँ
हिम की ख़ूबसूरती को
बसाए हुए दिल में
हिम पर खेल लौट रही थी
और सामने ही अपने अश्वों की
रास थामे दोनों हस्तों की कठोरता से
एक पहाड़ी औरत
पथरीली ढलाऊँ पर
उतरती गई झट धड़ाधड़
यायावरों के साथ
दोपहर तक के कठोर श्रम के बाद

पलक झपकते ओझल तीनों
बुला रहा था शायद उसे
कोई बीमार, वृद्ध, अशक्त
स्कूल से लौटा उसका लाल
या फिर खेतों की हरियाली
इंतज़ार सेब बागान का

अभी भी मेहनत के नाम
लिखने को बचा था
बहुत सारा काम
उस ख़ूबसूरत युवती का

अबकी जाना पहाड़ तो
उसका चेहरा, चेहरे की रंगत
लावण्य का पैमाना
उसकी देह न देखना

बस, देखना केवल
जड़ सम कठोर पैर,
उसकी खुरदुरी हथेलियाँ!

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दो- ये खिलाड़ी लड़कियाँ

गाय-भैंसिया, बकरी
जंगल में चराते-चराते
धींगा-मुश्ती करते अभाव से
न जाने कब सीख जातीं
हाॅकी खेलना झारखण्ड की बेटियाँ,
मारना किक गेंद को
कुश्ती लड़ना या
उछाल देना आकाश में
एक अबूझ प्यारा सपना
मैदान मार लेने का,
ओलंपिक का ताज
जीत लेने का सपना

आम-इमली पर
साधते हुए निशाना
थाम लेती हैं
बाँस की हॉकी स्टिक
बिरसा का तीर-धनुष

न जाने कब, कैसे वह
बन जाती है
सोमराय, दीपिका,
कोमलिका, निक्की
या फिर
क्षीणकाय चंचला
हराती हुईं दुनिया भर को!

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तीन- अब चुप न रहो कविता

सारे भेद खोलने दो कविता
कवियों के कोने-अंतरे में घुसकर
किसान की आत्महत्या,
बेटी की भ्रूण हत्या,
बेटों के आत्मघाती हमले,
पँख पसारे बगूलों-सा
दो फैलने सारे राग-विराग समय के

बेटियों ने कैसे आँचल को
बना लिया है परचम
सुपुत्रों की कैसे खड़ी हो गई लंबी फौज
कैसे धरित्री 'औ' आकाश सम
माता-पिता पड़ गए अकेले
कैसे हमने ही थमाई अगली पीढ़ी को
तरक्की, क़ामयाबी, भौतिक उन्नति के
सपने देखने की हसरतें
हमसे दूर रह आगे सड़क संग
चलते रहने की इकलौती सीख
लिखो कविता इस पर भी लिखो

पृथ्वी के दिए गए अवदानों को कैसे
हमने लूट-खसोट की वजह बना ली
हमने जी भर लूटा
अब कैसे बदला लिया प्रकृति ने हमसे
लेती हुई करवटें, कँपकँपाती हुई हमें
दोष कितना धरा का, कितना हमारा
इस पर लिखना भी
तुम्हारा कर्तव्य बनता है।

तो लिखो कविता
ग्लोबल वार्मिंग की सही वजहें
सागर की उदारता
नदी-नग निर्झरिणी की
मुस्काती मीठे ख़्वाबों की मीठी रातें
या फिर उन पर पड़ती यमराज की
कुदृष्टि की अकथ कथा
चुप नहीं रहो अब

और जो भी लिख रहे हैं
इन सब पर अनवरत,
उन पर भी तो लिखो कविता।

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चार- ख़ुश्बू चुराते बच्चे

कोलतार चुपड़ी काली सड़क से
दौड़ते हुए आ मिलते वे बच्चे
सवेरे-सवेरे, जो
फूटती किरण के साथ
गए थे सुंदर, साफ, उजर यूनिफाॅर्म में
कई स्कूलों में पंक्तिबद्ध
अपने-अपने बाबा का हाथ थामे
गँवीली पगडंडियों से गुजरकर।

दुपहरिया होते घर लौटते ही
बाबा के संग,
छोड़ उन्हें ओसारे पर
भागकर आ गए हैं
पगडंडी, मेड़ों को
लांघते-फर्लांघते हुए
माटी के करीब अपनी,
इतने-इतने क़रीब कि
उनकी देह से माटी की
ख़ुशबू चुराई जा सकती है।

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बेतरा

बाँधकर बेतरा में
अपने छउआ-पुता को
ये जो शहर की छाती पर
सँवारने शहर को घूम रही हैं
एक माँ भी हैं

बच्चा कब छाती पर,
कब पीठ से बँधे बेतरा में समा
कंगारू बन जाएगा
कह सकते नहीं,
ईंट भट्ठों, भवनों सहित सारे बाज़ार
सड़क-गली में छा गईं ये
श्रम का अद्भुत ईमानदार प्रतीक बन
पीठ पर बँधे अपने मुन्ने-मुन्नी के संग

नन्हां-मुन्ना सा बेतरा
पहचान है इनकी
खेत-खलिहान, पोखर-अहरा
नदी-तालाब, सागर
गोहाल-बथान, पगडंडी
कहीं भी मिल जाएँगी ये
और इनका बेतरा

अपने बेतरा में ये सिर्फ
वर्त्तमान ही नहीं
भविष्य भी ढोती हैं।

*बेतरा= बच्चे को पीठ पर बाँधना

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पाँच- अभी

सब अपने-अपने
कमरों में
लटके हुए शान से
अपने-अपने सलीबों पर
मोबाइल में व्यस्त

मोबाइल, लैपटाॅप पर
घर के एकांत कोनों से चिपके
कितने एकाकी हैं सब
विकास की ऊँचाइयाँ
सहेजते हुए मुट्ठी में अपनी

एकाकी जीवन की सजा
भोग रहे वे
भीड़ के बीच
भीड़ से अलग-थलग
स्क्रीन की रौशनी से
चकित, ठहरे हुए
हैं चकाचौंध में

बाज़ार ने उन्हें
सीखचों के पीछे
करके कैद
अपनों की
हसीन मुहब्बत से
कर दी है कितनी दूर,
कितनी अधिक दूर!

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रचनाकार परिचय

अनिता रश्मि

ईमेल : rashmianita25@gmail.com

निवास : राँची (झारखण्ड)

प्रकाशन- छः कथा संग्रह, दो काव्य संग्रह सहित चौदह पुस्तकें प्रकाशित।
हंस दलित विशेषांक, जनसत्ता दीपावली विशेषांक, ज्ञानोदय झारखंड विशेषांक, लोकमत उत्सव विशेषांक (चार बार), विश्व गाथा कहानी कथा विशेषांक, लेखनी.नेट कहानी विशेषांक सहित प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर विविधवर्णी रचनाएँ प्रकाशित।
विशेष- शोध प्रबन्धों में रचनाएँ शामिल। अंग्रेजी, बंगला, मलयालम, तेलुगू में रचनाएँ अनुदित। एक लघु फिल्म में अभिनय।
सम्मान/पुरस्कार- अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कार-सम्मान। 
संपर्क- 1 सी, डी ब्लाॅक, सत्यभामा ग्रैंड, कुसई, डोरंडा, राँची (झारखण्ड)- 834002
मोबाइल- 9431701893