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तबस्सुम जहां की लघुकथाएँ

तबस्सुम जहां की लघुकथाएँ

सोचते ही लक्ष्मी की आँखों में ठेकेदार के लिए घृणा उतर आई। पर उसे संतोष था। बच्चों और अपाहिज पति के पेट भरने का संतोष।

लक्ष्मी

उसके पेडू का दर्द आने वाली माहवारी का सूचक था या अपाहिज पति की बलात रति क्रियाओं का फल, कहना मुश्किल था। उसकी पीली छुआरे-सी देह पसीने से तर-ब-तर हो रही थी। सिर और वक्ष पर फटे चिथड़े में बहती पसीने की सर्प धाराएँ आंतरिक पीड़ा का मेह क्षण-क्षण बरसा रही थीं। एक टोकरी भर मिट्टी भी आज उसको अपने दुखों के बोझ-सी भारी लग रही थी। टोकरी ऊपर पहुँचाने के बाद लक्ष्मी ने कुछ क्षण सुस्ताते हुए निर्माणधीन इमारत से नीचे झाँका। पीड़ा से दिल भर आया। कुछ देर पहले अपने जिस नन्हे शिशु को वह अपनी चार वर्षीया मुन्नी के संरक्षण में छोड़ आई थी, अब वह धूप में मक्खियों से घिरा अपने ही आँसू में भीगी रेत फाँक रहा था। और उसकी मुनिया पास ही टाईलों के टिक्कड़ से काल्पनिक घर निर्माण में खोई भूख से ध्यान हटाने का एक अधमरा प्रयास कर रही थी। उसे कुछ भूला हुआ-सा याद आया। कल तक हालात थोड़े बदल जाएँ। बच्चों को कई दिनों बाद भरपेट खाना मिलेगा। पति की दवा-दारू का जुगाड़ भी हो जाएगा। ठेकेदार पूरी मजूरी देने वाला है। उसने बुलाया है मुझे आज रात। आज फिर दारू की तेज बास। सोचते ही लक्ष्मी की आँखों में ठेकेदार के लिए घृणा उतर आई। पर उसे संतोष था। बच्चों और अपाहिज पति के पेट भरने का संतोष।

 

 

बस ड्राइवर

वह स्कूल बस का ड्राइवर था इसलिए हमेशा बहुत ही ध्यान से बस चलाता। ट्रैफिक नियम का सदा क़ायदे से पालन करता। उसने तो कभी एक मक्खी तक नहीं मारी फिर किसी को ओवरटेक करके जानबूझकर टक्कर मारना उसकी नज़र में गुनाह था। उस रोज़ उसकी बस रेडलाइट पर खडी थी। सिग्नल ग्रीन हुआ। उसने बैक मिरर में देखा सब ठीक था। जैसे ही बस आगे बढ़ी उसी क्षण एक स्कूटर वाले ने अपना स्कूटर बस और डिवाइडर के बीच फँसा दिया। बस और डिवाइडर के बीच बहुत कम जगह थी। जैसे बस आगे बढ़ी कम जगह होने की वजह से बस की रगड़ से स्कूटर स्क्रैच होने लगा। स्कूटर पर बैठे पुरुष और महिला के पैर भी घायल हो गये। न तो उसे पता चला न उसके हैल्पर को। थोड़ा गड़बड़ी का आभास होने पर उसने बैक मिरर से देखा। स्कूटर सवार और पीछे बैठी महिला, जो पत्नी थी, दोनों ही अचेत होने को थे। पैरों से खून बह रहा था। वह उसी वक़्त बस से उतरा। दोनों दंपत्ति को उठाकर टैक्सी में बैठाकर फ़ौरन एम्स के ट्रामा सेंटर पहुँचा। एरिया के थाने जाकर एक्सीडेंट की सूचना दी। उसे गिरफ्तार कर लिया गया क्योंकि एक्सीडेंट होने पर ग़लती हमेशा बड़े वाहन की ही दिखाई जाती है। चोट ज़्यादा नहीं थी पर पुलिस ने तिल का ताड़ बना कर केस दर्ज किया। क्योंकि दूसरे पक्ष ने समझौते से इंकार कर दिया था।

दो दिन बाद उसकी कोर्ट से ज़मानत भी हो गयी। तीन साल केस चला। उसने तीस हज़ार रुपए वकील की फीस भरी। नौकरी छूटी सो अलग। दंपत्ति ने मुआवज़े में कोर्ट में डेढ़ लाख बड़ी सख्ती से उससे वसूले। कोर्ट में वह गिड़गिड़ाता रहा कि वह बहुत ग़रीब है। सिर्फ आठ हज़ार कमाता है। वह और उसकी बहन दुनिया में अकेले हैं। किराए के घर में रहते हैं। उसके ऊपर उसकी बहन की ज़िम्मेदारी भी है, वह इतना जुर्माना नहीं दे सकता। पर उसकी एक नहीं सुनी गयी। वो दंपत्ति सरकारी स्कूल में टीचर थे, जो रोज़ स्कूल में आदर्श, परोपकार, दया, करुणा की शिक्षा देते थे। वह केस हार गया था। दुःखी मन से वह कोर्ट से बाहर निकला। आज उसे उस ग़लती की सज़ा मिली है, जिसमें उसका लेश मात्र भी क़ुसूर नहीं था। उसने आसमान की ओर देखा और स्वयं से कहा- "बेक़ुसूर दोषी आख़िर इंसानियत का दंड पा ही गया।"

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रचनाकार परिचय

तबस्सुम जहां

ईमेल : tabijahan03@gmail.com

निवास : दिल्ली

जन्मतिथि- 3 मार्च, 1980
जन्मस्थान- दिल्ली
शिक्षा- स्नातक (इतिहास), एम० ए० (हिंदी), यू०जी००सी० नेट, एम० फिल, पी० एचडी
सम्प्रति- लेखिका, उप संपादक, अंतरराष्ट्रीय पियर रिव्यूड जरनल
लेखन विधाएँ- लघुकथाएँ, कहानी, कविताएँ, आलोचनात्मक समीक्षाएँ, पुस्तक समीक्षाएँ, साक्षात्कार।
निवास- अबुल फज़ल पार्ट 2, शाहीनबाग़, जामिया नगर, ओखला, नई दिल्ली- 110025
मोबाइल- 9873104110