Ira
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। दिसंबर 2024 के अंक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।

ग़ज़ल संग्रह 'लहरों पे घर' का लोकार्पण समारोह आयोजित

ग़ज़ल संग्रह 'लहरों पे घर' का लोकार्पण समारोह आयोजित

अनिल कुमार श्रीवास्तव के ग़ज़ल संग्रह लहरों पे घर का लोकार्पण समारोह 24 नवंबर, 2024 को कैफ़ी आज़मी एकेडमी में जनवादी लेखक संघ लखनऊ द्वारा आयोजित किया गया।

अनिल कुमार श्रीवास्तव के ग़ज़ल संग्रह 'लहरों पे घर' का लोकार्पण समारोह 24 नवंबर, 2024 को कैफ़ी आज़मी एकेडमी में जनवादी लेखक संघ लखनऊ द्वारा आयोजित किया गया। लोकार्पण के बाद अनिल जी ने अपने आत्मकथ्य में अपने बचपन से जुड़ी यादें साझा कीं। बचपन से उन्हें साझा संस्कृति की परवरिश मिली। उन्होंने बताया कि जब वे रोज़गार के सिलसिले में लखनऊ आए तो गिरीश चन्द्र श्रीवास्तव ने उन्हें मुक्तछन्द में लिखने के लिये प्रेरित किया। कौशल किशोर ने 'रेवांत' पत्रिका, सुभाष राय और हरे प्रकाश उपाध्याय ने 'जनसंदेश टाइम्स' में उनकी ग़ज़लें प्रकाशित कीं। उन्होंने अपने संग्रह से कुछ ग़ज़लें भी सुनाईं।

इस अवसर पर रेशमा परवीन ने कहा कि अनिल श्रीवास्तव हमारी कैफ़ियतों के शायर हैं। इस ग़ज़ल संग्रह के नाम ने उन्हें बहुत प्रभावित किया। पूरे संग्रह में निराशा नहीं दिखती। एक उम्मीद दिखती है। ग़ज़ल की ख़ूबी यही है कि बड़ी से बड़ी बात को दो पंक्तियों में कह दिया जाए। अपनी ग़ज़लों से वे बड़ी से बड़ी बात बड़े सादा तरीक़े से कह देते हैं। ग़ज़ल हमारी सारी ज़िंदगी को समेटती है। आज का इंसान जिस बेचैनी, अकेलेपन से गुज़र रहा है, उसको अनिल जी ने बेहद ख़ूबसूरती से अभिव्यक्त किया है। अनिल जी आशावादी हैं, वे परेशानियों से घबराते नहीं हैं। उन्होंने कुछ चुनिंदा ग़ज़लों के माध्यम से अपनी बातों को विस्तार दिया।

ओम प्रकाश नदीम ने कहा कि अनिल जी ने संग्रह में न भूमिका लिखी है और न किसी की टिप्पणी ही शामिल की है। मैं तो शीर्षक पर ही बहुत देर रुका रहा। इनका चिंतन इसी तरह का है। मुझे ये बात अच्छी लगी कि पाठक बिना किसी पूर्वाग्रह के इस किताब को पढ़ता है। यह वास्तव में हिंदी ग़ज़ल संग्रह है। यहाँ आम जन की पक्षधरता मौजूद है। इंसानी जज़्बात शायर के लिए बहुत महत्व रखते हैं। कथ्य का नयापन मिलता है। उन्होंने विरोधाभास अलंकार का एक शेर उदाहरण स्वरूप सुनाया। हिंदी आलोचकों का कहना है कि यह विचार प्रधान कविता का दौर है। अनिल जी ने इस बात को समझा कि ग़ज़ल की राह में कठिनाइयाँ बहुत हैं। उन्होंने कथ्य की महत्ता को बनाए रखा। जनवादी चेतना से परिपूर्ण अनिल जी का ये संग्रह बहुत मानीखेज है।

कवि-आलोचक नलिन रंजन सिंह ने कहा कि अनिल भाई अजातशत्रु हैं। एक कमिटेड साथी हैं और इतने विनम्र हैं कि सभी के प्रिय हैं। अनिल जी अपने व्यवहार से सबको जीत लेते हैं। छंदबद्ध और छंदमुक्त की बहस बहुत पुरानी है। एक समय था कि गोपाल दास नीरज ने ख़ूब गीतिकाएँ लिखीं। दुष्यंत कुमार ने हिंदी ग़ज़ल को नया मुक़ाम दिया। नलिन जी ने कहा कि कविता चार पायों पर खड़ी होती है। पहला पाया है विचार और दूसरी चीज़ है संवेदना। अगर आपमें संवेदना नहीं है तो कविता नहीं बनेगी। तीसरा है यथार्थ को समझना अर्थात अनुभव और चौथा पाया है भाषा।

सुभाष राय ने कहा कि चिड़िया जो सुबह-सुबह चहकती है, अगर उससे कहें कि वह मीटर में गाए तो क्या वह गा पाएगी! जो बातें बहुत मथती हैं और बहुत दबाव हो भीतर से कहने का और बिना कहे रहा न जाए तो फिर उसमें मीटर हो ये ज़रूरी नहीं। लहरें अपने आवेग से घर को तोड़ देना चाहती हैं लेकिन घर अपने को बचाए रखना चाहता है। हमारे घर उजड़ रहे हैं, हम घर बना ही नहीं पा रहे हैं। लेकिन अनिल जी इस संग्रह में बड़े साहस के साथ घर बनाने का काम करते हैं। अनिल जी की दृष्टि बेहद साफ़ है। कवि तो दुनिया को बदलना चाहता है। वो अपनी नई दुनिया बनाने का स्वप्न देखता है। अनिल जी बहुत ढंग से अपनी बात कहते हैं। चारों तरफ़ नफ़रत का माहौल है, सारा संकट प्रेम का ही है। प्रेम भी प्रतिरोध की ही तरह प्रतिरोध की शक्ति के रूप में आता है।

कवि-प्रकाशक हरे प्रकाश उपाध्याय ने कहा कि हम लोग साथ बैठे और एक-एक शेर पर डिस्कस किया। उन्होंने अनिल जी को शुभकामनाएँ दीं।
आलोचक आशीष सिंह ने भी अनिल श्रीवास्तव को अपनी शुभकामनाएँ दीं।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे राजेंद्र वर्मा ने कहा कि आज अनिल जी का दिन है, उससे ज़्यादा उनकी किताब का दिन है। सबसे बड़ी बात है कि वे जैसा सोचते हैं, वैसा ही लिखते हैं, ज़्यादा कलाबाज़ी के चक्कर में नहीं पड़ते। कविता एक विधा है, जो एक विशिष्ट लय पर चलती है। पहिया तभी चलता है, जब गोल होता है। ग़ज़ल की लय थोड़ा भिन्न है कविता की लय से। आंतरिक लय से बाहरी लय अलग है। लय की पहचान जिनसे होती है, जिससे एक मीटर बनता है, उस पक्ष को भी ध्यान में रखना चाहिए। अनिल जी ने उन परंपराओं को तोड़ा है, जिनको तोड़ा जाना चाहिए। कही-कहीं तुकान्त से समझौता हुआ है लेकिन कथ्य से कोई समझौता नहीं हुआ है। अनिल ने कुछ नए क़ाफ़िये का इस्तेमाल किया है। भाषा की सफ़ाई जो उर्दू में रही है, वह सीखी जाने योग्य है। ग़ज़ल की अगर बात है तो मीटर से भाग नहीं सकते। कुछ शब्द ऐसे हैं, जो आम बोलचाल की भाषा में नहीं प्रयोग होते हैं परंतु हम उनका प्रयोग लेखन में करते हैं। मेरा सवाल है कि जिन शब्दों का प्रयोग हम बोलचाल की भाषा में नहीं करते तो उनका प्रयोग हम लिखते समय क्यों करते हैं।
जब बच्चा पहली बार साइकिल चलाता है तो पगडंडी से थोड़ा इधर-उधर हो जाता है। अनिल जी का पहला संग्रह है तो अगले संग्रह में वे अपनी इन ग़लतियों पर सुधार करेंगे। कविता की बेहद ज़रूरी बात है कि वो आपकी संवेदना को छुए। उन्होंने अदम गोंडवी की परम्परा से अनिल जी को जोड़ा।

धन्यवाद ज्ञापन आभा खरे ने किया। कार्यक्रम का संचालन सलमान 'ख़याल' ने किया। इस अवसर पर शहर के तमाम साहित्य प्रेमी उपस्थित थे।

(सौजन्य- शालिनी सिंह)

0 Total Review

Leave Your Review Here

रचनाकार परिचय

टीम इरा वेब पत्रिका

ईमेल : irawebmag24@gmail.com

निवास : कानपुर (उत्तरप्रदेश)