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चित्रकार सुधीर बडोदिया की पुस्तक 'तुम हो चित्र सखा' का लोकार्पण

चित्रकार सुधीर बडोदिया की पुस्तक 'तुम हो चित्र सखा' का लोकार्पण

कविताएँ एक प्रकार से आत्म साक्षात्कार होती हैं। इसलिए कहा जाता है कि अनुभव जितने गहरे होंगे कविता उतनी पुख्ता, गहरी और विश्वसनीय होगी।
- फ़ारूक आफ़रीदी

सुप्रसिद्ध चित्रकार और फिल्म अभिनेता सुरेन्द्र राजन ने कहा कि कलाएँ मनुष्य में संवेदना का संचार करती हैं, चाहे उनका माध्यम कविता, चित्र या संगीत हो। कवि सुधीर बदोदिया ने अपनी कविताओं में कला के विभिन्न रंग भरे हैं और जीवन के विविध रूपों को काव्य के ज़रिये रूपायित किया है। उनकी कविताओं में प्रेम, सद्भाव और संत्रास है और यही असली जीवन है। राजन आज यहाँ पिंकसिटी प्रेस क्लब में सुधीर बडोदिया की पुस्तक 'तुम हो चित्र सखा' के लोकार्पण अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कवि एवं आलोचक नंद भारद्वाज ने कहा कि कविता में अपनी अनुभूतियों और अहसासों को बेहतर शब्दों में रचा जाए तो श्रेष्ठ अभिव्यक्ति सिद्ध होती है। इसे निरंतर बनाए रखा जाना चाहिए। प्रतिष्ठित कवि कृष्ण कल्पित ने कहा कि कविता का कोई बाज़ार नहीं बल्कि यह दिल को दिल से जोड़ती है। चित्रकारों के कवि होने की सुदीर्घ परंपरा रही है। चित्रकार और कवि दोनों की बड़ी शक्ति कल्पनाशीलता होती है। सुधीर अपनी कविताओं में जीवन के नाज़ुक तारों को उठाते हैं। इन कविताओं में चित्रकार का विजन दिखाई देता है।

विशिष्ट अतिथि फ़ारूक आफ़रीदी ने कहा कि सुधीर बदोदिया की कविताओं में जीवन के कोलाज हैं। इनमें जीवन के छोटे-छोटे बिम्ब हैं। जीवन एक इंद्रधनुष की भांति होता है, जो विविध रंगों से भरा है। देखने में ये कविताएँ घर समाज की लगती हैं लेकिन गहरे अर्थ लिए हुए हैं। इनका वितान काफी विस्तृत है। कभी-कभी इनसे ऐसी छवियाँ और ध्वनियाँ उभरती हैं मानो वे हमारे दर्शन शास्त्र और समाज शास्त्र के सिद्धांतों को अपने भीतर समेटे हुए है। कवि ने कविताओं को रंगों की अमूर्त भाषा से इन्हें गूँथा है। इससे इनका सौन्दर्य निखर आया है। कविता शब्दों का गुंफन भर नहीं होती अपितु अनुभूत सच्चाईयों का दस्तावेज़ होती हैं। इनमें अनेक गूढ रहस्य छुपे होते हैं। कविताएँ एक प्रकार से आत्म साक्षात्कार होती हैं। इसलिए कहा जाता है कि अनुभव जितने गहरे होंगे कविता उतनी पुख्ता, गहरी और विश्वसनीय होगी।

युवा साहित्यकार तसनीम ख़ान ने कहा कि कवि ने कविताओं में अनेक नए बिम्ब और प्रतीक प्रस्तुत करके समाज में बरते जाने वाले उन शब्दों को जीवंत कर दिया, जो अब हमारे जीवन से लुप्त होते जा रहे हैं और जो हमारी लोक संस्कृति के अटूट हिस्सा रहे हैं। कवि सुधीर बडोदिया ने श्रोताओं के समक्ष अपनी चुनिन्दा रचनाओं का पाठ किया। कार्यकम का संयोजन प्रेमचंद गांधी ने किया और कवि के रचनाकर्म पर प्रकाश डाला।

(समाचार सौजन्य: श्री फ़ारूक आफ़रीदी, वरिष्ठ साहित्यकार)

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