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अनामिका सिंह के पाँच नवगीत

अनामिका सिंह के पाँच नवगीत


द्वार पर किन्नर

गूँजते हैं तालियों की,
थाप के शुभ स्वर
हर सगुन के काज आये
द्वार पर किन्नर
हुलसकर गीत गाते,
दें
बधाई लो बधाई

ब्याह, गौने, जच्चगी में
नाचते छम-छम
नयन रंजन कर रहे जन,
देख तन के खम
जिए लल्ला, जिए जच्चा,
दुआएँ
दे रहे माई

बोलते, लगते बहुत
बरजोर हैं सारे
चल रहे लचका कमर
नर देह से हारे
हिकारत से गये देखे
सहे हर साँस रुसवाई

मारता कहकर शिखंडी
जग इन्हें ताना
कौन है हम-आप में
इंसान जो माना
उद्धारकों की आँख की
छँटती नहीं काई

जी रहे जीवन कटी,
सबसे अलग धारा
दर्द है अनकथ हुई,
ऐसी इन्हें कारा
सहारा नेग का केवल
नाचकर,
जोड़नी पाई

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पितृसत्ता के कबीले

नून रोटी लकड़ियों में
उम्र ही कटती
नहीं कटते, मगर दु:ख

होंठ पर फीकी हँसी है
पीठ पर हैं दाग़ नीले,
साँस उखड़ीं पर न उखड़े
पितृसत्ता के कबीले
भेद की खाई बहुत गहरी
नहीं पटती
नहीं पटते, जबर दु:ख

बिना नागा हो रहे हैं
हर बरस ही पाँव भारी
साथ में ताकीद,
अबकी जनम देना पूत दारी
यातना की रेख है लंबी
नहीं घटती
नहीं घटते, अजर दु:ख

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एक क़ल़म पर सौ ख़ंजर हैं

इसको रोये उसको रोये
बोल भला किस-किस को रोये,
एक क़लम पर सौ खंजर हैं

सच के सुआ बेधती कीलें,
घात लगाये वहशी चीलें
धन कुबेर के कासे ख़ाली,
मसले कलियों को ख़ुद माली
गुलशन सारा धुआँ-धुआँ है,
बदहवास सारे मंजर हैं

रेहन पर हैं सत्ताधारी,
कुटिल नीतियाँ हैं दोधारी
भाषण लच्छेदार सुनायें,
हर अवसर पर विष टपकायें
विध्वंसों की भू उर्वर है
सद्भावी चिंतन बंजर हैं

लोक तंत्र में लोक रुआँसा,
खल वजीर ने फेंका पाँसा
लिखी दमन की चंट कहानी,
सकते में है चूनर धानी
धन्नामल हैं रंगमहल में
सड़कों पर अंजर-पंजर हैं

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चिरैया बचकर रहना

परिधि तुम्हारे पंखों की लो
रहे हितैषी खींच
चिरैया बचकर रहना

रूढ़िवाद की पाँवों में यह
बेड़ी डालेंगे
तेरे चिंतन में पगली फिर
आग लगा देंगे
रखें चरण दस्तार न झूठे
लें न प्रेम से भींच
चिरैया बचकर रहना

जगत हँसाई का कानों में
मंतर फूँकेंगे
करने वश में तुझे नहीं
ये जंतर चूकेंगे
छल के बगुले कर के धोखा
देंगे आँखें मींच
चिरैया बचकर रहना

साँसें कितनी ली हैं कैसे
बही निकालेंगे
चाल-चलन की पोथी-पत्री
सभी खँगालेंगे
संघर्षो से हुई प्रगति पर
यही उछालें कींच
चिरैया बचकर रहना

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अम्मा की सुधि आई

शाम-सबेरे शगुन मनाती
ख़ुशियों की परछाई
अम्मा की सुधि आई

बड़े सदौसे उठी बुहारे
कचरा कोने-कोने
पलक झपकते भर देती थी
नित्य भूख को दोने
जिसने बचे-खुचे-से अक्सर
अपनी भूख मिटाई
अम्मा की सुधि आई

तुलसी चौरे पर मंगल के
रोज़ चढ़ाए लोटे
चढ़ बैठीं जा उसकी ख़ुशियाँ
जाने किस परकोटे
किया गौर कब आँखों में थी
जमी पीर की काई
अम्मा की सुधि आई

पूस कटा जो बुने रात-दिन
दो हाथों ने फंदे
आठ पहर हर बोझ उठाया
थके नहीं वो कंधे
एक इकाई ने कुनबे की
जोड़े रखी दहाई
अम्मा की सुधि आई

बाँधे रखती थी कोंछे
हर समाधान की चाबी
बनी रही उसके होने से
बाखर द्वार नवाबी
अपढ़ बाँचती मौन पढ़ी थी
जाने कौन पढ़ाई
अम्मा की सुधि आई

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रचनाकार परिचय

अनामिका सिंह

ईमेल : yanamika0081@gmail.com

निवास : शिकोहाबाद (उत्तरप्रदेश)

जन्मतिथि- 09 अक्टूबर, 1978
जन्मस्थान- इन्दरगढ़, ज़िला- कन्नौज (उत्तरप्रदेश)
माता- श्रीमती देशरानी
पिता- श्री श्रीकृष्ण यादव
शिक्षा- परास्नातक विज्ञान एवं समाज-शास्त्र, बी० एड
संप्रति- शिक्षा विभाग उत्तर प्रदेश में कार्यरत
लेखन विधाएँ- नवगीत, ग़ज़ल, छंद (वार्णिक एवं मात्रिक), आलेख आदि।
प्रकाशन- नवगीत संग्रह 'न बहुरे लोक के दिन' प्रकाशित। अनेक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में नवगीत, दोहे एवं ग़ज़लों प्रकाशन।
सम्पादन- सुरसरि के स्वर (साझा छंद संकलन), आलाप (समवेत नवगीत संकलन)। 'अंतर्नाद' साहित्यिक पत्रिका सम्पादन। 'कल्लोलिनी' साहित्यिक पत्रिका का सह सम्पादन।
पूर्व सम्पादक/संचालक- वागर्थ (नवगीत पर एकाग्र साहित्यिक समूह)
सम्पादक/संचालक- 'कंदील' (नवगीत पर एकाग्र साहित्यिक समूह)
संपर्क- स्टेशन रोड, गणेश नगर, शिकोहाबाद, ज़िला- फ़िरोज़ाबाद (उत्तरप्रदेश)- 283135
मोबाइल- 9639700081