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आपदाओं व आशंकाओं से आगाह करता उपन्यास : पानी-पानी- कुलदीप सिंह भाटी

आपदाओं व आशंकाओं से आगाह करता उपन्यास : पानी-पानी- कुलदीप सिंह भाटी

मेरी नज़र में यह उपन्यास एक आँख से गिरते भू-जल स्तर और दूसरी आँख से हमारे गिरते मानवीय गुणों को देखता है। यह उपन्यास पानी के लिए होने वाले संघर्षों, बिन पानी के लोगों के दूभर जीवन की स्याह तस्वीर हमारे समक्ष रखता है।

हबीब कैफ़ी साहब अपनी लेखनी की सरलता से गंभीर मुद्दों के चित्रण करने वाले कुशल लेखक हैं। उनकी यह कुशलता एक बार पुनः मैंने अनुभूत की, जब उनका लिखा उपन्यास पानी-पानी पढ़ा। जहाँ पर आँखों में पानी से ज़्यादा रेत की किरकिरी खटकती हो, उस पानी की कैफ़ियत को उजाड़, ऊसर मरुधरा से संबंध रखने वाले कैफ़ी साहब ही माकूल तरीके से बयां कर सकते हैं। आगे कुछ कहूँ इससे पहले ही मुझे अबरार अहमद साहब के शेर का उल्लेख करना ठीक लगता है कि

क़िस्से से तेरे मेरी कहानी से ज़ियादा
पानी में है क्या और भी पानी से ज़ियादा

पानी ख़ुद अपने में एक मुकम्मल शब्द है। शब्द की अपनी ऊर्जा व शक्ति होती है और शक्ति प्राणवान होने का प्रमाण है। अतः पानी को ही प्राण कहें तो कोई भी इससे इनकार नहीं करेगा। 'पानी-पानी' उपन्यास भी ऐसा ही एक दस्तावेज़ है, जिसमें पानी की महत्ता, उपादेयता और अर्थवत्ता पर गंभीर चिंतन-मनन किया गया है। इस उपन्यास का मुख्य पात्र है, नवीन, जो कि शहर से गाँव लौटकर आता है। गाँव में पीने के पानी के स्रोतों- गाँव की प्राचीन बावड़ी व तालाब की उपेक्षा देखकर हतप्रभ हो जाता है। कभी आसपास के गाँव-शहर तक की प्यास बुझाने वाले नवीन को अपने गाँव की तितिक्षा और परिणामतः शुष्क होठों पर उभरी पपड़ियाँ गाँव के तालाब की सूखी तरेडों में परिलक्षित होती हैं। अब यहाँ भी टैंकरों से पानी की सप्लाई होती है।

यह सब जानकर शुरू होती है, पानी को बचाने की एक मुहिम। नवीन के प्रयासों से यह मुहिम जल्द ही एक जन-आंदोलन बन जाती है। इस उपन्यास में बताया गया है कि पानी की किल्लत को 'नारायण' जैसे कपटी लोगों की लोभी-वृत्ति चाँदी कूटने का अवसर मानती है। जनहित के विपरीत राजनैतिक मंशा भी दिखावटी कोशिश मात्र है। राजनीति के लोग भी इस आपदा को अवसर मानते हैं और पानी की आड़ में भ्रष्टाचार को फूलने-फलने का अवसर मिल जाता है। पानी जीवन की आधारभूत आवश्यकता है। यह उपन्यास पानी के पर्दे के पीछे छिपी अलग-अलग मानसिकता को परत-दर-परत उघाड़ता है।

आजकल जहाँ 'नवीन' जैसे जागरूक नागरिक कम हैं, वहीं उनके काम में रोड़ा अटकाने के लिए साम, दाम, दंड और भेद सभी तरह के तरीके अपनाने से नहीं चूकने वाले 'नारायण' हर गाँव, प्रांत में सेवा व समर्पण का ढकोसला करते मिल जाएँगे। किसी भी मिशन को जन-जन का आंदोलन बनाने हेतु, लोगों का सहयोग पाने और विश्वास जीतने हेतु 'नवीन' जैसे व्यक्तियों को बहुत कुछ दाँव पर लगाना पड़ता है। नवीन अपने गाँव के लोगों के लिए आधुनिक भगीरथ है। ऐसे सच्चे लोक-हितैषी ही जान पर ख़तरा होने के बावजूद इस मुहिम को उसके अंज़ाम तक पहुंचाते हैं। मेरी नज़र में यह उपन्यास एक आँख से गिरते भू-जल स्तर और दूसरी आँख से हमारे गिरते मानवीय गुणों को देखता है। यह उपन्यास पानी के लिए होने वाले संघर्षों, बिन पानी के लोगों के दूभर जीवन की स्याह तस्वीर हमारे समक्ष रखता है।

सामाजिकता के दूसरे कोण से देखें तो इस उपन्यास में विधवा-विवाह की भी पुरज़ोर वकालत की गई है। नवीन का एक बच्ची की माँ सीमा से विवाह करना और विवाह के बाद उस बच्ची को अपनाना, आज के समाज में नव-चेतना की ज्योति को तीव्र करता है। नवीन का यह साहसिक कार्य हमें हमारी सामाजिक संकीर्णता पर पुनः विचार करने को विवश करता है।

आजकल सामाजिक रीति-रिवाज़ों पर होने वाले अपव्ययों से हम सब बख़ूबी परिचित है। ऐसे समय में नवीन और सीमा ने बिना दिखावे के कोर्ट-मैरिज कर इन उत्सवों पर होने वाले अनाप-शनाप खर्चों को बचाने का संदेश दिया है। अपनी बचत को गाँव के तालाब के जीर्णोद्धार जैसे पुनीत कार्य में ख़र्च करना हमें परोपकार का पाठ पढ़ाता है।

आजकल जहाँ थोड़ी-सी सामाजिक स्वीकार्यता और सफलता से लोग सातवें आसमान में उड़कर अहंकार में पींगे भरने लग जाते हैं, वहीं अपनों और अन्य लोगों के उकसाने और बार-बार कुरेदने के बावजूद नवीन अपनी सफलता को राजनैतिक महत्वाकांक्षा का साधन नहीं बनाता। साधन के बजाय साध्य की प्रमुखता व इसकी पवित्रता की महत्ता को आत्मसात कर नवीन जैसे पात्र ने सामाजिक सरोकारों से जुड़े लोगों और संस्थाओं को महत्वपूर्ण सीख दी है।

हबीब कैफ़ी साहब का यह उपन्यास मेरे द्वारा पढ़ा जाने वाला नवाँ उपन्यास है। हर उपन्यास में हबीब साहब सामाजिक व मानवीय मूल्यों की पैरवी करते हुए अपनी प्रयोगधर्मिता से पाठकों को कुछ नया देने का साहस करते हैं। उपन्यास की बनी-बनाई परिपाटी के साथ ही 'तीसरा कोलाज' नाम से इस उपन्यास का एक भाग उपन्यासकार की मौलिकता का नवोन्मेषी प्रयास है। 'तीसरा कोलाज' में सात छोटे-छोटे प्रसंग पानी के लिए होने वाले आगामी संघर्षों के लिए एक मुनादी है। मैं इन प्रसंगों को तीसरे विश्व युद्ध की बुनियाद कहूँ तो भी कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी, क्योंकि इस कोलाज के छोटे-छोटे संघर्ष एक बड़े विप्लव की ओर हमें लेकर जाते हैं। इस मुनादी के बाद भी यदि हम नहीं चेते तो निस्संदेह आने वाले कुछ ही दशकों के बाद ये कोलाज भविष्य में मूर्त रूप में आँखों में किरिच बन खटकेंगे और पास में पानी की जगह रहेगा तो केवल और केवल पश्चाताप। अतः अभी समय है, सावचेती का, जागने का, जल-संरक्षण का, आदमी और आदमीयत को बचाने का, गाँव, ढाणी, सभ्यता, संस्कृति को बचाने का। ज़रूरी नहीं कि आज के महत्वाकांक्षी समय में कोई निर्लोभी 'नवीन' आधुनिक भगीरथ बनकर आये। बिना प्रतीक्षा किये यह उपन्यास हमें ही 'नवीन' बन, अपने भीतर की ऊर्जा का आत्म-साक्षात्कार करने का संकेत करता है। यदि हम फिर भी नहीं समझते हैं तो इसके परिणाम भुगतने होंगे और पानी की महामारियों से जद्दोजहद करते मानुष को भविष्य में पानी की मारामारियों के बीच मरना होगा।

कौटिल्य बुक्स, नई दिल्ली से प्रकाशित हुआ यह उपन्यास शानदार पठनीय व मननीय है। इस उपन्यास का कलेवर पानी की कमी से जूझते विभीषिकापूर्ण समय की तस्वीर का एक नमूना मात्र है। पानी-पानी का शाब्दिक-शृंगार (वर्ड-आर्ट) गौर करने लायक है, जिसमें पानी शब्द की 'ई' की मात्रा में बनी आँख हर उस संवेदनशील आँख की ओर संकेत करती है, जिसमें से संवदेना के वशीभूत पानी भी आँसू के रूप में झरते हैं। कुल 16 अध्यायों में लिखा यह उपन्यास उर्दू मिश्रित शब्दावली के होते हुए भी आमजन के समझने वाली भाषा में लिखा है। शानदार व सफल उपन्यास लेखन हेतु हबीब कैफ़ी साहब को अनेकानेक बधाई।

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समीक्ष्य पुस्तक- पानी-पानी
विधा- उपन्यास
लेखक- हबीब कैफ़ी
प्रकाशक- कौटिल्य बुक्स, नई दिल्ली
मूल्य- 350 रुपये

2 Total Review

राजेंद्र नेहरा

10 December 2024

बहुत ही शानदार पुस्तक समीक्षा

K

Kuldeep

09 December 2024

Thanks a lot team ERA

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रचनाकार परिचय

कुलदीप सिंह भाटी

ईमेल : ks08857@gmail.com

निवास : जोधपुर (राजस्थान)

जन्मतिथि- 18 मई, 1988
जन्मस्थान- जोधपुर (राजस्थान)
शिक्षा- एम० ए० (राजनीति विज्ञान)
संप्रति- भारतीय स्टेट बैंक में वरिष्ठ सहयोगी के रूप में कार्यरत
प्रकाशित पुस्तकें- काव्य संग्रह 'सृजन सौरभ' एवं 'धूप और धरती का प्रेम' प्रकाशित
संपर्क- कालूराम जी की बावड़ी, कैनरा बैंक के पीछे, गली संख्या- 1, सूरसागर, जोधपुर (राजस्थान)- 342024
मोबाइल- 9413461694