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वंचित तबके की पीड़ा को शाश्वत काव्य स्वर प्रदान करता: किन्नर काव्य- संदीप मिश्र 'सरस'

वंचित तबके की पीड़ा को शाश्वत काव्य स्वर प्रदान करता: किन्नर काव्य- संदीप मिश्र 'सरस'

महेंद्र भीष्म के उपन्यास किन्नर कथा के काव्य रूप किन्नर काव्य के रचयिता आशीष कुलश्रेष्ठ एक प्रभावशाली रचनाकार हैं। इस पुस्तक में पूरी रचनात्मकता के साथ उनके काव्य सौष्ठव की उपस्थिति हम सहज महसूस कर सकते हैं। वे इस बात के लिए बधाई के पात्र हैं कि उन्होंने वंचित तबके की पीड़ा को शाश्वत काव्य स्वर प्रदान किया है। समाज के अस्पृश्य वर्ग के निजी जीवन में झांकने का साहस किया है।

किसी बहुचर्चित पुस्तक का अनुवाद करना जितना चुनौती पूर्ण कार्य होता है, उससे कहीं अधिक उसके अनुवाद पर कुछ समीक्षात्मक लिखना चुनौतीपूर्ण कार्य होता है लेकिन जब कोई अनुवाद, अनुवाद न होकर उस पुस्तक का विधा परिवर्तन मात्र प्रतीत हो तो चर्चा लाजिमी हो जाती है।

महेंद्र भीष्म के उपन्यास 'किन्नर कथा' के काव्य रूप किन्नर काव्य के रचयिता आशीष कुलश्रेष्ठ एक प्रभावशाली रचनाकार हैं। इस पुस्तक में पूरी रचनात्मकता के साथ उनके काव्य सौष्ठव की उपस्थिति हम सहज महसूस कर सकते हैं। वे इस बात के लिए बधाई के पात्र हैं कि उन्होंने वंचित तबके की पीड़ा को शाश्वत काव्य स्वर प्रदान किया है। समाज के अस्पृश्य वर्ग के निजी जीवन में झांकने का साहस किया है।

कुल 26 भागों में समायोजित यह काव्य अनुवाद किन्नर काव्य, आशीष कुलश्रेष्ठ की काव्यात्मक दक्षता और संप्रेषण क्षमता का जागृत प्रमाण है। शिल्प की सरलता और भाषा की सहजता ने इस पुस्तक को बेहद प्रभावी बना दिया है। भाषा, कथ्य, तथ्य, भाव पक्ष के सुदृढ़ संतुलन ने किन्नर काव्य को मूल्यांकन का हक़दार बनाया है। कहानियों के नाट्य रूपांतरण की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए उपन्यास के काव्य रूपांतरण की यह अनूठी पहल, साहित्य में नवाचार का शोभित उदाहरण प्रस्तुत करेगा।

साहित्य समाज का दर्पण भी होता है और सामाजिक चेतना का सजग प्रेरक भी। साहित्य सदैव युगीन चेतना का प्रतिनिधित्व करता है। सामाजिक विसंगतियों और विद्रूपताओ के विरुद्ध विभिन्न विमर्श आंदोलनों का साहित्य सदैव साक्षी रहा है। चाहे आधी आबादी की अस्मिता के संघर्ष से जुड़ा स्त्री विमर्श आंदोलन हो, चाहे दलित आदिवासी चेतना के स्वर को मुखर करता दलित विमर्श। इन विमर्शों की श्रृंखला में विकलांग और किन्नर विमर्श भी उल्लेखनीय हैं।

हमारे पौराणिक ग्रन्थों रामायण, रामचरितमानस और महाभारत में किन्नरों का उल्लेख मिलता है। जयशंकर प्रसाद ने ध्रुवस्वामिनी में, पांडे बेचन शर्मा 'उग्र' ने अपनी कुछ कहानियों में और महाप्राण निराला ने चतुरी चमार में किन्नर विमर्श को रेखांकित किया है। राहुल सांकृत्यायन ने भी किन्नरों पर लेखनी चलाई है।

किन्नर कथा में बुंदेलखंड अंचल के जैतपुर रजवाड़ों के महाराज जगत सिंह बुंदेला अपने क्षेत्र के बेहद प्रतिष्ठित व्यक्तित्व थे। उनके यहाँ जुड़वा बेटियों का जन्म होता है, जिनका नाम सोना और रूपा रखा जाता है। सोना के किन्नर रूप में पैदा होने की बात माँ सभी से छिपा कर रखती है। एक दिन जैसे ही राजा को इसका पता लगता है, वह दीवान पंचम सिंह को बुलाकर सोना की हत्या की योजना बनाते हैं। माँ इस बात के ख़िलाफ़ है, वह सोना को पालने के लिए तैयार है। लेकिन राजा के समक्ष मजबूर हो गई। लंबे वाद-विवाद के बाद सोना के मुँह में अफीम चटाकर दीवान को ठिकाने लगाने के लिए सौंप दिया जाता है लेकिन संवेदनशील दीवान पंचम सिंह ने उसे किन्नर तारा के सुपुर्द कर दिया और यह हिदायत भी दी कि इस घटना को सदैव गुप्त रखना।

किन्नर सोना उर्फ चंदा, तारा के डेरे पर पलती, बड़ी होती है। तारा का भतीजा मनीष, चंदा से बेहद प्रेम करता है। यहाँ तक कि जब उसे चंदा के किन्नर होने का पता चलता है तब भी उसके प्रेम में कोई शिथिलता नहीं आती। किन्नर चंदा बधाई गीत के लिए इतनी प्रसिद्ध हो गई थी कि रईस घरों से उसे बधाई गाने के लिए बुलाया जाता था। संयोग से वह अपने ही घर अपनी छोटी बहन के विवाह में नाच गाने के लिए सम्मिलित हुई। चंदा को यह रहस्य पता लग जाता है कि उसका इसी घर में सोना के रूप में जन्म हुआ था लेकिन इस बात से वाकिफ़ होने से आक्रोशित उसका भाई कुंवर सिंह आवेश में उसे गोली मार देता है। घायल चंदा अपनी असली माँ की गोद में सर रखकर अपनी व्यथा कहती है। "माँ-भैया मुझे कोई दुख नहीं है। आप लोगों की गोद में जगह मिल गई बस मेरी यात्रा पूरी हुई। बहुत थक गई हूँ माँ। ख़ूब सोना चाहती है तुम्हारी सोना। अब सुकून से मर सकूँगी। हिजड़े का अभिशप्त जीवन जीते-जीते आपकी गोद में बहुत शांति मिली है। ईश्वर से मेरे लिए प्रार्थना करना कि मेरा अगला जन्म आपके कोख से हो, वही मेरे पिता हों लेकिन मैं हिजड़ा पैदा न होऊं।"
सोना को अस्पताल ले जाया जाता है। वहाँ उसकी बहन और जीजा चिकित्सा के लिए उसे कनाडा ले जाते हैं। एयरपोर्ट पर उसे मिलने मनीष भी पहुँच जाता है और इस तरह सुखांत घटनाक्रम के साथ इस उपन्यास का अंत होता है।

कुल मिलाकर इतना-सा ही किन्नर कथा का कथानक है लेकिन किन्नर कथा की संवेदना की बुनावट का फ़लक बेहद व्यापक है। उपन्यास की विशेषता यह है कि इसमें प्रामाणिक तत्वों को भी कथानक के साथ संपृक्त करके इस तरह प्रस्तुत किया जाता है कि वह चरित्र, कथ्य, तथ्य के साथ विवेचना का केंद्र बनते हैं।

डॉ० महेंद्र भीष्म कृत किन्नर कथा केवल औपन्यासिक कृति मात्र न होकर किन्नरों के संदर्भ में गहन अध्ययन और अथक अन्वेषण का दस्तावेज है, जो उपन्यास की स्वरूप में प्रस्तुत हुआ।

किन्नरों के स्वरूपों, उनके सामाजिक आर्थिक आधारों के साथ-साथ समस्या का निदान भी उपन्यास में उपस्थित है। किन्नर कथा लैंगिक विकलांगता के कारण तृतीय लिंगी की समस्याओं और अधिकारों के लिए जूझते संघर्षों और मानवीय अस्तित्व व स्वाभिमान के अन्वेषण की कथा यात्रा है, जिसे उपन्यासकार ने तार्किकता और संवेदनशीलता के साथ से लिपिबद्ध किया है।

किन्नरों का राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित संगठन समूह है। देश में उनके 450 धाम और उतने ही गुरु धाम हैं। भारत में इनकी संख्या लगभग 15 लाख है। जिनमें नकली हिजड़ों की संख्या आधे से भी अधिक है। वे विभिन्न शाखाओं में विभक्त हैं, जिसकी विशद चर्चा इस उपन्यास में की गई है।

यह सामाजिक विडंबना है कि किन्नरों के प्रति अभी भी लोगों का रवैया नकारात्मक ही है। जन्म, विवाह अथवा अन्य मांगलिक कार्यक्रमों में उन्हें बुलाया जाता है लेकिन यजमान का व्यवहार उपेक्षा से भरपूर रहता है। आशीर्वाद लेने की औपचारिकता परंपरा के अंतर्गत की तो जाती है लेकिन समाज के अमानवीय व्यवहार और अछूत से भी बदतर आचरण ने इन्हें नारकीय जीवन जीने के लिए विवश कर दिया।

सामाजिक मान्यता है कि किन्नर की शुभकामनाओं व आशीर्वाद का फल मिलता है। यदि ये अप्रसन्न हो जाए तो उनकी बददुआएँ लगती हैं। उपन्यासकार ने इस मान्यता को स्वीकार नहीं किया। उसकी मान्यता है की असली किन्नर आशीर्वाद मंगल कामना ही देने में विश्वास रखता है। वह कभी बद्दुआ नहीं देता। इसीलिए डॉ० महेंद्र भीष्म, किन्नरों को मंगलामुखी संबोधन के पक्षधर हैं।

किन्नर समूह में जन्मजात हिजड़ों का महत्वपूर्ण स्थान होता है, जिन्हें दूसरा कहा जाता है लेकिन इनकी संख्या कम है। नकली हिजड़ों के अतिक्रमण से असली हिजड़े पार्श्व में हैं और इन्हीं नकली हिजड़ों की वजह से किन्नर समुदाय बदनाम है।

डॉ० महेंद्र भीष्म अपने प्राक्कथन में लिखते हैं, "हिजड़ा कहलाना किसी मर्द को अच्छा नहीं लगता। पिघला शीशा-सा कानों में उतरता है और हिजड़े को हिजड़ा कहो तो गाली नहीं लगती। पर कहीं अंतर में उसके मन में टीस ज़रूर लगती है। आखिर ईश्वर ने उसके साथ अन्याय क्यों किया! क्यों हम सब उसे अपने से दूर सामाजिक दायरे से बाहर रखते चले आए। उसके प्रति हमारी सोच में अश्लीलता का चश्मा क्यों चढ़ा रहता है?" हमें हिजड़ों को समाज के मुख्य धारा से जोड़ना होगा। उन्हें मान सम्मान देना होगा। उन्हें त्यागने की नहीं, अपनाने की ज़रूरत है। हम उनके दर्द को बाँटें, उन्हें हिजड़ा नहीं, इंसान समझें।

एक बात तय है कि संविधान में भले ही थर्ड जेंडर के लिए कोई प्रावधान बना दिया जाए लेकिन इस वर्ग को भारतीय समाज की स्वीकार्यता प्राप्त करने में अभी समय लगेगा। समाज के अवचेतन मस्तिष्क में बैठा गहरा उपेक्षा, हेयता भाव किसी कानूनी बैसाखी के सहारे किन्नर समाज के साथ न्याय नहीं कर सकता। जब तक सामाजिक, नैतिक मान्यताएँ पूर्वाग्रह से ऊपर उठकर मनुष्यता के धरातल पर सहज नहीं होती हैं तब तक कोई कानून इस समस्या के व्यापक समाधान के लिए कारगर नहीं साबित हो सकता।

मुझे विश्वास है कि आशीष कुलश्रेष्ठ की पुस्तक किन्नर काव्य थर्ड जेंडर से जुड़े विमर्श में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी और किन्नर समुदाय की विषमताओं से सीधा संवाद करने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगी।

उत्तर प्रदेश सरकारी विभाग, लखनऊ में निदेशालय स्तर पर सेवारत आशीष कुलश्रेष्ठ जी कविता, कहानी, उपन्यास, आलेख, समीक्षा आदि विधाओं में बेहद समृद्ध लेखन करते हैं। आपकी रचनाएँ देश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं और तमाम प्रतिष्ठित संस्थाओं ने आपको सम्मानित किया है।

एक बेहतर काव्य अनुवाद के लिए आशीष जी को असीम बधाई अनंत शुभकामनाएँ।

 

 

समीक्ष्य पुस्तक- किन्नर काव्य
(ट्रांसजेंडर पर केंद्रित डॉ० महेंद्र भीष्म के उपन्यास 'किन्नर कथा' का काव्य अनुवाद)
रचनाकार- आशीष कुलश्रेष्ठ
प्रकाशक- प्रलेक प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड
संस्करण- प्रथम, 2021
मूल्य- 200 रुपये
पृष्ठ-151

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रचनाकार परिचय

संदीप मिश्र 'सरस'

ईमेल : sandeep.mishra.saras@gmail.com

निवास : बिसवाँ, ज़िला- सीतापुर (उ०प्र०)

जन्मतिथि- 5 जुलाई
जन्मस्थान- बिसवाँ, सीतापुर (उ०प्र०)
शिक्षा- एम०ए० (हिंदी साहित्य)
सम्प्रति- पत्रकार, साहित्यकार, समीक्षक एवं सम्पादक
विशेष- राष्ट्रीय अध्यक्ष/संयोजक, साहित्य सृजन संस्थान, बिसवाँ (सीतापुर), संस्थापक- सृजन पुस्तकालय, साहित्य सम्पादक- दैनिक राष्ट्र राज्य, कॉलम सम्पादन- विमर्श/ संवाद/ कलमकार/ समीक्षा/ रचनाकार/ सृजन/ सृजन के सारथी
लेखन विधाएँ- गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, दोहा, छंद, क्षणिका, हाइकु, कुण्डलिया, समीक्षा, कहानी, लघुकथा आदि
प्रकाशन/प्रसारण- कुछ ग़ज़लें, कुछ गीत हमारे (काव्य संकलन) प्रकाशित। समकालीन दोहाकार, हिंदी ग़ज़ल का बदलता मिज़ाज, गुनगुनाएं गीत फिर से-2 सहित बारह साझा संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित। हंस, कादम्बिनी, अहा जिंदगी, पाखी, वीणा, उत्तर प्रदेश, राष्ट्रधर्म, कथादेश, मंगलदीप, अपरिहार्य, हरिगंधा, गुफ़्तगू, अभिनव प्रयास, सरस्वती सुमन, लमही, अलाव , हस्ताक्षर, छपते छपते आदि प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में समय-समय पर रचनाओं का प्रकाशन। राष्ट्रीय स्तर पर पत्र-पत्रिकाओं/टीवी चैनल/रेडियो से प्रकाशित, प्रसारित व पुरस्कृत। दूरदर्शन, न्यूज 18 चैनल व आकाशवाणी, लखनऊ, उत्तर प्रदेश सरकार के संस्कृति विभाग का चैनल 'जयघोष' सहित देश के विभिन्न काव्यमंचों से नियमित काव्य प्रसारण। कविताकोश व छंदकोश, दोहाकोश में रचनाएँ सम्मिलित। नियमित समीक्षा कॉलम (विमर्श) में सौ से अधिक साहित्यकारों की पुस्तकों की समीक्षा लेखन। आउटलुक सहित तमाम देश की प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में समीक्षाओं का प्रकाशन।
सम्मान- उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ सहित अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानित।
सम्पर्क- वार्ड- शंकरगंज, पोस्ट- बिसवाँ, ज़िला- सीतापुर (उ०प्र०)- 261201
मोबाइल- 9450382515